जुलाई 2017 में, केंद्र सरकार द्वारा गैर-सरकारी संगठनों की
मान्यता के लिए प्रस्तुत दिशानिर्देशों के बावजूद, सुप्रीम
कोर्ट ने उनकी गतिविधियों और फंडिंग को नियंत्रित करने के लिए एक कानून की
आवश्यकता को दोहराया। धन की हेराफेरी के लिए एक एनजीओ के खिलाफ एक जनहित याचिका को
लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस मुकदमे का सभी स्वैच्छिक संगठनों तक विस्तार कर दिया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), जिसे इस कार्य को अंजाम देने का निर्देश दिया गया
था, ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया, कि कुल 33 लाख पंजीकृत गैर-सरकारी संगठन और
स्वैच्छिक संगठन हैं, लेकिन उनमें से 10% से कम, यानि 3,07,000 ने अपने
ऑडिट किये हुए खाते दाखिल किए। यह निश्चित रूप से एक गंभीर समस्या का लक्षण है,
जिसकी सफाई की जरूरत है।
क्या आंकड़ों
से कहानी का पता चलता है?
स्वैच्छिक संगठन, जिनमें वैश्विक संगठनों की स्थानीय इकाइयां और घरेलू
संस्थाएं भी शामिल हैं, आजीविका, जेंडर
अधिकार, सड़क सुरक्षा, मानव अधिकार,
माइक्रोफाइनेंस, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य, कृषि और टिकाऊ ऊर्जा जैसे मुद्दों की एक
विस्तृत श्रृंखला पर काम करते हैं। वे विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा हैं और
सरकार एवं समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण पुल का काम करते हैं।
सीबीआई
द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश में गैर-सरकारी
संगठनों की संख्या स्कूलों की संख्या से दोगुनी है, और
सरकारी अस्पतालों की संख्या से 250 गुना है। जहाँ प्रत्येक 709
व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी है, वहीं
प्रत्येक 400 लोगों पर एक एनजीओ है। हालांकि कई संगठन
सराहनीय काम कर रहे हैं, लेकिन प्रभावशाली आंकड़े हमेशा
प्रभावशाली काम के रूप में तब्दील नहीं होते हैं।
स्व-सहायता
समूह और उनकी सफलता
ग्रामीण भारत, विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों के विकास का इतिहास,
असंख्य जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की उच्च स्तर की प्रतिबद्धता और
बलिदान से भरा है। विकास के लिए उनके निस्वार्थ समर्पण के बिना, भारत का ग्रामीण कायापलट असंभव था।
सबसे अच्छा और हाल ही का एक उदाहरण
स्व-सहायता समूह आंदोलन है, जिसने महिलाओं का एक
उल्लेखनीय तरीके से सशक्तिकरण किया है। 1992 में इसकी शुरुआत
के समय से इस कार्यक्रम के साथ जुड़ा होने के कारण, मैंने
जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को, मुश्किल भोगौलिक, सामाजिक और प्रशासनिक हालात से जूझते हुए देखा है| उनके
प्रयास, व्यक्तियों और गाँव-स्तर के संस्थानों के नेताओं को
ज्ञान, कौशल और आत्मविश्वास से लैस करने के होते हैं,
ताकि वे अपने समुदायों के विकास के लिए जानकर बन सकें और सक्रिय
अधिवक्ता की भूमिका अदा कर सकें।
स्व-सहायता समूह (एसएचजी) आंदोलन, जो अब अपने रजत जयंती वर्ष में है, पूरे देश में कार्यरत 85 लाख इकाइयों के साथ बड़े
पैमाने पर विकसित हुआ है। स्व-सहायता समूह ग्रामीण भारत में सामाजिक पूंजी पैदा
करने के सबसे बड़े माध्यम हैं। पंचायत राज संस्थाओं में अधिकांश महिला नेता और
