शिक्षकों को एप डिज़ाइन करने की क्षमता प्रदान करने और छात्रों को परियोजनाएं बनाने में मदद करने से, तकनीकी साधनों के उपयोग में सर्वोत्तम तरीके अपनाकर, सन्दर्भ-आधारित शिक्षण और इसके प्रयोग में उपयोगी हो सकती है
डिजिटल तकनीकों ने ज्ञान के उत्पादन, साझाकरण और प्रसार की लागत को कम किया है। इंटरनेट और
मोबाइल संचार ने उस गति को तेज कर दिया है, जिस से सूचना,
दुनिया के सुदूर भागों तक भी पहुँचती है।
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) बैंकिंग और सरकारी सेवाओं के अलावा, शैक्षिक और स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी संसाधनों तक पहुंच प्रदान करके,
दुनिया भर के अरबों लोगों को सशक्त बनाया है, और
इससे नए रोजगार पैदा हुए हैं। ICT और वैश्विक अंतर-सम्बन्ध
मानवीय प्रगति को गति, असमानताओं की समाप्ति, और ज्ञान-समाजों का निर्माण कर सकते हैं।
ICT आज की डिजिटल
अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इसमें सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से प्रगति की अपार संभावना है। ICT
का उपयोग SDG 4 में दिए समावेशी और समान
शिक्षा प्राप्त करने में मदद करता है, और यह सुनिश्चित करता
है कि प्रत्येक बच्चे को वह शिक्षा मिले, जिसकी उसे जरूरत है
और वह जिसके योग्य है।
भारत के 10
राज्यों के सरकारी स्कूलों और शिक्षण केंद्रों में, शिक्षा में टेक्नोलॉजी के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण (Integrated
approach to Technology in Education-ITE), पाठ्यक्रम और पढ़ाने की
योजना के साथ डिजिटल तकनीकों को एकीकृत करने की एक मिसाल है। शुरू होने के बाद से,
ITE ने ग्रामीण भारत में, आदिवासी समुदायों से
लेकर निजी मदरसों तक, विभिन्न पृष्ठभूमि के बच्चों को प्रेरित
किया है।
शिक्षा में
टेक्नोलॉजी
शिक्षा में टेक्नोलॉजी के प्रति एकीकृत
दृष्टिकोण (ITE), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़
सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई के एक स्वतंत्र अनुसन्धान केंद्र,
‘सेंटर फॉर एजुकेशन, इनोवेशन, एक्शन रिसर्च’के सहयोग से, टाटा
ट्रस्ट्स की एक पहल है, जो 2012 में
शुरू हुई।
ITE का मूल चरित्र ही यह है,
कि वंचित वर्गों के छात्र ICT परियोजनाएं
बनाते हैं और शिक्षक सीखने-सम्बन्धी गतिविधियों को डिजाइन करते हैं। शिक्षकआईसीटी
एप सम्बन्धी निर्णय लेते हैं, और यह तय करते हैं कि खुले
शैक्षिक संसाधनों और दूसरे उपकरणों को कब और कैसे शिक्षण प्रक्रिया के साथ एकीकृत
किया जाए।
इस पहल का मूल विचार यह है, कि पाठ्यपुस्तकों की अवधारणाओं के आधार पर, शिक्षक परियोजनाएं डिजाइन करते हैं और छात्र उनके आधार पर सीखने के लिए
परियोजनाएं तैयार करते हैं। यह परियोजना-आधारित शिक्षा, उन्हें
शिक्षण को अपने स्थानीय संदर्भ में उपयोग करने और अनुकूल बनाने में सहायता करती
है।
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा कहा गया है, 2030 के एजेंडा के प्रत्येक लक्ष्य के लिए,लोगों को ज्ञान, कौशल और सम्मानपूर्ण जीवन के लिए मूल्यों, और अपने समाज में योगदान हेतु सशक्तिकरण के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है।
हालाँकि शिक्षा तक पहुंच, समावेश, समानता और गुणवत्ता
महत्वपूर्ण हैं, लेकिन प्रक्रिया में सहायता और उद्देश्यों
तक पहुंचने के लिए ICT का संयोजन महत्वपूर्ण है। यूनेस्को ने
इसे मीडिया और सूचना साक्षरता के रूप में, सरकारों को
नीतियां बनाने के लिए, आईसीटी के साथ डिजिटल नागरिकता और
शिक्षा में तेजी लाने के साधन के रूप में विकसित किया है।
एकीकृत
अध्ययन
छात्र की ग्रहण करने, अनुकूल बनाने और गहन विचार की क्षमता को बढ़ाते हुए,
अनुसंधान के एकीकरण के माध्यम से अध्ययन की रूपरेखा बनाई जा सकती
है। उदाहरण के लिए, एक परियोजना के विषय के लिए, एक छात्र कई वेबसाइट देख कर जानकारी इकट्ठा करती है और अपने साथियों और
