डेढ़ लाख से अधिक महिलाओं ने, जिन्हें मोबाइल फोन के माध्यम से अपनी भूमि के रिकॉर्ड को देखने और बनाए रखने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, ने दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया पूरी करनी सीख ली है, ताकि उनका मालिकों के रूप में पंजीकरण हो जाए
पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले के पश्चिम खाटलबारी गांव में, स्वर्णबाला रॉय भूमि अधिकारों के बारे में हो रही एक
बैठक में, अपने मोबाइल फोन के एक पृष्ठ को पढ़ने में व्यस्त
थीं। 60 वर्षीय विधवा, स्मार्टफोन का
आराम से और एक स्वाभाविक गर्व की अनुभूति के साथ इस्तेमाल कर रही थी, क्योंकि वह अपनी संपत्ति के विवरण को दर्शाने वाले उस पृष्ठ पर पहुंच गई,
जहाँ मालिक के रूप में उसका नाम लिखा था।
तकनीक-प्रेमी महिलाएं
बहुत ध्यान से सुन रही गांव की महिलाओं को रॉय कहती हैं – “लगभग पाँच साल पहले, मैंने अपनी
बचत से जमीन खरीदी। तब जमीन की रजिस्ट्री की गई थी, लेकिन
कोई खतियान (म्युटेशन) दस्तावेज नहीं था।”
संतोषभरे भाव के साथ उन्होंने आगे कहा – “म्यूटेशन केवल एक साल पहले तब हुआ, जब मुझे भूमि-अधिकारों सम्बन्धी प्रशिक्षण के बाद यह समझ में आया, कि म्यूटेशन न केवल सरकारी लाभ पाने के लिए, बल्कि
भविष्य में संपत्ति बेचने के लिए भी जरूरी है।” रॉय ने बताया
कि वे अपने फोन से अपने पांच बीघा जमीन (एक एकड़ से कुछ अधिक) की म्यूटेशन पूरी कर
सकती हैं।
भूमि अधिकारों के बारे में मोबाइल के प्रयोग से जानने और यह सुनिश्चित
करने के बाद, कि उनका स्वामित्व मान्य
हो गया है, अब वह गाँव की दूसरी महिलाओं को यह जानकारी दे
रही हैं। वे बैठक में अपने अधिकारों के बारे में पता लगाने और यह समझने के लिए आई
थी, कि वे इस उद्देश्य से स्मार्ट फोन का उपयोग कैसे कर सकते
हैं।
मोबाइल स्क्रीन पर हाथ चलाते हुए रॉय कहती हैं – “हालांकि मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, लेकिन मुझे स्मार्ट फोन इस्तेमाल करना आता है। यह उपयोगी साबित हुआ
क्योंकि मैं मोबाइल पर अपनी जमीन के बारे में विवरण देख सकती हूँ और जरूरी बदलावों
के लिए, स्थानीय प्रशासन से संपर्क कर सकती हूँ।”
भूमि-साक्षरता
रॉय ऐसी अकेली महिला नहीं हैं। महिला भूमि-साक्षरता (WLL) कार्यक्रम के अंतर्गत, भूमि
अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, राज्य
सरकार द्वारा नियुक्त, ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों (बीएलटी) ने
बताया कि उन्होंने अब तक अलीपुरद्वार जिले के 17 गांवों में 4,000
से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है।
महिला भूमि साक्षरता के सिद्धांत को, 2016 में पश्चिम बंगाल में मूल रूप से लागू किया गया था| दुनिया
के सबसे गरीब, विशेषकर महिलाओं, के
भूमि अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था,
लैंडसा ने इसे लागू किया।
इसे पश्चिम बंगाल के बीरभूम और मालदा जिलों के दो प्रशासनिक खण्डों
में 2016 में, पश्चिम
बंगाल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलकर, एक पायलट
प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था, जिसे आमतौर पर
आनंदधारा के रूप में जाना जाता है।
अब लैंडसा, जिला स्तरीय प्रशिक्षकों (DLTs)
के प्रशिक्षण के लिए विस्तारित कार्यक्रम कार्यक्रम को तकनीकी सहयोग
प्रदान करता है, जो आगे ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों (BLTs)
को प्रशिक्षण देते हैं।
लैंडसा के भारत में कार्यक्रमों के राष्ट्रीय निदेशक, पिनाकी हलदर कहते हैं – “हमने
पाया कि भूमि के बारे में जानकारी का भारी अभाव था, और विशेष
रूप से महिलाओं की स्थिति कमजोर थी, क्योंकि वे ज्यादातर
मामलों में अपने भूमि-अधिकारों से वंचित रहती थी और भूमि के मुद्दों और विरासत
कानूनों पर ज्ञान की कमी के कारण, उनका शोषण किया जाता था।”
हलदर कहते हैं – “हमने उन्हें भूमि
संबंधी मुद्दों, भूमि-नियमों के लिए सरकारी व्यवस्था और
उपलब्ध सेवाओं पर प्रशिक्षित करने का फैसला किया। राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली
