वंचित ग्रामीण छात्रों के लिए सुलभ शिक्षा
राजस्थान में विकास के अभाव वाले ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित, राज्य सरकार द्वारा संचालित मॉडल स्कूल, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुफ़्त प्रदान कर रहे हैं।
जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर चाकसू के स्वामी विवेकानंद गवर्नमेंट मॉडल (SVGM) स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा, नेहा सिपानिया का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शिक्षा पूरी करे। वह कहती है कि उसका स्कूल उसे उचित माहौल और सकारात्मकता प्रदान करता है, जिससे उसे कई तरह की दिक्कतों से निपटने में मदद मिलती है।
सिपानिया एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से सम्बन्ध रखती हैं, जहां ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। उसके माता-पिता उसे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नहीं भेज सकते थे। जब उन्हें एक प्राइवेट स्कूल जैसी सभी सुविधाओं वाले, एसवीजीएम स्कूल के बारे में पता चला, तो उनकी इच्छा हुई कि उनकी बेटी का वहां दाखिला हो।
हालाँकि प्रवेश केवल एक लॉटरी (ड्रा) के माध्यम से होता है, लेकिन सिपानिया की किस्मत ने उसका साथ दिया। उसके माता-पिता खुश हैं कि उसकी स्कूली शिक्षा सुनिश्चित हो गई है। दूसरे छात्रों की तरह, सरकार सिपानिया की शिक्षा के लिए फीस से लेकर यूनिफॉर्म और लंच तक का प्रावधान करती है।
जयपुर जिले में चाकसू के एसवीजीएम जैसे स्कूल, आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले सिपानिया जैसे छात्रों को, अच्छी शिक्षा मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं।
सरकारी मॉडल स्कूल
जयपुर जिले का चाकसू का स्कूल, राजस्थान भर में स्थापित 132 एसवीजीएम स्कूलों में से एक है। जयपुर जिले में दो एसवीजीएम स्कूल हैं। दूसरा स्कूल दूदू प्रशासनिक ब्लॉक में है।
सरकार ने सभी के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए, छठी से बारहवीं कक्षा के लिए 2014 में एसजीवीएम स्कूल शुरू किए। पहले चरण में 71 SGVM स्कूल शुरू हुए और बाकी दूसरे चरण में।
एसवीजीएम स्कूल की स्थापना कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए की गई थी। स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए मॉडल केंद्र का काम करते हैं। 2014 से, एसवीजीएम स्कूल गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों के लिए एक वरदान रहे हैं, और ऐसे लोगों के लिए, जिनके लिए सामाजिक अड़चनों के कारण अपने बच्चों को दाखिला दिलाना मुश्किल है।
समावेशी स्कूल
चाकसू के एसवीजीएम स्कूल की प्रिंसिपल, अनीता मीणा ने VillageSquare.in को बताया – “इन मॉडल स्कूलों के बारे में खास क्या है, कि यहाँ विधवाओं, तलाकशुदा और एचआईवी पीड़ित महिलाओं के बच्चों को दाखिला में प्राथमिकता मिलती है, नहीं तो बेसहारा महिलाओं को अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल है।”
मीना कहती हैं – “स्कूल का जोर उन लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने पर है, जिनकी अन्यथा शिक्षा तक पहुँच नहीं है। इसलिए हम विशेष जरूरतों वाले बच्चों, अल्पसंख्यकों और सभी जातियों एवं पंथों के कमजोर परिवारों के बच्चों को दाखिला देते हैं।”
सरकार ने उन ब्लॉकों में एसवीजीएम स्कूल स्थापित किए हैं, जिनमें गरीब और वंचित लोगों की जनसँख्या काफी ज्यादा है। इन सम्बंधित ब्लॉक के बच्चों को दाखिले में प्राथमिकता दी जाती है। इसलिए चाकसू का स्कूल, चाकसू ब्लॉक के बच्चों के लिए है।
अच्छी शिक्षा
जयपुर स्थित शिव चरण माथुर सामाजिक नीति अनुसंधान संस्थान (SCM-SPRI) ने हाल ही में एसवीजीएम स्कूलों की तरह के अभिनव प्रयासों पर एक सर्वेक्षण किया।
SCM-SPRI के निदेशक मनीष तिवारी ने बताया – “हमने पाया कि गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवार अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा चाहते हैं। ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों के बहुत से प्राइवेट स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का दावा करते हैं, लेकिन बीपीएल परिवार इन स्कूलों की फीस नहीं दे पाते हैं।”
