लॉकडाउन ने कशीदाकारी कारीगरों को दूसरे रोजगारों की ओर धकेला
लॉकडाउन में बिक्री कम होने से, कुशल कशीदाकारी करने वाले कारीगरों को अपनी दुकानें बंद करने और आजीविका के दूसरे साधन अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है
सब्जी बेचते हुए, सरफराज हुसैन कहते हैं – “ये हाथ जरदोजी कारीगरी के लिए थे, लेकिन अब वे सब्जियां बेचने के लिए मजबूर हैं।” 43 वर्षीय हुसैन पिछले दो दशकों से जरदोजी का काम करते रहे हैं। लेकिन मार्च में देशव्यापी लॉकडाउन के फलस्वरूप बाजार के बंद होने के कारण, उन्हें अपना पेशा बदलने पर मजबूर होना पड़ा है।
हुसैन अपने कुटुंब (विस्तारित परिवार) के एक सदस्य से एक और ऋण लेने की योजना बना रहे थे। अपने चेहरे पर असंतोष के गहरे भाव लिए उन्होंने कहा – “लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मुझे कुछ और काम करना चाहिए। महामारी ने मुझे एक सब्जी विक्रेता बना दिया है। मैं अब कारीगर नहीं रह गया हूं।”
जरदोजी लखनऊ क्षेत्र में धातु के धागे, चमकीले सितारे और खास सुइयों के साथ की जाने वाली एक विशेष प्रकार की कढ़ाई है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और पड़ोसी जिले उन्नाव के कारीगर, जो ज़री और अन्य प्रकार की कढ़ाई करते हैं, अपने कारीगरी से सारी आशाएं खो चुके प्रतीत होते हैं और गुजारे के लिए, दूसरे विकल्पों को चुन रहे हैं।
कारीगर से सब्जी विक्रेता
ओल्ड-लखनऊ का चौक इलाका, अपने स्थानीय व्यंजनों और हस्तकला के लिए जाना जाता है, जिसमें आरी, जरदोजी और चिकनकारी शामिल हैं, जो लखनऊ को फैशन के नक्शे पर अलग स्थान दिलाते हैं। कारीगरों से लेकर थोक और खुदरा बाजार तक, चौक सभी के लिए एक केंद्र है। यही वह जगह है, जहां सरफराज हुसैन का जन्म और पालन-पोषण हुआ था।
अब स्कूल जाने वाले तीन बच्चों के पिता, हुसैन बताते हैं कि उनके माता-पिता भी जरदोजी कारीगर थे। उन्होंने कहा – “मैं पूरा समय अपने माता-पिता और ताऊ-चाचा को आरी-जरदोज़ी का काम करते देखकर बड़ा हुआ हूं। वे दिन-रात काम करते, लालटेन की रोशनी में और उसे थोक विक्रेताओं को बेचते थे।”
हुसैन ने VillageSquare.in को बताया – “मैंने उन्हें काम पर देखकर, शिल्प की मूल बातें सीखीं। मैं मुश्किल से 15 साल का रहा होऊंगा, जब मैंने डिज़ाइनों को भरने में उनकी मदद करना शुरू कर दिया। तब तक मैं स्कूल छोड़ चुका था। शायद आठवीं कक्षा के बाद।”
अलग-अलग ऑर्डर से हुसैन लगभग 15,000 रुपये महीना कमाता था। उनके ग्राहक अपनी पसंद के विशिष्ट रंग और डिजाइनों की मांग करते और हुसैन उसे वैसा ही बनाकर देते, जैसा वे चाहते थे। उन्होंने कहा – “पैसे से ज्यादा, यह हमारे लिए सम्मान का काम था।” उनके ज्यादातर ग्राहक लखनऊ शहर के खास स्थानों में से एक, गोल दरवाजा में बेचने वाले दुकानदार थे।
मार्च के पहले हफ्ते से हुसैन को ऑर्डर मिलने बंद हो गए। उन्होंने बताया – “हमने अपनी बचत का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। लेकिन हमें यह नहीं पता था कि हालात और खराब हो जाएंगे। मई तक हम एक रिश्तेदार से उधार लिए गए 10,000 रुपये का आधा खर्च कर चुके थे। तब, मई के महीने में, मैंने सब्जियां बेचने का फैसला किया।”
