बीजरहित अंगूर की नई किस्म में निर्यात की बड़ी संभावनाएं दिखाई देती हैं
महाराष्ट्र के नई किस्मों पर काम करने वाले एक किसान द्वारा विकसित बीज-रहित अंगूर की नई किस्म में, मौजूदा किस्मों की तुलना में बेहतर गुण हैं और इसकी निर्यात बाजार में बड़ी मांग है
ऋषिराज शांताराम ढिखाले एक युवा अंगूर उत्पादक हैं और नासिक तालुक के पिंपरी सैय्यद गांव के निवासी हैं। कृषि स्नातक ढिखाले ने, 2016 में अपने 1.5 एकड़ के खेत में ‘सुधाकर सीडलेस’ नामक एक नई किस्म के अंगूर के पौधे लगाए।
उनका मानना है कि यह उनके द्वारा लिया गया सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय था, जिससे वह हर साल प्रति एकड़ 120 से 160 क्विंटल अंगूर की फसल लेते हैं – जो कि वर्षों से लगाई जाने वाली दूसरी किस्म की पैदावार से काफी अधिक है। यहां के ज्यादातर उत्पादकों की तरह, 23 वर्षीय ढिखाले अपनी उपज निर्यातकों को बेचना पसंद करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें मोटे दाम प्राप्त होते हैं।
नासिक जिले के आठ तालुकाओं में, नासिक के बड़े, छोटे और बहुत छोटे खेतों की विशाल श्रृंखला के आसपास, और खेतों के किनारों पर बने घरों में, ढिखाले जैसी कहानियां सुनने को मिलेंगी। इसका कारण है, कि नई किस्म से परंपरागत किस्मों के मुकाबले कहीं अधिक कमाई मिलनी शुरू हो गई है।
अंगूर की राजधानी
नासिक के अंगूर के खेत, वेस्टर्न (पश्चिमी) घाट के पूर्व में स्थित हैं, जो काली मिट्टी वाला एक अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र है। नासिक, जिसका नाम राक्षसराज रावण की बहन शूर्पनखा की कटी नाक (नाशिका) से पड़ा है, में किसानों के पास औसत भूमि, दो एकड़ से लेकर 10 एकड़ तक है।
नासिक जिले में देश भर में अंगूर के सबसे अधिक खेत हैं। भारत की अंगूर की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध, नासिक जिले की अंगूर उगाने वाली तीन प्रमुख तालुक – निफ़ाद, नासिक और डिंडोरी हैं। बाकि तालुकों, यानि मालेगाँव, बागलान, कलवान, घंडवाड़ और येवला, में भी अंगूर की खेती होती है।
नासिक में नवंबर से छह महीने तक चलने वाले मौसम के दौरान, अंगूर का सामान्य वार्षिक उत्पादन 16 लाख टन है। ‘महाराष्ट्र राज्य अंगूर उत्पादक संघ’ के अनुसार जिले में कुल लगभग 2 लाख एकड़ में अंगूर की खेती होती है और औसतन लगभग 8 टन प्रति एकड़ पैदावार होती है।
नई किस्म
भारत में अंगूर की लगभग 20 किस्में उगाई जाती हैं – रंगीन, सफेद, बीज वाली, बीज-रहित, बड़े और छोटे दाने वाली। लेकिन अंगूर की ‘थॉम्पसन सीडलेस’ किस्म लगभग 55% क्षेत्र में उगाई जाती है। लेकिन अब इसकी लोकप्रियता घटने लगी है।
नई किस्मों पर काम करने वाले किसान, सुधाकर क्षीरसागर द्वारा विकसित, अंडाकार, हल्की मीठी, मेज पर प्रस्तुत की जा सकने वाली अंगूर की किस्म, ‘सुधाकर सीडलेस (SS)’, नासिक जिले के अधिकाधिक अंगूर उत्पादकों की पसंद बनती जा रही है। अंगूर उगाने वाली तालुकाओं में साल दर साल, सुधाकर सीडलेस किस्म की खेती का क्षेत्र बढ़ रहा है।
