सामाजिक उद्यमी ने किया ग्रामीण आजीविका के अवसरों में सुधार
एक आकर्षक नौकरी छोड़कर खेती वाले इंजीनियर, एक कृषि आधारित उद्यम चलाते हैं, जिससे महिला किसानों को ग्रामीण उद्यमी बनने में मदद मिली
निर्बाध बिजली की आपूर्ति और रात के समय बिजली की कम दर, दो ऐसी चीजें हैं, जो हर किसान चाहता है। पुणे जिले के न्हवारे गाँव के गीताराम कदम ने इसे अपने तरीके से हासिल किया है। उन्होंने अपने प्रयासों से आकांक्षाओं को हकीकत में बदल दिया है और इस प्रक्रिया में वह एक अलग तरह के किसान बन गए हैं।
मैकेनिकल इंजीनियर, 49-वर्षीय कदम बताते हैं – “अनियमित बिजली सप्लाई, लोड शेडिंग और अक्सर एक ही फेज़ की बिजली मिलने के चलते, खेत की सिंचाई नियमित अंतराल पर न कर पाने के कारण, मैं पूरी तरह से निराश था।” उन्होंने पुणे-स्थित एक बहुराष्ट्रीय स्विच-गियर निर्माता के साथ काम किया, जब तक कि हाल में उन्होंने खेती करनी शुरू नहीं कर दी। “हालात ने मुझे मामला अपने हाथों में लेने पर मजबूर कर दिया, ताकि मैं नियमित पैदावार सुनिश्चित कर सकूं।”
कदम का गाँव न्हवारे, शिरूर तालुक के 117 गांवों में से एक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी कुल जनसंख्या 7,429 है। यहाँ के ज्यादातर गाँवों की तरह, यहाँ सालाना वर्षा 500 मिमी से भी कम होती है, जिसके कारण यह क्षेत्र शुष्क और अर्ध-शुष्क बन गया है। क्योंकि अनाज और दूसरी फसलों की खेती वर्षा आधारित है, इसलिए मानसून की बरसात खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
उगाई जाने वाली फसलें हैं- सरसों, मोती बाजरा, गन्ना, लाल चना, सोयाबीन और गेहूं। लेकिन कदम को आम, नारंगी, नींबू, प्याज, अमरूद, सहजन जैसी बागवानी फसलें और पालक, धनिया, मेथी, आदि जैसी पत्तेदार सब्जियाँ उगाना पसंद है।
नियमित बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, कदम ने जुलाई 2016 में, 5 एकड़ खेत वाले घर में, एक लाख रुपये की लागत का एक सौर-पैनल स्थापित कर लिया, जिसके साथ बाद में उन्होंने एक पवन-टरबाइन भी लगा लिया। “मैं एक ही तरह की नवीकरण-ऊर्जा के स्रोत पर निर्भर नहीं होना चाहता था और ऊर्जा का एक संकर मॉडल इस्तेमाल करना चाहता था। मुझे विश्वास था कि मैं उसकी कीमत तीन वर्षों के बिजली बिलों से पूरी कर लूँगा।”
स्थानीय रूप से निर्मित टर्बाइन
इस पवन टर्बाइन की विशेषता यह है, कि इसे छात्रों द्वारा बनाया गया था। इसे कदम द्वारा संचालित ग्रामीण तंत्रज्ञान संस्था (GTS) यानि ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास केंद्र और भारतीय शिक्षा संस्थान (IIE), पुणे के एक केंद्र, ‘विज्ञान आश्रम’ का सहयोग प्राप्त हुआ। दोनों गैर-सरकारी संगठन ग्रामीण सशक्तिकरण, कौशल विकास और उद्यमी तैयार करते हैं।
शुभम शेम्बड़े (24) ने VillageSquare.in को बताया – “हमारे 20 डिप्लोमा धारक, सनातक और सनातकोत्तर छात्रों के एक समूहने, जॉर्ज आयर्ज़ो के मार्गदर्शन में दो महीने तक इसपर काम किया। लेकिन तांबे की तारों और चुम्बकों के लिए, हमने कचरे या रिसाईकल की गई सामग्री का उपयोग किया। मैंने देवदार के पेड़ की लकड़ी से बने पंखों (ब्लेड) पर काम किया।”
पुदुचेरी-स्थित विकेंद्रीकृत ग्रामीण विद्युतीकरण पर काम करने वाली, ‘मिनवायु’ के संस्थापक जॉर्ज आयर्ज़ो ने VillageSquare.in को बताया – “हमने 3-सप्ताह की कार्यशाला में छात्रों के समूह के साथ टर्बाइन का निर्माण किया। यह ह्यू पिग्गॉट के एक मॉडल पर आधारित, एक खुला-श्रोत (open source) डिज़ाइन है। लेकिन न्हवारे के मामले में, हमने पानी का नल चलाने के लिए इसमें सुधार किया। यह सीधे 3-फेज़ वाले सबमर्सिबल पंप तक जाता है।”
20 मीटर लम्बी और 3 किलोवाट की पवनचक्की का जनरेटर भी असेम्बल किया गया था, जिससे उसकी लागत आधी हो गई। इसे जलरोधी बनाने के लिए इस पर एपोक्सी का लेप किया गया था। यह टेलीपोस्ट संतुलित करने वाले नियंत्रक से लैस था, जो हवा की गति और दिशा को नियंत्रित करता है।
नवीकरणीय ऊर्जा, खासतौर से पवन-सौर मिश्रित मॉडल के फ़ायदे बताते हुए कदम कहते हैं – “इसने मुझे ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के अलावा, बिजली की जरूरत के लिए राज्य पर मेरी निर्भरता से भी मुक्त किया है और मेरे कार्बन फुटप्रिंट को भी कम किया है। बिजली की उपयोगिता को बिजली की लाइनें बिछाने और बिजली के खंभे खड़े करने पर खर्च करने की जरूरत नहीं है और अंत में, मैं पानी निकालने के लिए बेहद प्रदूषण वाले डीजल जनरेटर से बचता हूं।”
