पालघर के किसानों ने किया कृषि कानूनों का विरोध
दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ एकजुटता में, महाराष्ट्र के पुरुष और महिला किसानों ने कृषि कानूनों की वापसी की मांग करते हुए, सड़कों पर अवरोध खड़े किए और मांगों का ज्ञापन प्रस्तुत किया
तुकाराम वलवी ने कहा – “हम आज पीछे नहीं हटेंगे। यह सरकार हम पर हमला कर रही है। यदि हम 10 एकड़ जमीन देने को कहते हैं, जहां हम सालों से खेती कर रहे हैं, तो वे हमें केवल 10 गुंटा (चौथाई एकड़) देते हैं। यदि हम पांच एकड़ मांगते हैं, तो वे हमें तीन गुंटा देंगे। हम अपनी जमीन के बिना कैसे खाएंगे? हमारे पास न पैसा है, न काम है और न ही खाना है।”
वलवी (61) वरली आदिवासी समुदाय से हैं और पालघर जिले के वाडा तालुक के गरगांव गाँव के एक खेत में तीन एकड़ में खेती करते हैं। वह पालघर के विभिन्न गाँवों के 3,000 किसानों और खेतिहर मजदूरों के साथ एक विरोध प्रदर्शन में, वरली समुदाय के बहुत से लोगों के साथ थे।
26 नवंबर को, महाराष्ट्र के पालघर जिले में आदिवासी समुदाय के किसान, हरियाणा-दिल्ली में चल रहे आंदोलन के प्रति एकजुटता प्रकट करने के लिए, और अपने स्वयं के 21-सूत्री मांग पत्र के साथ, सड़क पर नाकाबंदी के लिए इकठ्ठा हुए।
कृषि कानून और आंदोलन
26 नवंबर को, किसानों ने 27 सितंबर को पारित तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ, वाडा तालुक के खंडेश्वरी नाका पर “देश में कृषि में बदलाव और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से” सड़क की नाकाबंदी की।
सरकार का दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र, निजी निवेशकों और वैश्विक बाजारों के लिए खुलेगा। इन कानूनों के पारित होने के बाद, सितंबर से ही, किसानों द्वारा व्यापक रूप से आंदोलन शुरू हुआ – खासकर हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।
हाल ही के दिनों में, हरियाणा और दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के संघर्ष के चलते, कई राज्यों में किसानों द्वारा उनकी मांगों के प्रति एकजुटता और अपनी कुछ मांगों के लिए किए गए विरोध प्रदर्शनों पर मीडिया ने बहुत कम ध्यान दिया है।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में, 25 से 26 नवंबर को विरोध प्रदर्शनों की श्रृंखला में, नासिक से पालघर और रायगढ़ तक, राज्य के विभिन्न हिस्सों में कम से कम 60,000 लोगों ने भाग लिया। इन जिलों के भीतर भी, विभिन्न तालुकाओं में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं।
भूमि के स्वामित्व
इस सप्ताह वाडा में, अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) द्वारा आयोजित जनसभा की मांगों में वलवी की भूमि-स्वामित्व सम्बन्धी मुख्य माँग शामिल थी। यह मांग महाराष्ट्र के आदिवासी किसानों द्वारा पिछले कुछ वर्षों से कई विरोध प्रदर्शनों में दोहराई गई है।
वलवी अपनी जमीन के स्वामित्व के लिए 15 साल से अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। उन्होंने कहा – “हमारे गांवों में, वन भूमि पर खेती करने वालों को वन विभाग द्वारा अन्याय का सामना करना पड़ा है। हमें इन मामलों में अदालत में लड़ना पड़ता है। हमारे पास हमारी जमानत के लिए पैसे नहीं होते। हम गरीब लोग उस तरह का पैसा कहां से लाएंगे?”
