शहरी संरक्षण प्राप्त होने से खुन बुनकरों को उम्मीद है बेहतर बाजार की
अधिक चौड़े कपड़े की बुनाई से, साड़ी ब्लाउज के अलावा दूसरे कपड़े भी तैयार हो सकते हैं, जिस कारण खुन बुनकरों ने ग्रामीण संरक्षण से बाहर निकल कर, फैशन की दुनिया में कदम रखा है
गुलेडागुड़ा कस्बे में 1,000 से कम घर हैं, जो पत्थर से बने हैं और उन पर सफेद रंग किया गया है। कुछ बंद पड़े घरों के आंगन में दिखते कुछ जीर्ण-शीर्ण और टूटे हुए लकड़ी के हैंडलूम देखकर नहीं लगता कि यह गर्म और शुष्क क़स्बा, क्षेत्र के प्रसिद्ध हाथ से बुने हुए खुन के शानदार रंगों का कोई प्रतिबिम्ब है।
कर्नाटक राज्य में, बागलकोट जिले के गुलेडागुड़ा में, धारवाड़ खुन और खाना के रूप में प्रसिद्ध, कपड़ा सिर्फ गड्ढे वाले करघे में बुना जाता है। केवल साड़ी ब्लाउज बनाने के लिए उपयोग होने वाले इस हाथ से बुने कपड़े को इसके छोटे सफेद, जटिल नमूनों और इसके बहुत अनूठे लाल-बैंगनी किनारी से पहचाना जा सकता है।
1990 के दशक तक, गुलेडागुड़ा को केवल खुन कपड़े की बिक्री की बदौलत सबसे अधिक कर चुकाने वाले शहरों में से एक के रूप में जाना जाता था। पीढ़ियों तक, यहाँ के निवासी जिस एकमात्र व्यवसाय के बारे में जानते थे, वह बुनाई था। आधुनिक पहनावे और जीवनशैली में बदलाव के कारण, खुन कपड़े का बाजार ख़त्म हो गया और गुलेडागुड़ा के राजस्व का स्रोत।
खुन कपड़े की चौड़ाई बढ़ाने से, साड़ी ब्लाउज के अलावा भी कपड़ों के लिए उपयुक्त होने और उन डिजाइनरों के संरक्षण के कारण, जो उन्हें फैशन शो में प्रदर्शित करते हैं, बुनकरों को उम्मीद हुई है कि उन्हें हैंडलूम की दुनिया में अपना स्थान फिर से मिल सकेगा।
प्राचीन बुनाई
कोई भी बुनकर नहीं जानता, कि गुलेडागुड़ा और उसके पड़ोसी इलकल कस्बे, जहां प्रसिद्ध इलकल साड़ी की बुनाई होती है, में बुनाई की खुन शैली कब शुरू हुई। 2017 में प्रकाशित एक शोध पत्र खाना: दि ब्लाउज मैटेरियल ऑफ़ नॉर्थ कर्नाटका, के अनुसार, यह शैली लगभग 8 वीं ईस्वी में अस्तित्व में आई थी।
तब से करीब दो दशक पहले तक, इसे केवल साड़ी ब्लाउज सामग्री के रूप में हाथ से बुना जाता था। उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में ग्रामीण महिलाएँ और खेत मजदूर ब्लाउज की सिलाई के लिए कपड़े का उपयोग करते थे। आज भी बेलगाम जिले में स्थित, सौनदत्ती में देवी येल्लम्मा मंदिर में केवल इसी कपड़े को चढ़ाया जाता है।
बाजार का नुकसान
जिस तरह देश के दूसरे हाथ से बुने हुए कपड़ों का बाजार कम होता गया, उसी तरह खुन को भी उत्पादन लागत और मांग में कमी की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई लोगों ने उत्पादन बढ़ाने और मजदूर कम करके लागत घटाने के उद्देश्य से पावरलूम लगा लिए और विस्कोस और पॉलिएस्टर जैसे सस्ते धागे का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
गुलेडागुड़ा में इस समय 200 पॉवरलूम हैं, और सिर्फ 50 के आसपास पिटलूम या हैंडलूम हैं। सस्ते कच्चे माल के उपयोग और तेज बुनाई की क्षमता के कारण, पॉवरलूम पिटलूम बुनकरों के लिए एक कड़ी प्रतिस्पर्धा पेश कर रहे हैं।
जहाँ चंदेरी, जामदानी, इकत, बनारसी और कांजीवरम जैसे हैंडलूम कपड़ों के साथ काम करने के लिए बहुत से फैशन डिज़ाइनर आए, वहीं खुन को फैशन की दुनिया में संरक्षण देने वाला कोई नहीं मिला। कपड़े की चौड़ाई, जैसी साड़ी ब्लाउज में चाहिए थी, केवल 32 इंच होना इसका कारण हो सकता था।
आजीविका में बदलाव
एक अलग तरह की तह में प्रस्तुत इन ब्लाउज की इतनी मांग थी कि पिछली शताब्दी के अंत तक, 50,000 से अधिक पिटलूम थी। लेकिन फिर खुन ने अपनी चमक खोना शुरू कर दिया और आज सिर्फ 100 के आसपास हैंडलूम हैं।
