ग्रामीण महिलाओं के समूह सशक्तिकरण के लिए हैं
गाँवों में स्व-सहायता समूह, महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण प्रदान करते हैं, जिससे अपने मामलों को सँभालने की उनकी क्षमता को लेकर व्याप्त धारणाएं बदल गई हैं
प्रत्येक महिला, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, को शिक्षा, एक अच्छे काम और घरेलू कार्यों में सहयोग की की जरूरत होती है। समाज को वे सांस्कृतिक रूप से प्रचलित प्रथाएं छोड़नी होंगी, जो महिलाओं को नीचा दिखाती हैं और वस्तु के रूप में पेश करती हैं, फिर चाहे वे विवाहित महिलाएं हों या अविवाहित। महिलाओं को पतियों द्वारा लिए गए ऋण से भी कानूनी बचाव की जरूरत होती है। लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं, प्रथाओं और कानूनों को बदलना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह एकमात्र तरीका है, जिससे महिलाओं की कीमत न लगा कर, उन्हें गरिमा और आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सकती है।
महिलाओं का सशक्तिकरण वैश्विक स्तर पर गरीबी सहित, कई समस्याओं का समाधान है। जिन समाजों में महिला सशक्तिकरण के लिए प्रयास किए जाते हैं, उनमें विकास सम्बन्धी सूचकांक बेहतर रहते हैं, शासन बेहतर होता है, अधिक टिकाऊ होते हैं, और उनमें हिंसा की संभावना कम होती है। दूसरी ओर, ऐसे समाज, जहां महिलाओं के शैक्षिक और रोजगार के अवसर सीमित किए जाते हैं और जहां महिलाओं की राजनीतिक आवाज कमजोर होती हैं, उनमें भ्रष्टाचार की संभावना अधिक होती है।
स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या महिलाओं के समूहों की अवधारणा, ग्रामीण भारत की महिलाओं को आर्थिक पहुंच और सामाजिक संगठन के माध्यम से सशक्त बनाती है। स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति का श्रेय मैसूर रिसेटलमेंट एंड डेवलपमेंट एजेंसी (MYRADA) द्वारा शुरू किए गए, स्व-सहायता सम्बन्ध समूहों (self-help affinity groups) को दिया जाता है। नेशनल बैंक ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) ने 1992 में इस मॉडल को एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया था, जिसे बाद में एक नियमित बैंकिंग कार्यक्रम का दर्जा दे दिया। 25 वर्षों के अंतराल में, इस आंदोलन ने जबरदस्त वृद्धि दर्ज की है, और देश भर में इसकी 85 लाख सक्रिय एसएचजी इकाइयाँ हैं।
आर्थिक मदद प्रदान करना
सदस्य के रूप में, लगभग 20 वंचित वर्ग की महिलाओं के साथ, एक आम एसएचजी की विशेषताएं हैं – स्वैच्छिक सदस्यता, छोटा आकार, सदस्यों द्वारा नियमित बचत, ऋणों को जल्दी चुकता करना और पारदर्शी प्रक्रियाएं।
एसएचजी के माध्यम से, महिलाएं छोटी रकम उधार लेती हैं, ज्यादातर 5,000 रुपये से 20,000 रुपये तक। बच्चों की शिक्षा और घर चलाने की उनकी प्राथमिकता के साथ, महिलाएं उधार लिया पैसा, बच्चों की पढ़ाई सम्बन्धी जरूरतों, घरेलू मरम्मत और यहां तक कि मासिक राशन के भुगतान के लिए उपयोग करती हैं।
यह व्यवस्था कैसे काम करती है, इसके बारे में 20 साल पुराने समूह की सदस्य, चंदा ने VillageSquare.in को बताया – “प्रत्येक सदस्य 100 रुपये महीना योगदान देता है और हम पैसा एसएचजी के संबंधित बैंक खाते में रखते हैं। जब किसी सदस्य को पैसे की जरूरत होती है, तो अधिकृत महिलाएं हमारे एसएचजी खाते से जरूरी धनराशि निकालती हैं और दूसरे सदस्यों द्वारा अनुमोदन के साथ उस सदस्य को पैसे उधार देती हैं।”
कुशल प्रशासक
इन समूहों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है, कि इनका प्रबंधन पूरी तरह से महिलाएं करती हैं। प्रत्येक समूह का उसके सदस्यों द्वारा स्वयं तैयार और स्वीकार किया हुआ एक संविधान या नियमों की एक सूची होती है। यह नियम सदस्यों का चयन करने, पदाधिकारियों का चुनाव करने, अपना स्वयं का ऋण-कोष बनाने, ऋण प्राप्त करने वाले पर निर्णय लेने, ऋण की वापसी सुनिश्चित करने, आदि से संबंधित होते हैं।
नियमित बैठकें सक्षम बनाने वाली शक्ति हैं, जिससे महिलाओं को कई तरह की पारिवारिक और सामुदायिक परिस्थितियों में काम करने का साहस मिलता है। जब किसी समूह के पास बड़ी मात्रा में पूंजी होती है, तो समूह अपने सदस्यों को छोटे ऋण देना शुरू कर देता है। महिलाएं एक-दूसरे के ऋण की गारंटी देती हैं। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है, कि इनमें शायद ही कोई महिला ऋण लौटाने में चूक करती है।
