अच्छी बारिश के बावजूद, पानी के रख रखाव के अभाव में किसानों का पलायन हुआ। बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए, तालाबों को गहरा करने से पलायन रुक गया है और किसानों को सभी मौसम में फसलें उगाने में मदद मिली है
पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले के खगड़ीबाड़ी गाँव के रहने वाले, नित्य
गोपाल सरकार, दो साल पूर्व लौटने से पहले, हरियाणा और देश के दूसरे उत्तरी राज्यों
में एक मजदूर के रूप में काम करते थे।
58-वर्षीय सरकार ने घर लौटने का फैसला किया, क्योंकि बढ़ती उम्र के कारण
उनके लिए काम के शारीरिक परिश्रम को जारी रखना मुश्किल हो गया था। वापिस आकर, उन्होंने
गाँव में अपनी जमीन पर खेती करने का सोचा, लेकिन गर्मियों में पानी के अभाव उन्हें
शंका में डाल दिया। एक पूरी तरह से अलग तस्वीर उनका इंतजार कर रही थी।
सरकार की तरह, कई ग्रामीण वैकल्पिक रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों
में पलायन करते थे, क्योंकि उनके लिए पानी के बिना खेती करना संभव नहीं था। जल निकायों
के पुनरुद्धार से, गाँव में जल स्तर में वृद्धि हुई है, जिससे विपरीत पलायन हुआ है
और कई फसलों की खेती हो रही है।
जलवायु-परक परियोजना
शुष्क मौसम में, खगड़ीबाड़ी के निवासियों, विशेषकर किसानों के लिए, जल संकट
एक बड़ी समस्या थी। हालात ने उन्हें आजीविका के लिए पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया
था।
सकारात्मक बदलाव की शुरुआत 2011 में हुई, जब केंद्र सरकार द्वारा नेशनल
इनोवेशन ऑन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) के अंतर्गत जलवायु-परक खेती पर पायलट
प्रोजेक्ट के लिए, देश भर के 121 गांवों के 1,686 परिवारों को चुना गया।
उत्तर बंगाल कृषि विज्ञान केंद्र (UBKVK) के कृषि विशेषज्ञ और परियोजना
के प्रभारी, शंकर साहा ने बताया – “गाँव को इसलिए चुना गया, क्योंकि यहाँ वर्षा काफ़ी
होने के कारण खेती की अच्छी सम्भावना थी, लेकिन पानी की कमी थी। इसलिए, किसान आजीविका
के लिए पड़ोसी राज्यों और भूटान जैसे देश में पलायन करते थे।”
तालाबों का जीर्णोद्धार
लगभग 3,500 मिमी सालाना की प्रचुर मात्रा में वर्षा होने के बावजूद, जल
रोक पाने की क्षमता की कमी के कारण, खगड़ीबाड़ी को पानी की कमी का सामना करना पड़ा। पानी
रोक रखने के लिए तालाब भी कम गहरे थे।
साहा ने VillageSquare.in को बताया – “हमने तालाबों की गहराई लगभग 9 फीट तक बढ़ा दी, ताकि उनमें पानी को अधिक मात्रा में रोककर रखा जा सके और पाइप के माध्यम से खेतों में पहुँचाया जा सके।” परियोजना के अंतर्गत, 24 मौजूदा जल निकायों, जिनमें ज्यादातर तालाब हैं, को बहाल किया गया। तीन नए तालाब खोदे गए।
साहा कहते हैं – “पानी की उपलब्धता के कारण किसानों को मछली पालन
शुरू करने में मदद मिली।” परिवर्तन दिखाई देने लगे। 2011 में, गाँव का कुल खेती योग्य
क्षेत्र 534 हेक्टेयर था, जिसमें 68% वर्षा पर निर्भर था। लेकिन 2018 में, बारिश पर
निर्भरता कम हो गई और खगड़ीबाड़ी में सिर्फ 55% क्षेत्र वर्षा पर निर्भर रह गया।
खेती का पुनरुद्धार
वापिस लौटने पर नित्य गोपाल सरकार ने पाया, कि साल भर भरपूर पानी उपलब्ध
होने के कारण, उनके गाँव खगड़ीबाड़ी के किसान, कई फसलें उगा रहे हैं। उन्होंने अपनी खेती
करने की योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया।
अपने खेत में लहसुन की बुवाई करते हुए, उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “मैं किसानों को विभिन्न फसलें उगाते देखकर हैरान था; पहले यह मानसून में धान पर और जूट, जिसे ज्यादा पानी नहीं चाहिए, तक सीमित थी| धान और जूट के अलावा, वह आलू, टमाटर, भिंडी और अन्य सब्जियां उगाते हैं।
सरकार अकेले नहीं हैं। गाँव के तालाबों में पर्याप्त मात्रा में पानी
की उपलब्धता ने, सनातकोत्तर शिक्षा पूरी करने वाले बिधान बर्मन (28) जैसे कई युवाओं
