जब सबसे वंचित लोगों ने साँझा किये, अपने सीमित से संसाधन!
खाद्य ज़रूरत को पूरा करने किचन गार्डन से जुड़ी एक सामूहिक पहल
खाद्य ज़रूरत को पूरा करने किचन गार्डन से जुड़ी एक सामूहिक पहल
कोविड-19 के संक्रमण काल में हमें रोज ऐसे चित्र देखने को मिलते हैं, जिनमें कई संस्थाएं जरूरतमंद परिवारों को राहत सामग्री प्रदान कर रही हैं| वास्तव में, इस समय खाद्य सुरक्षा का विषय, जीवन की सबसे अहम् जरूरत और सबसे बड़ी चुनौती बन गया है| लेकिन ऐसे में सबसे गरीब, उपेक्षित और कमज़ोर वर्गों द्वारा अपने बेहद सीमित संसाधनों से ऐसे परिवारों की मदद करना, जिनमें कुपोषित बच्चे या गर्भवती या नवजात शिशुओं वाली माताएं और वृद्ध सदस्य हैं| इन परिस्थितियों में इस्तेमाल किए गए संसाधनों में एक है – किचन गार्डन|
पोषण का संकट
इस महामारी के समय में, 5 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और नवजात शिशुओं वाली महिलाओं के सामने पोषक तत्वों की कमी का संकट खड़ा हो गया| इसके मुख्य कारण लॉकडाउन, आहार-कार्यक्रमों का व्यवस्थित सञ्चालन न होना और बेरोज़गारी हैं| ऐसे में, समाज ने अपनी आंतरिक ताकत का ही इस्तेमाल किया और कुपोषण को बड़ा संकट बनने से रोका|
मध्यप्रदेश में कुपोषण के विरुद्ध सामुदायिक प्रबंधन कार्यक्रम संचालित कर रहे समूह, ‘विकास संवाद’ द्वारा किचन गार्डन तैयार करने में अनेक परिवारों को सहायता की थी| ऐसे ही 232 परिवारों ने इस संकट काल में 425 परिवारों को 37.25 क्विंटल सब्जी, यानि प्रति परिवार 16 किलो सब्जियां उपलब्ध कराईं| इस पहल द्वारा कुपोषण से प्रभावित 217 बच्चों, 140 गर्भवती और नवजात शिशुओं वाली महिलाओं और 68 बुजुर्गों को सहायता प्राप्त हुई|
समूहों द्वारा पहल
रीवा जिले में सक्रिय रूप से महिलाओं और बच्चों के पोषण के लिए काम कर रही, आदिवासी महिला, सियादुलारी बताती हैं – “COVID-19 संक्रमण का फैलना शुरू होने पर, हमने अपने ‘दस्तक महिला और युवा समूह’ में यह चर्चा की, कि इन परिस्थितियों में हम अपने गाँव के बच्चों और गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं के पोषण की व्यवस्था कैसे करेंगे? यह इसलिए जरूरी था, क्योंकि गाँव के लोग सप्ताह में एक बार, 20 किलोमीटर दूर जाकर हफ्ते भर का राशन-पानी लेकर आते हैं|”
सियादुलारी आगे कहती हैं – “लॉकडाउन के कारण गंभीर चुनौती खड़ी हो गयी थी| तब हमने गाँव गाँव जाकर दो काम किये – सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से ज्यादा से ज्यादा लोगों को राशन दिलवाना और गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं और 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए पोषण की व्यवस्था करना| ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि 15 मार्च के बाद लगभग एक महीने तक आंगनवाडी के पोषण आहार की व्यवस्था भी सुचारू रूप से शुरू नहीं हो पायी थी| रीवा जिले के अपने कार्यक्षेत्र में हमने लगभग 1100 परिवारों को हमने किचन गार्डन तैयार करने में मदद की थी| चर्चा में तय हुआ कि सब्जियां उगाने वाले परिवार, जितना संभव हो सके, बच्चों और महिलाओं के पोषण में सहयोग करें| हम शुरू से सह-अस्तित्व की भावना को प्रोत्साहित करते रहे हैं|”
कुछ कहानियां सहयोग एवं संवेदना की
सशक्तिकरण के प्रभाव – व्यापक होती सोच
परियोजना से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता, रवि पाठक कहते हैं कि “महामारी ने लोगों को बहुत भयभीत कर दिया है, किन्तु लोगों ने परिस्थिति का सामना करने के रास्ते निकालने भी शुरू कर दिए हैं। इसमें सबसे आगे वह महिलाएं रहीं, जो तीन-चार सालों से स्वास्थ्य, पोषण और नेतृत्व क्षमता विकास की प्रक्रिया से जुड़ी हुई हैं|”
समाज की आंतरिक ताकत – लड़ रही संकट से
मध्यप्रदेश में कुपोषण गंभीर विषय है। यहाँ 11 लाख कुपोषित बच्चों के परिवार बहुत जद्दोजहद करके अपनी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। COVID-19 से उत्पन्न हुई स्थितियों ने ज्यादा बड़ी समस्याएं खड़ी कर दीं| लेकिन सामाजिक बदलाव के लिए किये जा रहे संस्थागत कार्यों के असर की पड़ताल भी तो ऐसे ही संकट के समय में होती है| ऐसे में 100 गांवों में कुपोषण के सामुदायिक प्रबंधन के लिए संचालित कार्यक्रम में, 5867 किचिन गार्डन और महिला समूहों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं|
कुपोषण मिटाने के उद्देश्य से चलाये जा रहे कार्यक्रम में जल संरचनाएं भी बनाई गयीं, बीजों का संरक्षण और खेती का विकास, किचिन गार्डन भी स्थापित की गईं हैं। इस क्षेत्र में बच्चों पर पड़ रहे असर का अध्ययन किया जा रहा है| अध्ययन के मुताबिक 1435 परिवारों में से 232 परिवारों ने 425 परिवारों के साथ तकरीबन 37.25 क्विंटल सब्जियां निशुल्क साझा कीं। यानी सामाजिक बदलाव के लिए सामाजिक संस्थानों द्वारा किए जा रहे सतत प्रयासों से समानुभूति एवं सहयोग का भाव तो पैदा हो रहा है|
सचिन कुमार जैन मध्य प्रदेश के पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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