डेयरी सहकारी के कारण हुआ महिलाओं का सशक्तीकरण

पिथौरागढ़, उत्तराखंड

जो महिलाएं अपने घरों तक ही सीमित रहती थीं, स्व-सहायता समूह की सदस्य के रूप में डेयरी किसान बन गईं, जिससे एक आत्मनिर्भर सहकारी संस्था का गठन हुआ। इसके परिणामस्वरुप, उनका सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण हुआ है

समुद्र तल से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर, शून्य डिग्री से भी कम तापमान पर, पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट प्रशासनिक ब्लॉक के फुत्सिल गाँव में, इस समय दिसंबर की एक सुबह के 7 बजे हैं। पुष्पा देवी अपने घर से एक किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित, दुग्ध संग्रह केंद्र के लिए निकल चुकी हैं।

वह दूध के नमूने की वसा और दूसरे ठोस भाग (एसएनएफ) की जाँच करती हैं, कामधेनु सहकारी की लेखा पुस्तकों में उसकी जानकारी दर्ज करती हैं और फिर ख़रीदे हुए दूध की ब्लॉक मुख्यालय के लिए ढुलाई सुनिश्चित करती हैं।

यह पुष्पा देवी और कामधेनु सहकारी से जुड़े कई दूसरे लोगों के लिए एक आम सुबह है। इस सहकारी की कहानी ग्रामीण महिलाओं द्वारा डेयरी व्यवसाय चलाने, और एक स्वायत्त और आत्मनिर्भर संस्था बन जाने की है।

जागृति

हिमालयन ग्राम विकास समिति (HGVS) एक गैर-सरकारी संगठन है, जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 1992 से काम कर रहा है। इसने क्षेत्र में संस्था-निर्माण और ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह संगठन आजीविका, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जल एवं स्वच्छता, और शिक्षा के क्षेत्र में विकास सम्बन्धी प्रमुख मुद्दों पर सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से काम करता रहा है। ‘जाग रे पहाड़’ के अपने आदर्श वाक्य, जिसका अर्थ है पहाड़ों में जागृति, पर खरा उतरते हुए, एचजीवीएस ने सामुदायिक संस्थाओं की आत्मनिर्भरता की प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित किया है।

स्व-सहायता समूहों की क्षमता निर्माण के फलस्वरूप विकास के मुद्दे संबोधित किए गए हैं (फोटो – एचजीवीएस के सौजन्य से)

सीमित ग्रामीण आजीविकाओं और मजबूरी में पुरुषों के प्रवास के कारण महिलाओं की मेहनत बढ़ गई है। पुरुषों में मदिरा पान व्याप्त है, जिससे महिलाओं की स्थिति और ख़राब हो गई है। विभाजित, दुर्गम और ऊँची-नीची जमीन, जो पूरी तरह से वर्षा-आधारित है, के कारण खेती लाभहीन हो गई है। इसलिए, आय का एक वैकल्पिक स्रोत जरूरी हो जाता है। लेकिन, नए उद्यम शुरू करने के लिए पूंजी की जरूरत अभी भी एक बाधा है।

इस क्षेत्र की महिलाओं के बीच बचत और ऋण की सुविधा के लिए, एचजीवीएस ने स्व-सहायता समूह (SHG) शुरू किए। नियमों के सख्ती से पालन के कारण, बचत में तेजी आई और उसके बाद नए उद्यमों को शुरू करने के लिए अहसास पैदा हुआ। ज्यादातर महिलाओं ने SHG से ऋण लेकर मवेशी खरीदे।

कोथेरा गाँव की शांति देवी बताती हैं – “शुरु में महिलाएँ अधिकतर घरेलू काम में लगी रहती थीं। एचजीवीएस ने हमारे गांव में दो समूहों का गठन किया। हमने बैंक से जुड़े काम के लिए घर से बाहर निकलना शुरू किया। इसे देखकर, दूसरी महिलाओं ने भी SHG के गठन की मांग शुरू कर दी। आज हमारे गाँव में सात SHG हैं और महिलाओं की स्थिति पुरुषों के बराबर है।”

डेयरी सहकारी संस्था

मवेशियों की आबादी में वृद्धि से गाँवों में अतिरिक्त दूध की मात्रा बढ़ गई। नजदीक के गंगोलीहाट ब्लॉक के व्यापारी दूध खरीद की कीमत तय करने के मामले में बहुत अवसरवादी थे। दुर्गम इलाके का लाभ उठाते हुए, व्यापारी ढुलाई के लिए अतिरिक्त पैसा लेते थे।