को आजीविका की तलाश में पलायन करने की बजाए, खेती करने के लिए प्रेरित किया है।
बर्मन एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बनने और शहर में जाने की इच्छा रखते
थे, लेकिन अपने सपने को साकार करने में असफल रहे। उन्होंने कहा – “मुझे निराशा हुई
कि मुझे सरकारी नौकरी नहीं मिली। मैंने निजी स्कूलों में भी नौकरी की तलाश की, लेकिन
सफल नहीं हुआ। फिर कुछ महीनों तक बेकार बैठने के बाद, अपने पिता की जमीन पर खेती शुरू
करने का फैसला किया।”
पानी की मौजूदगी ने उसे न सिर्फ हर साल ज्यादा फसल उगाने में सक्षम बनाया,
बल्कि तालाब में मछली पालन में भी मदद की। वह कहते हैं – “मैं खुश हूं कि खेती और मछली
पालन से मुझे लगभग 25,000 रुपये महीना मिल जाते हैं। साथ ही, मुझे अपना परिवार छोड़ने
की ज़रूरत नहीं पड़ी।”
पर्यावरण-क्षति पर रोक
पानी की उपलब्धता ने, आजीविका के लिए पड़ोसी जंगल पर ग्रामीणों की निर्भरता
कम कर दी है। घने रासमती जंगल से घिरे ग्रामीण, इमारती और जलाऊ लकड़ी के लिए, नियमित
रूप से जंगल के अंदर जाते थे, जिससे जंगली जानवरों की मौजूदगी के कारण उनके जीवन को
जोखिम रहता था, और साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता था।
ग्राम जलवायु जोखिम प्रबंधन समिति
(VCRM) के सचिव, अजीत सरकार ने बताया – “जंगल में बाइसन, अजगर और दूसरे जंगली जानवर
हैं, लेकिन हमारे पास बाजार में बेचने के लिए लकड़ी काटने जाने के अलावा कोई विकल्प
नहीं था। हम जानते थे कि यह पर्यावरण को बर्बाद कर रहा है, लेकिन शुष्क महीनों के दौरान,
आजीविका का कोई दूसरा स्रोत न होने के कारण, हमारे पास कोई और चारा नहीं था।”
VCRM की टीम में ग्रामीणों का एक समूह होता है, जो तालाबों के रखरखाव और कृषि की संभावनाओं का निगरानी करता है। अजीत सरकार ने VillageSquare.in को बताया – “हालात ऐसे थे, कि इस पर बेहद निर्भर स्थानीय लोगों द्वारा जंगल को तीन बार नष्ट किया जा चुका था।”
उन्होंने कहा – “लेकिन तालाबों
की मरम्मत ने नक्शा बदल दिया है। जल की उपलब्धता के कारण जंगल पर हमारी निर्भरता कम
हो गई है और हमारे जीवन के लिए जोखिम कम हो गया है। पर्यटकों को आकर्षित करने और आजीविका
के नए रास्ते बनाने की उम्मीद के साथ, किसान जंगल को बचाने की कोशिश करते हैं।”
चावल की नई किस्में
उत्तर बंगाल कृषि विज्ञान केंद्र
ने किसानों को जलमग्न होने पर भी बच जाने वाली किस्म, स्वर्ण सब-1 (एसएस-1) प्रदान
की है, जो बिना नष्ट हुए 15 दिनों तक पानी में रह सकती है। जलमग्न होने पर इसका उत्पादन
3.5 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है, जो सामान्य स्थिति में छह टन तक जा सकता है।
एक किसान, बिक्रमजीत सरदार
(42) ने बताया – “भारी बारिश होने पर लम्बे समय तक पानी में डूबने के कारण, धान प्रभावित
होता था, जिससे हमें नुकसान होता था। लेकिन एसएस -1 किस्म से इस समस्या का समाधान हो
गया। हमें पिछली 150 दिनों की फसल की जगह, 125 दिनों की छोटी अवधि की फसल भी दी गई
थी। इससे हमें समय बचाने और अधिक फसल उगाने में मदद मिली।”
वह VillageSquare.in को बताते हैं – “बहुत सारा काम करने की जरूरत है, क्योंकि अभी तक सभी तालाबों का जीर्णोद्धार न होने के कारण, बहुत से किसान धान और जूट उगा रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए, कि दूसरे किसानों को भी लाभ हो, जल निकायों को और गहरा किया जाना चाहिए।”
कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों
ने किसानों को होने वाली कठिनाइयों के बारे में स्वीकार करते हुए कहा कि जल्द ही और
तालाबों का जीर्णोद्धार किया जाएगा। साहा कहते हैं – “गांव का क्षेत्र विशाल है
और मौजूदा तालाबों को भी नियमित रखरखाव की जरूरत है। हमारी और तालाबों की मरम्मत और
नए तालाबों की खुदाई की प्रक्रिया जारी है।”
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं। विचार
व्यक्तिगत हैं।
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