सबसे अधिक सफल सरपंचों को स्व-सहायता समूहों ने ही इस भूमिका के लिए तैयार किया
है।
इसके अलावा, स्व-सहायता समूह, परिवार और समुदाय में जेंडर के
आधार पर होने वाले दमनकारी पक्षपात वाले रिवाजों को बदलने में एक प्रभावी साधन
साबित हुए हैं। यह जाति, वर्ग और राजनीतिक शक्ति से उत्पन्न
उन लोगों के बारे में विशेष रूप से सही है, जिन्होंने गरीबों
के लिए एक टिकाऊ आजीविका और एक समग्र विकास मिलना मुश्किल कर दिया है।
गांवों में
गैर सरकारी संगठनों की भूमिका
2011 की जनगणना के अनुसार,
देश की लगभग 69% आबादी गांवों में रहती है।
लगभग तीन-चौथाई आबादी के साथ, ग्रामीण भारत में, देश के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देने की भारी क्षमता है।
कुशल जल
प्रबंधन और टिकाऊ कृषि पद्यतियों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों को अनुकूल रखते
हुए आजीविका संवर्धन,
मानव संसाधन विकास, और वित्तीय समावेश के लिए,
मूल्य-आधारित साझेदारी के निर्माण के माध्यम से क्षमता को प्राप्त
किया जा सकता है। हमेशा की तरह, ग्रामीण परिस्थितियों में
गैर-सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
गैर सरकारी संगठन भारत के जीवंत नागरिक
समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो समुदाय को सरकार के साथ
संवाद में मदद करते हैं। इन्होंने जल संसाधन प्रबंधन, कृषि,
आय वृद्धि, स्वच्छता, शिक्षा,
शासन, और ग्राम-स्तर की संस्थाओं के क्षमता
निर्माण जैसे कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
स्वैच्छिक
संगठनों को सरकार का सहयोग और नियंत्रण
दुर्भाग्य से, सभी स्वैच्छिक संगठन नेक इरादों के साथ शुरू नहीं
जाते। कई मामलों में, संस्थापकों द्वारा निजी आर्थिक लाभ के
लिए इनकी स्थापना की जाती है। यह दुःख की बात है कि गैर-सरकारी संगठनों के
जमीनी-स्तर के कार्यकर्ताओं को हमेशा बहुत कम भुगतान किया जाता है, और प्राप्त संसाधनों को बड़े पैमाने पर संस्थापकों और संचालकों द्वारा हड़प
लिया जाता है।
हालाँकि नकारा गैर-सरकारी संगठनों की छंटनी
कर देनी चाहिए, लेकिन छानबीन की प्रक्रिया
पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि जायज लोग हतोत्साहित न हों। लेकिन
लोकतंत्र में, सरकार को ध्यान रखना चाहिए और कानूनी अनुशासन
के नाम पर उन संगठनों पर नकेल नहीं कसनी चाहिए, जो सरकार की
इच्छानुसार काम नहीं करते। एक स्वायत्त नागरिक समाज, राष्ट्र
के विकास को लेकर अत्यधिक आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखता है।
व्यावसायिक
खतरों पर सहयोग की जरूरत
हमें उन खतरों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत
है, जिनसे जमीन-स्तर के कार्यकर्ता अक्सर
गुजरते हैं। डेवलपमेंट बैंकिंग में जाने से पहले, मैंने एक
पत्रकार के रूप में काम किया। मैंने विकास क्षेत्र के बारे में राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय प्रेस के लिए बड़े पैमाने पर लिखा। दूरदराज के इलाकों में यात्रा करने
से मुझे ग्रामीण समस्याओं की वास्तविक जानकारी मिली।एक पत्रकार के रूप में मेरी
पहचान के कारण, मुझे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुँच
और स्थानीय स्तर पर सुरक्षा प्राप्त हुई। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं को ऐसे
