बिहार में पटना जिले के कई क्षेत्रों में, समुदाय द्वारा प्रबंधित चावल बैंकों की सहायता से, कमी वाले मौसम में भोजन सुनिश्चित करके, शक्तिशाली जमींदारों के शोषण से सैकड़ों दलित परिवारों को मुक्ति मिली है।
कुछ साल पहले, पार्वती देवी, बिछिया देवी और मीना देवी भूमिहीन खेत मजदूर थीं, जिनका
जीवन पूरी तरह जमींदारों की दया पर टिका था। लेकिन अब तब से हालात बदल चुके हैं।
आज, बिहार के पटना जिले के दर्जनों गाँवों की सैकड़ों
महिलाएँ, जो कि ज्यादातर हाशिये पर जी रहे महादलित समुदाय की
हैं, आत्मनिर्भर आजीविका के लिए, सामुदायिक
खेती की ओर रुख कर चुकी हैं, जिससे उन्हें भूखमरी के डर और
शक्तिशाली जमींदारों के निर्दयी शोषण से छुटकारा मिला है।
यह उल्लेखनीय बदलाव, स्वयं इन महिलाओं द्वारा
एक अनाज बैंक की स्थापना से संभव हुआ, जिसमें एक स्थानीय
संगठन ने शुरुआती मदद की, और उन्हें धरातल के शून्य से सही
अर्थों में बेहतर जीवन की ओर अग्रसर होने के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित किया।
सरकार द्वारा समर्थित, ग्रामीण अनाज बैंकों से
अलग, जो वास्तव में निष्क्रिय हो चुके हैं, महिलाओं द्वारा स्वयं और दूसरों की सहायता के लिए स्थापित किया गया अनाज
बैंक, गरीबतम लोगों द्वारा की गई एक दुर्लभ सफल पहल है। पटना
जिले के बिक्रम, पाली और नौबतपुर के तीन सूखाग्रस्त
प्रशासनिक खण्डों के 65 से अधिक गांवों की मांझी, रविदास और पासवान जैसी महादलित उप-जातियों की इन महिलाओं को अनाज बैंक का
प्रत्यक्ष लाभ मिला है| इससे उन्हें कुछ हद तक उच्च जाति के
शक्तिशाली जमींदारों के युगों पुराने चंगुल से मुक्ति मिली है, जो उन्हें बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर करते थे।
उधार में चावल
अनाज बैंक किसी पुरुष या महिला को 5 किलो चावल उधार देता है, जिसे शुल्क के रूप में एक
किलो मिलाकर 6 किलो वापस करना होता है। विवाह के मामलों में
बैंक, बहुत गरीब व्यक्ति को 1 से 2
क्विंटल चावल प्रदान करता है। महिलाओं ने खेती की जमीन ठेके पर ली
है, जिसने उनकी जीवन शैली को पूरी तरह से बदल दिया है।
बिक्रम ब्लॉक के मुहम्मदपुर गाँव की रहने वाली, 50 वर्षीया प्रभावती ने VillageSquare.in को बताया – “अनाज बैंक ने हमें आशा, विश्वास और और अपने पैरों पर खड़े होने की शक्ति प्रदान की है, क्योंकि हमें एहसास हुआ है कि हमारे परिवार को अभाव के समय में भूखा नहीं रहना पड़ेगा और इससे हमें अपना पेट भरने के लिए चावल उधार लेने की सुविधा प्राप्त हुई है। इससे हमें सामुदायिक खेती के लिए जमीन ठेके पर लेकर, अपने परिवार के सदस्यों की मदद से, अपने लिए अनाज पैदा करने का प्रोत्साहन मिला।”
मुहम्मदपुर में, हिंदुओं द्वारा अछूत माने
जाने वाले रविदास और पासवान जाति के लगभग 100 परिवार हैं।
रविदास जाति की महिला, प्रभावती याद करती हैं कि वह एक खेत
मजदूर के रूप में काम करती थी – “आज मैं अपने पति और
परिवार के अन्य सदस्यों की मदद से 2 एकड़ जमीन में खेती कर
रही हूं।”
सामुदायिक खेती
