घर के बगीचों द्वारा ओडिशा की महिलाओं ने किया कुपोषण से मुकाबला

कालाहांडी और बोलांगिर, ओडिशा

ओडिशा के संकटग्रस्त और कुपोषित क्षेत्रों में, महिलाएं अपने परिवार को जैविक सब्जियां और फलियां खिलाने के लिए, साल भर लगातार, बिना किसी अतिरिक्त लागत के पोषण उद्यान लगा रही हैं।

कालाहांडी जिले के पेंगदुसी गांव की 27 वर्षीय प्रमिला बेहेड़ा ने अपने घर के साथ की जमीन के एक छोटे से हिस्से में अपना पोषण उद्यान शुरू किया है। उद्यान से उसे यह तय करने की आजादी देता है, कि वह अपने परिवार को किस तरह का भोजन खिलाए।

वह मौसमी फसल के साथ-साथ, बारहमासी फसलें भी उगाती हैं, जैसे कि मूली, गाजर, फूलगोभी, मटर, लोबिया, फलियां, भिंडी, पालक, धनिया, बैंगन, टमाटर, प्याज, विभिन्न प्रकार के खाद्य कंद, घीया और हरी सब्जियाँ उगाती है, जिससे उनका बगीचा ताजा और पौष्टिक भोजन का समृद्ध और भरोसेमंद स्रोत बन सके।

यह पारम्परिक किचन गार्डन की तरह ही है, अंतर यह है कि बेहेड़ा अपने परिवार की सूक्ष्म-पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए, सब्जियों और फलियों की अनेक तरह की फसलें उगाती हैं।

ओडिशा के कई जिलों में पोषण-बगीचों की लोकप्रियता बढ़ रही है, जिनमें कालाहांडी, बलांगीर और कोरापुट से बना क्षेत्र केबीके भी शामिल है, जो गरीबी के लिए प्रसिद्ध आठ जिलों में विभाजित हो गया है।

आर्थिक बोझ 

अपने बगीचे में काम करते हुए, बेहेड़ा ने VillageSquare.in को बताया – “पहले मैं अपने बच्चों की भोजन सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाती था, क्योंकि हमें सब्जियाँ बाजार से खरीदनी पड़ती थीं, जहाँ कीमतें बहुत ज्यादा थीं। हम सब्जियों और राशन पर मुश्किल से 200 रुपये खर्च कर सकते थे| अब हम सब्जियां खरीदते नहीं हैं।”

पेंगदुसी की कम से कम 12 महिलाओं के घर के पिछवाड़े में उनके बगीचे हैं और वे 15 से ज्यादा तरह की साग और सब्जियां उगाते हैं। गांव के डे-केयर सेंटर की कार्यकर्ता, राधामणि ने बताया – “हम जो पहले बाजार में ऊँचे दाम पर सब्जियाँ खरीदते थे, वो पैसे बचाते हैं, और ताजी सब्जियां खाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।”

तेलगुडा की 45 वर्षीय पदमा नायक के लिए, अपने 7 सदस्यीय परिवार को खिलाने के लिए, बाजार से खाना खरीदना, एक बहुत बड़ा आर्थिक बोझ था। नायक ने VillageSquare.in को बताया – “हम सब्जियों पर एक महीने में 1,500 रुपये से ज्यादा खर्च करते थे और वह काफी नहीं था। इसलिए हमने इसे शुरू किया है| अब हम यह तय करने के लिए स्वतंत्र हैं कि क्या खाना है।”

एक अध्ययन में पाया गया है, कि इस क्षेत्र के 31% परिवार 1,000 रुपये महीना या इससे भी कम भोजन सामग्री पर खर्च करते हैं, और 55% परिवार 1,000 और 2,000 रुपये महीना के बीच खर्च करते हैं। भोजन का बजट उनके कुल मासिक घरेलू खर्च का 57% था।

रायगडा जिले के मराठीगुडा गांव की अक्षय लीमा के अनुसार – “गरीब होने के कारण, सब्जियाँ खरीदना हमारे लिए बहुत बड़ा बोझ था। हम कई सब्जियां इसलिए नहीं खरीद पाते थे, क्योंकि वे हमारी क्षमता से बाहर थी। अब मैं खुश हूँ, क्योंकि मेरी पत्नी, नलिनी ने 15 से अधिक किस्म की सब्जियाँ और साग उगाकर हमें भोजन के मामले में आत्म-निर्भर बना दिया है।”