चौथी पीढ़ी के बुनकर, राजशेखर कोल्लुडे कहते हैं – “हम में से ज्यादातर लोग कम से कम दसवीं कक्षा तक पढ़े हैं, लेकिन हमने कभी किसी दूसरे पेशे के लिए प्रशिक्षण के बारे में नहीं सोचा था, क्योंकि बुनाई एक पारिवारिक व्यवसाय था और बचपन से हम पिटलूम में बैठकर बुनाई करते थे।”
कोल्लुडे ने VillageSquare.in को बताया – “पहले मेरे परिवार के 20 करघे थे। लेकिन अब मैं मुश्किल से तीन करघे संभाल सकता हूं, क्योंकि मेरे अधिकतर सहायक और परिवार के अन्य सदस्य, दूसरी आजीविका की तलाश में पलायन कर चुके हैं|”
किसी होटल में सहायक और मॉल या कपड़ा दुकानों में सेल्स सहायक की छोटी अकुशल में निश्चित आमदनी सुनिश्चित होने के कारण बुनकर बेंगलुरु, हुबली, पुणे, मुंबई, आदि बड़े शहरों से आकर्षित हो जाते हैं, उस खुन कपड़े की बुनाई से दूर, जिसमें आमदनी होना अनिश्चित है।
नए संरक्षक
स्थिति बहुत धीरे-धीरे बदल रही है। मुंबई स्थित वैशाली एस. ब्रांड की फैशन डिजाइनर वैशाली शदांगुले, कलानेले की बेंगलुरु स्थित जान्हवी कुलकर्णी, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH), पुणे चैप्टर की सह-संयोजक, जुई तावड़े और दस्तकारी हाट समिति, एक कला एवं शिल्प बाज़ार, की संस्थापक, जया जेतली खुन बुनकरों की मदद के लिए आगे आए हैं।
खुन की भव्यता इसके अनूठे छोटे नमूनों के साथ, बिजली की रोशनी जैसे नीले, एमेराल्ड हरे, रूबी लाल, सुनहरे पीले आदि जैसे शानदार गहना रंगों के कपड़े और किनारी के समन्वय में है। छोटी-छोटी विषमताएँ और हथकरघा बुनाई की थोड़ी असमानता, केवल शुद्ध रेशम और सूती धागे का उपयोग करके बुने खुन को अपनी तरह का अनोखापन प्रदान करता है।
शदांगुले ने VillageSquare.in को बताया – “यह मुंबई की सड़कों पर एक सब्जी बेचने वाली द्वारा पहने गए, ऐसे शानदार रंगों के साथ एकदम देहाती सुंदरता और ब्लाउज की अलग किनारी की सुंदरता का आकर्षण था, जिसने मुझे लगभग भूल चुके इस कपड़े के मूल स्थान तक पहुँचने के लिए मजबूर कर दिया।”
शदांगुले की तलाश ने उसे गुलेडुगुड़ा पहुँचाया। उसने कुछ बुनकरों के साथ, उनसे करघा आकार बदलने और नए रंगों के इस्तेमाल करने के आग्रह करते हुए काम करना शुरू किया। पिछले साल, उसने केवल खुन से बनवाए एक संपूर्ण संग्रह को न्यूयॉर्क फैशन वीक के रैंप पर प्रदर्शित किया, और उसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने बाद में इंडिया फैशन वीक, दिल्ली में यह संग्रह प्रदर्शित किया।
नए बाजार
जया जेतली, जो पिछले लगभग चार दशक से भारत की पारंपरिक कला एवं शिल्प और हैंडलूम क्षेत्रों के जमीनी कार्यकर्ताओं के उत्थान के लिए काम कर रही हैं, ने कहा – “इस साल जनवरी की शुरुआत में मैंने ‘दिल्ली हाट’ के वार्षिक शिल्प बाजार में हिस्सा लेने के लिए महाराष्ट्र INTACH को आमंत्रित किया, जहां उन्होंने खुन का प्रदर्शन किया और उन्हें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। मुझे लगता है कि खुन के पुनरुद्धार का समय निश्चित रूप से शुरू हो गया है।”
तावड़े ने VillageSquare.in को बताया – “दिल्ली हाट में प्रदर्शनी से हमें हाथ से बुने हुए खुन की सुंदरता के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद मिली। अब अधिक लोगों को इस बुनाई में होने वाले विस्तृत विवरण, और साथ ही सिर्फ कुदरती धागे से बने इस जरा मोटे और खुरदरे कपड़े को पहनने के आराम के बारे में समझते हैं। यह पहला कदम है।”
दिली हाट के स्टाल में डिजाइनर जान्हवी कुलकर्णी के कलानेले की वस्तुएं भी थी। उन्होंने खुन कपड़े से बने ब्लाउज के अलावा, साड़ी, बैग, कुशन कवर, लैंपशेड, दुपट्टे, सलवार सूट, एसेसरीज और यहां तक कि जूतों तक का प्रदर्शन किया।