समुदाय के लोगों के साथ चर्चा करके, अपने स्वयं के माहौल के
लिए विषय की प्रासंगिकता की जांच करती है।
आंकड़ों और तथ्यों की जांच करने के बाद, वह अपने विचारों को एक प्रस्तुति के रूप में समेकित
करती है या उन्हें अपनी सीखने की पद्धति पर लागू करती है। इस प्रकार ICT छात्रों में अपनी शिक्षा के किसी भी बिंदु पर, खोजी
दिमाग को बढ़ावा दे सकता है, जिससे उन्हें सार्थक और
रचनात्मक कार्य करने में मदद मिलती है। यह अनुभव पर आधारित ज्ञान को जोड़ने और सीख
को अपने स्वयं के जीवन से जोड़ने में मदद करता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली
सरकार के शिक्षा निदेशालय के प्रमुख सलाहकार, शैलेन्द्र शर्मा ने
ITE यात्रा के हिस्से के रूप में आयोजित, एक
राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी, ‘लीप-उत्पादक के रूप में शिक्षार्थी’
(LeaP-Learners as Producers) में बोलते
हुए कहा – “हमारी शिक्षा व्यवस्था में टेक्नोलॉजी को
जोड़ने से, निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, नए समाधानों को आगे बढ़ाने या खोजने में मदद मिलेगी|”
अध्ययन
सुधार
शर्मा ने बताया कि स्कूलों और कक्षाओं में
तकनीक-संबंधी बुनियादी ढांचे को जोड़ा गया है; तकनीकी खामियों को दूर
करना और शैक्षिक सुधार, एनसीटी के एजेंडे में हैं। एनसीटी भर
के स्कूलों में शुरू किया गया कार्यक्रम, ‘हैप्पीनेस करिकुलम’,
अध्ययन सुधार का एक उदाहरण है।
सामूहिक दक्षता का कक्षाओं तक पहुंचना
सुनिश्चित करने के लिए, एनसीटी स्कूलों के
शिक्षकों को कार्यशालाओं और सतत विकास प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रशिक्षित किया
जाता है। शर्मा के अनुसार, स्कूल और समुदाय के बीच एक संबंध
स्थापित करना आवश्यक है, जिसे स्कूल प्रबंधन समितियों के
माध्यम से किया जाता है|
शर्मा ने बताया – “हम कक्षा के माहौल को शुद्ध औपचारिक काम के
तरीके से बदल कर, प्रक्रिया को सुगमता में बदलने की कोशिश
करते हैं, जैसा उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम में है, जिसके अंतर्गत बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करने हेतु उनकी मानसिकता के
विकास, समस्या-समाधान और गहन विचारशीलता को एकीकृत करता है।”
वास्तविक
जीवन में उपयोग
इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी, आयरलैंड
की मार्गरेट लेह्य ने एलईएपी (LeaP) विचार-गोष्ठी में बोलते
हुए कहा – “टेक्नोलॉजी धीरे-धीरे दुनिया भर के स्कूलों में
फैल रही है, लेकिन शायद ही कभी यह छात्रों के हाथों में है।
यह ज्यादातर शिक्षकों द्वारा एक माध्यम या एक प्रस्तुति उपकरण के रूप में उपयोग
किया जाता है।”
लेह्य के अनुसार, आयरलैंड में स्कूली शिक्षा व्यवस्था, शिक्षकों के लिए यूनेस्को ICT क्षमता (कॉम्पिटेंसी)
फ्रेमवर्क के एकीकरण को अपना रही है, और दिशा से प्रतीत होता
है कि आगे, छात्र स्वयं टेक्नोलॉजी साक्षरता, ज्ञान में गहराई और उसके बाद ज्ञान-सृजन प्राप्त कर पाएंगे।
लेह्य ने बताया – “लेगो रोबोटिक्स, व्यावहारिक
घरेलु समाधान, जैसे कि बारिश का पानी इकट्ठा करना और इसका
उपयोग, आयरिश स्कूल के बच्चों द्वारा व्यवहार में लाना
उल्लेख के लायक है। मैं समग्र विकास के ITE पहल में एक
प्रकार की समानता देखती हूं, जिसमें समस्या-समाधान और
प्रयोगात्मकता के साथ-साथ, अनुसंधान, विश्लेषण,
संश्लेषण, वास्तविक जीवन में उपयोग, गहन अध्ययन और चिंतन शामिल हैं।”
यह बताता है कि ITE को कोएहलर (Koehler) के
तकनीकी शैक्षणिक सामग्री ज्ञान या TPACK फ्रेमवर्क में कैसे
उतारी जाती है, और 21 वीं सदी के कौशल
के चार Cs के घटकों में टेक्नोलॉजी के सहयोग से बुनी जाती
हैं| चार-C हैं – गहन चिंतन, तालमेल, संचार और रचनात्मकता।
डिजिटल
विभाजन को पाटना
भारत में शिक्षा व्यवस्था में ICT को अपनाने और लागू करने में मौजूदा बाधाओं के कारण,
