केरल के वन में निवास करने वाले आदिवासियों को बिजली परियोजनाओं के कारण, एक सदी से भी ज्यादा समय से, बार-बार अपने स्थानों से हटाया गया है। एक और विस्थापन का सामना कर रहे आदिवासियों ने, अपने अधिकारों को छोड़ने से इनकार कर दिया
तीस के दशक के शुरु की आयु की, गीता वी. के. को,
विकास के नाम पर कई बार विस्थापित होने की पारिवारिक विरासत मिली। केरल के आदिवासी
वर्ग की पहली महिला सरदार, वह वनवासी कादर समुदाय से सम्बन्ध रखती हैं, जिसका अस्तित्व
वर्तमान परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व के अंदरूनी इलाकों में 20वीं सदी की शुरुआत तक अछूता
था।
यह 1905 का वर्ष था, जब मद्रास के ब्रिटिश प्रेसीडेंसी
ने जंगल को चलाकुडी रेलवे स्टेशन से जोड़ने के लिए एक ट्राम-वे बनाने के लिए, उनके
पूर्वजों को इस क्षेत्र को खाली करने के लिए मजबूर किया था। इसका उद्देश्य सागौन और
दूसरी इमारती लकड़ी को कोच्चि बंदरगाह तक ढोना था, जहाँ से उसे ग्रेट ब्रिटेन भेजा
जा सके, जहाँ यहाँ तक कि ब्रिटिश शाही परिवार तक के बारे में समझा जाता था, कि उसे
परम्बिकुलम की लकड़ियों से बना फर्नीचर पसंद था।
गीता के पूर्वजों ने ट्राम-लाइनें बनाने का रास्ता
साफ करते हुए, पेरिंगालकूथू के जंगलों में चले गए। स्वतंत्रता के बाद की समय में, उन्हें
उसी जंगल के शोलायार क्षेत्र में चले जाने के लिए मजबूर किया गया, जब एक बांध के निर्माण
के लिए, उनकी बस्ती को ध्वस्त कर दिया गया। 1970 के दशक में, उन्हें शोलायार में एक
जल-विद्युत परियोजना के लिए विस्थापित किया गया। अब जब एक और बेदखली का सामना करना
पड़ रहा है, तो आदिवासी अपने अधिकारों के सम्मान की मांग कर रहे हैं।
वनवासी
मलयालम में, कादर का अर्थ है वनवासी। वे छोटे समुदायों
में रहते हैं। वे खानाबदोश जीवन शैली का पालन करते थे और चावल एवं बाजरा उगाते हुए
स्थानांतरण-खेती करते थे। अब केरल में केवल 1,848 कादर हैं और उनमें से 90% अनाक्कायम
क्षेत्र की नौ बस्तियों में रहते हैं।
अब गीता वाझाचल में रहती है, जो उनकी पिछली बस्ती
शोलायार से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। फिर से एक नई जल-विद्युत परियोजना के नाम पर
एक और बेदखली और आजीविका के नुकसान का सामना करते हुए, वह स्पष्ट है कि समुदाय एक बार
फिर नहीं हटेगा।
गीता कहती हैं – “केरल में ऐसा कोई दूसरा समुदाय
नहीं है, जिसने विकास के नाम पर विस्थापन और अनिश्चितता का इतनी बार सामना किया हो।
ये हमारे जंगल हैं और हम बाहर नहीं निकलेंगे। हम यहीं रहेंगे और वन अधिकार अधिनियम
के अंतर्गत प्रावधानों का उपयोग करते हुए इसकी रक्षा करेंगे।”
अधिकारों का उल्लंघन
लोकप्रिय पर्यटन स्थल, अथिराप्पल्ली और वाझाचल के
नजदीक, अनाक्कायम के वन से जल -विद्युत् परियोजना के लिए बहुत से पेड़ काटने के केरल
राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी) के प्रस्ताव के बारे में पता लगने के बाद, गीता ने वन
विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया। शुरुआत में उन्होंने इस तरह के प्रोजेक्ट के बारे
में जानकारी न होने का बहाना किया।