ग्रामीण युवाओं का कौशल विकास
कदम न केवल लीक से हटकर एक किसान हैं, बल्कि एक सामाजिक उद्यमी भी हैं। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित, ‘रिसर्च पार्क फाउंडेशन’ के सीईओ, अरविंद शालिग्राम के अनुसार, उन्होंने ग्रामीण तंत्रज्ञान संस्था (GTS) में एक सफल और कारगर मॉडल विकसित किया है, जिसने ग्रामीण युवाओं का कौशल विकास करके और नए उद्यमी तैयार करके, उनका शहरों को पलायन उल्लेखनीय रूप से कम किया है।
वर्ष 2000 में, अपनी तीस साल से भी कम आयु में, कदम ने न्हवारे गांव में GTS की स्थापना की। केंद्र कौशल विकास पर बुनियादी प्रौद्योगिकी कोर्स प्रदान करता है, जिसमें तीन दिनों से लेकर छह महीने तक के, प्लंबिंग से लेकर वेल्डिंग, पोल्ट्री से लेकर फैब्रिकेशन, पानी की जाँच से लेकर बायोगैस प्लांट लगाने तक, विषय शामिल हैं।
250 किलोमीटर के दायरे के गाँवों और शहरी बस्तियों से, युवा लड़के और लड़कियां इस पाठ्यक्रमों का लाभ उठाते हैं। कदम ने VillageSquare.in को बताया – “महाराष्ट्र के ज्यादातर गाँवों की तरह, यहाँ भी पढ़े-लिखे लोग सरकारी नौकरी पाने की संभावनाएं तलाशते हैं। उनके अशिक्षित भाई-बहन मामूली काम करते हैं या बेहतर आजीविका की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करते हैं।”
कदम के कार्यों की सफलता के चलते, अपने अस्तित्व में आने के दो दशकों में, GTS ने ‘नेहरू युवा केंद्र संगठन’ (NYKS), पुणे विश्वविद्यालय और महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थानों से संबद्धता प्राप्त कर ली है।
पुणे जिले के नेहरू युवा केंद्र संगठन के उप युवा अधिकारी, यशवंत मानखेड़कर ने VillageSquare.in को बताया – “अपने काम शुरू करने के 20 साल में, युवाओं को अनेक प्रकार की ग्रामीण-आधारित तकनीकों में प्रशिक्षित करते हुए और स्वयं को एक ग्रामीण उद्यमी के रूप में स्थापित करते हुए, गीताराम राज्य के एक प्रमुख सामाजिक उद्यमी के रूप में उभरे हैं।”
महिला उद्यमी
2013 में, कदम ने केड़गाँव में एक फ़ूड-प्रोसेसिंग इकाई, ‘आनंदघना इंडस्ट्रीज’ की शुरुआत की। आनंदघना 12 तरह की सब्जी, फल और अनाज पाउडर बनाते हैं, जैसे कि निर्जलित लहसुन पाउडर, नींबू पाउडर, चुकंदर पाउडर, ज्वार के टुकड़े, आदि। इन वर्षों में, इसने पुणे और दूसरी जगहों पर ग्राहकों का एक बड़ा आधार तैयार किया है।
इसके अलावा उन्होंने, खादी और ग्रामोद्योग आयोग के साथ मिलकर, सुंदरबन फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर (SFPC) बनाया है, जिस तालमेल से ग्रामीण महिलाओं को लाभ पहुंचा है। यह 400 से अधिक महिला उद्यमियों के उत्थान में सहायक रहा है, जो 38 गांवों के किसानों से सब्जियाँ और फल इकट्ठा करती हैं।
उन्हें साफ करने और धूप में सुखाने के बाद, महिलाएं सब्जियों की नमी जांचती हैं, और चार तालुकों के कलस्टरों में जमा करती हैं। कलस्टरों से, सुखी सब्जियों को अंतिम प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के लिए ‘सुंदरबन एग्रो-फूड प्रोसेसिंग कंपनी को भेजा जाता है। उत्पादों की मार्केटिंग आनंदघना ब्रांड के अंतर्गत की जाती है।
प्रत्येक किसान कुदरती तकनीकों का पालन करने के लिए बाध्य है और मासिक किस्तों में उपलब्ध कराए गए सौर-ड्रायर (धूप की मदद से सुखाने वाला उपकरण) और नमी नापने के मीटर से लैस है। इस लिंकेज का ग्रामीण परिवारों की आजीविका पर भारी प्रभाव है।
महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी के कृषि प्रक्रिया इंजीनियरिंग विभाग के, कैलाश कांबले ने VillageSquare.in को बताया – “एक महिला किसान, जो पालक का गुच्छा 5 रुपये में बेचती थी, अब सफाई, ग्रेडिंग और सुखाने के बाद 50 रुपये पाती है। महिलाएं अब 12,000 से 15,000 रुपये तक कमा रही हैं।”
कदम का मानना है कि उत्पादक का मॉडल, जिसमें वह मूल्य-संवर्धन के माध्यम से एक उद्यमी बन जाता है, स्थानीय व्यवसायों द्वारा बनाई गई एक मार्केटिंग श्रृंखला के साथ, किसान को सब्सिडी-तंत्र के शिकंजे से मुक्त कर सकता है और ग्रामीण परिवारों की आजीविका में बढ़ोत्तरी कर सकता है।
हिरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत में किसान के रूप में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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