बहु-हितधारक तालमेल और सहयोग की आवश्यकता है। वर्तमान में असम्बद्ध
शिक्षणार्थी को शामिल करने के लिए, नीति निर्माताओं, बहुपक्षीय संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, समुदायों और खुद शिक्षार्थियों द्वारा संयुक्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
साझे विचार का महत्त्व, समान एजेंडा, व्यवस्थागत
मुद्दों की समझ और उनका वंचित समुदायों पर प्रभाव, परियोजना
के कार्यान्वयन की चुनौतियां और परिणाम-केंद्रित टिकाऊ मॉडल, डिजिटल विभाजन को खत्म करने की कुंजी हैं।
उदाहरण के लिए, असम में ITE के साथ लागू किया
गया सर्वशिक्षा अभियान, और TISS द्वारा
संचालित शिक्षक प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, की परिणति एक
पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी के विस्तार में हुई है। यह शिक्षकों को ICT के लागू करने की स्वतंत्रता और ज्ञान के विच्छेद के लिए गुंजाइश देता है,
और छात्रों को अपनी स्वयं की सीखने की तकनीकों में नवाचार करने और
योगदान देने की स्वतंत्रता देता है।
डिजिटल
साक्षरता
इसका एक दूसरा उदाहरण, टाटा ट्रस्ट्स द्वारा स्थापित और TISS और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के
नेतृत्व में द्वारा स्थापित, ठोस शैक्षणिक ‘कनेक्टेड लर्निंग इनिशिएटिव (CLIx) है, जो उपयोगकर्ताओं को पहले डिजिटल साक्षरता से लैस करता है।
शिक्षण-मॉड्यूल भारतीय पाठ्यक्रम के
माध्यमिक स्तर के विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित (STEM) सीखने
के संदर्भ में हैं। मिज़ोरम, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान के राज्य परिषद शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण (SCERT)
के साथ व्यवस्थागत एकीकरण से, शिक्षकों को
पाठ्यक्रम के अनुकूल, डिजिटल पाठ पढ़ाने के विभिन्न तरीकों को
अपनाने में मदद मिलती है।
आगे का
रास्ता
लीप (LeaP) विचार-गोष्ठी में बोलते हुए, केंद्रीय माध्यमिक
शिक्षा बोर्ड (CBSE) की अध्यक्ष, अनीता
करवाल, आईएएस, सोच रही थी कि क्या हम
मौजूदा तरीकों को जारी रखना और पैचवर्क करना चाहते हैं, या
प्रक्रिया में व्यवधान को सहते हुए, बॉक्स से परे सोचने की
जरूरत थी।
करवाल कहते हैं – “टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया, दो
महत्वपूर्ण उपकरण हैं जो भारत में शिक्षा में व्यवधान ला सकते हैं। अंतिम व्यक्ति
तक पहुंचने के लिए, वे सबसे अधिक प्रभावकारी हैं। हमें एक
ठहरावपूर्ण और प्रतिबंधित मानसिकता बनाम विकासपरक मानसिकता पर विचार करने की जरूरत
है।
उनके अनुसार, भारत में शिक्षा व्यवस्था में अच्छी तरह से प्रशिक्षित, सशक्त शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण और गैर-समझौता तत्व हैं। वह कहती हैं कि इस
बात को समझने की जरूरत है कि योग्यता-प्राप्त शिक्षकों और छात्रों को प्रेरित करने
में सक्षम लोगों के बीच एक पतली रेखा है।
करवाल ने कहा – “यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि वे
नवचारपूर्वक पढ़ाएं और शिक्षण का नेतृत्व करें। प्राचीन गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था की
तरह, हमें संस्कृति और विरासत के ताने-बाने को अनुभव-आधारित
अध्ययन के रूप में बुनते हुए कक्षाओं में वापस लाने की जरूरत है।”
प्रभावी विस्तार के लिए लागत कम करते हुए, छात्रों के सीख में बढ़ोतरी के द्वारा, ICT का शिक्षा में गुणात्मक प्रभाव हो सकता है। ICT पर
पुनर्विचार और नीतियों में फेरबदल करने के लिए, हमारे देश
में ग्रामीण और दूरदराज के भौगोलिक क्षेत्रों की विविधता और बहुभाषावाद को देखते
हुए, सर्वोत्तम पद्यतियों और अनुभवों को शामिल करना, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
श्रुति
दत्ता टाटा ट्रस्ट्स में एक ब्रांड और मार्केटिंग कम्युनिकेशन प्रोफेशनल हैं।
विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?