युवा उत्थान के उद्देश्य से मध्य प्रदेश के मंडला जिले में चलाए जा रहे कार्यक्रम, ‘युवा-शास्त्र’ के माध्यम से युवाओं को कौशल-प्रशिक्षण, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं|
आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि
पूरे विश्व में युवाओं के लिए उचित रोजगार एक बड़ी समस्या बन चुका है| इस समय भारत में 17 करोड़ कुशल एवं अकुशल लोग
बेरोजगार हैं| उसपर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial
Intelligence-A.I.) जैसी आधुनिक तकनीक का बढ़ता उपयोग इस समस्या को
और भी गंभीर बना रहा है| कोरोना महामारी के कारण देश के
उद्योग-धंधों पर बुरा प्रभाव पड़ा है और देश के बड़े-बड़े संस्थानों के युवाओं को
मिले नौकरियों के प्रस्ताव वापिस लिए जा रहे हैं| ऐसे में नए
रोजगार मिलना तो दूर, लोगों की वर्तमान नौकरियाँ भी खतरे में
हैंI
ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर आदिवासी इलाकों में, रोजगार की समस्या बदतर है| मजदूरी एवं पलायन जीवन
यापन का प्रमुख श्रोत बनकर रह गए हैं| उनके पास
कौशल-प्रशिक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर भी बहुत सीमित हैं, जिससे उनकी रोजगार पाने की क्षमता एवं योग्यता और भी क्षीण हो जाती है|
उन पर यह प्रभाव पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है|
युवा-शास्त्र: एक सकारात्मक पहल
सीमित अवसरों और बढ़ते तकनीकी उपयोग के ऐसे समय में, युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान कर, युवा-शास्त्र कार्यक्रम ने सृजनात्मकता की एक बेहतरीन मिसाल प्रस्तुत की
हैI विकास कार्यों में लगे गैर-सरकारी संगठन, प्रदान (प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन) द्वारा कार्यान्वित
युवा-शास्त्र कार्यक्रम के अंतर्गत, मंडला जिले के नारायणगंज
ब्लॉक के 12 अदिवासी बहुल गांवों में युवा-उत्थान केंद्रित
गतिविधियाँ संचालित की जा रही हैं|
युवा शास्त्र कार्यक्रम के माध्यम से, आदिवासी युवक-युवतियों को कौशल-आधारित प्रशिक्षण, शिक्षा,
जागरूकता एवं रोजगार-सम्बन्धी संपर्क प्रदान किए जा रहे हैं|
इन नए अवसरों से, वे अपने भविष्य की बुनियाद
को मजबूत करके, वह सफलता प्राप्त कर पा रहे हैं, जो कल तक स्वयं उनके एवं उनके परिवारों के लिए एक सपना मात्र थी।
शुरुआती चुनौतियाँ
आदिवासी युवाओं के भविष्य को एक नई एवं बेहतर दिशा देने के उद्देश्य से जब
इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई, तो
आयोजकों को युवाओं के संघर्ष का वह जाल दिखाई पड़ा, जो एक
चक्र के रूप में उनकी प्रगति में बाधक बना रहता है| जिससे
वर्षों तक ये युवा एवं इनके परिवार बेहद पीड़ादायक जीवन जीने को मजबूर होते हैं।
आदिवासी युवाओं के पिछड़ने का एक कारण उनकी जेंडर-आधारित मुद्दों पर समझ की
कमी होना और इसके प्रति जिम्मेदारी के एहसास का अभाव है| इसके अतिरिक्त आत्मविश्वास की कमी, शिक्षा
व्यवस्था का सुचारू ना होना, आर्थिक संसाधनों की कमी,
विश्व भर में होने वाली घटनाओं और उनके प्रभावों को समझने की
अक्षमता, आदि कई और कारण हैं, जो इन
युवाओं के जीवन का रास्ता दुष्कर बनाते हैं।