क्षीरसागर के अनुसार, सुधाकर सीडलेस वर्तमान में 30,000 एकड़ में उगाया जा रहा है और इस किस्म की कलम (ग्राफ्ट) का इंतज़ार करने वाले संभावित अंगूर उत्पादकों की एक लंबी सूची है। हालांकि, कितने क्षेत्र में यह किस्म उगाई जा रही है, इसकी आधिकारिक पुष्टि का इंतजार है।
जैसे-जैसे इसकी अधिक पैदावार और निर्यात सम्भावना के बारे में राज्य के अन्य अंगूर-उत्पादक क्षेत्रों, जैसे जालना, बारामती, सोलापुर, पुणे और अहमदनगर, तक जानकारी पहुंच रही है, वहां के अंगूर उत्पादकों में इस किस्म को अपनाने की होड़ लग रही है। रोपने के लगभग दो साल और ग्राफ्टिंग के कई सत्र के बाद अंगूर पर फल लगता है।
बड़े आकार के अंगूर
निफाड़ तालुक के शिवाड़े गांव के नवाचार-परक किसान, 55 वर्षीय सुधाकर क्षीरसागर याद करते हुए कहते हैं – “यह 1994 की बात है, जब मैंने अपने खेत में एक अकेला पौधा देखा, जिसकी बेल के पत्ते एक करेले जैसे थे। मैंने उसे उगाया और जब इसका फल आया तो वह मेरे अभी तक की जानकारी से बिलकुल अलग था।” क्षीरसागर ने VillageSquare.in को बताया – “अंडाकार का अंगूर आकार में बहुत बड़ा है।”
क्षीरसागर को इसके चुन-चुन कर प्रजनन के माध्यम से इस किस्म को अंगूर उगाने वाले समुदाय के बीच लोकप्रिय बनाने लगभग दो दशक लगे। यह धीरे-धीरे थॉम्पसन सीडलेस किस्म के एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा है, जो नासिक के अंगूर उत्पादकों के बीच अभी तक मुख्य फसल रही है।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार
कॉमर्स के स्नातकोत्तर, क्षीरसागर को हाल ही में ‘प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटीज एंड फार्मर्स राइट्स ऑथोरिटी (PPV&FRA) द्वारा परोसे जाने वाले अंगूर की नई किस्म विकसित करने के लिए, ‘बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)’ से सम्मानित किया गया, जो उनके अपने नाम से जानी जाती है|
तब 2001 में, PPV&FR एक्ट लागू हुआ, जिसके अंतर्गत केवल मुट्ठीभर नवाचार करने वाले किसानों को यह अवार्ड मिला है, क्योंकि इसको देने से पहले कई साल, कभी कभी एक दशक तक, इसकी जाँच में लग जाते हैं|
यह एक्ट, पौधों की किस्मों, किसानों और पौधों के प्रजनन करने वालों के अधिकारों की सुरक्षा, और नई किस्मों के पौधों के विकास और खेती को प्रोत्साहित करने के लिए, एक प्रभावी व्यवस्था की स्थापना के लिए लागू किया गया।
पुणे स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स (NRCG) के वैज्ञानिकों ने क्षीरसागर के सुधाकर सीडलेस किस्म के नवाचार की पुष्टि की है।
अंगूर का निर्यात
भारत दुनिया में ताजा अंगूर का एक प्रमुख निर्यातक है। भारत से वर्ष 2018-19 में रु. 236.24 करोड़ मूल्य के 246133.79 टन अंगूर का निर्यात किया गया। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के अनुसार, भारत का अंगूर निर्यात 2017-18 में 92,286 टन से बढ़कर 2018-19 में 1,21,469 टन हो गया।
भारत द्वारा यूरोप को होने वाले निर्यात का 90% हिस्सा नीदरलैंड, यूके और जर्मनी को है। 2017-18 में, भारत ने यूरोप को 1,900 करोड़ रुपये के अंगूर का निर्यात किया। ‘सुधाकर सीडलेस’ वर्तमान में नीदरलैंड, यूके, जर्मनी, रूस, दुबई और बांग्लादेश को निर्यात किया जा रहा है, लेकिन इस नाम से नहीं।
नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स (NRCG) के मुख्य वैज्ञानिक रामहरि जी. सोमकुवर ने बताया -“देख कर सीखते हुए, अंगूर उत्पादक हमेशा उदाहरण का अनुकरण करते हैं और इसीलिए नासिक में हर साल इस ‘किस्म’ की खेती बढ़ रही है।”
उन्होंने बताया कि अंगूर के बड़े आकार और इसमें मीठे की मात्रा (ब्रिक्स) कम होना, इसकी अलग खूबियां हैं और यही कारण है कि ‘सुधाकर सीडलेस’ को निर्यात बाजार में अच्छी जगह मिली है।
कम होती थॉम्पसन किस्म
एपीडा (APEDA) के अनुसार, ‘थॉम्पसन सीडलेस’ 55% क्षेत्र में उगाई जाती है| बाकि में बंगलौर ब्लू, अनाब-ए-शाही, दिलखुश, शरद सीडलेस, परलेट, गुलाबी और भोकरी उगाया जाता है। सबसे पुराना हरे रंग का थॉम्पसन सीडलेस किस्म का अंगूर है, जो छह दशकों के आसपास से यहां उगाया जा रहा है। नासिक में इसका लगभग 80% उत्पादन होता है।
कई बातें हैं, जो थॉम्पसन किस्म के खिलाफ जाती हैं, जैसे कि निर्यात बाजार में मांग कम होना, बारिश में दरारें पड़ जाना और परिवहन (ढुलाई) के समय की सीमा| यह बातें सुधाकर सीडलेस के संभावित उत्पादकों के लिए एक वरदान साबित हो रही हैं। नई किस्म बारिश और सूखे को बेहतर सहन करती है, इसमें पौधे के विकास के लिए दवाओं और सिंचाई की कम जरूरत होती है, और इसे उगाने का खर्च कम आता है।
इससे थॉम्पसन सीडलेस के मुकाबले 40% अधिक दाम मिलता है। दोनों किस्मों में पैदावार समान है| लेकिन उत्पादकों को इससे फायदा मिलता है, क्योंकि सुधाकर सीडलेस से प्रति एकड़ उपज तो 10 से 12 टन ही होती है, किन्तु गुणवत्ता निर्यात के लिए उपयुक्त है|
नई किस्म के लिए पसंद
सुधाकर सीडलेस के लिए निर्यात बाजार में बेहतर दाम मिलते हैं, इसलिए किसान उसी को उगाना पसंद करते हैं। सतना तालुक के सताना गांव के प्रकाश जिभू देओरे (63) ने VillageSquare.in को बताया – ”जहां घरेलू बाजार हमें 40 रुपये से 50 रुपये प्रति किलो मिलते हैं, वहीं निर्यातक 100 रुपये से लेकर 130 रुपये के बीच देते हैं।
देओरे ने 2015 में पांच एकड़ में सुधाकर सीडलेस लगाया और दो साल बाद 17 टन अंगूर का निर्यात किया। वह नवंबर के महीने में उन्हें तोड़ना शुरू करते हैं, जब उनके अनुसार “अंगूर किसी दूसरे देश में उपलब्ध नहीं होते हैं”, और इस कारण उन्हें बेहतर दाम मिलना सुनिश्चित होता है।
क्षीरसागर अपने नाम के साथ अपनी किस्म के निर्यात की उम्मीद कर रहे हैं, जो बौद्धिक सम्पदा अधिकार (आईपीआर) प्रमाण पत्र की प्रक्रिया के कारण मना कर दिया गया था। “वर्ष 2012 से, सुधाकर सीडलेस को थॉम्पसन के नाम से निर्यात किया गया है। अब से यह अपने नाम से जाएगा और इससे मुझे बेहद संतोष होता है, क्योंकि यह वास्तव में एक भारतीय किस्म है।”
हिरेन कुमार बोस ठाणे, महाराष्ट्र में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत किसान के रूप में बिताते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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