कृषि क्षेत्र कामगारों की कमी और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं की चुनौतियों का सामना कर रहा है। सरकारी उपायों से कृषि अर्थव्यवस्था को स्थिर किया जा सकता है और खाद्य उत्पादन में लगे सभी लोगों को संभाला जा सकता है
COVID-19 महामारी ने अपने विषैले जाल से दुनिया को हिला दिया है। पिछले चंद महीनों
में, दुनिया लगभग ठहर गई है और एक दुखद पतन की कगार पर खड़ी
है, क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा
है।
भारत ने संक्रमण
के प्रसार को रोकने के लिए 17 मई तक लॉकडाउन लागू करके समय पर उपाय किया है,
जो और आगे भी बढ़ाया जा सकता है। जाहिर तौर पर, इसका हमें लाभ हुआ है, क्योंकि हाल के दिनों में
इसके अचानक और तेजी से फैलने की रिपोर्ट नहीं आ रही है, हालांकि
संक्रमित लोगों की संख्या 53,000 से अधिक हो गई है।
लेकिन इसका प्रभाव
अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र और जीवन के हर पहलु पर पड़ा है। इनमें से कृषि और
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन ने सबसे अधिक चोट पहुंचाई है। फिर भी, कृषि
क्षेत्र में विभिन्न उपायों के द्वारा स्थिरता लाई जा सकती है, ताकि खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
चुनौतियां
अन्न
उगाने वाले अधिकांश लोगों को, स्टॉक की उपलब्धता के बावजूद
भोजन वितरण में नजरअंदाज करना, फसल कटाई के लिए मजदूरों की
कमी, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के चलते किसानों द्वारा
फल-सब्जी न बेच पाना और मांग में गिरावट के कारण मजबूरी में दूध बेचना – कृषि
क्षेत्र की तात्कालिक चुनौतियां हैं।
हालाँकि
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से खाद्य पदार्थों के वितरण के लिए
प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन लक्षित आबादी के एक वर्ग
तक यह नहीं पहुँच रहे हैं। उनमें से अधिकतर सीमांत और छोटे किसान, खेत मजदूर और बटाई पर बोने वाले लोग हैं – जो वास्तव में खाद्य उत्पादन
में लगे हुए हैं। ऐसा अयोग्य वितरण-नेटवर्क के कारण हो रहा है| यह हमें बंगाल के उस महा-अकाल के दौरान 25 लाख (2.5
मिलियन) लोगों की दुखद मौत की याद दिलाता है, जिसके
दौरान भी हमारे पास पर्याप्त खाद्य भंडार था।
लॉकडाउन
का सबसे अधिक दिखाई देने वाला और तत्काल असर यह हुआ है कि कृषि कार्यों के लिए
मजदूरों की कमी है। रबी फसल की कटाई के इस मौसम में प्रवासी श्रमिकों की प्रमुख
भूमिका होती है। उदाहरण के लिए, बंगाल में बोरो चावल की कटाई के
लिए हर बार झारखंड से जो अनेक मजदूर आते थे, वह अब इस पार
नहीं आ पाएंगे, जिस कारण चावल की पैदावार पर असर पड़ेगा।
मशीनों से कटाई का जो दूसरा सबसे अच्छा विकल्प है, उसकी अपनी
सीमाएँ हैं। अनाज की अतिरिक्त नमी, भूसे-पुआल (चारे और छप्पर
में उपयोग) का नुकसान और कंबाइंड हार्वेस्टर (फसल काटने की गाड़ी-मशीन) का सीमित
संख्या में होना समस्या का कारण हैं।
किसानों
द्वारा अपनी सब्जियों को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ देने की विचलित करने वाली
तस्वीरें, एक नाजुक मार्केटिंग व्यवस्था की
कहानी कहती हैं, खासतौर पर इस लॉकडाउन समय में। इससे न सिर्फ
किसान को कष्ट पहुंचेगा, बल्कि बाजार में दामों में बढ़ोत्तरी
