अपनी सब्जियों की बिक्री में आने वाली समस्याओं के कारण, खेती के लिए जलवायु अनुकूल होने के बावजूद भागलपुर के किसानों को बहुत कम पैसा बचता था। स्ट्रॉबेरी की खेती अपनाने और उसकी बिक्री सीधे उपभोक्ता को करने से उनकी किस्मत बदल गई
जब भी हम रसीली स्ट्रॉबेरी के बारे में
सोचते हैं, तो महाराष्ट्र का दर्शनीय
महाबलेश्वर या हिमाचल प्रदेश के सीढ़ीनुमा खेतों का ख्याल आता है। बिहार के एक
अनजान गाँव की कोई कल्पना नहीं करेगा। लेकिन बिहार के भागलपुर जिले का उस्मानपुर,
स्ट्रॉबेरी की खेती का केंद्र बन चुका है।
गंगा नदी के किनारे बसे, उस्मानपुर गाँव की मिट्टी उपजाऊ है और अच्छी तरह
विकसित सिंचाई व्यवस्था है। किसानों की व्यावसायिक खेती में रुचि और अनुभव था।
उन्होंने बंदगोभी, फूलगोभी, बैंगन,
भिंडी, परवल, गाजर,
मूली और दूसरी मौसमी सब्जियों जैसी फसलें उगाई थी।
लेकिन उपज की बिक्री उनके लिए एक बड़ी
समस्या बनी रही, और उन्हें अपनी उपज के लिए
उचित मूल्य नहीं मिल सका। गाँव में 200 किसान परिवार थे,
जिनकी औसतन एक हेक्टेयर भूमि थी। किसानों की वार्षिक आय 20,000
से 85,000 रुपये के बीच रहती थी।
वर्ष 2018 के शुरू में, बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू),
सबौर ने उस्मानपुर को ऑस्ट्रेलिया-भारत परिषद के आर्थिक सहयोग से
चलने वाली परियोजना में शामिल करने के लिए चुना। इसका उद्देश्य खेती के तरीकों को
समझना और स्थानीय किसानों की आमदनी बढ़ाने के तरीकों के बारे में सुझाव देना था।
प्रोयोजना के अंतर्गत दी गई स्ट्रॉबेरी की खेती की सलाह के माध्यम से, किसानों को पहले के मुकाबले कई गुना कमाने में मदद मिली।
स्ट्रॉबेरी
की शुरुआत
खेती के लिए जलवायु और किसानों की रुचि के
विस्तृत सर्वेक्षण के बाद, बीएयू परियोजना टीम ने
किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करने की सलाह देने का फैसला किया। बीएयू के
वैज्ञानिक और प्रोजेक्ट टीम के एक सदस्य शंभू प्रसाद ने बताया – “हम जानते थे कि देश के इस हिस्से के किसानों के लिए स्ट्रॉबेरी नई चीज है,
और किसान हमारी सलाह को आसानी से नहीं मानेंगे।”
शंभू प्रसाद ने VillageSquare.in को बताया – “फिर भी, उनकी खेती सम्बन्धी क्षमताओं और स्थानीय बाजार की प्रकृति को देखते हुए, हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इस तरह की बड़े बदलाव वाली सलाह से ही वांछित परिणाम मिल सकते हैं और किसानों को उस तरह का लाभ प्रदान कर सकती हैं, जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे।”
जैसी उम्मीद थी, जैसे ही परियोजना टीम ने सलाह दी, किसानों ने उनके विचार को खारिज कर दिया। ज्यादातर किसानों ने स्ट्रॉबेरी
के बारे में सुना या देखा नहीं था। लेकिन बीएयू की एक्सटेंशन टीम अपनी बहु-आयामी
रणनीति के साथ तैयार थी।
टीम के सदस्यों ने फसल की खूबियों के बारे
में समझाने के लिए, छोटे समूहों में किसानों
की कई बैठकें कीं। उन्हें और अधिक प्रेरित करने के लिए, टीम
ने स्ट्रॉबेरी की खेती के वीडियो शो आयोजित किए और उसके बाद समूह चर्चा की। टीम ने
तीन संपन्न किसानों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जो प्रयोग
करने में दिलचस्पी दिखा रहे थे।