तिवारी ने VillageSquare.in को बताया – “एसवीजीएम स्कूलों की योजना, गरीब लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बनाई गई थी, जो महसूस करते हैं कि अंग्रेजी, गुणवत्ता का एक जरूरी अंग है।”
दाखिले की प्रक्रिया
जो बात एसवीजीएम स्कूलों को दूसरे सरकारी स्कूलों और नवोदय विद्यालयों से अलग करती है, वह इसकी पारदर्शी दाखिला प्रक्रिया है। दाखिला ड्रा (लाटरी) के माध्यम से होता है, जहां ग्रामीण पूरी प्रक्रिया को खुद देख सकते हैं।
एक समिति ग्रामीणों के सामने होने वाले ड्रॉ की निगरानी करती है, जिसमें स्कूल के प्रिंसिपल, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल के अधिकारी और एक ग्रामीण शामिल हैं। इस व्यवस्था ने ग्रामीणों की नजर में एसवीजीएम स्कूलों की अच्छी छवि बनाने में मदद की है।
अब ग्रामीण यह समझते हैं कि दूसरे स्कूलों की तरह दाखिला अंकों के आधार पर नहीं होता है। जहाँ नवोदय विद्यालय ग्रामीण क्षेत्रों के मेधावी छात्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और गरीब या पिछड़े छात्रों के लिए उनमें कोई आरक्षण नहीं है, वहीं एसवीजीएम की सोच समावेशी है।
फिर भी, नौवीं कक्षा में दाखिला एक टेस्ट के माध्यम से होता है। जो छात्र कक्षा आठवीं तक एसवीजीएम स्कूलों में पढ़े हैं और जिन्होंने कम से कम 45% अंक प्राप्त किए हैं, वे नौवीं कक्षा में प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं। जिन छात्रों ने आठवीं कक्षा में 45% अंक हासिल नहीं किए, स्कूल उनको दूसरे सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने में मदद करते हैं।
अंग्रेजी शिक्षा
एसवीजीएम स्कूल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्ध हैं। इसका पाठ्यक्रम अंग्रेजी में है। मीणा ने बताया – “शुरु में, द्विभाषी शिक्षण पद्यति अपनाई जाती है, क्योंकि ग्रामीण बच्चों के लिए अंग्रेजी से सामंजस्य बैठाना मुश्किल होता है। अंग्रेजी दक्षता के लिए एक संक्षिप्त पाठ्यक्रम भी है, जिससे बच्चे तेजी से सीखते हैं।”
ग्यारहवीं कक्षा का छात्र, नलिन शर्मा इस बात से खुश है, कि वह एक प्राइवेट प्राथमिक स्कूल छोड़कर एसवीजीएम स्कूल, चाकसू में आया। शर्मा ने अंग्रेजी में बात करते हुए VillageSquare.in को बताया – “यह एक सरकारी स्कूल की तरह नहीं लगता। इसमें ऐसी सुविधाएं हैं, जो आमतौर पर सरकारी स्कूलों में नहीं पाई जाती।”
अच्छी सुविधाएं
SCM-SPRI द्वारा अध्ययन में पाया गया, कि स्कूलों में मजबूत बुनियादी ढांचा और शैक्षणिक सुविधाएं हैं। इमारतें बड़ी और लम्बी-चौड़ी हैं; शिक्षकों और स्कूल के कर्मचारियों के पास शैक्षणिक और प्रशासनिक क्षमताएं हैं।
एसवीजीएम स्कूलों में 40:1 के छात्र-शिक्षक अनुपात का सख्ती से पालन किया जाता है। इसलिए प्रत्येक कक्षा के दो सेक्शन हैं, जहां प्रत्येक में 40 छात्र हैं। इन 80 सीटों में से, 10 ऐच्छिक-सीटें हैं, जो स्थानीय विधान सभा, राज्यसभा और लोकसभा सदस्यों, ग्राम-परिषद और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के लिए निर्धारित हैं।
स्कूलों में अनुभवी शिक्षकों के अलावा, बड़े, हवादार कक्षा-कमरे, स्वच्छ शौचालय, कला कक्ष, संगीत कक्ष, पुस्तकालय, कंप्यूटर लैब और हरियाली हैं। खेलकूद और पाठ्यक्रमेत्तर गतिविधियों के लिए, स्कूलों में खुला मैदान है। प्राइवेट स्कूलों की ही तरह, छात्रों की अलग-अलग रंग की वर्दी और सर्दियों के लिए कोट हैं।
लड़कियों के लिए शिक्षा
चाकसू स्कूल की छठी से ग्यारहवीं कक्षा में कुल 463 छात्र हैं, जिसमें 55% लड़कियां और 45% लड़के शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर स्कूलों में उच्चतर माध्यमिक स्तर पर केवल विज्ञान की पढ़ाई होती है। हालांकि प्रयोगशालाएं बनाई गई हैं, लेकिन चाकसू में वे अभी काम नहीं कर रही हैं।
हालाँकि लड़कियों का अनुपात प्रत्येक वर्ग में लड़के और लड़कियों की उपलब्धता पर निर्भर है, लेकिन लड़कियों को दाखिले में 55:45 के अनुपात में वरीयता मिलती है। जब निर्धारित संख्या में लड़कियां उपलब्ध नहीं होती हैं, तो लड़के लड़कियों से ज्यादा हो जाते हैं। लड़कियों के शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन की वेंडिंग मशीन और भट्ठी हैं। लड़कियों को आने जाने के खर्च के लिए 20 रुपये का वाउचर भी मिलता है।
