टिकाऊ भविष्य के लिए समुदायों ने निजी जंगलों का किया पुनरुद्धार
हरित आवरण एवं आजीविका के अवसरों में सुधार करते हुए, निजी-वन मालिक बंजर भूमि का पुनरुद्धार करते रहे हैं। इस पहल से जैव-विविधता संरक्षण और वन्यजीव गलियारे के रखरखाव में भी मदद मिली है
महाराष्ट्र के सतारा जिले के बोपोली गाँव के निवासी, बालकृष्ण नाथूराम भोमकर, अपने परिवार के सदस्यों के साथ 18 एकड़ निजी जंगल के सह-स्वामी हैं। इनका गाँव उत्तरी पश्चिमी घाटों का हिस्सा है, जो सह्याद्री टाइगर रिज़र्व के दो हिस्सों, कोयना वन्यजीव अभयारण्य और चंदोली राष्ट्रीय उद्यान को जोड़ता है|
भोमकर अकेले नहीं हैं, जो निजी जंगल के मालिक हैं। टाइगर रिजर्व के बफर जोन में स्थित कोयना-चंदोली वन्यजीव गलियारे में 60 ऐसे मालिक हैं। भोमकर ने अपनी आय में वृद्धि के लिए अपने जंगल में फलों के पेड़ लगाए हैं।
जीवनशैली में बदलाव के प्रभाव से, समय के साथ निजी जंगलों का ह्रास हुआ। सहयोग लेकर ग्रामीण, स्थानीय किस्म के और फलों के पेड़ लगाकर, निजी जंगलों का पुनरुद्धार कर रहे हैं। पर्यावरण-पुनरुद्धार के प्रयासों से न केवल उनकी आजीविका में मदद मिलेगी, बल्कि जैव विविधता का संरक्षण भी होगा।
निजी वन
पश्चिमी घाटों निजी जंगलों को माल्की जमीन कहा जाता है, जो एक यूनेस्को जैव विविधता हॉटस्पॉट है। पुणे स्थित वन्य जीव अनुसन्धान एवं संरक्षण सोसाइटी के जयंत कुलकर्णी ने बताया – “भारत के अनेक हिस्सों में जंगलों पर ज्यादातर सरकार का स्वामित्व है। लेकिन यहां हमारे पास निजी और सरकारी, दोनों तरह के जंगल हैं। पहाड़ी इलाके के अधिक वर्षा वाले इस क्षेत्र में, लगभग 40 साल पहले, सामान्य रूप से शिफ्टिंग (जगह बदलती) खेती हुआ करती थी।”
जयंत कुलकर्णी ने VillageSquare.in को बताया – “फिर स्थानीय लोगों ने नौकरियों के लिए पुणे और मुंबई में जाना शुरू कर दिया। उनकी जीवनशैली बदल गई और उन्होंने पारम्परिक अनाज, जैसे नाचनी (रागी) और वारी (छोटा बाजरा) की खेती बंद कर दी।”
प्रवासन के परिणामस्वरूप, निजी जंगलों में गिरावट देखी गई और कई मालिकों ने इमारती और जलाऊ लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। रोहिणी चतुर्वेदी, जो ग्लोबल एवरग्रीन एलायंस के बोर्ड में हैं, ने बताया कि हालांकि निजी वन मौजूद हैं, लेकिन ऐसे वनों और उनकी स्थिति के बारे में पर्याप्त दस्तावेजों का अभाव है।
निजी वनों की सुरक्षा
पश्चिमी घाट लम्बाई में एक संकरा क्षेत्र है, जो उत्तर से दक्षिण की ओर जाता है। यदि अच्छी तरह से संरक्षित किया जाए, तो निजी वन एक निरंतरता प्रदान कर सकते हैं, जो जैव-विविधता संरक्षण और वन्यजीव गलियारों के रखरखाव के लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिणी महाराष्ट्र के तिल्लारी जंगलों में, बाघों सहित वन्यजीवों की एक व्यवहार्य आबादी है। कुलकर्णी का कहना है कि यह निजी जंगलों की वजह से संभव हो सका है।
अच्छे आजीविका विकास मॉडल की कमी के कारण, कई मालिकों की निजी जंगलों को बनाए रखने में रुचि नहीं है, जो नियमित रूप से जंगलों के ह्रास और कई बार आग लगने का कारण बना है। लेकिन ये वन मिट्टी-संरक्षण और नदी जल प्रवाह के विनियमन जैसी उनकी पर्यावरण व्यवस्थाओं की सेवाओं के लिए कीमती हैं। इस प्रकार, चंदौली और कोयना के बीच के निजी वनों का पर्यावरणीय पुनरुद्धार जरूरी हो गया।
