रोग प्रतिरक्षा-वर्द्धकों (इम्युनिटी बूस्टर्स) से किसानों ने कमाया लाभ

करूर, तमिलनाडु

जब कोरोनावायरस संक्रमण की समाप्ति के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे, प्राकृतिक प्रतिरक्षा-वर्द्धकों की बढ़ती मांग का लाभ, तमिलनाडु के सहजन उगाने वाले किसान मूल्य-संवर्धन करके लाभ कमा रहे हैं।

जबकि 7 अगस्त 2020 तक, 52,759 पुष्ट मामलों के साथ, तमिलनाडु कोरोनोवायरस के खिलाफ एक मुश्किल लड़ाई लड़ रहा है, तो जनता में हल्दी और सहजन जैसे प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर के लिए मांग बढ़ गई है।

करूर जिले के लिंगमनायाक्कानपट्टी के किसानों के संगठन, ‘करूर मोरिंगा (सहजन) और सब्जी किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड’ ने सहजन को बढ़ावा देने के लिए इस अवसर का लाभ इस तरह उठाया है, कि यह भारतीय स्वाद के अनुसार पसंदीदा बन गया। सहजन दाल पाउडर, चटनी और गुड़ की गेंदों से लेकर, खास सहजन तेल या पत्ती पाउडर तक, किसानों ने अपने उत्पादों को रसोई के मुख्य भोजन बनाने की कोशिश की है।

किसान उत्पादक कंपनी ने नोनी सिरप, गिलोय (टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया), आदि जैसे अपने दूसरे प्रतिरक्षा उत्पादों का उत्पादन भी बढ़ाया है| जब कोरोनोवायरस संक्रमण और लॉकडाउन के कारण, पूरे देश में छोटे व्यवसायों के लिए अस्तित्व में बने रहना मुश्किल हो गया है, इस किसान समूह न सिर्फ जीवित रह पाया है, बल्कि और पनपा है।

बढ़ती मांग

प्राकृतिक प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले पदार्थों की मांग को देखते हुए, करूर सहजन  और सब्जी किसान निर्माता कंपनी ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने जैविक उत्पादों की बिक्री शुरू कर दी। इसके सीईओ और इंजीनियर से किसान बने, कार्तिकेयन मेइवानन ने बताया – “सहजन अल्सर को कम करने, खराश, प्रजनन संबंधी विकारों से निपटने के अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है।”

26 वर्षीय मेइवानन ने VillageSquare.in को बताया – “सहजन के तेल, जिसे ‘बेन तेल’ के रूप में भी जाना जाता है, का उम्र-वृद्धि रोकने (एंटी-एजिंग) के सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में भी बहुत बड़ा बाजार है। क्योंकि दुनिया भर की सरकारों द्वारा इसकी प्रतिरक्षा बढ़ाने के गुणों के कारण इसे बढ़ावा दिए जाने के चलते, लॉकडाउन की चुनौतियों के बावजूद हमारे ग्राहकों की संख्या में वृद्धि हुई है।”

सरोजा कुमार और टीम के एक सदस्य, मूल्य-संवर्धन से पहले सहजन के पत्तों और बीजों को तैयार करते हुए (छायाकार – कार्तिकेयन मेइवानन के सौजन्य से)

कंपनी की प्रशासनिक प्रमुख, मोहना बालासुब्रमणि (45) ने बताया – “जैसे ही लॉकडाउन में छूट मिलेगी और कूरियर सेवाएं शुरू होंगी, हमारे पास हमारे उत्पादों के लिए कई ऑर्डर हैं, खासतौर से चेन्नई जैसे शहरों से।”

सूखा-प्रतिरोधी फसल

इस किसान समूह की प्रबंध निदेशक, 53 वर्षीय सरोजा कुमार एक किसान परिवार से आती हैं। वह कहती हैं – “एक समय था, जब करूर के किसान मोती-बाजरा या ज्वार जैसी, खाद्य फसलें उगाते थे। लेकिन पानी की कमी और पारंपरिक बाजरे की जगह चावल द्वारा लिए जाने के कारण, जिले के ज्यादातर किसानों ने सूखे को झेल लेने वाली फसल, सहजन उगाना या पशुपालन शुरू कर दिया।”

सरोजा कुमार ने VillageSquare.in को बताया – “ठीक 10 साल पहले, जब भूजल अपने न्यूनतम स्तर तक गिर गया, हमारे पड़ोस में कई किसानों ने खेती करना पूरी तरह से छोड़ दिया और वह मौका था जब मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा।” जैविक खेती के पक्षधर कृषि-वैज्ञानिक, नम्मलवार से प्रेरित होकर उन्होंने, अपनी पानी के अभाव से ग्रस्त भूमि को पुनर्जीवित करने के लिए, जैविक खेती का रास्ता अपनाने का फैसला किया।

बिक्री सम्बन्धी चुनौतियों से निपटना

कुमार ने केवल एक एकड़ में सहजन उगाने का फैसला किया, जबकि बाकि पांच एकड़ में एक खाद्य-वन तैयार किया। वन-खेत में, रखरखाव और पानी की आवश्यकता कम होने के कारण, उनके पास असली समस्या, यानि अपने उत्पादों को बेचने पर ध्यान देने के लिए ज्यादा समय था।

वह याद करती हैं कि सहजन या उसके बीज को बेचने में उन्हें मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है। जहां सब्जी 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जा सकती थी, वहीं दूसरी फर्मों को बीजों की बिक्री से किसानों को कोई राहत नहीं मिली।