अच्छे परिणाम
बारहवीं कक्षा को छोड़कर, जो हाल में शुरू हुई है, बाकी सभी कक्षाओं में पूरे दाखिले हुए हैं। उपस्थिति आमतौर पर सामान्य होती है। सर्वेक्षण में दसवीं कक्षा के सीबीएसई परीक्षा के परिणाम प्रशंसनीय पाए गए।
वर्ष 2019 में 132 स्कूलों के छात्र दसवीं कक्षा की परीक्षा में बैठे। इसमें पास होने वाले बच्चों का प्रतिशत 93.19% था, जो कर्मचारियों के अनुसार अपने आप में एक उपलब्धि है, क्योंकि अंग्रेजी में परीक्षा देना छात्रों के लिए एक नया अनुभव था। कुल 4,938 छात्रों में से 116 ने 90% से ज्यादा और 882 ने 80% से 90% के बीच अंक प्राप्त किए। 55% से अधिक छात्रों ने 60% से ऊपर अंक प्राप्त किए।
शैक्षणिक वर्ष 2017-18 में 64 स्कूलों में आयोजित, 12 वीं कक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों का प्रतिशत 75.88% था। परीक्षा में बैठने वाले 1,847 छात्रों में से 15 छात्रों को 90% से अधिक और 234 छात्रों ने 75% से 90% के बीच अंक प्राप्त किए।
वैकल्पिक स्कूल
एसवीजीएम स्कूलों के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद, राजस्थान की वर्तमान सरकार ने महात्मा गांधी सरकारी स्कूल शुरू किए हैं। कुछ स्कूल वर्ष 2018-19 सत्र में स्थापित किए गए हैं।
मौजूदा सरकारी माध्यमिक स्कूलों को महात्मा गांधी सरकारी स्कूलों का नाम दिया गया है और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है। जो छात्र हिंदी माध्यम में पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं, उन्हें दूसरे हिंदी माध्यम सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया है।
शैक्षिक विशेषज्ञों का मानना है कि एसवीजीएम स्कूलों के लिए निर्धारित फंड, महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूलों की ओर मोड़े जा सकते हैं और इसलिए अंततः एसजीवीएम स्कूलों को नुकसान हो सकता है।
स्थिरता
शैक्षिक विशेषज्ञों का मानना है कि एसवीजीएम स्कूलों की व्यवहारिकता बुनियादी सुविधाओं जैसी आंतरिक बातों पर निर्भर करती है। वित्तीय सहायता व्यवस्था, नौकरशाही सम्बन्धी अड़चनें और समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण बाह्य कारण हैं जो प्रभावित करती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को एसवीजीएम स्कूलों को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि वे विशेष रूप से समाज के वंचित वर्गों के लिए हैं और पिछड़े प्रशासनिक ब्लॉकों में हैं। लेकिन महात्मा गाँधी स्कूल, आर्थिक मापदंडों को ध्यान में रखे बिना, जिले में कहीं भी स्थित होंगे।
सर्वेक्षण में पाया गया कि सबसे बेहतरीन योजनाएं भी व्यवस्थागत सोच के अभाव में साधारण हो जाती हैं। नौकरशाही की अड़चनों और कमजोर कार्यान्वयन के कारण, लोक-जुंबिश, शिक्षा-कर्मी, जनशाला और सर्व शिक्षा अभियान जैसे अभिनव कार्यक्रम अपने निर्धारित उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सके।
एसवीजीएम के शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर हैं, जिन्हें उचित जाँच और साक्षात्कार के बाद चुना गया है। उनका मूल वेतन दूसरे सरकारी अध्यापकों की तुलना में 10% अधिक है। लेकिन वे अधिक समय तक काम करते हैं और अपने घरों से दूर भी होते हैं। शिक्षकों को शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए, वर्ष में एक या दो बार उनके लिए एक निगरानी व्यवस्था (मॉनिटरिंग सिस्टम) की आवश्यकता महसूस होती है।
अपने स्कूल के भविष्य के प्रति बेखबर, चाकसू में आठवीं कक्षा की लड़कियों का एक समूह शिल्प कार्य में लगा हुआ था। लड़कियों ने एक सुर में कहा – “कभी-कभी स्कूल कठोर हो सकता है। लेकिन हमें आना अच्छा लगता है, क्योंकि हम बहुत सी नई चीजें सीखते हैं। यह हमारे सामने एक नई दुनिया के प्रगट होने की तरह है।”
राखी रॉयतालुकदार जयपुर, राजस्थान में स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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