लॉकडाउन के कारण पहले से ही संकट से गुजर रहे सुंदरवन के बागवानी किसानों को, एम्फान चक्रवात के कारण खारे पानी की घुसपैठ और पेड़ों के नुकसान को झेलना पड़ रहा है, जबकि बाघ-विधवाओं (बाघ द्वारा मारे गए लोगों की पत्नियां) के आजीविका और घर ख़त्म हो गए हैं
अबू कलाम मोल्ला मुस्लिम कैलेंडर के नौवें महीने, रमजान के खत्म होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे,
ताकि उपवास खत्म होने के साथ, वे अपने परिवार
के साथ ईद उल फितर मना सकें
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के सहजादापुर
गांव में रहने वाले, 45 वर्षीय मोल्ला ने अपने तीन बच्चों के लिए नए
कपड़े खरीदे थे। लेकिन त्योहार के दिन, उन्हें और उनके
बच्चों को पुराने कपड़े पहनने पड़े। उनकी हालत ख़राब दिख रही थी, क्योंकि त्योहार से पांच दिन पहले, चक्रवात अम्फान
उनके गांव से टकराया था।
पश्चिम बंगाल में आने वाले एम्फान
चक्रवात का सबसे अधिक प्रभाव सुंदरबन पर पड़ा, जहाँ उन अनगिनत बागवानी किसानों और ‘बाघ-विधवाओं’ को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा,
जो देशव्यापी लॉकडाउन के कारण पहले से ही तकलीफ में थे।
आजीविका-नुकसान
बागवानी करने वाले किसान, अबू
कलाम मोल्ला के फल से लदे चीकू के 52 पेड़, 20 मई को उनके गांव में आने वाले चक्रवात एम्फान की भेंट चढ़ गए। वे कहते हैं
– “इतना गंभीर नुकसान हुआ है कि उसे शब्दों में बताना असंभव
है। पेड़ मेरी आजीविका का एकमात्र स्रोत थे। लेकिन अब सब कुछ ख़त्म हो गया है।”
मोल्ला ने VillageSquare.in को बताया – “चीकू के पेड़ दूसरी फसलों की तरह नहीं हैं, जिन्हें अगले साल उगाया जा सकता है। मुझे एम्फान चक्रवात से हुए नुकसान से उबरने में कम से कम 20 साल लगेंगे। हम ऐसी परिस्थितियों में ईद कैसे मना सकते हैं?”
उसी गाँव के बागवानी किसान, मजीबुर
गयेन की स्थिति भी अलग नहीं है। 55 वर्षीय गयेन के भी
फल से लदे, लगभग 30 चीकू के पेड़ थे,
लेकिन अब उनके बाग में सिर्फ टूटी हुई शाखाएं ही बची हैं। चक्रवात
की चपेट में आने से फल गिर गए।
गयेन कहते हैं – “तबाही
बहुत बड़ी है। चक्रवात ने मुझे तोड़ दिया है। नए पेड़ों पर फल आने में 12 से 15 साल लगेंगे। लॉकडाउन के कारण पहले ही हमारा
धंधा दो महीने से बंद था और चक्रवात ने हमारी आजीविका को हमेशा के लिए नष्ट कर
दिया है।”
चीकू उत्पादन का गढ़
सहजादापुर गाँव के 200 से अधिक किसान चीकू लगाते हैं। फल दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं और
दूसरे देशों को निर्यात किए जाते हैं। सुंदरनगर के प्रशासनिक ब्लॉक, जयनगर – 1 और 2, पश्चिम बंगाल
में चीकू उत्पादन का केंद्र हैं।
राज्य के उत्पादन का लगभग 80% इसी क्षेत्र में होता है। पश्चिम बंगाल अपने स्वादिष्ट चीकू के लिए देश भर
में जाना जाता है। राज्य में चीकू फल के व्यापार में पांच लाख से अधिक लोग सीधे
तौर पर लगे हैं।
किसानों पर जमीन के पट्टा धारकों
द्वारा अपने पैसे वापस करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। सहजादापुर के बागवानी
किसान,
अफतारुद्दीन गयेन (40) ने बताया – “यहाँ के अधिकांश किसान अपने बाग, कम से कम तीन साल
के लिए पट्टे पर देते हैं। भुगतान पेड़ों की संख्या के आधार पर तय किया जाता है।”
पट्टा-धारक खेतों को आगे पट्टे पर दे देते हैं या बिचौलियों को फल बेचते हैं। आफ़तारुद्दीन ने VillageSquare.in को बताया – “पट्टा-धारकों ने पहले ही जमीन के मालिक किसानों को एडवांस दे दिया था, लेकिन अब वे उनसे पैसा वापस करने या एग्रीमेंट दो दशकों तक बढ़ाने के लिए कह रहे हैं। हम बेबस हैं।”
सेरंगार पुर गाँव की रहने वाली अनवरा शेख (45) चक्रवात से हुई तबाही
को याद करके सिहर उठती हैं। उन्होंने VillageSquare.in को
बताया – “चक्रवात आने से दो दिन पहले ही, प्रशासन ने पहले ही चेतावनी जारी करते हुए, हमें
सुरक्षित क्षेत्रों में चले जाने के लिए कहा था। लेकिन हमने चेतावनी को गंभीरता से
नहीं लिया, क्योंकि सुंदरबन में तूफान बहुत आम है। 20
मई की सुबह, आकाश घना काला हो गया और हवाओं की
गति तेज हो गई। साफ तौर पर हमने एम्फान को कम करके आंका था और ऐसा करना हमें महंगा
पड़ा।”
देखते ही देखते, शेख
की टिन की छत उड़ गई। उनके घर में लगा एक पेड़ उखड़ गया और उनकी छत पर गिर गया।
मिट्टी के घर एक के बाद एक ढहने लगे। वे कहती हैं – “हम