हुसैन की पत्नी एक गृहिणी हैं और उनके तीन बेटे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। परिवार में केवल एक ही स्मार्ट फोन है| यही वजह है कि उनके बच्चे अपने ऑनलाइन होम-वर्क के मामले में ठीक स्तर पर नहीं हैं।
आजीविका का नुकसान
सरफराज हुसैन अकेले नहीं हैं, जिन्होंने अपने पारिवारिक पेशे को छोड़कर गुजारे के लिए दूसरा काम नहीं पकड़ा है। उन्नाव के एक कारीगर मोहम्मद इकबाल ने VillageSquare.in को बताया – “जरदोजी कारीगर अपनी गुणवत्ता और काम की मात्रा के आधार पर, 10,000 से 20,000 रुपये महीना तक कमाते थे।”
62 वर्षीय मोहम्मद इकबाल, उन्नाव में एक हॉल किराए पर लेकर, जरदोजी कारीगरों की एक छोटी कार्यशाला चलाते थे। अप्रैल में अपने कारीगरों को अगले नोटिस तक काम छोड़कर जाने के लिए कहने के अलावा, इकबाल के पास और कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा – “वे आसपास के गाँवों से आते थे। उनमें से एक-दो लोगों ने पास में कमरे किराए पर ले रखे थे। काम के लिए बिना एक भी ऑर्डर के, मैं उनका भुगतान कैसे कर सकता था?”
इकबाल अपने बेटे, बहू और उनके बच्चों के साथ उन्नाव में किराए के एक मकान में रहते हैं। पिछले तीन महीनों का किराया अभी भी बकाया है। “आप देख सकते हैं, कि मैं खुद एक वैकल्पिक व्यवसाय की तलाश में हूं। मुझे मार्च से अब तक जीरो ऑर्डर मिले हैं। अब हम किसके लिए काम करें?”
चौक का एक और जरी जरदोजी कारीगर, चाँद गरीबी के कारण अब ई-रिक्शा से सवारियाँ ढोता है। चाँद ने VillageSquare.in को बताया – “कला से यदि हमें खाना भी नहीं मिलता, तो हम उसका क्या करेंगे? रिक्शा चलाकर मैं कम से कम अपने परिवार की जरूरतों का ध्यान रख सकता हूं।”
बिक्री में गिरावट
चौक के अलावा, हजरतगंज और अमीनाबाद लखनऊ के अन्य इलाके हैं, जहाँ ग्राहक लखनवी हस्तशिल्प की तलाश में आते हैं। ये वो जगह हैं, जहाँ ज्यादातर खुदरा दुकानें और शोरूम हैं।
पुराने लखनऊ के अमीनाबाद इलाके के एक दुकानदार, ज़ुनैद अली का कहना है – “हमारे पास इस त्योहार और शादी के मौसम में, चिकनकारी और जरदोजी के 70-80% कम ग्राहक आ रहे हैं। मेरा मानना है कि इस समय बाहर जाने से बचने के लिए, ऑनलाइन शॉपिंग एक कारण है। क्योंकि माँग कम है, इसलिए निश्चित रूप से उत्पादन भी कम होगा।”
लखनऊ-स्थित डिजाइनर सुनिधि सक्सेना, जो अपने कामों में आरी, जरदोजी और चिकनकारी का इस्तेमाल करती हैं, ने कहा कि चिकनकारी अब भी बेहतर स्थिति में है, जबकि आरी और जरदोजी कारीगर बहुत खराब स्थिति में हैं।
सक्सेना ने VillageSquare.in को बताया – “जब भी मैं प्रदर्शनियों या फैशन शो की तैयारी करती हूँ, ये कारीगर मेरे दाहिने हाथ होते हैं। लेकिन मुझे संदेह है कि उनकी खूबसूरत और कड़ी मेहनत को वो इज्जत मिल रही है, जिसकी वो हक़दार है।”
हुसैन ने बताया – “मुझे पता है कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। लेकिन आप अपने पेशे के लिए वैसा महसूस नहीं कर सकते, जैसा आप अपने जुनून के लिए महसूस करते हैं। मैं केवल यह ख़्वाहिश और अल्लाह से दुआ कर सकता हूं, कि हालात फिर से सामान्य हो जाएं और मैं इन सब्जियों के साथ गलियों में घूमना बंद कर दूं।”
जिज्ञासा मिश्रा राजस्थान और उत्तर प्रदेश की लेखिका हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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