कामरूप की महिलाओं द्वारा एरी रेशम का पुनरुद्धार
असम के कई हिस्सों में, पारम्परिक एरी रेशम बुनकरों को बाजारों के साथ जोड़कर , गैर-लाभकारी संगठन, ‘ग्रामीण सहारा’ ने हजारों ग्रामीण महिलाओं को अपनी घरेलू आय बढ़ाने में मदद की है।
ग्रामीण असम में मुख्य रूप से दो बातों का अभाव था – ग्रामीण उत्पाद के लिए टिकाऊ बाजार संपर्क का अभाव और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच का अभाव। शरतचंद्र दास, अपने द्वारा स्थापित ग्रामीण सहारा के माध्यम से, इन्हें प्रभावी तरीके से पाट रहे हैं।
एक विधवा माँ द्वारा परवरिश पाए, शरत दास को एक छात्र के रूप में कई समझौते करने पड़े। एक मेधावी छात्र होने और इंजीनियरिंग और चिकित्सा विज्ञान पढ़ने के विकल्प के बावजूद, उन्होंने मत्स्य विज्ञान की पढ़ाई को चुना, ताकि वे अपनी मां के आर्थिक बोझ को कम कर सकें और स्नातक होने के तुरंत बाद नौकरी पा सकें।
अपने कॉलेज के दिनों से ही, वे सक्रिय रूप से सामाजिक सेवा में शामिल हो गए। कुछ वर्षों तक विभिन्न संगठनों में काम करने के बाद, समुदाय के लिए काम करने की तीव्र इच्छा के साथ, समान विचारधारा वाले दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने ग्रामीण सहारा की स्थापना की।
एरी रेशम की बुनाई
लगभग 15 साल पहले, एरी रेशम की बुनाई ज्यादातर असंगठित व्यवसायिक गतिविधि थी। गाँवों की महिलाएं बुनाई करती थी। एरी रेशम की बुनाई में लगे ज्यादातर परिवार गरीब थे। पारम्परिक काम को जीवित रखने को उत्सुक, शरत ने एरी रेशम उत्पादों की संभावनाओं को समझने के लिए उसके बाजार का अध्ययन किया।
अध्ययन के नतीजों के आधार पर, दास ने एरी रेशम व्यवसाय को, महिला बुनकरों को शामिल करते हुए, बढ़ावा देने का फैसला किया। ग्रामीण सहारा के सहयोग से, महिलाओं ने 20-20 के समूहों में मिलकर, निर्माता-समूह बनाए। हर दस समूहों पर एक, उत्पादन केंद्रों ने कोकून (रेशम के साथ रेशमी कीड़े) महिला सदस्यों के घर तक पहुंचाए। महिलाएं अपने द्वारा तैयार धागे उत्पादन केंद्रों पर बेचती हैं।
उत्पादन और बिक्री सम्बन्धी कार्यों को सुव्यवस्थित करने के लिए, ग्रामीण सहारा के मार्गदर्शन में, 600 महिला बुनकरों ने शेयरधारकों के रूप में ग्रामीण रेशम निर्माता कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (GSPCL) का गठन किया। महिलाओं के समूह प्रत्येक व्यवसायिक प्रक्रिया को स्वयं संभालती हैं।
इस हस्तक्षेप से न केवल पारम्परिक कारीगरों के कौशल के संरक्षण में मदद मिली है, बल्कि महिला बुनकरों की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। इससे पैसा, ऊर्जा और कोकून खरीदने व धागा बेचने के लिए यात्रा में लगने वाले समय में भी बचत हुई है।
महिलाओं ने अपने कताई कौशल को बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। ग्रामीण सहारा ने सरकारी योजनाओं के अंतर्गत सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए महिलाओं का मार्गदर्शन किया, जिससे वे हाथ की मशीन की जगह, बिजली की कताई मशीनें खरीद सकें। नई मशीनों से उत्पादकता आठ गुना हो गई।
इस हस्तक्षेप का प्रभाव काम की गुणवत्ता और पारिवारिक आय में दिखाई देती है। जिन महिलाओं को पहले धागे के लिए 30 रुपये प्रति किलोग्राम मिलता था, उन्हें अब 80 रुपये प्रति किलो मिलने लगा। उत्पादन केंद्रों द्वारा धागे की बिक्री में मदद के कारण, वे बिचौलिए आपूर्ति श्रृंखला से बाहर हो गए, जो लाभ का ज्यादातर हिस्सा हड़प लेते थे।
ग्रामीण वित्तीय पहुंच
सदस्यों को ऋण देने के लिए, स्व-सहायता समूह में उपलब्ध पैसा आमतौर पर सीमित होता है। समुदाय और विशेष रूप से समूहों की सदस्यों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के लिए, ग्रामीण सहारा ने तीन साल के दृढ़ प्रयासों के बाद 2014 में लघुवित्त कंपनी की स्थापना की।