हालाँकि सदस्यों के लिए आर्थिक पहलू ही एकमात्र फायदा नहीं है, फिर भी उधार एक महत्वपूर्ण तत्व है।
समूह चलाने के प्रयासों में अनुशासन के होने से महिलाएं कुशल धन-प्रबंधक बनती हैं। क्योंकि अब महिलाएं आम तौर पर वह काम करती हैं, जो बैंक के लोग करते हैं, इसलिए बैंकों की प्रशासन लागत में भी भारी कमी आई है। अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी के बिना, सामाजिक गतिशीलता को नहीं बदला जा सकता।
साहसी सामूहिक
गाँव के स्थापित वर्गीकरण को तोड़ते हुए, कई जगह महिलाओं ने पुरुषों के विरोध के बावजूद, अपने गाँवों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। कुछ गांवों में महिलाओं के समूहों ने शराब का बनना रोक दिया। स्व-सहायता समूहों की महिलाओं ने कई तरीकों से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया है, उदहारण के लिए, गाँवों के तालाबों में मछली के ठेके के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाना, और फल और सब्जियाँ उगाने के लिए बंजर भूमि का विकास करना।
जिन गांवों में स्व-सहायता समूहों ने जड़ें जमा ली हैं, वहां गांव के साहूकारों के नियंत्रण के नुकसान की कहानी आम है। सोलापुर गाँव की अनुसूचित जाति की महिलाओं ने VillageSquare.in को बताया – “साल के चार महीनों में, जब कोई काम नहीं होता, तो हम साहूकारों से 300 रुपये महीना 100% ब्याज पर ऋण लेने के लिए मजबूर होते थे। SHG बनाने के बाद, हम साहूकारों से उधार नहीं लेते, बल्कि अपने स्वयं के SHG से उधार लेते हैं।”
पूँजी क्षमतावर्द्धन का एक शक्तिशाली औजार है और उद्यमी महिलाओं ने छोटे व्यवसायों में निवेश करके लाभ कमाने की क्षमता का प्रदर्शन किया है। धुले जिले के आदिवासी गाँवों में, किल्लत के समय में व्यापारी अनाज बहुत ऊँची कीमत पर बेचते थे। महिलाओं ने अपने स्वयं के अनाज बैंकों बनाकर इसका रास्ता खोजा, जिसके नियम वैसे ही हैं, जैसे पैसे की बचत के लिए नियम हैं।
चंद्रपुर जिले के मोहबाला गाँव की एक एसएचजी नेता, मंगला धवस, एक ऐसे ही उद्यमी समूह की नेता हैं। वह अब बीमा और डिपाजिट कंपनियों के लिए एक मार्किट-एजेंट के रूप में काम करती हैं। उनकी सफलता उनके घर में उपकरण और बेहतर सुविधाओं के रूप में दिखाई देती है। उनके घर के बढ़ाए हुए भाग में एक स्थानीय बिजली कंपनी के दो किरायेदार रहते हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “मेरे पिता सोचते थे कि एक महिला के लिए व्यवसाय शुरू करना एक बड़ा कदम है, क्योंकि लोगों को लगता है कि केवल पुरुष ही ऐसा कर सकते हैं| वह सोचते थे महिलाओं को घर पर रहना चाहिए, घरेलू काम करने चाहिएं। आज वह अपने शब्द वापिस लेते हैं।”
धारणाओं में बदलाव
जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा था – गरीब महिलाओं के लिए, सशक्तिकरण दूसरी स्वतंत्रता या वास्तविक स्वतंत्रता की ओर एक यात्रा है।
SEWA (स्व-रोजगार महिला संघ) की संस्थापक और भारत के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक, इला भट्ट के अनुसार – “महिलाएं एक समुदाय के पुनर्निर्माण की कुंजी हैं। महिलाओं पर ध्यान दीजिए, और आपको ऐसे सहयोगी मिलेंगे, जो एक टिकाऊ समुदाय चाहते हैं … महिलाओं में, आपको एक कार्यकर्ता, एक दाता, एक कार्यवाहक, एक शिक्षक, एक नेटवर्क निर्माता मिलता है। वह संबंधों की एक निर्माता है – उसमें, अनिवार्य रूप से, आपके पास एक निर्माता और एक संरक्षक है।”
भट्ट की धारणा के अनुसार, बहुत से स्व-सहायता समूहों ने महिलाओं को नेताओं के रूप में तैयार किया है, जैसे कि विदर्भ जिले के चारूरखाटी गांव की एसएचजी ने किया है; इसकी एक सदस्य आज ग्राम सभा की प्रमुख है। SHG ने अपने सभी आयामों – सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत, में महिलाओं के सशक्तिकरण को प्रभावित किया है। एसएचजी ने महिलाओं का ऐसा कायापलट कर दिया है, कि महिलाएं क्या कर सकती हैं, इसके बारे में पुरुषों और महिलाओं ने अपनी धारणा बदल ली है।
मोईन काज़ी ‘विलेज डायरी ऑफ़ ए हेरेटिक बैंकर’ के लेखक हैं। उन्होंने विकास-क्षेत्र में तीन दशक से अधिक समय काम किया है। विचार व्यक्तिगत हैं।
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