धीमा बदलाव
खगेश मंडल (33), जो 1.2 हेक्टेयर जमीन के मालिक हैं, ने VillageSquare.in को बताया – “सच कहूँ तो, शुरु में किसी की दिलचस्पी नहीं थी।
लेकिन जब टीम के सदस्यों ने समझाया और खेती के पूरे सीजन में मदद का वायदा किया,
तो मैंने इसे आजमाने का फैसला कर लिया। दो और ग्रामवासी साथियों के
कोशिश करने के फैसले के बाद, मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया।”
नवंबर 2018 में, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से खरीदकर लाए गई,
दो अलग-अलग किस्मों, नबीला और कामरोजा
स्ट्रॉबेरी, की 1500 बेल तीन किसानों
के खेतों में लगाई गई। परियोजना टीम ने इन तीन खेतों को प्रदर्शन-प्लाट के रूप में
इस्तेमाल करने का फैसला किया और पूरी फसल के समय में जरूरी मार्गदर्शन प्रदान
किया।
क्योंकि परियोजना टीम को इस क्षेत्र के
किसानों को होने वाली बिक्री सम्बन्धी दिक्कतों के बारे में पता था, उन्होंने एक स्थानीय कृषि-उद्यमी के साथ 200 रुपये प्रति किलोग्राम की पूर्व-निर्धारित कीमत पर स्ट्रॉबेरी की बिक्री
के लिए मोलभाव करने का फैसला किया। स्थानीय खुदरा बाजार में, स्ट्रॉबेरी 350 – 400 रुपये प्रति किलोग्राम की दर
से बेची जा रही थी।
सीजन के अंत में, प्रत्येक किसान प्रति एकड़ 4.5 से 5.0 लाख रुपये का शुद्ध लाभ कमा सकता था। तीन किसानों में से एक, धनंजय मंडल ने VillageSquare.in को बताया – “जितना लाभ हुआ और जिस आसानी से हमारी उपज खेत के गेट पर ही बिक गई, उससे हम हैरान थे।”
फसल का
क्षेत्र बढ़ाना
अगले साल प्रदर्शन के नतीजों से उत्साहित, जहाँ उन तीन किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती अपनी और
अधिक जमीन पर करने का फैसला किया, वहीं उनके गांवों के कुछ
और किसानों ने भी इस नई फसल को अपने खेत में आजमाने का फैसला किया।
इस बार टीम को सिलीगुड़ी से बेल सस्ती दर
पर मिल गई, क्योंकि वे अधिक मात्रा
में खरीद रहे थे। सभी किसानों की भरपूर फसलें हुई, और उसी के
साथ लाभ भी। लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि स्व-सहायता समूहों के
हजारों सदस्य और किसान इस नई फसल को उगाने की तकनीक और सम्भावना को जानने और देखने
के लिए वहां आए।
तीसरे साल, कई और किसान इस प्रक्रिया में शामिल हुए, जबकि
मौजूदा किसानों ने इस फसल के लिए अपनी जमीन का क्षेत्र बढ़ाना जारी रखा| स्ट्रॉबेरी के पौधे नाजुक होते हैं और उन्हें कोमलता से संभालने की
आवश्यकता होती है। क्योंकि फसल का रकबा काफी बढ़ गया था, इसलिए
हाथों से सिंचाई करना कठिन हो गया था।
प्रगतिशील
किसान
ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था करना किसानों की
सोच में नहीं था। हालांकि ड्रिप सिंचाई के लिए सब्सिडी भी उपलब्ध थी, लेकिन उसमें समय लगता। प्रगतिशील किसानों ने दूसरे
किसानों से पाइप खरीद लिए, जिन्होंने वे किन्हीं दूसरी फसलों
के लिए खरीद लिया था, लेकिन उनका उपयोग नहीं कर पाए।
उन्होंने अपनी जरूरतों के अनुरूप मौजूदा व्यवस्था में हेरफेर कर लिया, और उनका नवाचार काम कर गया।
किसान अपने तरीकों में सृजनशील हो रहे थे।
जैसे ही फसल कटाई का समय आया, किसानों ने बिचौलियों को