भी होगी।
लॉकडाउन
में लाखों रेस्टोरेंट, होटल और सड़क-किनारे के
रेहड़ी-खोमचे बंद होने के कारण, दूध की खपत में 25% की गिरावट आई है, जिससे बाजार की रौनक पर अभूतपूर्व
चोट पहुंची है और डेयरी किसानों को 5-7 रुपये कम कीमत
प्राप्त हुई है। हालांकि ज्यादातर लोगों के घर में ही रहने के कारण दूध और
दूध-उत्पादों की घरेलू खपत में वृद्धि हुई है, लेकिन यह
दूसरे क्षेत्रों में गिरी गई मांग को पूरा करने के लिए बेहद कम है। ऐसे में,
गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु
और कर्नाटक जैसे दुग्ध उत्पादक राज्यों के डेयरी-किसानों को मजबूरी में अपने
उत्पाद बेचने पड़े।
कृषि अर्थव्यवस्था का मजबूतीकरण
लॉकडाउन
के दौरान, पर्याप्त खाद्य भंडार, भरपूर रबी की फसल और सामान्य मानसून की भविष्यवाणी, कृषि
की गति को आगे बढ़ाने वाले महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलु हैं। इसके आलावा, सरकार को अन्य बातों के साथ-साथ, मशीनों द्वारा कटाई
के लिए सुविधा और कृषि उत्पादों की आपूर्ति जैसे पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
उचित
सरकारी उपायों द्वारा स्थानीय स्तर के समाधान अपनाते हुए मजदूरों की कमी को दूर
किया जाना चाहिए। छोटे और सीमांत किसानों को कंबाइंड हार्वेस्टर (कटाई मशीन) के
उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारें धन आवंटित कर सकती हैं। किसानों के
दो वर्ग कुल किसानों का 85% हिस्सा हैं और ये आर्थिक रूप
से अक्सर नाजुक और कमजोर होते हैं। सरकार को इसे लागू करने के तौर-तरीकों और
स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर आदि की व्याख्या करनी चाहिए।
किसानों
को उनकी फसल बेचने में आने वाली भारी चुनौतियों को देखते हुए और कम कीमत द्वारा
उनके शोषण को रोकने के लिए, राज्य सरकारों को चाहिए कि वे
स्थानीय मंडियों के कामकाज के दुरुस्तीकरण के लिए एक स्पष्ट रणनीति अपनाएं। इससे
किसानों को उचित मूल्य और कृषि उत्पादों की बिना रूकावट आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
अगले कम से कम 4-5 महीनों के लिए डेयरी किसानों के लिए विशेष
मूल्य संरक्षण रणनीति तैयार की जानी चाहिए।
खरीफ
का मौसम शीघ्र आ रहा है और ऐसे में कृषि सामान, जैसे
बीज, खाद, कीटनाशक और मशीनरी की
उपलब्धता अतिमहत्वपूर्ण है। इन कृषि वस्तुओं की सुचारू आपूर्ति के लिए राज्य
सरकारों ने पहले ही कई उपाय किए हैं। फिर भी, इस पर नजदीकी
से नजर रखी जानी चाहिए और किसी भी बाधा को शीघ्रातिशीघ्र दूर किया जाना चाहिए।
गैर-कृषि
आय के कम होने और उचित मूल्य पर फसल बेचने में समस्याओं के कारण,
अब खेतिहर परिवारों की काम में लेने लायक पूंजी काफी कम हो गई है।
इसलिए सरकार को कृषि क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता बढ़ाने के लिए नई पहल करनी चाहिए।
सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, कमर्शियल बैंकों और स्वयं सहायता समूह महासंघों की ऋण-क्षमता बढ़ाई जानी
चाहिए। इससे किसानों को खेती के नियमित कामकाज करने में मदद मिलेगी।
जब
किसान बाहर होते हैं और काम करते हैं, तो उन्हें संक्रमण का खतरा होता
है। ब्लॉक और पंचायत जैसे स्थानीय प्रशासन को आपसी दूरी (सोशल डिस्टैन्सिंग)
