खड़ी फसलों की बर्बादी और समुद्री पानी घुसने से मिट्टी खारी हो जाने के साथ, चक्रवात ने ग्रामीणों की कुपोषण और खाद्य सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं में बढ़ोत्तरी की है, जिससे लॉकडाउन के संकट से जूझ रहे ग्रामीणों की स्थिति बदतर हुई है
महाचक्रवात अम्फान, सुंदरबन के हाल के इतिहास
में सबसे भयानक चक्रवातों में से एक था। 20 मई को आए चक्रवात
से पश्चिम बंगाल के तटीय जिले, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना,
पूर्वी मेदिनीपुर, कोलकाता, हुगली और हावड़ा प्रभावित हुए, विशेषकर पहले दो जिले
अधिक बुरी तरह प्रभावित हुए।
इससे
व्यापक रूप से नुकसान हुआ,
विशेष रूप से उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24
परगना में। तटीय क्षेत्रों से लगभग 8,13,000 लोगों
को निकाला गया, जिनमें से 2,00,000 उत्तर
24 परगना जिले के थे। बहुत से लोग राहत शिविरों में इस डर के
साथ रह रहे हैं कि उनको कोरोनोवायरस संक्रमण न हो जाए।
जहाँ जिले के सुंदरवन क्षेत्र के बहुत से ग्रामीणों की नौकरियां पहले
ही लॉकडाउन के कारण चली गई थी, अम्फान चक्रवात से उनका
संकट और बढ़ गया है। अपने भोजन के प्रमुख श्रोत, खेत और
तालाबों के खोने से, और अपने जमा अनाज के नुकसान के कारण,
चक्रवात द्वारा उनकी खाद्य सुरक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है।
खाद्य संसाधनों का नुकसान
चक्रवात के कारण समुद्र से 15 किलोमीटर अंदर तक भारी
मात्रा में खारा पानी आ गया। पांच मीटर तक ऊंची लहरें दर्ज की गईं। तटबंधों को
नुकसान होने के कारण, समुद्र का पानी कई गांवों में प्रवेश
कर गया, जिससे 10.5 लाख हेक्टेयर खेत
और लगभग 1 लाख सुपारी के खेतों को नुकसान पहुंचा।
अम्फान चक्रवात ने पान के पत्ते और सुपारी जैसी खड़ी नकदी फसलों और
पेड़ों को बर्बाद कर दिया। पश्चिम बंगाल भर में, धान की 88,000 हेक्टेयर और सब्जियों एवं तिल की 200,000
हेक्टेयर फसलों को नुकसान हुआ।
इससे
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लाख से ज्यादा मवेशियों और अनगिनत मुर्गी-फार्मों को नुकसान पहुंचा।
यह भी समाचार हैं कि केंकडों, झींगों और मछली पालने के लिए
उपयोग 58,000 हेक्टेयर में तालाबों को क्षति पहुंची है। इसके
अलावा, मछली पकड़ने वाली 8,000 नौकाएं
क्षतिग्रस्त हुई हैं, जिसका मतलब है कि मछुआरे कुछ समय के
लिए मछली पकड़ने नहीं जा सकते।
इस सारे नुकसान का सीधा प्रभाव क्षेत्र के लोगों के आहार और पोषण पर
पड़ेगा। खेती और पशुपालन मुख्य रूप से गुजारे भर के लिए किया जाता है। अब चावल की
कमी होगी। बच्चों के आहार में दूध, मांस, मछली और अंडे जैसे विशिष्ट प्रोटीन स्रोतों की कमी देखी जा सकती है।
खेती उत्पादकता को नुकसान
जो दस लाख हेक्टेयर भूमि खारा हो गई है, उसमें कई वर्षों तक उत्पादन नहीं होगा। जो खारा पानी खेतों में जमा हो गया
है, उससे मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक रहेगी। इसलिए,
आने वाले वर्षों में इन प्रभावित लोगों को भोजन की कमी का सामना
करना पड़ सकता है।
दक्षिण 24 परगना में लगभग दस लाख
घरों को नुकसान हुआ। सबसे अधिक प्रभावित प्रशासनिक खण्डों में से एक, गोसाबा ब्लॉक में, लगभग 26,000 घर नष्ट हो गए। तटबंधों के टूटने के कारण गाँवों में बाढ़ आ गई और फसलें
चौपट हो गई। जिन ग्रामीणों के घर क्षतिग्रस्त हुए, उनके अनाज
का भंडार भी बर्बाद हो गया। इन सबका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा।
विकास पर दूरगामी दुष्प्रभाव
वास्तव में कुछ सदियों पहले, सुंदरबन में गांव नहीं बसे
थे। खारा पानी, दलदल, नमी, मैंग्रोव के घने जंगल और बाघ जैसे जंगली जानवर कुछ ऐसे कारण थे, कि लोग इस स्थान से दूर रहते थे। लेकिन अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में
अनुसूचित जाति के उन लोगों को बसा दिया, जो आम रिहाइशी
क्षेत्रों में किसी विवाद में फंस गए थे।
आज गोसाबा ब्लॉक सुंदरबन के बाघ आरक्षित क्षेत्र की परिधि में आता है।
यह एक बेहद कम विकसित क्षेत्र है, जिसमें आधुनिक सुविधाएं
न्यूनतम हैं। कुछ ही समय पहले तक यहाँ के अधिकांश गाँवों तक बिजली, पानी की आपूर्ति, सड़क या मोबाइल कवरेज नहीं थी। यह