शैक्षणिक संसाधनों की कमी के चलते, आदिवासी क्षेत्रों की शिक्षा, दस्तावेजों तक ही
सीमित रह जाती है| सर्वेक्षण से पता चला है, कि 40% युवा 10वी और 12वी पास करने के बाद, आर्थिक कारणों के चलते पढाई छोड़
देते हैं| इसके बाद कोई विकल्प न होने के कारण उन्हें घर पर
रहकर ही समय बिताना पड़ता है| शिक्षा का स्तर इतना कमजोर है,
कि 10वीं और 12वीं पास
युवा अपने विषयों पर पर्याप्त जानकारी नहीं रखते| हर 10
युवाओं में से केवल 3 से 4 युवा ही आगे उच्च शिक्षा अथवा नौकरी के लिए बाहर जाना चाहते हैंI अध्ययन में यह भी पता चला कि केवल 1.58% युवा ही एक
से दो वर्ष तक बाहर रहकर कार्य करते हैंI
कार्यक्रम के चरण
आत्म-विश्वास की कमी इन युवाओं में प्रमुख बाधा है| इससे इनकी नेतृत्व करने और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित
होती है| इसी अभाव के कारण, उनकी
अभिव्यक्ति में हिचक देखी जाती है| इस तथ्य को ध्यान में
रखते हुए, कार्यक्रम के पहले चरण में युवाओं की, ग्राम स्तर पर ही स्वयं सहायता समूहों और ग्राम-संगठनों में भागीदारी
सुनिश्चित की गई है| इसके साथ-साथ, पंचायत
स्तर पर उनके यूथ क्लब गठित किए गए हैं, ताकि विभिन्न
गतिविधियों एवं खेलकूद के माध्यम से युवाओं का सर्वांगीण विकास हो सकेI
दूसरे चरण में ‘री इमेजिंग दा फ्यूचर (R.I.F.)’
यानि भविष्य की पुनर्कल्पना पर कार्यशाला का आयोजन किया जाता है,
जिससे उनकी अपने जीवन की दिशा, सम्भावनाओं,
आशाओं आदि के बारे में काफी हद तक स्पष्टता बनती है| इस वर्ष ब्लॉक के 12 गांवों के सभी युवाओं के लिए RIF
कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना है| युवा-शास्त्र
के माध्यम से रोजगार एवं शिक्षा से जुड़े 1000 से अधिक युवाओं
में से 700 ने RIF कार्यशालाओं में भाग
लिया है|
उसके 15 दिनों के बाद, जीविका परामर्श (कैरियर काउंसलिंग) के माध्यम से, युवाओं
को उच्च शिक्षा, उन्नत कृषि, पशु पालन,
होटल मैनेजमेंट, लघु उधोग, इत्यादि अनेक क्षेत्रों में जानकरी दी जाती है| उसके
7 दिन के बाद, सलाह-प्रक्रिया
(मेंटरिंग प्रोसेस) के दौरान भाषा पर पकड़ के साथ-साथ, उनकी
रूचि अनुसार चुने हुए विकल्पों के सभी आयामों से रूबरू
कराया जाता हैI सलाह-प्रक्रिया के अंतिम दिन तक युवाओं को
अपने जीवन से जुड़े उद्देश्य स्पष्ट दिखाई देने लगते हैंI
परिणाम
युवा-शास्त्र कार्यक्रम से, अक्टूबर महीने में नारायणगंज ब्लॉक के 6 युवतियों और
3 युवकों को गुजरात के कच्छ में स्थित, ‘वेलस्पन इंडिया लिमिटेड’में टेक्सटाइल डिपार्टमेंट
में नौकरी प्राप्त हुई एवं 7 युवतियों का जयपुर के शंकरा
नेत्र हस्पताल में नेत्र-विज्ञान (ऑप्थलमिक) कोर्स में चयन हुआ। इस समय 158
युवा विभिन्न बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में कार्यरत हैं| प्रतिस्पर्धा के इस दौर में इन आदिवासी युवाओं के भविष्य को एक नया रूप
मिल रहा है।
वेलस्पन इंडिया लिमिटेड में कुड़ामैली गांव से चयनित युवा, सुरेन्द्र वरकडे ने बताया – “ये किसी
सपने के सच होने जैसा है| आज मैं न केवल स्वयं आत्मनिर्भर
हूँ, बल्कि अपने परिवार की आर्थिक सहायता भी कर पा रहा हूँ|”