अधिकारियों ने कहा कि नौ बस्तियों के कादर समुदायों
की सहमति के बिना, इलाके में इस तरह की कोई परियोजना लागू नहीं की जा सकती। वन अधिकार
अधिनियम (एफआरए) के अंतर्गत, समुदायों ने पहले से ही तमिलनाडु की सीमा पर मलक्काप्पारा
से चलाकुडी शहर तक के जंगल क्षेत्र पर सामुदायिक वन अधिकार (सीएफआर) जीता है।
बाद
में केएसईबी के अधिकारियों ने गीता को सूचित किया कि वास्तव में ही एक परियोजना को
लागू करने की योजना है और जल्दी ही उसपर काम शुरू होगा। उन्होंने कहा कि वे आठ साल
पहले केरल वन विभाग द्वारा दी गई सहमति के आधार पर इस परियोजना को लागू कर रहे हैं।
सभी नौ कादर बस्तियों की सामुदायिक वन अधिकार समन्वय
समिति की सचिव, अजिता वी. के अनुसार, केएसईबी के इस कदम से इलाके की उन सभी जनजातियों
को झटका लगा, जिन्हें परियोजना पर काम शुरू होने के बाद अपने घर छोड़ने पड़ेंगे।
अजिता ने केएसईबी के खिलाफ सी.एफ.आर. और एफ.आर.ए.
का उल्लंघन करने वाले फैसले के खिलाफ केरल उच्च न्यायालय में के दाखिल किया है। कादर
लोगों के अधिकारों के उल्लंघन के बारे में स्पष्टीकरण के लिए बार-बार प्रयास करने के
बावजूद, संबंधित अधिकारियों और मंत्री से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।
पर्यावरण सम्बन्धी प्रभाव
चलाकुडी नदी संरक्षण मंच के रवि एस. पी. ने VillageSquare.in को बताया – “केएसईबी चलाकुडी नदी बेसिन में पड़ने वाले अनाक्कायम जल-प्रपात पर 7.5 मेगावाट की एक छोटी पन-बिजली परियोजना के निर्माण की शुरुआत कर रहा है।”
केएसईबी की चट्टानी इलाके में विस्फोट करके अनक्कायम
में 5 किमी लंबी सुरंग बनाने की योजना है। यह मौजूदा शोलायार पावर हाउस के किनारे की
ओर से निकासी को दिशा देगा। भूमिगत बिजलीघर वाली परियोजना, मौसमी वर्षा के अलावा, शोलायार
बाँध के फालतू जल का भी उपयोग करेगी।
पर्यावरण
की दृष्टि से, यह परियोजना परम्बिकुलम टाइगर रिजर्व के बफर-जोन में आती है और काटे
जाने वाले ज्यादातर पेड़ सदाबहार हैं। इसके अलावा, अनाक्कायम और वाझाचल, एशियाई हाथियों
के एक प्रमुख निवास स्थान का हिस्सा हैं। अथिराप्पिल्ली-वाझाचल-अनाक्कायम क्षेत्र
196 पक्षियों, 131 तितलियों और 51 कीट प्रजातियों का आश्रय स्थल है।
क्योंकि पहले से ही अनाक्कायम, वाझाचल और अथिराप्पल्ली
से होकर बहने वाली चालाकुडी नदी में, आधा दर्जन जल-विद्युत परियोजनाएं मौजूद हैं, इसलिए
वन्यजीवन पहले से ही व्यापक रूप से प्रभावित हो चुके हैं। नई परियोजना उनपर और अधिक
बुरा प्रभाव डालेगा।
केरल में 2018 में आई भयंकर बाढ़ के दौरान, अनाक्कायम
में एक बड़ा भूस्खलन हुआ था। प्रस्तावित परियोजना के स्थान के नजदीक रहने वाले आदिवासी
लोगों को दूर हटना पड़ा था। भूस्खलन में उनके झोपड़े नष्ट हो गए थे।
आदिवासियों और पर्यावरणविदों के अनुसार, सुरंगों
के लिए किए जाने वाले विस्फोट से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाएगा। 2018 की बाढ़ में चलाकुडी
नदी के तट सबसे अधिक प्रभावित हुए थे और उसके कारणों में से एक बिजली परियोजनाओं की
उपस्थिति बताया गया।
आजीविका पर प्रभाव
परियोजना स्थल के नजदीक, कम से कम चार कादर बस्तियां