भाग्यशाली हैं कि हम बच गए। मैंने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं देखा था।”
राज्य प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि वे संपत्ति और आजीविका के
नुकसान का आंकलन कर रहे हैं। दक्षिण 24 परगना जिले के एक वरिष्ठ बागवानी अधिकारी ने बताया – “हमने राज्य सरकार को चीकू के पेड़ों के नुकसान के बारे में एक विस्तृत
रिपोर्ट भेजी है, और चक्रवात से प्रभावित लोगों को पौधे
लगाने के लिए आवश्यक सामान प्रदान करने के लिए कहा है।”
सबसे बुरी तरह
प्रभावित सुंदरबन
पिछली तीन सदियों
में सुंदरवन में आने वाला ये सबसे बुरा और सबसे भयंकर चक्रवाती तूफान था। राज्य
सरकार के अनुसार, राज्य भर में 86 लोगों की जान चली गई और लाखों लोग बेघर हो गए हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र सुंदरबन के सागर, नामखाना, कुलतली और पथरप्रतिमा प्रशासनिक ब्लॉक हैं। चक्रवात के एक हफ्ते बाद भी,
सुंदरबन के हर चप्पे और कोने में तबाही के दृष्य दिखाई देते हैं।
सुंदरबन में पड़ने वाले उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों के अधिकांश हिस्सों
में बिजली नहीं है, और लोगों को गर्मी से बचने और पानी के
पंप के लिए, बेतहाशा कीमतों पर जनरेटर किराए पर लेने पड़ रहे
हैं। सड़कों पर इधर उधर पड़े बिजली के खम्बे और तार दुर्घटना का खतरा बढ़ा रहे हैं।
बाघ-विधवाओं की
क्षति
किसानों के अलावा,
सबसे ज्यादा प्रभावित वो विधवाएँ हैं, जिन्हें
सुंदरबन की बाघ-विधवाओं के रूप में जाना जाता है, जिनके पति मनुष्य-जानवर
के संघर्ष का शिकार हो गए| उन्हें लॉकडाउन और चक्रवात की
दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
चक्रवात से सबसे
अधिक बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक, गोस्बा प्रशासनिक ब्लॉक से लगते
बाली द्वीप पर, लगभग 3,000 विधवाएं
रहती हैं। इनमें ज्यादातर विधवाएँ अपनी आजीविका के लिए छोटी इकाइयों में काम करती
हैं, जिनमें लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया। कइयों के सिर
पर की छत एम्फान चक्रवात के कारण चली गई।
एक बाघ-विधवा और बाली द्वीप के बिजयनगर गांव की निवासी साहेदा गाजी (42) ने VillageSquare.in को बताया – “लॉकडाउन के कारण पहले से ही पिछले दो महीनों से हम भूखे मर रहे हैं। चक्रवात ने मेरे घर को कीचड़ के ढेर में बदल दिया है। बांस का ढांचा एकमात्र निशान है कि वहां मेरा घर था। अच्छा होता कि चक्रवात ने हमारी जान ले ली होती|”
साहेदा गाजी सुंदरबन
के एक खतरनाक इलाके में रहती हैं, क्योंकि उनका घर जंगल के दूसरी तरफ
है और बीच में नदी पड़ती है। ग्रामीणों को लगातार बाघों और मगरमच्छों से दहशत में
रहना पड़ता है, जो रिहायशी जगहों में आ जाते हैं।
सुंदरबन के रिहायशी स्थानों में बाघों को घुसने से
रोकने के लिए लगाई गई पूरी नायलॉन बाड़ को, चक्रवात के कारण नुकसान हुआ है, जिससे बंगाल के इस सबसे बड़े बाघ अभयारण्य में मानव-जानवरों के बीच फिर से
संघर्ष का खतरा पैदा हो गया है।
पुनर्वास के लिए पहल
तटबंधों के कई
स्थानों पर टूट जाने के कारण, खारा पानी खेतों में प्रवेश कर रहा
है, जिससे उनकी तकलीफ और बढ़ गई है। बिजयनगर गाँव की निवासी
पारोमिता मंडल (55) कहती हैं – “हम
सब्जियां उगाते हैं और स्थानीय बाजार में बेचते हैं। लेकिन खारे पानी ने खड़ी
फसलों को बर्बाद कर दिया है। मैं अपने परिवार को कैसे खिलाऊंगी?”
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुंदरबन के विभिन्न इलाकों में लगभग 70 तटबंध टूट गए हैं, जिससे एक हजार से अधिक घर नष्ट हो गए हैं। गैर-लाभकारी संस्था, सुंदरबन फाउंडेशन के संस्थापक प्रसनजीत मंडल ने बताया – “अधिकांश घर बिद्याधारी नदी के तट पर थे, जो चक्रवात में बह गए।”
प्रसनजीत मंडल ने VillageSquare.in को बताया – “प्रशासन ने अब तक स्थानीय लोगों को तिरपाल-चादरें दी हैं। हम उन्हें मुफ्त राशन-किट वितरित कर रहे हैं।” वन अधिकारियों ने बताया कि वे मानव और जानवरों में संघर्ष को रोकने के लिए नायलॉन जाल की मरम्मत कर रहे हैं।
दक्षिण 24
परगना के डिवीज़नल वन अधिकारी (डीएफओ), संतोष
जी.आर. कहते हैं – “प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने
के लिए मैंग्रोव पेड़ लगाना समय की जरूरत है। अकेले मेरे क्षेत्र में लगभग 1,600
हेक्टेयर में मैंग्रोव के पेड़ नष्ट हो गए हैं|”
गुरविंदर सिंह
कोलकाता स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?