रोहिणी चतुर्वेदी कहती हैं – “एक गलत धारणा बन गई है कि मालिक वनों की रक्षा और रखरखाव नहीं कर पाएंगे। उनके दृष्टिकोण से, निजी वन पूँजी की बजाए अभिशाप हैं, क्योंकि ज्यादातर मामलों में, बिक्री पर प्रतिबंध के कारण वे संसाधनों का लाभ नहीं ले सकते हैं।”
पुनरुद्धार
वर्ष 2012 में, वन्यजीव अनुसंधान और संरक्षण सोसायटी (WRCS) ने इस क्षेत्र में स्थानीय वृक्ष प्रजातियों के वृक्षारोपण के माध्यम से, निजी वनों के पर्यावरण-पुनरुद्धार के लाभों के बारे में एक जागरूकता अभियान शुरू किया।
पर्यावरण-पुनरुद्धार परियोजना के एक हिस्से के रूप में, स्वयंसेवकों, स्थानीय समुदायों और निजी मालिकों की मदद से, हर मानसून में वृक्षारोपण किया जाता है। हर साल 30 एकड़ के क्षेत्र में किया जाता है, लेकिन 2019 में 100 एकड़ में वृक्षारोपण किया गया।
कुलकर्णी का कहना है – “तीन साल तक रखरखाव किया जाता है। क्योंकि नियमित वृक्षारोपण में अधिक संसाधनों की जरूरत होती है, हमने ‘समर्थित प्राकृतिक पुनर्जनन’ जैसी दूसरी तकनीकों से प्रयोग किये हैं।” यह परियोजना अगले पांच से 10 वर्षों तक जारी रहेगी।
जमीनी स्तर पर पुनरुद्धार के लिए काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन, Junglescapes के संस्थापक, वेंकटरामन ने बताया – “प्राकृतिक पुनरुद्धार की दर की तुलना में गिरावट की दर तेज है। इसलिए हमें पुनरुद्धार की जरूरत है, क्योंकि दुनिया भर में घटित ह्रास का सामना करने में प्रकृति असमर्थ है।”
टिकाऊ भविष्य
परियोजना के प्रभारी, सुनील काले का कहना था कि शुरू में ग्रामवासियों ने वन-पुनरुद्धार में रुचि नहीं दिखाई। कुछ ने व्यक्तिगत बातचीत के बाद दिखाई, क्योंकि किसी भी पर्यावरण-बहाली परियोजना में स्थानीय सहयोग महत्वपूर्ण है। काले ने बताया – “जो मालिक वनों का पुनरुद्धार करना चाहते थे, उन्होंने हमारे मार्गदर्शन में पेड़ लगाए।” देवघर गाँव के जगन्नाथ रामचंद्र सपकाल, जो 12 एकड़ जंगल के मालिक हैं, पाँच साल से पेड़ लगा रहे हैं।
कोयना और चंदोली के बीच, 16 गांवों में काम जारी है। कुल काम लगभग 8,000 हेक्टेयर में है, जिसमें से निजी वन लगभग 4,000 हेक्टेयर में हैं। अब तक 250 एकड़ में पर्यावरण -पुनरुद्धार का काम किया जा चुका है। वृक्षारोपण के अलावा, महिलाओं को शामिल करके मौजूदा वनस्पति को संरक्षित किया जा रहा है।
वर्ष 2015 में, भोमकर ने पारिवारिक आय में वृद्धि के लिए अपने निजी वन में जामुन, आंवला, दालचीनी, कटहल, रताम्बी (कोकम) और बाँस लगाए। उन्होंने कहा – “मैं मधुमखियाँ पालता हूं और एक पर्यटक गाइड के रूप में काम करता हूं। क्योंकि यह एक दर्शनीय स्थान है, बहुत से लोग यहाँ आते हैं, विशेष रूप से पुणे से।”
अब तक 45,000 पौधे रोपे जा चुके हैं और उनकी जीवित रहने की दर 80% है। ग्रामवासियों की मदद के लिए, कटहल और आंवले के पेड़ों के साथ एक प्रदर्शन स्थल बनाया गया है। परियोजना पर लगभग 1,000 स्वयंसेवकों ने काम किया है और पानी देने, घास काटने और बीज इकठ्ठा करने में मदद की है।