प्रभावित होंगी। आदिवासियों का कहना है कि परियोजना से वे विस्थापित हो जाएंगे, और
उनकी आजीविका प्रभावित होगी। अधिकारी मानते हैं कि यह परियोजना कादर बस्तियों के नजदीक
है और वे शुरुआती चरण में 20 एकड़ से अधिक अछूती वन भूमि को साफ कर देंगे।
पर्यावरणविद् और केरल उच्च न्यायालय के एक वकील, हरीश वासुदेवन ने VillageSquare.in को बताया – “कादर जंगल में एक सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व बनाए रखते हैं। वे वन विभाग के एक प्रोजेक्ट के अंतर्गत, अथिराप्पल्ली-वाझाचल क्षेत्र में हार्नबिल की चार प्रमुख प्रजातियों की सुरक्षा कर रहे हैं। 1970 के दशक के बाद, समुदाय ने शिकार, अवैध शिकार और लकड़ी की तस्करी बंद कर दी है।”
अनाक्कायम एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर लघु-वन उपज
इकठ्ठा करने के लिए उनकी निर्भरता बहुत है। सभी नौ बस्तियों के कादर लोगों की आजीविका,
शहद, मसाले, कंद, और मशरूम, आदि लघु-वन उपजों के इकठ्ठा करने पर टिकी है।
कादर लोगों का विरोध
केएसईबी के सूत्रों ने कहा कि परियोजना की मूल रूप
से कल्पना, 30 साल पहले की गई थी|,लेकिन वन विभाग के कड़े ऐतराज के कारण, इसे लागू नहीं
किया गया था। जो परियोजना लंबे समय से ठंडे बस्ते में थी, उसे 2013 में वन विभाग से
मिली इजाजत के आधार पर, इस वर्ष जून में दोबारा लाया गया था। लेकिन कड़े जन-विरोध के
कारण, केएसईबी को इसे फिर से स्थगित करना पड़ा।
गीता ने VillageSquare.in को बताया – “परियोजना के बारे में हमसे कभी सलाह नहीं ली गई और न ही किसी ने इस बारे में सुना।” अपने अंतरिम आदेश में, उच्च न्यायालय ने केएसईबी को निर्देश दिया है, कि कादर लोगों द्वारा दायर केस पर अंतिम निर्णय लेने तक, क्षेत्र से किसी भी पेड़ को न काटें।
अनाक्कायम परियोजना के अतिरिक्त, समुदाय को प्रस्तावित
163 मेगावाट के अथिरापल्ली जल-विद्युत परियोजना से खतरे का भी सामना करना पड़ रहा है,
जहां एक बड़ा बांध अथिरापिल्ली जल-प्रपातों (वाटरफॉल्स) में पानी के बहाव को रोक देगा।
कादर समुदायों द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव के अनुसार
– “ऐसी परियोजनाओं का स्वागत नहीं है, और हम अपने समुदाय वन अधिकार (सीएफआर) क्षेत्र
में इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन को अस्वीकार करते हैं। हम मांग करते हैं कि ऐसी कोई
भी परियोजना हमारे सीएफआर क्षेत्र में अभी या भविष्य में नहीं आए, क्योंकि वे हमारे
सीएफआर क्षेत्र को नुकसान पहुंचाते हैं और हम पर और उन वन संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव
डालते हैं, जिन पर हम निर्भर हैं।”
कादर कॉलोनी के प्रमुख, रमन बी. ने VillageSquare.in को बताया – “जो सुरंग वे बनाना चाहते हैं, वह 5 किमी लंबी है और इसके निर्माण भर से हमारा कीमती जंगल अस्थिर हो सकता है। हम केएसईबी को हमें विस्थापित करने और जंगल, पर्यावरण और हमारी आजीविका के लिए अपूर्णीय क्षति नहीं पहुँचाने देंगे।”
के. ए. शाजी तिरुवनंतपुरम में स्थित एक पत्रकार हैं। विचार
व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?