परिवहन व्यवस्था नहीं होने से, एक ओर किसानों की उपज नहीं बिकी, वहीं उपभोक्ताओं को सब्जियां नहीं मिल रही थी। विशेष अनुमति प्राप्त करके और ऑर्डर के लिए एक मोबाइल ऐप की सहायता से एक नवाचार-परक फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी (एफपीसी) ने दोनों जरूरतों को पूरा किया है
COVID-19 ने देश भर में सैकड़ों आम नागरिकों को आगे आने और इस संकट से लड़ने के लिए
प्रेरित किया है। जाति, वर्ग, लिंग और
धर्म से ऊपर उठकर, ये सभी देश को इस अप्रत्याशित संकट से
उबारने के उद्देश्य से अपने-अपने तरीकों से योगदान देने के लिए आगे आए हैं।
अतीत में
अराजकता और डकैती जैसे गलत कारणों के लिए जाने गए, मध्य प्रदेश के
चम्बल क्षेत्र के किसान अब राज्य को दिखा रहे हैं, कि ऐसे
कठिन समय में यह क्षेत्र और उसके किसान कैसे एक प्रकाश-स्तंभ बन सकते हैं।
हालांकि किसानों
के पास उपज थी, जिसे वे लॉकडाउन के कारण बेच नहीं सके थे, फिर भी उपभोक्ता को सब्जियां खरीदने को नहीं मिल रही थी। एक फार्मर्स
प्रोड्यूसर कंपनी (एफपीसी) ने अपने किसान सदस्यों को उपभोक्ताओं के साथ जोड़ने का
काम किया, जिससे दोनों की समस्या का समाधान हो गया।
चंबल के किसान
देश के दूसरे
हिस्सों की तरह, COVID-19 के कारण मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर के
निवासियों का दैनिक जीवन थम गया। शहर के सब्जी बाजार और अन्य किराने की दुकानें
बंद हो गई। लोग अपने घरों तक सीमित हो गए, जिससे उनकी दैनिक
जरूरतों के सामान की आपूर्ति में कमी शुरू हो गई।
जिस समय शहर के
निवासियों को घर में ही रहना पड़ रहा था, शहर से लगभग 40 किमी दूर,
नागरिकों के एक दूसरे समूह, अर्थात् किसानों
को, एक कठिन स्थिति का सामना करना पड़ रहा था।
ढुलाई
(ट्रांसपोर्ट) का साधन न होने, और पुलिस द्वारा गाँवों से कस्बों तक आवाजाही पर
लगाई गई रोक के चलते, ताज़ी सब्जियों की बिक्री लगभग असंभव
हो गई। लॉकडाउन के कारण कुछ किसान अपनी सब्जियों को फेंकने के लिए मजबूर हो गए थे।
उपभोक्ताओं और
किसानों को जोड़ना
ग्वालियर में
रहने वाले, चंबल एग्रो फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (CAFPCL)
के दो किसान सदस्य और निदेशक, नरेंद्र तोमर और
मनोज परमार के विचार कुछ अलग ही थे। वे अपने ही किसानों को इस हताशा भरी स्थिति का
सामना नहीं करने दे सकते थे। उन्हें लगा कि कुछ करने की जरूरत है।
तोमर और परमार
ने फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनियों के मध्यभारत कंसोर्टियम के सीईओ, योगेश द्विवेदी से संपर्क किया, जो मध्य प्रदेश में
सभी किसान उत्पादक कंपनियों का महासंघ है। उन्होंने उपभोक्ताओं और किसानों को
जोड़ने की प्रस्तावित पहल पर सलाह मांगी।
टेलीफोन पर हुई
उनकी बातचीत में, सब्जियों की खरीद शुरू करने और साथ ही उसके वितरण
की व्यवस्था करने का निर्णय लिया गया। यह शहर में रहने वाले लोगों के साथ-साथ,
आस-पास के गांवों के किसानों की सहायता करने का भी एक अच्छा अवसर
था।
घर-घर
वितरण
चंबल एग्रो
फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (CAFPCL) एक नई उत्पादक कंपनी है, जिसे सितंबर 2019 में स्थापित किया गया था। ऐसे
चुनौतीपूर्ण समय में ऐसी पहल, इस नए संगठन को अपनी
विश्वसनीयता स्थापित करने में मदद कर सकती है।
CAFPCL के निदेशकों में से एक, नरेंद्र ने ग्वालियर और
आसपास के इलाकों के ग्राहकों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। उन्होंने लोगों की
जरूरतों की एक सूची तैयार करनी शुरू की।
अगला कदम
स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क करना एवं स्वयं के लिए और अपने दो सहयोगियों के
लिए कर्फ्यू-पास की व्यवस्था करना था। उन्होंने सब्जियों के संग्रह और वितरण के
लिए दैनिक आधार पर एक टाटा मैजिक (छोटा ढुलाई वाहन) किराए पर ले लिया।
इसके साथ ही, उन्होंने किसानों से संपर्क करके सब्जियों की उपलब्धता के बारे जानकारी
एकत्रित करना शुरू किया। उन्हें योजना के बारे में समझाया गया। किसानों ने बिना
शर्त अपनी सहमति प्रदान कर दी, क्योंकि उन्हें आवागमन पर लगे
प्रतिबंध के कारण सब्जियों की ढुलाई और बिक्री में दिक्कत आ रही थी।
आशंकाओं के
बावजूद डटे हैं
जब चंबल एग्रो