कोयना के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, संदीप कुम्भार ने VillageSquare.in को बताया – “इस क्षेत्र में बेहतरीन दर्शनीय सुंदरता है और लोग ट्रैकिंग के लिए आते हैं। इसलिए, होम-स्टे विकसित किए जा रहे हैं, जहां आगंतुक माहौल का आनंद ले सकते हैं और ताजे फल और सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। बफर-जोन में पड़ने वाले गांवों में हम, वन विभाग के धन की मदद से, पर्यावरण-पर्यटन (इको टूरिज्म) विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।”
चंदौली नेशनल पार्क के हेलवाक रेंज के वन अधिकारी, अमित अशोक भोंसले ने कहा कि निजी भूमि में किए पर्यावरण-पुनरुद्धार से, पूरे इलाके में घने जंगल बनाए रखने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि वन विभाग WRCS के साथ तालमेल कर रहा है, क्योंकि बफर क्षेत्र में कई निजी वन भूमि हैं।
भोंसले ने VillageSquare.in को बताया – “यहाँ लोगों के पास आजीविका के पर्याप्त अवसर नहीं थे। टाइगर रिजर्व आने के बाद, पेड़ों की अवैध कटाई बंद हो गई। इको टूरिज्म के चलते उन्हें कई अवसर प्राप्त हो रहे हैं।”
सामुदायिक लाभ
पर्यावरण-उद्धार अभियान के अलावा, आजीविका निर्माण के उद्देश्य से एक सामुदायिक कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसके अंतर्गत स्थानीय लोगों को, प्राकृतिक रास्तों और ट्रैकिंग के गाइड के रूप में काम करने के अलावा, खाद्य पदार्थ तैयार करने और हस्तशिल्प बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
बोपोली गांव से 3 किमी दूर, हेलवाक गांव की विशाखा विलास कदम ने कहा, कि महिलाओं को नाश्ता, जैम और अचार बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है और इस उद्देश्य से महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह का गठन किया है। कार्यक्रम में लगभग 70 महिलाएं शामिल हैं। जब पर्यटक आते हैं तो महिलाएं नाश्ता और दोपहर का भोजन तैयार करती हैं।
कोयना नगर की निवासी, स्वाति शेलार को बांस की की-चेन, वॉल हैंगिंग, टी-शर्ट और लैपटॉप बैग पर पेंटिंग करना पसंद है। वह अपने गाँव की कुछेक महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं, ताकि वे इस तरह के शिल्प-कार्य के माध्यम से पैसा कमा सकें।
सुनील काले ने बताया कि क्योंकि यहाँ बहुत से किसान धान की खेती करते हैं, इसलिए इस साल से परीक्षण के आधार पर, सगुणा चावल तकनीक से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह सीधे बीज डालकर बुवाई की विधि है, जिसमें ज्यादा पैदावार होती है और मजदूरी की आवश्यकता कम होती है।
शंभाजी चलके चार एकड़ निजी वन के मालिक हैं, लेकिन वे जैविक चावल की खेती भी करते हैं। उन्होंने कहा – “ज्यादातर नौकरियां शहरों में पाई जाती हैं और इसी कारण से लोग पलायन करते हैं। लेकिन यह परियोजना जंगलों को पुनर्जीवित कर सकती है और स्थानीय तौर पर आजीविका के अवसर पैदा कर सकती है।
दीपान्विता गीता नियोगी दिल्ली की एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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