विशेषाधिकार और संरक्षण नहीं मिलता।
ज्यादातर ध्यान सामाजिक कार्यक्रमों के
लाभार्थियों पर केंद्रित रहता है – उनकी आजीविका, बचत सम्बन्धी आदतें, जेंडर-आधारित संबंध आदि –
क्योंकि इन्हें सहायता राशि की पहुंच और प्रभाव को मापने के सूचक के रूप में देखा
जाता है। शायद ही कभी कार्यकर्ताओं के जीवन की तरफ ध्यान जाता है: वे लाभार्थियों
से, विकास के काम में लगे उनके स्थानीय साथियों और नौकरी के
साथ आने वाले सुरक्षा और पारिवारिक मुद्दों के सम्बन्ध में क्या सोचते हैं।
व्यक्तिगत साहस और मूल्यों के मायने हैं। शहरी लोगों के मूल्यों की कार्यक्षेत्र
में आजमाईश होती है। राजनीतिक एजेंटों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व लगातार एक
चुनौती बना हुआ है।
हालांकि ग्रामीण विकास का हर कोई स्वागत
करता है और बाहरी व्यक्ति के लिए कोई व्यक्तिगत जोखिम नहीं है। लेकिन जब हितों का
टकराव होता है और कमजोर को दबाया जाता है और उसका शोषण होता है, तो बहुत से ग्रामीण गरीब और उनके साथ काम करने वाले
लोगों को दुर्व्यवहार, भेदभाव और खतरे का सामना करना पड़ता
है।
जमीनी
कार्यकर्ताओं को मान्यता प्रदान करने की जरूरत
स्वैच्छिक संगठनों के कर्मचारियों द्वारा
बहुत नवाचार और बलिदान किया जाता है, जिसकी जानकारी केवल
लाभार्थियों को होती है। यहां तक कि संगठनों की विभिन्न रिपोर्टों में, परियोजना की सफलता में व्यक्तिगत योगदान का उल्लेख नहीं किया जाता। असल
में हमें, उन सामान्य पुरुषों और महिलाओं की सराहना और
सम्मान करना चाहिए, जो परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के
कठोर मेहनत करते हैं।
जैसा किसी भी संस्थागत ढांचे पर लागू होता
है, पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता
महत्वपूर्ण है। नियमों और व्यवस्थाओं का पूर्ण रूप से पालन, किसी
भी संगठन की शुद्धता का प्रतीक है। क्योंकि यह उन्हीं की आकांक्षाओं का प्रतीक है,
इसलिए नागरिक समाज को लोगों में विश्वास पैदा करना चाहिए। यह
ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि दूरदराज के क्षेत्रों में लोग, अपने स्वयं
के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त रूप से सशक्त नहीं होते। यह आवश्यक है, कि गैर-सरकारी संगठन अपने भीतर झांक कर देखें और अपने घरों को व्यवस्थित
करें, ताकि खोई हुई विश्वसनीयता को पुनः प्राप्त किया जा सके,
जो असंख्य प्रतिबद्ध जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बलिदान से बनाई
गई थी।
ग्रामीण भारत में, स्वैच्छिक संगठन व्यापक विकास नेटवर्क का एक घटक भर
हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में, वे सबसे
शक्तिशाली उपकरण होते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम उनकी क्षमता का लाभ कैसे उठाएं।
हालाँकि गैर सरकारी संगठनों को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए उसकी सही
कार्यप्रणाली और जवाबदेही आवश्यक हैं, राजनेताओं को ध्यान
रखना चाहिए कि वे लोगों पर अपनी संकीर्ण विचारधाराओं को न थोपें, क्योंकि इससे जायज गैर सरकारी संगठनों के कार्यों के योगदान निरर्थक हो
जाएंगे।
मोईन क़ाज़ी “विलेज डायरी ऑफ़ ए हेरेटिक बैंकर” के लेखक हैं। उन्होंने विकास क्षेत्र में तीन दशक से अधिक समय काम किया है। विचार व्यक्तिगत हैं।