सरकारी योजनाओं के फर्जी लाभार्थियों को बाहर करने के उद्देश्य से, ‘आधार’ को राशन कार्ड और बैंक खातों के साथ जोड़ने से, लॉकडाउन के दौरान बहुत से लोगों को बेहद जरूरी प्रावधानों से वंचित कर दिया है
पिछले एक साल से, 50 वर्षीय जोगेंद्र निखुन्ती का जीवन एक शौचालय की
चार दीवारों के भीतर सीमित हो गया है। निखुन्ती ओडिशा के झारसुगुड़ा जिले के
लखनपुर प्रशासनिक ब्लॉक के जंपाली गांव में एक दिहाड़ी मजदूर हैं।
पिछले साल मानसून में निखुन्ती का घर
क्षतिग्रस्त हो गया था, जिससे उन्हें स्वच्छ भारत
मिशन के अंतर्गत बनाए गए, बिना इस्तेमाल किए गए शौचालय में
शरण लेनी पड़ी। प्रधान मंत्री आवास योजना (PMAY) के अंतर्गत
एक घर प्राप्त करने में असमर्थ, वह इस शौचालय में रह रहे हैं,
जिसमें वह मुश्किल से फिट होते हैं।
पिछले कुछ
महीनों से उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाला राशन
नहीं से उनका संकट और बढ़ गया। घर और भोजन नहीं होने के कारण, वह भोजन का खर्च उठाने के लिए मजदूरी करते हैं, लेकिन
अक्सर उन्हें दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है।
मामले को समझने में असमर्थ, निखुन्ती कहते हैं – “मैंने
ग्रामवासियों के माध्यम से, कई बार घर और राशन जारी करने के
लिए प्रशासन से संपर्क किया। लेकिन मुझे बताया गया कि मेरे आधार कार्ड में कुछ
समस्या है।” यह समस्या उनके आधार कार्ड को राशन कार्ड और
बैंक खाते से न जोड़ने के कारण है।
लॉकडाउन के दौरान एक और घटना में, ओडिशा के नयागढ़ जिले की 46-वर्षीय
आदिवासी, दुखी जानी की कथित रूप से भूख के कारण मृत्यु हो
गई। गैर-सरकारी तथ्यों की छानबीन करने वाली टीम, जिसने उनके
गाँव का दौरा किया था, को पता चला कि आधार को राशन कार्ड से
न जोड़ने के कारण विधवा को राशन सूची से हटा दिया गया था।
ओडिशा में निखुन्ती और जानी जैसे हजारों
मामले हैं, जहां आधार और राशन कार्ड
लिंक नहीं कर पाने के कारण, पात्र लाभार्थी सरकारी प्रावधान
प्राप्त नहीं कर सके। यह उनके लिए और ज्यादा मुश्किल हो गया, क्योंकि महामारी के दौरान यह लाभ उनके लिए मददगार रहे होते।
आधार – राशन
लिंकेज
पिछले साल ओडिशा सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य
सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत लाभ पाने के लिए, राशन कार्ड को आधार से
जोड़ना अनिवार्य कर दिया था। बढ़ी हुई समय सीमा 15 सितंबर,
2019 निर्धारित की गई थी।
भोजन का अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए
एक सर्वेक्षण में कहा गया है, कि लगभग 18 लाख पात्र लाभार्थी लाभ से वंचित रह गए, क्योंकि
सरकार द्वारा आधार और राशन कार्ड जोड़ना जरूरी कर दिया गया था। लाभ से वंचित लोगों
की बड़ी संख्या को देखकर, सरकार ने मामलों का निवारण करना
शुरू कर दिया।
हालांकि, निवारण व्यवस्था ठीक से लागू न होने के कारण, लॉकडाउन
में समस्या बढ़ गई है, जिससे कमजोर वर्गों पर और अधिक बुरा
प्रभाव पड़ा है। पिछले छह महीनों में, लॉकडाउन के दौरान कम
अधिकारियों के जमीन पर होने का मतलब है, कि पात्र लाभार्थियों
को छोड़ दिया गया है।
लिंकेज की
चुनौतियाँ
आधार लिंकेज को जरूरी करने के फैसले की
घोषणा करते समय, सरकारी अधिकारियों ने कहा
था कि ‘भूत’ (फ़र्ज़ी) लाभार्थियों की
छंटनी करने के लिए यह कदम उठाया गया है। हालांकि, कार्यकर्ताओं
का कहना है कि इस कदम ने उन योजनाओं को बाधित किया है, जो
अन्यथा लाभकारी थी। ओडिशा में 60 से अधिक सामाजिक कल्याण
योजनाएं हैं जो कम से कम 70% आबादी को लाभान्वित करती हैं।
लक्ष्मीधर सिंह, एक कार्यकर्ता, ने Villagesquare.in को बताया – “योजनाएं समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए शुरू की गई थीं। लेकिन अब, जटिल प्रक्रिया लाभार्थियों पर दबाव डाल रही है। वृद्धों, विकलांगों और दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वालों को, अपने अधिकार पाने के लिए यहाँ-वहां मारे-मारे फिरना पड़ता है।”
लक्ष्मीधर सिंह एक उदाहरण याद करते हैं, जिसमें एक नेत्रहीन व्यक्ति को, सामाजिक सहायता से वंचित किया जा रहा था, क्योंकि
अधिकारी उसकी रेटिना को स्कैन नहीं कर सकते थे। वह कहते हैं – “सरकार को फ़र्ज़ी लाभार्थियों की पहचान करने के लिए, किन्हीं