एफपीसी टीम ने परिवार के सदस्यों से इस योजना पर चर्चा की, तो वे इसके लिए राजी नहीं थे| स्वाभाविक था,
कि उन्हें कोरोना वायरस के संक्रमण का डर था। टीम के सदस्यों ने,
मास्क व दस्ताने पहनने और दूरी बनाए रखने, आदि
जैसे सुरक्षा उपाय अपना कर उनकी चिंताओं का समाधान किया।
शुरू में कुछ
उपभोक्ताओं ने इस विचार को खारिज कर दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि चंबल एग्रो एफपीसी के
दो या तीन व्यक्तियों की एक छोटी टीम सब्जियां पहुंचाने का यह काम नहीं कर सकेगी।
टीम के सदस्य इस उदासीन रवैये के बावजूद भी डटे रहे।
बढ़ती पहुंच
शुरू में, प्रतिदिन 75 ग्राहकों तक ही पहुंच थी, जो धीरे-धीरे बढ़कर 300 हो गई। कुल मिलाकर FPC
अब तक 4,800 परिवारों तक पहुँच गई है। यह करीब
20 किसानों से हर दिन लगभग 3.5 टन
सब्जियों की खरीद करती रही है।
अकबरपुर, भाऊपुरा और सौजना के किसान खरीददारी में भाग लेते हैं। इन तीन गाँवों में,
ग्वालियर शहर से सबसे नजदीक 14 किमी दूर है और
सबसे दूर 42 किमी है। जो इन तीन गांवों के किसानों के पास
उपलब्ध नहीं होती, वह सब्जियाँ स्थानीय बाजार से खरीदी जाती
हैं और ग्राहकों को बेच दी जाती हैं।
शुरू में
प्रतिदिन औसत बिक्री 85,000 रुपये थी, जो कुछ ही
दिनों में एक लाख रुपये हो गई। FPC के पास शुरू में ढुलाई के
लिए एक वाहन था, फिर उत्पाद की मात्रा बढ़ने के साथ, दो वाहन और जोड़ दिए गए।
इस अनूठे अनुभव
में भाग लेने वाले किसानों ने इसे बहुत उत्साहजनक पाया। अकबरपुर गाँव के दीपेश
लोधी और भाऊपुरा गाँव के दुर्ग सिंह कुशवाह बताते हैं – “एफपीसी भगवान की भेजी नियामत है, क्योंकि हमारी पूरी
उपज सड़ चुकी होती। गाँव में कोई खरीदार थे नहीं।”
प्रशासनिक सहयोग
जिला प्रशासन को
CAFPCL
के काम के बारे में पता चला। जिला पंचायत के सीईओ ने इस पहल में मदद
करने के लिए, जिला ग्रामीण आजीविका मिशन (DRLM) टीम के कुछ कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया। अब जिला प्रशासन ने ग्वालियर
में उपयोग के लिए एक मोबाइल-ऐप, जिसे SG (एसजी) कहा जाता है, शुरू किया।
ग्वालियर के
निवासी इस (SG) ऐप के माध्यम से सब्जियों का ऑर्डर करते हैं।
इससे चंबल एग्रो FPC की पहुंच का विस्तार हुआ है। पहले वे 70-90
परिवारों तक आपूर्ति कर रहे थे, जो अब बढ़कर
प्रतिदिन 300 परिवारों तक हो गई है।
जिला प्रशासन ने
सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों की पैकिंग, भंडारण और वितरण के लिए एक सरकारी भवन दे दिया है।
इस पहल की सफलता
को देखकर, जिला प्रशासन ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर
ग्वालियर के अन्य प्रशासनिक खण्डों में भी यह प्रयोग लागू किया है। चंबल FPC
टीम को अब “COVID-19 वारियर्स (योद्धा)”
के रूप में पहचाना जाता है।
नया ‘सामान्य’
अब जब प्रधान
मंत्री द्वारा देश में लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा कर दी गई है, हम यह अटकलें (अनुमान) नहीं लगाना चाहते, कि लॉकडाउन
हटने के बाद का परिदृश्य क्या होगा।
फिर भी, चंबल एग्रो FPC के अनुभव से यह बात स्पष्ट है कि
हालात फिर पहले जैसे नहीं होंगे| एक नई स्थिति, पहली से बेहतर, सामान्य स्थिति के रूप में स्थापित
होगी, जिसमें किसानों और शहरी उपभोक्ताओं को जोड़ने के नए
अवसर सामने आएंगे।
उम्मीद है कि
नवाचार से बहुत से ऐसे विकल्प तैयार होंगे, जो उन बहुचर्चित गैर-पारदर्शी और शोषणकारी आपूर्ति
श्रृंखलाओं (सप्लाई चेन) को चुनौती दे सकेंगे, जो हमारे देश
के भोजन-उत्पादकों के हितों के विरुद्ध हैं। उस वैकल्पिक परिदृश्य में, चंबल एग्रो एफपीसी जैसे प्रयोग एक ‘नए सामान्य’
का विश्वास दिलाते हैं, जिसकी हम सब अभिलाषा
करते हैं।
योगेश द्विवेदी भोपाल स्थित फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनियों के मध्यभारत कंसोर्टियम (संघ) के सीईओ हैं।
अजीत कानितकर, विकास अण्वेश फाउंडेशन, पुणे में वरिष्ठ सलाहकार हैं। इससे पहले, उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन और स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन (दोनों नई दिल्ली स्थित) में काम किया। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद में अध्यापन भी किया है।विचार व्यक्तिगत हैं।
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