संतुलित आहार

16 वर्षीय दब्यासीनी नायक पोषण-उद्यान से खुश हैं, क्योंकि इससे उन्हें विकल्प प्राप्त होते हैं। उन्होंने कहा – ‘​​पहले हम वही खाते थे, जो मेरी मां हमें परोस देती थी। अब मुझे ककड़ी, टमाटर या एक मुट्ठी हरी सब्जी भी मिलती है।” तेलगुडा में, अपने परिवारों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए 25 महिलाएं पोषण-उद्यान उगाती हैं।

रतनपुर गांव में परोसे गए भोजन की तरह, एक ही पोषण-उद्यान से कई तरह की सब्जियों और साग से पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है (छायाकार – बासुदेव महापात्रा)

कोलकाता स्थित वेल्थंगरलाइफ़ की सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ, श्वेता बैनर्जी, जिन्होंने पोषण-उद्यानों और उनकी महिला सशक्तिकरण एवं केबीके क्षेत्र में कुपोषण से निपटने में भूमिका पर अध्ययन किया है, ने बताया – “जब आपको सब्जियां, दालें, अंडे और मछली खरीदने पड़ेंगे, तो आप अपने आप वह सब्जियां या और कुछ सामग्री खरीदेंगे जो सस्ती होगी। लेकिन जब आप सब्जियां उगाते हैं, तो आप अंडे या मछली खरीद सकते हैं, क्योंकि आहार में पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन भी महत्वपूर्ण है।”

जैविक पैदावार 

महिलाएं पोषण-उद्यान में रुचि दिखाती हैं, क्योंकि इसमें कोई पैसे का निवेश नहीं है, केवल कुछ मेहनत है। इसके अलावा, वे अपने परिवार को ताजी सब्जियां खिला सकती हैं, जिसमें कोई रासायनिक कीटनाशक या खाद का उपयोग नहीं किया गया है।

अजीम प्रेमजी फिलांथ्रोपिक इनिशिएटिव्स (APPI) और ओडिशा लाइवलीहुड मिशन (OLM) के साथ क्षेत्र में पोषण-उद्यान को बढ़ावा देने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, लिविंग फार्म्स के देबजीत सारंगी ने बताया – “हम किसानों से बीज लेते हैं और महिलाओं को बांटते हैं। हम संकर (हाइब्रिड) या अधिक पैदावार देने वाली किस्मों, रासायनिक कीटनाशकों या खादों के उपयोग की वकालत नहीं करते हैं।”

सारंगी ने VillageSquare.in को बताया – “इसमें सामग्री का कोई खर्च नहीं है, क्योंकि मिट्टी के स्वास्थ्य और कीट-प्रबंधन में सुधार पर्यावरण के तरीकों से होता है।”

आहार-विविधता

पोषण सुरक्षा में सुधार के लिए आहार में विविधता महत्वपूर्ण है। बैनर्जी कहती हैं – “महिलाएं फसलों के बारे में योजना, लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करने को ध्यान में रखकर बनाती हैं। यह ग्रामीणों के लिए लगातार सूक्ष्म-पोषण सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए, जो कुपोषण और उससे जुड़े मुद्दों का अधिक शिकार होते हैं।”

मराठीगुडा गाँव की नलिनी लीमा अपने परिवार को उनकी पसंदीदा साग और सब्जियाँ खिलाने और उनकी पोषण सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने में गर्व महसूस करती हैं। सारंगी ने कहा – “इसका उद्देश्य आहार विविधता के माध्यम से गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, किशोरियों और 5 साल से कम उम्र के बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार करना है।”

आहार में समानता 

हैदराबाद स्थित, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन के आहार संबंधी दिशानिर्देशों के अनुसार, ‘पोषण जीवन को बनाए रखने के लिए एक बुनियादी शर्त है’ और ‘भोजन में विविधता … पोषण और स्वास्थ्य का सार है।’ बैनर्जी ने VillageSquare.in को बताया – “यदि महिला का इस बात कोई नहीं है कि वह क्या पकाए, तो आहार में संतुलन नहीं हो सकता। पोषण-उद्यान होने से उसका यह नियंत्रण होता है।”