एक मानव और बाघ के बीच संघर्ष का क्षेत्र भी है।
क्योंकि वहां कोई प्राकृतिक पेयजल स्रोत नहीं था, इसलिए लोग अपने घरों के सामने जमीन की खुदाई कर लेते
थे, जो बारिश के पानी से भर जाती थी। बेशक यह स्वास्थ्य के
लिए उचित नहीं था, और इन क्षेत्रों में मृत्यु दर बहुत अधिक
थी।
अव्यवहारिक आजीविकाएं
इन सभी मुद्दों के अलावा, इस क्षेत्र में चक्रवातों
का जोखिम बहुत है। वर्ष 2009 में ‘आइला’
चक्रवात और 2019 में ‘बुलबुल’
चक्रवात ने इन दोनों जिलों को तबाह कर दिया था। बार-बार आने वाली
आपदाओं के कारण, आजीविका संवर्धन के विभिन्न प्रयासों को
भारी नुकसान हुआ है।
पिछले कुछ दशकों में, शहद पैदा करना, बतख एवं मुर्गी पालन और सब्जी की खेती शुरू की गई थी, जिससे उम्मीद की जा रही थी कि लोगों को पोषण के साथ-साथ आजीविका भी
प्राप्त होगी। लेकिन बार-बार चक्रवात आने के कारण, इन
प्रयासों को बार-बार धक्का पहुंचा है।
पहले गाँवों में कुछ काम मिल जाया करता था, लेकिन अब COVID-19 और लॉकडाउन
के कारण, कोई काम उपलब्ध नहीं है। प्रवासी मजदूर COVID-19
संकट के चलते खाली हाथ घर पहुंच गए हैं। अब उनके लिए शहरों में
नौकरियां नहीं हैं, क्योंकि ज्यादातर औद्योगिक गतिविधियाँ
रुक चुकी हैं। खड़ी फसल के नुकसान और खेत के खारेपन से प्रभावित होने के कारण,
ये लोग घर पर ही रह रहे हैं।
महिलाएं बड़े झींगों (टाइगर प्रॉन) के छोटे बच्चे इकठ्ठा करती थीं और
झींगा पालन करने वालों को बेचती थीं, लेकिन अब उसकी मांग कम हो
गई है। ऐसा ही पान के पत्ते के मामले में भी हुआ है, जिसका
प्रयोग प्रसिद्ध ‘कलकत्ता पान’ में
होता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में धन का प्रवाह बहुत कम हो गया है।
कुपोषण की समस्या
समाज में हाशिये पर होने और कम विकसित क्षेत्र में रहने के कारण, इन क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या पहले ही काफी अधिक
था। जो सब्जियां और मछलियां स्थानीय बाजार में सस्ती हुआ करती थीं, वे कमी और फसल नष्ट होने के कारण बहुत महंगी हो गई हैं। झींगे, केकड़े और उनके द्वारा उगाए धान, ग्रामीणों का मुख्य
भोजन रहा है।
कटाई के मौसम को छोड़कर, गाँवों के ज्यादातर पुरुष
आम तौर पर कमाई के लिए शहरों में जाते हैं। पिछले एक दशक में इन जिलों में पोषण की
स्थिति में सुधार होता आ रहा है। शहरों में कमाए धन से उनके पोषण की स्थिति
सुधारने में मदद मिली। लेकिन पिछले दो-तीन महीनों में हालात काफी बदल गए हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, अम्फान से पश्चिमी बंगाल में लगभग 1.1
लाख स्कूल भवन, 2,000 स्वास्थ्य केंद्र और 4,200
एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) केंद्र
क्षतिग्रस्त हो गए हैं, और इसमें ज्यादातर विनाश दक्षिण 24
परगना और उत्तर 24 परगना जिलों में हुआ है। ।
बच्चों के लिए पोषण कार्यक्रमों के लिए यह मुख्य आधार होते हैं। इन
कार्यक्रमों के सामान्य होने में महीनों से सालों तक का समय लगेगा। आपदा के बाद की
स्थिति में पोषण संबंधी कमियों और प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण का फिर से उभरना एक युगों
से देखी जाने वाली बात है।
केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के लिए 1,000 करोड़ रुपये के तत्काल राहत पैकेज की घोषणा की। इसके बावजूद, व्यापक विनाश और प्रभावित लोगों की संख्या को देखते हुए, इन जिलों के गांवों में फिर से सामान्य स्थिति लाने के लिए और अधिक
संसाधनों की आवश्यकता होगी।
चक्रवात के कारण स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों से संबंधित बुनियादी
ढाँचे के ढहने से इस क्षेत्र के हजारों बच्चों की पोषण स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ सकता है। आपदा से उबरने और इसके प्रभाव को कम करने के चरण में, प्रभावी हस्तक्षेप के माध्यम से इस मुद्दे पर विशेष
ध्यान देने की जरूरत है।
अभिजीत जाधव टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (TISS) के जमशेदजी टाटा स्कूल में पब्लिक हेल्थऔर डिसास्टर्स पढ़ा चुके हैं। वह वर्तमान में विकास अण्वेष
फाउंडेशन में एक वरिष्ठ शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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