दूसरे तरीकों के बारे में सोचना चाहिए था, जिनकी संख्या बहुत
कम है। पात्र लाभार्थियों को इस कारण से छोड़ दिया जा रहा है।”
जहाँ लाभार्थियों को पात्रता के लिए
दस्तावेजों की जरूरत होती है, प्रशासन को वास्तविक
लिंकेज करना होता है। पिछले कुछ महीनों में, विभिन्न
प्रशासनिक और तकनीकी कारणों से, बहुत से लाभार्थियों को कई
महीनों से उनका हक नहीं मिला है।
सबसे ज्यादा
प्रभावित
लिंकेज जरूरी होने के कारण, लाखों लोग प्रभावित हुए हैं, लेकिन
विकलांग, बुजुर्ग और ट्रांसजेंडर समुदाय सबसे अधिक प्रभावित
हुए हैं। हालांकि हाल ही में ओडिशा सरकार ने, आधार कार्ड के
बिना विकलांगों के लिए, एक विशेष श्रेणी की घोषणा की है,
लेकिन वरिष्ठ नागरिकों के लिए इस प्रकार का प्रावधान नहीं है।
जब व्यवस्था शुरू की गई थी, तो लिंग सम्बन्धी जानकारी के लिए केवल पुरुष और महिला
श्रेणियां थीं। ट्रांसजेंडर श्रेणी जोड़े जाने के बाद, कई
ट्रांसजेंडर लोगों ने अपनी पहचान के अनुसार इसे बदलने की कोशिश की। लेकिन, कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इस बदलाव की प्रक्रिया लंबी है।
सभी लोग फिंगरप्रिंट और बायोमेट्रिक
सत्यापन नहीं करवा सके, क्योंकि ज्यादातर दफ्तरों
में यह प्रक्रिया बेहद कम थी या निलंबित कर दी गई थी। सिंह का कहना है – “उनमें से ज्यादातर ने अपनी आजीविका खो दी; आधार
लिंकेज जरूरी कर दिए जाने के कारण, उन्हें सब्सिडी वाला राशन
और पेंशन नहीं मिल सके।”
आधार –
पेंशन-खाता लिंकेज
इस साल जुलाई और अगस्त में, राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को पत्र भेजकर, केवल उन्हीं खातों में पेंशन का भुगतान किया, जो
आधार से लिंक किए गए थे।
आदेश का मतलब था कि यदि बैंक खाते आधार के
साथ लिंक नहीं होंगे, तो राष्ट्रीय सामाजिक
सहायता कार्यक्रम और मधु बाबू पेंशन योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को पेंशन नहीं
मिलेगी ।
भोजन के अधिकार अभियान (Right to Food Campaign) के ओडिशा-चैप्टर द्वारा जारी
एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है, कि आधार-सत्यापन को
जरूरी करने के कदम से, लगभग 11 लाख
लाभार्थी लाभ से वंचित हो जाएंगे। जनता की चिंताओं के बीच, सरकार
ने 27 अगस्त को अपना आदेश रद्द कर दिया।
सुधार की
जरूरत
हालांकि ओडिशा ने अपनी सामाजिक सहायता
योजनाएं लागू और कार्यान्वित की हैं, लेकिन कई महत्वपूर्ण
योजनाएं केंद्रीय हैं। योजनाओं के कार्यान्वयन में कोई भी कमी, प्रक्रिया को लम्बा खींचती है और स्थानीय प्रशासन के लिए निवारण-व्यवस्था
के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ती है।
भोजन के अधिकार अभियान के ओडिशा-चैप्टर के सह-संयोजक, समीत पांडा ने VillageSquare.in को बताया – “भले ही स्थानीय प्रशासन में वंचित लोगों की स्थिति के प्रति ठोस संवेदना हो, लेकिन अपने दम पर उसे हल करने की गुंजाइश नहीं है।”
उन्होंने कहा – “उदाहरण के लिए, यदि कोई तकनीकी
अड़चन आ गई, तो स्थानीय प्रशासन राशन या पेंशन तब तक जारी
नहीं सकेगा, जब तक कि मंजूरी न
हो। इसलिए, पूरी व्यवस्था पंगु है।” महामारी
के दौरान अधिकारी उपलब्ध ने होने के कारण, प्रभावित
लाभार्थियों की निवारण-व्यवस्था तक पहुंच नहीं थी।
जब भी किसी पात्र लाभार्थी को उसका
प्रावधान नहीं मिला और वह सोशल मीडिया पर मुद्दा बन जाता है, तो राज्य सरकार हस्तक्षेप करके उसका हल निकाल देती है।
अभी तक, निवारण व्यवस्था का आधार मामले-दर-मामले निवारण का
रहा है।
पांडा कहते हैं – “महामारी ने आर्थिक रूप से मजबूत लोगों को भी प्रभावित
किया है। उन लोगों की दुर्दशा की कल्पना कीजिए, जो पहले से
ही कमजोर थे। लोगों की पात्रता का आधार आय, गरीबी की स्थिति,
आदि जैसे कुछ मानदंड हैं। अब, इस लिंकेज के
साथ, हमने उनके मूलभूत अधिकारों को भी छीन लिया है।”
पांडा
का कहना है –
“लिंकेज की अनिवार्यता ‘भूत’ (फ़र्ज़ी) लाभार्थियों को बाहर निकालने के लिए लागू की गई थी, लेकिन नीति-निर्माताओं ने इसे ठीक से परिभाषित नहीं किया है।” उनके अनुसार, एक मजबूत नीति लागू कर दी गई है,
लेकिन समस्या को अभी परिभाषित किया जाना बाकी है।
ताज़ीन कुरैशी
भुवनेश्वर स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?