कंपनी के निदेशकों में से एक, शोबिका पेरुमल ने VillageSquare.in को बताया – “मैंने इस साल सहजन बीजों की कीमत 1,200 रुपये प्रति किलोग्राम से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिरते देखी है। लेकिन एक समूह के रूप में, अब हम कीमत तय करते हैं।”

सहजन के पत्तों से पाउडर और विभिन्न उत्पाद बनाने से पहले, उन्हें प्राकृतिक रूप से सुखाया जाता है (छायाकार – कार्तिकेयन मेइवानन)

उन्होंने बताया – “हमारे ज्यादातर ग्राहक नियमित रूप से हमसे खरीदारी करते हैं और इसका प्रचार मुख्य रूप से एक दूसरे से सुनकर या जानकर हुआ है। इस समय, जब कोरोनावायरस के लिए कोई इलाज दिखाई नहीं पड़ता, लोगों ने बड़े पैमाने पर हमारे जैसे प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले उत्पादों का उपयोग करना शुरू कर दिया है।” वे अपने उत्पादों की बिक्री न सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य-प्रद व्यंजन बनाने की विधियों के बारे में बताते हैं, जिनमें देसी जड़ी बूटियों और सामग्री का उपयोग होता है|

मूल्य-संवर्धन

शोबिका पेरुमल कहती हैं – “हमारा मुख्य उत्पाद सहजन के बीजों से बनने वाला तेल है, जिसे हम सीधे ग्राहक को 5,000 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से तय दाम पर बेचते हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से चोट न पहुंचे।”

यह सरोजा कुमार थी, जिन्होंने सहजन तेल को एक अकेले खाद्य उत्पाद के रूप में बढ़ावा देने का बीड़ा उठाया। कुछ साल पहले, जब उनके पास टनों बिना बिके बीजों का भंडार था, तो उन्होंने उन्हें बेचने की बजाए उनका तेल निकालने का फैसला किया।

उसने VillageSquare.in को बताया – “शुरू में, लोग डरते थे कि कहीं यह जहरीला न हो, इसलिए हमने इसे खुद पर आजमाया। तेल का उपयोग करके और इसके फायदों का अनुभव करने के बाद, हमने इसे 500 रुपये प्रति 100 मिलीलीटर के हिसाब से ग्राहकों को बेचने का फैसला किया।”

देश भर में प्रवासियों के लौटने की प्रक्रिया को देखते हुए, उनका सोचना है कि ग्रामीण युवा इस अवसर का उपयोग कृषि उत्पादों में मूल्य-संवर्धन और बिक्री पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कर सकते हैं।

उत्पाद-किस्मों में वृद्धि

वर्ष 2016 में, जब नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) ने सहजन-आधारित किसान उत्पादक कंपनी शुरू करनी चाही, तो सरोजा कुमार को इस पहल का नेतृत्व करने के लिए चुना गया। दि करूर मोरिंगा (सहजन) और सब्जी किसान निर्माता कंपनी लिमिटेड अब 15 गांवों के 320 किसानों के साथ काम करती है।

मोहना बालासुब्रमणि, पैकेजिंग और ग्राहकों को वितरण के काम को देखते हुए (छायाकार – कार्तिकेयन मेइवानन के सौजन्य से)

सदस्य प्रक्रियाओं को सरल बनाने का प्रयास करते हैं। कुमार ने बताया – “जब हम सहजन के पत्तों को सुखाना चाहते थे, तो हमने अपने घर के बाहर, कपड़े में इनके गुच्छों को लपेटकर सुखाने का फैसला किया और कुछ दिनों के बाद पत्तियां पीसने लायक कुरकुरी हो गईं। हम पिसी हुई पत्तियों का चाय-पत्ती, सूप पाउडर और चटनी, इसके गुड़ की गोलियों आदि खाने के लिए तैयार उत्पादों के रूप उपयोग करते हैं।”

शोबिका पेरुमल कहती हैं – “हमारे पास उत्पादों की एक श्रृंखला है, जिसके आधार पर हम में से प्रत्येक, इडली पोडी, मीठी गोलियों से लेकर सहजन साबुन तक बना और पहुंचा सकते हैं। बाजार में माँग के आधार पर, हमने बाजरा-आधारित दूसरे उत्पाद और एक खास तरह के हर्बल साबुन का रेंज भी शुरू किया है।”

ग्रामीण सशक्तिकरण

किसान ललिता सरवनन (42) पिछले दो वर्षों से कंपनी के निदेशक के रूप में काम कर रही हैं। उनका कहना है कि एक किसान उत्पादक कंपनी के घर के पास होने से, उसके जैसी कई महिलाएं सिर्फ फसल उगाने तक सीमित न रहकर आगे गई हैं। अब वे स्वयं निर्णय लेती हैं और उत्पाद की कीमत तय करने में उनकी भूमिका है।

वह सहजन, बैंगन, अरंडी इत्यादि उगाती हैं और उभरते बाजारों के बारे में उनकी पकड़ है। उन्होंने कहा – “क्या आप जानते हैं कि सेंथिल की मांग में अचानक उछाल आया है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि यह ‘काबासुरा कुडिनेर’ बनाने वाली सामग्री में से एक है, जिसे तमिलनाडु सरकार एक प्रतिरक्षा-वर्द्धक पेय के रूप में बढ़ावा दे रही है?”

उन्हें उम्मीद है कि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली की राशन की दुकानों, सरकारी बाल-संरक्षण केंद्रों आदि के माध्यम से, उनके जैसे स्थानीय और देसी उत्पादों को बढ़ावा देगी| वे कहती हैं – “हमारी राशन की दुकानों में आयात किए हुए ताड़ के तेल की बजाए, सहजन तेल क्यों न बेचा जाए?” उनका मानना है कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी।

कैथरीन गिलोन चेन्नई स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।