विभिन्न सुविधाओं, जैसे फसल बीमा, उपज
के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, और सड़कों के विस्तार और दूसरी
सरकारी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी मुआवजे, आदि
प्राप्त करने के लिए भूमि सम्बन्धी दस्तावेजों की जरूरत होती है।”
महिलाओं के लिए सहायक ऐप
पश्चिम खाटलबाड़ी की रहने वाली दिनोमोनी बर्मन ने बताया कि उन्होंने
लगभग एक साल पहले ही अपनी जमीन का म्यूटेशन करवाया था, जब उनकी टेक्नोलॉजी की समझ रखने वाली बहू ने
प्रशिक्षण में भाग लिया और उन्हें इस प्रक्रिया के बारे में समझाया।
60 वर्षीय दिनोमोनी ने कहा कि उसने दो दशक पहले लगभग 2
बीघा (लगभग आधा एकड़) ज़मीन खरीदी थी – लेकिन उसे इस बात की जानकारी
नहीं थी, कि जमीन के उसके नाम हो जाने की प्रक्रिया पूरी
करने के लिए स्वामित्व का हस्तांतरण (म्युटेशन) जरूरी है।
अलीपुरद्वार जिले के गाँवों में महिला भूमि-साक्षरता (डब्ल्यूएलएल) की
मासिक बैठकों में महिलाएँ जो कुछ सीखती हैं उसे प्रयोग करती हैं और प्राप्त
जानकारी को फ़ोन के माध्यम से तुरंत अमल में लाती हैं।
प्रशिक्षकों ने बताया कि ज्यादातर प्रतिभागियों ने पश्चिम बंगाल सरकार
द्वारा संचालित, ‘जोमिर तोथ्य’ नाम के ऐप को डाउनलोड कर लिया है, जिसके माध्यम से
वे भूमि की स्थिति और इसके स्वामित्व की जांच कर सकते हैं। यदि उन्हें त्रुटियां
या समस्याएं दिखती हैं, तो वे उसमें सुधार के लिए अधिकारियों
से संपर्क कर सकते हैं।
भूमि अतिक्रमण
ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों में से एक, 35 वर्षीय तापसी बर्मन ने बताया – “पश्चिम बंगाल
में भूमि हमेशा एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, और भूमि पर
कब्जे की एक गंभीर समस्या है। ऐसे मामले सामने आए हैं, जहाँ
उचित दस्तावेज न होने के कारण ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया गया है।”
बर्मन कहती हैं – “हम महिलाओं को समझाते हैं
कि उनके पास अपने स्वामित्व को साबित करने के लिए सही और समयनुरूप दुरुस्त किए गए
दस्तावेज होने चाहिए।इसके लिए मुख्य रूप से जो बातें शामिल हैं, वह हैं कि किस तरह से भूमि का अधिग्रहण किया गया था, स्वामित्व का सही रिकॉर्ड और भूमि पर कब्ज़ा।”
बर्मन कहती हैं – “हम महिलाओं को समझाते हैं
कि उनके पास अपने स्वामित्व को साबित करने के लिए सही और समयनुरूप दुरुस्त किए गए
दस्तावेज होने चाहिए।इसके लिए मुख्य रूप से जो बातें शामिल हैं, वह हैं कि किस तरह से भूमि का अधिग्रहण किया गया था, स्वामित्व का सही रिकॉर्ड और भूमि पर कब्ज़ा।”
प्रशिक्षण के लाभार्थियों के अनुसार, स्मार्ट फोन को प्रभावी ढंग से उपयोग करना सीखने से, भूमि स्वामित्व की जानकारी, और सामने आने वाली
समस्याओं से निपटना आसान हो गया है।
पम्पा बर्मन रॉय (27) ने बताया –
“हम सोचते थे कि भूमि की रजिस्ट्री से भूमि के स्वामित्व की
गारंटी मिल जाती है, लेकिन म्युटेशन होने तक, ऐप पर मूल विक्रेता ही जमीन का मालिक दिखाई पड़ता है। यदि हम देखते हैं कि
भूमि के रिकॉर्ड हैं, तो हम तुरंत सरकारी कार्यालयों से
संपर्क करते हैं।”
पम्पा बर्मन रॉय ने कहा कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, जब समझ में आया कि मेरे पति ने एक दशक पहले जो जमीन
खरीदी थी, उसके स्वामित्व को पक्का करने के लिए म्युटेशन
प्रक्रिया पूरा करना जरूरी है।
महिला लाभार्थी
हलदर ने बताया कि भूमि-अधिकारों के विषय पर राज्य भर के स्वयं सहायता
समूहों के नेटवर्क की लगभग पांच लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है और यह
कि सामाजिक बदलावों के कारण, इन अधिकारों को समझना और
भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
हलदर के अनुसार – “महिलाओं को प्रशिक्षण
के लिए चुना गया था, क्योंकि उनके पुरुषों को महिलाओं पर
परिवार चलाने की जिम्मेदारी छोड़कर आजीविका के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता है।”
जहां स्मार्ट फोन का उपयोग रिकॉर्ड की जांच करने के लिए किया जाता है, लेकिन अनुभवी महिलाओं को डेस्कटॉप कंप्यूटर का प्रयोग
