हैंडलूम कारीगरों के साथ काम करने वाले फैशन डिजाइनर सुनिश्चित करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान काम की कमी के बावजूद उनकी आर्थिक जरूरतें पूरी हों, और साथ ही उनके संपर्क में रहकर उनका मनोबल ऊंचा रखते हैं
बेंगलुरु की एक डिज़ाइनर दीपिका
गोविंद ने कहा – “तालाबंदी की घोषणा से बहुत पहले ही हमने अपने
कामगारों को कोरोनावायरस संक्रमण, उसके लक्षणों और उससे देखभाल
के बारे में जानकारी दे दी थी। फिर हमने उनके व उनके परिवारों के लिए
एंटी-बैक्टीरियल साबुन, सैनिटाइज़र और फेस मास्क खरीदे।”
कोच्चि स्थित श्रीजीत जीवन ने बताया
कि उनकी डिजाइन-फर्म ने लॉकडाउन से दो-एक दिन पहले ही, काम
बंद करने से पूर्व अपनी छोटी-सी टीम के बैंक विवरण ले लिए थे। उन्होंने लॉकडाउन के
दौरान कामगारों को नियमित भुगतान का विश्वास दिलाया।
मुंबई स्थित वैशाली शदांगुले कहती हैं – “मेरे पास पश्चिम बंगाल, कर्नाटक,
महाराष्ट्र और मुंबई के दूर-दराज इलाकों समेत देश के विभिन्न
हिस्सों से 40 कारीगर हैं। मुझे हालात का कुछ अंदाज़ा हो गया
था और इसलिए मैंने उन्हें उनकी आर्थिक मदद और नौकरी की सुरक्षा का आश्वासन देकर
अपने घर चले जाने के लिए कह दिया था।”
गोविंद, जीवन और शदांगुले सफल
और प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर हैं, जिनकी महारत हथकरघा बुनकरों के साथ और हथकरघा कपड़ों पर काम करने की है। वे अपने
कारीगरों और उनके परिवारों की जितना हो सके देखभाल करने के लिए प्रयास करते हैं,
विशेष रूप से ऐसे अनिश्चितता भरे समय में।
हथकरघा बुनकर
वस्त्र-उद्योग भारत में कृषि के बाद
दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है| इससे
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस समय ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 43.31
लाख हथकरघा बुनकरों और संबद्ध मजदूरों को रोजगार मिलता है। उनमें से
लगभग 87% लोग गांवों में रहते हैं। कुल संख्या का लगभग 77%
महिलाएं हैं, जो हाथ से बुने हुए कपड़ों की
दुनिया में लगभग 95% योगदान करने का बावजूद मुश्किल से औसतन 50
रुपये रोज कमाती हैं।
क्योंकि यह सेक्टर आवश्यक सेवाओं की
श्रेणी में नहीं आता, इसलिए बेहद कम भुगतान पाने वाले हथकरघा बुनकरों की
दुर्दशा की ओर मीडिया का ध्यान नहीं जाता। इसलिए किसी भी सहायता के लिए वे
ज्यादातर मास्टर कारीगरों पर निर्भर होते हैं जो उन्हें ठेके पर नियुक्त करते हैं,
या बुनकरों की क्लस्टर सोसाइटी उन्हें रोजगार देती हैं, या फिर उन कुछेक फैशन डिज़ाइनरों पर, जो हाथ से बुने
हुए कपड़े का उपयोग करते हैं।
लॉकडाउन सम्बन्धी मुआवजा
इन कठिन समय में वे अपने बुनकरों की मदद कैसे कर रहे हैं, इस बारे में VillageSquare.in से बात करते हुए, केरल की चेराई हैंडलूम वीवर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी की अध्यक्ष, अजीता सुरेश बताती हैं – “हम उन बुनकरों को वेतन दे रहे हैं, जिनके घर पर करघा है और जो बुनाई जारी रखे हुए हैं।”
सुरेश ने बताया – “हम उन बुनकरों को भुगतान नहीं कर सकते, जिनके पास घर
में करघा नहीं है और वे सामाजिक दूरी के नियम के कारण, सोसाइटी
के करघों पर काम करने के लिए आ नहीं सकते। इसलिए कोच्चि के पास के परवूर कस्बे की
सभी बुनाई से जुड़ी सोसाइटियों ने उन्हें मुआवजा देने के लिए एक सामूहिक फैसला लिया
है। विशु त्यौहार का समय होने के कारण प्रत्येक बुनकर को एडवांस के रूप में 2,000
रुपये और 1,000 रुपये कल्याण निधि के रूप में
दिए गए।”
घटती मांग
मेघालय के शिलांग में स्थित, ‘डैनियल
सिइम एथनिक फैशन हाउस’ की बिजनेस हेड जैनेसालिन पिंग्रोप ने
बताया – “डैनियल केवल अहिंसा एरी सिल्क और कॉटन जैसे हाथ से
कते धागे का काम करता है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में बुनकरों को एक लाभ यह है कि वे
सब पीढ़ियों से घर में ही अपने करघे पर काम करते रहे हैं। इसलिए COVID -19 के इस समय में सामाजिक दूरी का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।”