मांगों का घोषणा पत्र
26 नवंबर की जनसभा में, उनका 21 मांगों का एक घोषणा पत्र था, जिसे वडा तालुका में किसानों ने तहसीलदार के कार्यालय में प्रस्तुत किया। वहां आए लगभग हर व्यक्ति ने मास्क पहन रखा था या अपने चेहरे को स्कार्फ / रूमाल से ढक रखा था। किसान सभा के स्वयंसेवकों ने प्रदर्शनकारियों को मास्क और साबुन वितरित किए।
21 मांगों में हाल ही में पारित कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग शामिल है। अन्य मांगों में 2006 के वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के सख्त कार्यान्वयन, बेमौसम बारिश के कारण फसल के नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवजा, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार (COVID-19 के संदर्भ में) सहित, एक व्यापक श्रृंखला शामिल है।
घोषणा पत्र में ऑनलाइन कक्षाओं को समाप्त करने की मांग शामिल है। रेणुका कालूराम का कहना है – “हम चाहते हैं कि सरकार ऑनलाइन पढ़ाई बंद करे। हमारे बच्चे ऑनलाइन कुछ भी नहीं सीख रहे हैं। हमारे पास बड़े फोन नहीं हैं और हमारे क्षेत्र में सिग्नल बिलकुल नहीं हैं।” उसके तीन छोटे बच्चे हैं, जो स्थानीय आंगनवाड़ी में जाते हैं।
माँगों में प्रत्येक परिवार के लिए 7,500 रुपये की आमदनी सहायता, और इस महामारी के समय में छह महीने के लिए, परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए 10 किलो राशन शामिल है, जिसके बारे में कई किसानों ने बात की।
कंचड गाँव के देव वाघ ने मांग की कि बिजली का शुल्क माफ किया जाए। उन्होंने कहा – “हमने अपने खेतों में काम भी नहीं किया और हमें इतना ज्यादा बिल आ रहा है। छह महीने तक हमें बिजली बिलों का भुगतान करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए।”
21 मांगों के घोषणापत्र में नए बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 को ख़त्म करने की मांग शामिल है, जिससे ग्रामीण भारत के किसानों और अन्य लोगों की बिजली दरों में भारी वृद्धि होगी। बहुत से लोग इस साल अप्रैल से बेहद बढ़े (या बढ़ाए गए) बिलों का विरोध भी कर रहे थे।
महिलाओं की भागीदारी
जानकी कांगड़ा और उनका 11-सदस्यीय परिवार, वन विभाग की ज्यादतियों से जूझते हुए, तीन एकड़ जमीन में चावल, ज्वार, जौ और बाजरे की खेती करता है।
किसान सभा की एक कार्यकर्ता, कंचड़ गाँव की 54 वर्षीय रमा तर्वी का परिवार दो एकड़ में चावल, ज्वार, बाजरा और गेहूं की खेती करता है| उन्होंने बताया – “हमारे इलाके की कुछ महिलाओं को आय कमाने के लिए, रोज चार घंटे पैदल चलना पड़ता है। पूरे दिन काम करने के बाद उन्हें 200 रु. मिलते हैं| हमारे पास जमीन है, लेकिन वन विभाग हमें इसमें खेती नहीं करने देता। COVID के दौरान पहले से ही कोई काम नहीं है।”
50-वर्षीय सुगन्दा जाधव का परिवार दो एकड़ में चावल, बाजरा, उड़द और जौ की खेती करता है| उन्होंने बताया – “एफ.आर.ए. खेत हमारी आजीविका का एकमात्र साधन हैं और फिर भी COVID के दौरान भी, वे हमें अपना जीवन जोखिम में डालने और अपने खेतों के लिए (अधिकारों के लिए) के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिसे हमने सालों से बोया है। हमने कई बार विरोध और प्रदर्शन हैं, लेकिन सरकार सुनती नहीं है। सरकार ने हमें फिर से सड़कों पर आने के लिए मजबूर कि दिया है।”
यह लेख पहली बार PARI में प्रकाशित हुई थी।
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