कुलकर्णी ने VillageSquare.in को बताया – “मुझे पता चला कि खुन विलुप्त होने के कगार पर है। इसकी उपेक्षा इस हद तक थी कि जिन लोगों को मैंने इस कपड़े को पुनर्जीवित करने के लिए प्रायोजन के लिए संपर्क किया, उन्होंने इससे इनकार कर दिया, लेकिन यह आश्वासन दिया कि यदि मैं कोई और व्यवसाय शुरू करना चाहूँ, तो वे मुझे हरसंभव मदद देंगे।”
खुन में सुधार
शदांगुले और कुलकर्णी ने कुछ बुनकरों को अपना लिया और उन्हें करघे का आकार बदलने में मदद की। बुनकरों ने सलवार कमीज, दुपट्टा, पोशाक या साड़ी बनाने के लिए, 36 इंच और 45 इंच की चौड़ाई वाले कपड़े के लिए करघे का आकार बढ़ाया है।
क्योंकि एक नया करघा लगाने में 70,000 से 80,000 रुपये के बीच लागत होती है, बुनकरों ने करघे के आकार को बदलने का फैसला किया। उन्होंने कि रिडिज़ाइनिंग की लागत केवल 6,000 रुपये प्रति करघा है। बुनकरों ने दो-दो करघों में बदलाव किया है।
पावर लूम में चौड़ाई को घटाना बढ़ाना आसान है। लेकिन पिटलूम के मामले में, यदि बुनकरों को फिर से उसी आकार में लूम लानी पड़ी, तो दोबारा पैसा खर्च करना पड़ेगा। बुनकरों को पता चला कि पिटलूम में बनी साड़ी, बेंगलुरु और पुणे जैसे शहरों में 6,000 से 12,000 रुपये में बिकती है।
दुपट्टे के लिए 32 इंच से 36 इंच की चौड़ाई और साड़ी के लिए 45 इंच की मांग को देखते हुए, ज्यादातर बुनकर अपने करघे को फिर से तैयार करना चाहते थे। इस साल और अधिक करघों को बदलने की उनकी योजना ठप हो गई, क्योंकि कोरोनावायरस महामारी से उनका व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है।
धीमी वापसी
हालांकि पहले भी कोशिशें हुई और गैर सरकारी संगठनों एवं डिजाइनरों के साथ परामर्श हुए थे, लेकिन खुन बुनाई को बढ़ावा देने के प्रयास 2018 में शुरू हुए। गुलेडागुड़ा के चौथी पीढ़ी के बुनकर, सिद्धरमप्पा मालिगी ने VillageSquare.in को बताया – “यदि ये बदलाव और जागरूकता एक दशक पहले शुरू हुई होती, तो हमारे कारीगर शहरों में नहीं जाते। खुन को पुनर्जीवित करने के लिए हमें और अधिक ग्राहकों की आवश्यकता है।”
पहले बुनकर कपड़ा 300 रुपये प्रति मीटर के हिसाब से बेचते थे। वे नए चौड़े कपड़े को 400 से 450 प्रति मीटर तक बेचते हैं। बुनकर एक करघे में 12 से 14 रोज काम करके एक हफ्ते में 15 से 20 मीटर बुनते हैं। डिजाइनरों के लिए, वे हर असाइनमेंट में 500 से 600 मीटर बुनते हैं, जो कि डिजाइनरों के बाजार के अनुसार साल में एक बार या ज्यादा बार हो सकता है।
डिजाइनरों का सहयोग के कारण नए रंगों के साथ धागे की रंगाई और केवल प्राकृतिक रेशम और कपास के धागों का उपयोग करने का प्रयोग शुरू हुआ। बुनकर पुणे, शोलापुर, मुंबई, कोल्हापुर, बेंगलुरु, धारवाड़ और हुबली के अपने नियमित बाजारों में बिक्री भी जारी रखते हैं।
मुख्यधारा के कपड़े के रूप में कुण का धीमा कायापलट तब दिखाई दिया, जब वड़ोदरा की महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ ने एक खुन साड़ी पहनी। इस तरह, एक कामगार द्वारा उपयोग किया जाने वाला साधारण खुन, शाही परिवार तक पहुंच गया। लेकिन हाथ से बुने हुए खुन को जीवित रखने के लिए और अधिक योजना की आवश्यकता है।
जेतली ने VillageSquare.in को बताया – “शहर का संपन्न वर्ग हमेशा किसी पारंपरिक स्रोतों से कुछ नया ढूंढता रहता है और खुन उन दूसरे हथकरघा वस्त्रों में शामिल होने वाला नवीनतम वस्त्र होगा, जिन्होंने इस क्षेत्र में प्रमोशन, डिज़ाइन या मार्केटिंग के लिए काम करने वालों का ध्यान आकर्षित किया है।”
सुरेखा कडप्पा-बोस ठाणे में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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