चिचौरहा गांव की बिछिया, जिनकी उम्र 40 वर्ष से कुछ ही ऊपर है, अनाज बैंक से सहायता मिलने के बाद लगभग 3 एकड़ जमीन पर सामुदायिक खेती करने पर गर्व करती हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “हम भूख से लड़ रहे थे, क्योंकि मजदूरी से मिलने वाली दिहाड़ी से मेरे परिवार की जरूरतें पूरी नहीं होती थी। जब अनाज बैंक की स्थापना हुई, तो हमें भूख से छुटकारा पाने में मदद मिली। हमने अमीर किसानों से जमीन लेकर सामुदायिक खेती शुरू की है।”
तीन बेटियों सहित सात बच्चों की मां, बिछिया का कहना है, कि अनाज बैंक स्थापित होने से
पहले उसे चावल, स्थानीय रूप से देवरहिया कहे जाने वाले
जमींदारों से उनकी शर्तों पर लेना पड़ता था। वह कहती हैं – “यदि
मैंने एक किसान से 5 किलो चावल लिया, तो
मुझे देवरहिया व्यवस्था के अंतर्गत 7.5 किलोग्राम वापिस करना
पड़ता था। यह विशुद्ध रूप से शोषण था।”
चिचौरहा गांव के 50 से अधिक परिवारों की ऐसी ही कहानी है, जो ज्यादातर मुसाहार समुदाय से संबंधित हैं, जिनका चूहों को खाने के लिए उपहास किया जाता है। बिछिया की तरह, सुंदरपुर गांव की मीना देवी ने बताया, कि उनके पास अभी भी जमीन नहीं है, लेकिन अनाज बैंक की बदौलत वे 2 एकड़ जमीन में सामुदायिक खेती कर रही हैं। छत्तीस वर्षीय, मीना ने VillageSquare.in को बताया – “मैंने किसानों से सालाना पट्टे पर जमीन ली है, और मुझे खुशी है कि मेरे ड्रम अनाज से भरे हुए हैं। भूख को लेकर कोई तनाव नहीं है।”
अनाज बैंक के द्वारा इस बदलाव को लाने वाले व्यक्ति, उमेश कुमार कहते हैं – “अनाज
बैंक से न केवल अभाव और भूख के समय में उनके मुख्य आहार, चावल
की मांग को पूरा करने में मदद की है, बल्कि इससे इन गरीब,
भूमिहीन महिलाओं को आत्मनिर्भरता के लिए सामुदायिक खेती शुरू करने
के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा भी मिलती है, जो कि एक दशक
पहले तक एक सपना था।”
सफलता की कहानी
कुमार, जो प्रगति ग्रामीण विकास समिति के प्रमुख हैं और जिन्होंने 2005 में एक्शन एड के सहयोग से अनाज बैंक शुरू किया, ने बताया कि प्रत्येक गांव में महिलाओं के समूह अपनी स्वयं की व्यवस्था से अनाज बैंक चला रहे हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “एक्शन एड से 2013 में सहयोग मिलना बंद हो गया था। तब से, दर्जनों गांवों में महिलाओं के समूह बिना किसी बाहरी सहायता के सफलतापूर्वक इसका प्रबंधन कर रहे हैं।”
अनाज बैंक स्थापित करने के लिए शुरू में, प्रत्येक गांव की महिलाओं के एक समूह को, चावल खरीदने के लिए 5,000 रुपये और भंडारण के लिए
बड़े ड्रम खरीदने के लिए 2,500 रुपये नकद दिए गए थे। कुमार
कहते हैं – “हर साल जनवरी, फरवरी
और मार्च में लोग शर्तों के अनुसार उधार लिया हुआ चावल लौटाते हैं, जिससे हमें दोबारा अभाव के समय उधार देने के लिए चावल का भंडार तैयार करने
में मदद मिलती है।”
दर्जनों गांवों में 500 से अधिक महिलाएं अनाज
बैंक से जुड़ी हैं। प्रत्येक गाँव में, 10 से 15 महिलाएँ सामुदायिक खेती कर रही हैं। उन्होंने 2-3 एकड़
जमीन पट्टे पर ले रखी है। यह इस इलाके में एक नई घटना है।
अनाज बैंक की स्थापना 65 गाँवों में – 30 बिक्रम में, 20 पाली में और 15 नौबतपुर में की गई थी। कुमार के अनुसार, जबसे अनाज
बैंक ने काम शुरू किया है, तब से दलितों के इन गांवों में
भूख से कोई मौत नहीं हुई है।
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