दिए जाने वाली दलाली बचाने और लाभ बढ़ाने के उद्देश्य से बिचौलियों को बीच में से
निकाल दिया।
उन्होंने एक नारा गढ़ा – ‘खेत से सीधे थाली में’, और
‘लोकल और ताज़ा स्ट्रॉबेरी’ के नाम से अपनी उपज
की ब्रांडिंग की और उन्हें 2 किलो के बक्सों में पैक किया।
बीएयू की टीम ने ब्रांडिंग और पैकेजिंग में मदद की।
किसानों ने सोशल मीडिया पर चलने वाली संचार
सामग्री और फोन पर मैसेज के लिए ऐप तैयार किए। कई स्थानीय लोगों द्वारा किसानों के
संदेशों को साझा करने के कारण, स्थानीय मीडिया ने किसानों
की पहल को प्रसारित किया।
किसानों ने पैकेजिंग और उपभोक्ताओं के दरवाजे पर बिक्री शुरू की। किसानों में से एक, बिकास मंडल ने VillageSquare.in को बताया – “जब हम उगाएंगे और हम उसे बेचेंगे भी। यदि हमने ऐसा करना जारी रखा और हमारे लिए सब कुछ ठीक रहा, तो 5 से 6 लाख रुपये प्रति एकड़ का लाभ प्राप्त करना मुश्किल नहीं होगा।”
परिणामों का
प्रभाव
“देखने पर ही विश्वास
होता है” की कहावत जादू कर रही है, क्योंकि आसपास के गांवों और जिलों के अधिक संख्या में किसान स्ट्रॉबेरी की
खेती करना चाहते हैं। आर.के.सोहाने, निदेशक – एक्सटेंशन,
बी.ए.यू. के अनुसार – “हालांकि इस फसल
में गहन संसाधनों की जरूरत रहती है, लेकिन हमें बढ़ती संख्या
में किसानों से स्ट्रॉबेरी उगाने के बारे में सवाल और अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं।”
आर.के.सोहाने ने VillageSquare.in को बताया – “एक और बहुत ही सकारात्मक परिणाम यह है कि छोटे किसान भी पपीते जैसे उच्च-मूल्य वाले फलों की खेती के बारे में जानकारी मांग रहे हैं।”
किसानों ने एक बेहतर किस्म की बेल के अन्य
स्रोतों पता लगाया है और अपनी अगली फसल के लिए पुणे से उसकी खरीद की संभावनाएं
तलाश रहे हैं। अपने अनुभव के आधार पर, वे नए बाजारों और माल
बेचने के रास्तों पर विचार कर रहे हैं।
राज्य की राजधानी पटना और कोलकाता दो बाजार
हैं, जिनपर वे वर्तमान में ध्यान केंद्रित
कर रहे हैं। बिकास मंडल कहते हैं – “स्ट्रॉबेरी की खेती ने
हमारी खेती को पूरी तरह से बदल दिया है। अब हम फसल उगाने से पहले बाजार के बारे
में सोचते हैं, जबकि पहले हम फसल उगाते थे और फिर बाजार की
तलाश करते थे।”
बी.ए.यू. को ख़ुशी है कि उनकी परियोजना
वांछित परिवर्तन ला सकती है। स्थानीय ग्राहक खुश हैं कि उन्हें इलाके में ही उगाए
विदेशी फल सस्ती दर पर मिल जाते हैं। किसान सबसे खुश हैं, क्योंकि उन्होंने न केवल स्ट्रॉबेरी उगाना सीख लिया,
बल्कि मुनाफे की खेती के सिद्धांत को भी समझा। इसमें कोई शक नहीं,
कि किसान सीख सकते हैं और कुछ नया कर सकते हैं। और उनके नवाचार
कारगर होते हैं।
राम
दत्त बिहार कृषि विश्वविद्यालय,
सबौर, बिहार में विस्तार-शिक्षा के सहायक प्रोफेसर
हैं। वह जमीनी स्तर के नवाचारों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम करते हैं।
कृषि-उद्यमिता पर उनके ऑनलाइन पाठ्यक्रम लोकप्रिय हैं। नीरज कुमार विकास प्रबंधन
संस्थान, पटना में वरिष्ठ प्रोफेसर और डीन हैं। उन्होंने
जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर और भारतीय वन
प्रबंधन संस्थान (IIFM), भोपाल में पढ़ाया है। विचार
व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?