भी सिखाया जा रहा है, जिससे वे सरकार की भूमि-रिकॉर्ड के लिए
बनी वेबसाइट, ‘बांग्लारभूमि’ पर,
दूसरी सेवाओं के साथ-साथ, म्यूटेशन और बदलाव
सम्बन्धी आवेदन दाखिल कर सकें।
एक प्रशिक्षक, पूर्णिमा बर्मन (38)
के अनुसार – “दूरदराज के गावों की महिलाओं को,
भूमि संबंधी मुद्दों के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने की
बजाय, ऑनलाइन आवेदन करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
हालाँकि कंप्यूटर के प्रयोग में नए होने के कारण, अभी भी
उन्हें कंप्यूटर चलाने में दिक्कत होती है, किन्तु उनके
प्रयास सराहनीय हैं।”
ऑनलाइन आवेदन
सरकारी अधिकारी इस बात की पुष्टि करते हैं, कि प्रशिक्षण में विस्तार के साथ, उन्हें दूसरी तरह के आवेदनों के साथ-साथ, भूमि बदलाव,
विरासत और म्युटेशन से संबंधित आवेदन भी अधिक प्राप्त हो रहे हैं।
अलीपुरद्वार ब्लॉक-1 की भूमि और भूमि-सुधार
अधिकारी, अपर्णा मंडल, जिनके
कार्यक्षेत्र में 57 गांव शामिल हैं, कहती
हैं – “निश्चित रूप से ऑनलाइन भूमि विवरण दाखिल करने वालों
की संख्या में वृद्धि हुई है। इससे, सीमित कर्मचारियों के
बावजूद, हमें प्रभावी ढंग से काम करने मदद मिली है|”
मंडल ने बताया – “दिसंबर 2019 और 28 जनवरी 2020 के बीच,
हमें भूमि म्युटेशन के लिए मिले 882 आवेदनों
में से 70% और भूमि-बदलाव के लिए मिले 97 आवेदन में से 85 ऑनलाइन दाखिल किए गए। इसमें न केवल
उलझनों से बचाव होता है, बल्कि लोगों को लंबी कतारों में भी
खड़ा नहीं होना पड़ता।”
भूमि-स्वामित्व की कमी
शोधकर्ताओं ने भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण के आंकड़ों के हवाले से यह
पुष्टि की है, कि केवल 57% ग्रामीण और 9% शहरी परिवारों के पास कृषि भूमि है,
और महिलाओं में स्वामित्व का हिस्सा केवल 2% है।
उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर
गोविंदा चौधरी, जिन्होंने भूमि और
पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर शोध किया है, के अनुसार –
“भूमि विरासत की खराब दर का श्रेय कई कारणों को जाता है|
इनमें मुख्य रूप से यह धारणा शामिल है कि अच्छी महिलाएं जमीन विरासत
में नहीं लेती हैं, उस पर परिवार के सदस्यों और समाज से
विरोध का भी सामना करना पड़ता है।”
चौधरी के अनुसार – “भूमि अधिकारों के
दावों के लिए कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी का अभाव और भूमि-रजिस्ट्री कार्यालयों
और भूमि एवं भूमि-सुधार कार्यालयों तक पहुँच में कठिनाई, महिलाओं
के पास भूमि के कम प्रतिशत के अन्य कारण हैं।” यह वह क्षेत्र
है, जिसमें वे स्मार्ट फोन से और अधिक सहायता की गुंजाईश
देखते हैं, कि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए दावा पेश कर
सकें।
चौधरी ने बताया – “यह सरकारी कार्यक्रम
केवल भूमि पोर्टलों के माध्यम से पहुंच ही आसान नहीं बनाता है, बल्कि इसे अधिक समावेशी बनाने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रहा है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग से महिलाओं को सिर्फ जानकारी ही नहीं मिलेगी,
बल्कि उन्हें आपस में एकजुट होने और सामूहिक रूप से पितृसत्तात्मक
अधिपत्य को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहन भी मिलेगा।”
चौधरी के अनुसार – “कार्यक्रम को अधिक
प्रभावी बनाने और हर घर तक इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए, एक
जागरूकता अभियान की जरूरत है।” इस योजना को और व्यापक
बनाए जाने की भी गुंजाइश है, जिसमें हलदर अपनी बात जोड़ते हुए
कहते हैं, कि यह परियोजना ओडिशा के कालाहांडी जिले के दो प्रशासनिक
खण्डों में चल रही है, जिसमें 16,000 से
अधिक महिलाएं शामिल हैं।
यह कहानी ‘थॉमसन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन’और ‘पुलित्ज़र सेंटर ऑन क्राइसिस रिपोर्टिंग’ द्वारा संचालित “रिपोर्टिंग लैंड राइट्स” पत्रकारिता कार्यक्रम के हिस्से के रूप में प्रस्तुत की गई थी।
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं।
विचारव्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?