बीजेगाँव गांव की युवती, यशवंती मरकाम ने कहा
– “इससे पहले मैं कभी भी अपने ब्लाक से बाहर नहीं गयी थी,
और ये पहला अवसर है, जब मैं ट्रेन में बैठकर
गुजरात के कच्छ जिले तक 1500 किलोमीटर के इतने लम्बे सफ़र को
तय कर सकीI”
बीजेगाँव गांव की ही ऑप्थलमिक कोर्स के लिए चयनित युवती, आरती के पिता लखन विश्वकर्मा का कहना था – “दिन भर मजदूरी करने के बाद भी, परिवार के लिए दो
वक़्त की रोटी जुटाना कठिन था| लेकिन हमने बिटिया की उच्च
शिक्षा के लिए कई महीने पहले से ही पैसे बचाना शुरू कर दिया थाI”
परम्परागत बाधाओं से निजात
वेलस्पन इन्डिया लिमिटेड में चयनित, यशोदा ने बताया – “बचपन से मुझे घर के कामकाज के
बारे में तो सिखाया गया, लेकिन स्कूल जाने की मनाही थी|
‘क्या करोगी पढ़कर आगे चलकर शादी ही तो करनी है’ जैसे तर्क पीछा करते थे| मुझे शायद ही कभी
खेलने-कूदने की आजादी मिली|” ऐसा कहते हुए, यशोदा का गला रुंध गया| कुम्हा गांव की रूबी पट्टा
का कहना है – “कई बार तो सिर्फ आंगनवाड़ी में खाने के लिए ही
स्कूल जाते थे, पढ़ने के लिए नहीं| लेकिन
अब गाँव में युवतियों की शिक्षा को लेकर माहौल और रीति रिवाज दोनों बदलते हुए
दिखाई दे रहे हैंI”
इसी प्रकार कुम्हा गांव की ही एक और निवासी, अहिल्या बाई ने बताया – “जब हमारी बिटिया ऑप्थलमिक
(नेत्र-विज्ञान) कोर्स के लिए अकेले जाने को राज़ी नही थी, तो
मैं परिवार से लड़कर स्वयं उसको लेकर प्रथम वर्ष प्रशिक्षण के लिए गयी थी| मैं नहीं चाहती थी कि वह भी पढ़ाई छोड़कर गाँव में रहे| आज हमारी बेटी को हिंदी और अंग्रेजी के साथ-साथ, तमिल
भाषा का भी ज्ञान है| वह हमारे परिवार की पहली नौकरीपेशा
सदस्य है और उसकी सफलता से हम बहुत खुश हैंI”
भविष्य में सम्भावनाएँ
शिक्षा एक शक्तिशाली माध्यम है, जिससे इन जनजातीय इलाकों के लोगों की जिन्दगी में सकारात्मक परिवर्तन हो
सकता है| लेकिन आज आदिवासी क्षेत्रों के युवाओं की शिक्षा को
लेकर शायद सरकार के पास भी पर्याप्त योजना नहीं है। ऐसे में युवा-शास्त्र जैसे
कार्यक्रम से निकले इन युवाओं से जिले के अन्य युवाओं का प्रेरित होना और अपने
गांव की प्रगति के लिए जागरूक एवं संवेदनशील बनना एक सकारात्मक कदम है| भविष्य में इन युवाओें के हौसलों से इनको वो मंज़िल मिल सकेगी, जो आने वाले समय में इस क्षेत्र को विकास की दिशा में गति प्रदान करते हुए
अग्रिम पंक्ति में खड़ा करेगी।
इसे वेलस्पन इंडिया लिमिटेड में मानव-संसाधन अधिकारी, श्री चेतन जी के शब्दों में उचित रूप से रखा गया है –
“युवा शास्त्र कार्यक्रम के माध्यम से उन युवाओं को आगे बढ़ने का
अवसर मिल रहा है, जो समाज की नींव को मजबूत बनाने की क्षमता
रखते हैं| इन युवाओं की क्षमता का आंकलन समाज बेशक ठीक से न करता
हो, लेकिन अवसर मिलने पर यह स्वयं को साबित कर सकते हैं|
युवा-शास्त्र कार्यक्रम भारत के हजारों युवाओं को उड़ान भरने लायक
हौसला प्रदान करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगाI” बस
जरूरत है, तो इस जज्बे की –
“मंज़िल मिल ही जाएगी भटकते भटकते ही सही, नासमझ हैं वो, जो घर से निकले ही नहीं”
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?