रतनपुर की मथुरा पोढ़ा ने उपज की संख्या बढ़ाने के लिए, अपने पोषण-उद्यान में सहजन (drumstick) और नींबू को शामिल किया है (छायाकार – बासुदेव महापात्रा)

उद्यान के द्वारा परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों के बीच किसी भी भेदभाव के बिना, समानता को बढ़ावा देते हैं। तेलगुड़ा की ‘आशा’ कार्यकर्ता, बसंती बाग ने कहा – “आमतौर पर पुरुष सदस्यों का मुख्य हिस्सा होता है। पोषण-उद्यान वाले परिवारों में ऐसा भेदभाव नहीं होता।”

एक किशोरी की माँ, रायगडा जिले के कृष्ण पतरागुड़ा गाँव की सीतागुरू कद्रका ने बताया – “जब भोजन पर्याप्त हो, तो हमें भेदभाव करने की जरूरत नहीं होती। दूसरे, भविष्य की मां की रूप में, लड़कियों को पोषण की आवश्यकता होती है।”

कुपोषण से निपटना

आदिवासी आबादी के पुराने कुपोषण को दूर करने के लिए, 7,50,000 परिवारों के लक्ष्य के कारण, कुपोषण प्रभावित दो जिलों, रायगढ़ और कालाहांडी में, 80,000 से अधिक परिवारों में पोषण उद्यान शुरू किए गए हैं।

छह साल पहले कुपोषित पाए गए, बोलांगीर जिले के रतनपुर गाँव के, 27 वर्षीय अल्लादिनी भांडा, और उनके 34 वर्षीय पति अशोक भांडा, अपने वजन में वृद्धि के लिए अपने पोषण-उद्यान को श्रेय देते हैं, जो कि क्रमशः 35 किलोग्राम और 48 किलोग्राम से बढ़कर 45 किलोग्राम और 64 किलोग्राम हो गया है।

अल्लादिनी भांडा ने बताया – “मेरे 2013 में रिलायंस फाउंडेशन की मदद से पोषण-उद्यान शुरू करने से पहले, हमारा दैनिक भोजन चावल और एक पकी हुई या भुनी हुई सब्जी था। आज मैं अपने बच्चों को सब्जियां खिलाता हूं, ताकि उनमें किसी भी तरह कुपोषण सम्बन्धी शारीरिक और मानसिक कमजोरी न हो।”

उम्मीद के बगीचे

बोलांगीर जिले में 2,000 से ज्यादा पोषण-उद्यान हैं। रिलायंस फाउंडेशन की अबज्ञानता दास नायक ने VillageSquare.in को बताया – “क्योंकि वे गरीब हैं और सूखे से नियमित रूप से प्रभावित होते हैं, इसलिए हम उन्हें बाड़ और औजार प्रदान करते हैं। खेती और पोषण संबंधी सलाह के लिए, हम महिलाओं को सरकारी विभागों से भी जोड़ते हैं।”

रतनपुर की मथुरा पोढ़ा कहती हैं – “बाड़ लगी होने के कारण, हम में से कई लोग बगीचों को ज्यादा उत्पादक बनाने के लिए केले, नींबू और सहजन के पेड़ लगाते हैं।”

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा के आदिवासी इलाकों में, 51.8% किशोरी और 30.3% महिलाएँ कुपोषित हैं। महिला और बाल विकास विभाग के एक बेसलाइन सर्वेक्षण के अनुसार, केबीके क्षेत्र सहित उच्च समस्या वाले 15 जिलों में 5 वर्ष से कम उम्र के आदिवासी बच्चों में से 72% में रक्त की कमी है।

2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) सिद्ध करता है कि केबीके क्षेत्र में 5 साल से कम उम्र के आदिवासी बच्चों में कमजोरी और मौत की दर ऊँची है। जब आंकड़े इतने हतोत्साहित करने वाले हैं, तो पोषण-उद्यान पोषण-सुरक्षा की उम्मीदें प्रदान करता है।

बासुदेव महापात्रा भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।