माइक्रोफाइनेंस कंपनी के आज तीन राज्यों – असम, मेघालय और नागालैंड में 20,000 से अधिक पंजीकृत सदस्य और 17 शाखाएँ हैं।
केवल आय सृजन संबंधी गतिविधियों को वित्त प्रदान करने के सिद्धांत के कारण, 75 करोड़ रुपये का कुल ऋण वितरण और 14 करोड़ रुपये के वर्तमान पोर्टफोलियो से असंख्य सदस्यों को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिली है।
आजीविका हस्तक्षेप
हमेशा समुदाय के सदस्यों के साथ परामर्श के साथ समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए, ग्रामीण सहारा ने ग्रामीणों के लिए आजीविका के बेहतर अवसर पैदा करने के लिए, कई परियोजनाएं शुरू की हैं।
ग्रामीण सहारा ने छायगांव ब्लॉक के रिहाबारी गांव में एक ग्राम संगठन ‘रेंगोनी ग्राम्य संगठन’ के गठन में सहयोग किया। संगठन सूअर पालन की एक इकाई चलाता है, जिसका पूरी तरह से प्रबंधन, 125 महिला एसएचजी सदस्यों का समूह करता है। सूअर पालन के इच्छुक ग्रामीणों को बेचने के लिए अच्छी नस्ल के सूअर के बच्चे पैदा करने के अलावा, संगठन फ़ीड, टीकाकरण, आदि के लिए भी जरूरी सलाह और सहयोग प्रदान करता है।
ग्रामीण सहारा ने किसानों में सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI) के बारे में जागरूकता पैदा की और चावल की पैदावार बढ़ाने के लिए तकनीकी जानकारी दी। सिस्टम का पालन करने वाले किसानों की उपज में 1.5 गुना तक की वृद्धि हुई है।
ग्रामीण सहारा ने लगभग 30 पानी को मोड़ने पर आधारित सिंचाई (डायवर्सन बेस्ड इरीगेशन) परियोजनाएँ लागू की हैं, विशेष रूप से असम-मेघालय सीमा के पहाड़ी और ऊंची ढलान वाले क्षेत्रों में। इन परियोजनाओं की मदद से 500 एकड़ से अधिक भूमि सिंचाई के अंतर्गत आ गई है, जिसमें किसान दूसरी फसल उगा सकते हैं।
परिवर्तन लाना
शरत दास शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा काम करना चाहते थे। स्कूल छोड़ने की स्थिति को रोकने और बच्चों में शिक्षा के मूल्य को बढ़ाने के उद्देश्य से, पाँच गाँवों में एक शिक्षा परियोजना लागू की थी। जब ग्रामीणों को एक स्कूल की जरूरत महसूस हुई और उन्होंने शरत शुरू करने के लिए कहा, तो उन्होंने आसानी से मान लिया। ग्रामीण सहारा ने 2013 में दुबजेनी गाँव में, ‘ग्रामीण ज्योति अकादमी’ की शुरुआत की। यह विद्यालय एक दूसरे से लगते चार विकास खंडों के छात्रों को सेवाएं प्रदान करता है।
समुदाय की जरूरतों और बदलते समय के अनुसार काम करते हुए, ग्रामीण सहारा नई परियोजनाएं शुरू करता है। एक छोटी मछली पालन इकाई और हल्दी की एक इकाई शुरू होने जा रही हैं। इसने एक सामाजिक व्यवसाय इकाई शुरू की, जो बिक्री सहयोगी के रूप में काम करती है, जिससे ग्रामीण उत्पादकों, कारीगरों और किसानों को अपने उत्पाद बेचने में मदद मिलती है।
ग्रामीण सहारा के कार्यों से लगभग दो लाख ग्रामीणों को उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के माध्यम से लाभ हुआ है। कुछ नई परियोजनाओं की योजना है, जिससे ग्रामीण सहारा बहुत से लोगों के जीवन में बदलाव लाएगा, और उन्हें एक मुकाम पाने में मदद करेगा।
यह लेख, संजीव फंसालकर और अजीत कानिटकर द्वारा दिसंबर 2017 में सम्पादित ‘जैम्स ऑफ़ प्योरेस्ट रे सेरेन: ग्लिम्प्स इंटू लाइव्स एंड वर्क ऑफ़ इंडिया’ज़ आउटस्टैंडिंग सोशल वर्कर्स’’ के अंशों पर आधारित है। खरीदने के लिए, यह पुस्तक निम्न लिंक पर उपलब्ध है – http://www.bookganga.com/eBooks/Books/details/5134897698503357844?BookName=Gems-Of-Purest-Ray-Serene
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