सम्बन्धी घोषित दिशानिर्देशों को किसानों और समुदाय तक पहुंचाने में नेतृत्व
प्रदान करना चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा
हाल ही में प्रसारित फार्म-एडवाइजरी इस संबंध में एक उपयोगी दस्तावेज है। इससे
पर्याप्त सुरक्षा उपाय सुनिश्चित होंगे, और संक्रमण का
प्रसार और उसके प्रभाव से दूसरे नुकसान से बचाव होगा।
यह
एक सामान्य वर्ष नहीं है और इसलिए कृषि सम्बन्धी गतिविधियों में हुए किसी भी तरह
के व्यवधान की हमें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इस अभूतपूर्व स्थिति को ध्यान में
रखते हुए, राज्य सरकारों को मोबाइल-आधारित
फसल, मौसम और बाजार सम्बन्धी जानकारी के माध्यम से किसानों
की सहायता के लिए अतिरिक्त कदम उठाने चाहिए।
दीर्घकालिक प्रभाव
भारत
में, विभिन्न राज्यों में लगभग पांच करोड़ प्रवासी
काम करते हैं। जब इस महामारी का प्रकोप कम होगा, तो सदमे और
जज्बाती प्रभाव के कारण, उनके जल्दी ही काम पर वापिस आ जाने
की संभावना नहीं है। शीघ्र ही एक ऐसा परिदृश्य बनने वाला है, जब केरल, महाराष्ट्र, पंजाब और
गुजरात जैसे राज्यों में अकुशल और अर्ध-कुशल मजदूरों की कमी का सामना किया जाएगा,
जबकि झारखंड, बिहार और ओडिशा में लौटकर आए
प्रवासी लोगों की उपस्थिति के कारण मजदूरों की अधिकता होगी।
COVID-19
महामारी के बाद, उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों से चलकर, भारत के
‘ब्रेड बास्केट’ राज्य पंजाब और हरियाणा के
लिए आने वाले खेतीहर मजदूरों की संख्या में भारी गिरावट आएगी| फसल कटाई और खरीद के लिए, इन दोनों राज्यों को ही
कुल मिलाकर लगभग 16 लाख कृषि मजदूर चाहियें। इसका प्रभाव यह
हो सकता है कि मजदूरों की कमी की समस्या से उबरने के लिए, फसलों
का पैटर्न बदलते हुए ऐसी फसलें उगाई जाएं, जिनमें कम श्रम की
जरूरत हो।
ऐसी
अपेक्षाएं हैं कि मौजूदा संकट के कारण कृषि क्षेत्र के लिए अधिक बजट आवंटित किया
जाए। मौजूदा वित्त वर्ष में, केंद्र सरकार ने कृषि के लिए 142,000
करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और इसका आधे से अधिक हिस्सा
प्रधानमंत्री-किसान योजना (किसानों को सीधे नकद सहायता) पर खर्च किया जाएगा। इस
आजीविका संकट के चलते, इस क्षेत्र को अधिक धन प्राप्त होने
की आशा है।
इस
समय सबसे बड़ी चुनौती, एक प्रभावी सप्लाई व्यवस्था के
द्वारा भोजन, भंडारों से उन लोगों तक पहुँचाना है, जिन्हें इसकी आवश्यकता है। मौजूदा खामियों को ठीक करने के लिए प्रशासन
अनवरत काम में लगा है। अप्रत्यक्ष रूप से यह दीर्घकालिक दिशा-सुधार का एक उपाय है,
जिससे खाद्य आपूर्ति व्यवस्था में सुधार आएगा। इस तरह, हो सकता है इस महामारी के बाद एक अधिक बेहतर और प्रभावशाली खाद्य वितरण
नेटवर्क उभर कर सामने आए।
डिजिटल समाधान और
परामर्श का बढ़ा हुआ इस्तेमाल इस लॉकडाउन के बाद भी जारी रहेगा। इसलिए आने वाले
वर्षों में, किसानों की खुशहाली के लिए यह क्षेत्र, डिजिटल मंचों से अधिक सुसज्जित होगा।
एसके मुशर्रफ हुसैन मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन विशेषज्ञ हैं;
स्वाति नायक बीज प्रणाली (सीड सिस्टम) वैज्ञानिक हैं। दोनों
अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, ओडिशा में काम करते
हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?