पिंग्रोप ने VillageSquare.in को बताया – “दिसंबर से या नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन शुरू होने के बाद से जिस सबसे बड़ी समस्या का हम सामना कर रहे हैं, वह है मांग का बेहद कम हो जाना। जब हमें कोई आर्डर ही नहीं मिलता, तो कपड़े के लिए ऑर्डर देना भी मुश्किल हो जाता है।”
उत्तर-पूर्वी बुनकरों, खासतौर
पर आदिवासी समुदायों को, एक और फ़ायदा यह है, कि उनके अपने घरों के आसपास थोड़ी जमीन होती है, जहां
वे अपनी दैनिक जरूरतों के लिए पैदावार लेते हैं। इसलिए भोजन की समस्या नहीं है।
इसके अलावा, वे घर में रेशम के कीड़े पालते हैं और अपना धागा
खुद ही कातते हैं। इसलिए, यदि उन्हें आर्डर मिल जाते,
तो वे काम करना जारी रख सकते थे।
पिंग्रोप के अनुसार – “यहाँ
प्रत्येक ग्राम प्रधान यह सुनिश्चित करता है कि वह हर एक ग्रामवासी से बात करे।
लेकिन जब तक हमें आर्डर नहीं मिलते और यात्राओं पर से प्रतिबंध नहीं हटता, तब तक हमें इस आर्थिक मंदी से बाहर आने में लंबा समय लगेगा। धीरे-धीरे
इसका असर ग्रामवासियों पर भी दिखना शुरू हो जाएगा।”
बुनकरों की चिंता
पिंग्रोप करिहलंग हैंडलूम और
हस्तशिल्प महिला सहकारी समिति के साथ काम करने वाले सदस्यों को कॉल करना सुनिश्चित
करती हैं और उन्हें सूचित करती हैं कि कहाँ भोजन के पैकेट बांटे जा रहे हैं, कहाँ
आर्थिक सहायता मिल रही है, और स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों पर
भी चर्चा करती हैं।
जब 2018 में केरल की बाढ़
ने चेन्दामंगलम की लगभग पूरी बुनकर कॉलोनी का सफाया कर दिया था, तो कई फैशन डिजाइनरों ने कुछ क्लस्टर गोद ले लिए, उन्हें
धन जुटाने और फिर से अपना जीवन पटरी पर लाने में मदद की। यह क्षेत्र अत्याधिक नर्म
और सोख लेने वाले सूती धागे से बुनाई के लिए प्रसिद्ध है, जो
साड़ी और धोती आदि बनाने के लिए इस्तेमाल होता है।
रौका ब्रांड के श्रीजीत जीवन ने VillageSquare.in को बताया – “हम केयर फॉर चेन्दामंगलम के साथ काम करते हैं, जो इन समितियों को सक्रिय रूप से मदद कर रहा है। हम लगातार यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हर कोई सुरक्षित हो और उनकी समितियां उन्हें पूरी तरह से सूचित रखें| साथ ही, केरल में सरकारी तंत्र बहुत कुशल है और इसने प्रत्येक कारीगर की सहायता की है।”
भविष्य की योजना
‘इकट’ कपड़े और कुदरती धागे के लिए प्रसिद्ध, “दीपिका गोविंद” नाम के ब्रांड की दीपिका गोविंद ने भी पिंग्रोप की आर्थिक चिंताओं का समर्थन किया। VillageSquare.in से बात करते हुए, उन्होंने स्वीकार किया कि लॉकडाउन के बाद का भविष्य डरावना दिख रहा है।
दीपिका गोविन्द ने कहा – “परिधान
बनाने वाली अधिकांश फक्ट्रियां बंद हो सकती हैं, क्योंकि
खरीदारों ने जुलाई/अगस्त महीनों के ऑर्डर पहले ही रद्द कर दिए हैं। खरीदारों ने भी
अभी से भुगतान रोकने शुरू कर दिए हैं। मुझे लगता है कि लॉकडाउन खत्म होने पर सबसे
ज्यादा सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी। और उसी के लिए मैं तैयारी कर रही हूं।”
वैशाली एस. ब्रांड की वैशाली शदांगुले
जहाँ अपने कारीगरों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं, वहीं
साथ ही साथ उनके पास कारीगरों के भविष्य के लिए योजना भी है। उनका अगला प्रोजेक्ट
उनका पहला ब्राइडल (दुल्हन) कलेक्शन होने वाला है। शदांगुले ने हमेशा चंदेरी,
पैठणी, जमधानी, गुलेड़ागड्डा
खुन, आदि जैसी पारंपरिक बुनाई पर काम किया है।
शदांगुले VillageSquare.in को बताती हैं – “मैंने फैसला किया है कि इस ब्राइडल कलेक्शन से होने वाला सारा लाभ मेरे कारीगरों के लाभ के लिए जाएगा। इसलिए भविष्य में, इस पैसे से उनकी कुछ समस्याओं का निवारण हो सकेगा|”
सभी डिजाइनर इस बात पर सहमत हैं कि
वर्तमान में स्वास्थ्य प्राथमिकता है। उन सब को विश्वास है जैसे ही संक्रमण का
फैलना रुकेगा और लॉकडाउन हटेगा, उनकी वापसी होगी।
सुरेखा कडप्पा-बोस
ठाणे में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?