अपनी मासिक बैठकों में, SHG की सदस्यों ने आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी बाधाओं के बारे में चर्चा की और दूध की बिक्री स्वयं करने का फैसला लिया। सदस्य HGVS के पास पहुंचीं, जिसने चार गाँवों की 14 SHG की सदस्यों को डेयरी सहकारी समिति बनाने के लिए संगठित किया।

समूहों की सदस्यों की बैठक में यह फैसला लिया गया, कि दूध की मार्केटिंग से जुड़े कामों के लिए एक आत्मनिर्भर सहकारी संस्था बनाई जाए। एक नौ सदस्यीय बोर्ड का चुनाव किया गया और कामधेनु स्वायत्त सहकारी समिति का गठन किया गया। सदस्यों के शेयरों की राशि जुटाई गई और 2009 में दूध का कारोबार शुरू किया गया।

अपनी बैठक के बाद यहाँ दिखाई पड़ रही महिलाओं ने, आपूर्ति श्रृंखला की अड़चनों को दूर करने के लिए एक डेयरी सहकारी समिति का गठन किया (फोटो – एचजीवीएस के सौजन्य से)

सहकारी ने 2013 में चाय का वितरण भी शुरू कर दिया। समिति पशुओं के नस्ल सुधार, चारा विकास और संतुलित पशु आहार पर भी काम करती रही है। वर्तमान में समिति की 214 सदस्य हैं, जिनका कुल कारोबार लगभग 4.8 करोड़ रुपये है।

फुत्सिल गांव की शोभा भट्ट कहती हैं – “जब हम SHG के गठन के बाद बैंकों में जाने लगे, तो लोग हम पर हँसते थे। वे कहते थे कि दूध बेचना हमारे पशुओं के लिए अशुभ होगा। यदि हम उस दिन रुक गए होते, तो हमें वह सम्मान और आर्थिक दर्जा प्राप्त नहीं होता, जो अब है।”

व्यापार और उससे आगे

हालाँकि देश भर में महिलाएँ घरेलू और कृषि कार्यों से जूझती हैं, फिर भी उन्हें फैसले लेने में सीमित प्रतिनिधित्व और बाजारों से कम सम्बन्ध रहने के कारण, दरकिनार कर दिया जाता है। महिलाओं की आत्मनिर्भरता के अपने व्यवस्थित सिद्धांतों के माध्यम से, कामधेनु सहकारी समिति महिलाओं को सशक्त बनाने में एक प्रमुख योगदान दे रही है।

सहकारी समिति के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसने अभी तक किसी भी एजेंसी से एक भी ऋण या अनुदान नहीं लिया है। इसका पूरा कामकाज अपने सदस्यों से इकठ्ठा की गई पूँजी पर चलता है। समिति ने मुनाफ़ा कमाने के अलावा, बहुत बड़ी सामाजिक पूंजी जुटाई है।

सहकारी समिति के कामकाज ने युवाओं और सदस्यों के लिए उच्च स्तर के संरक्षण के साथ स्थानीय रोजगार उत्पन्न किया है। उदाहरण के लिए, संग्रह केंद्र में दूध की खरीद के लिए सदस्यों को प्रोत्साहन-राशि के आधार पर नियुक्त किया जाता है। इससे दूसरी सीमाएं भी टूट रही हैं।

फुत्सिल गांव की फूलवंती देवी ने कहा – “दलित समुदाय के लोगों के लिए, ग्राम समूहों का हिस्सा बनना मुश्किल था। समूहों के गठन के बाद, जाति के आधार पर भेदभाव में कमी आई है। पहले घरेलू खर्चों पर भी पुरुषों का नियंत्रण रहता था। अब हमें खर्च और बचत की पूरी आजादी मिल गई है।”

सशक्त महिलाएं

सहकारी समिति के मुनाफ़े से, वंचित परिवारों की मदद होती है। गाँवों में धन का प्रवाह बढ़ा है और महिलाओं का खर्चों पर नियंत्रण के रूप में बदलाव स्पष्ट दिखाई देता है। इससे बच्चों की शिक्षा बेहतर हुई है, और सफाई और स्वच्छता के लिए खर्च में वृद्धि हुई है। महिलाएं अब ग्राम सभाओं में विकास सम्बन्धी दूसरे पहलुओं पर भी सवाल उठाती हैं।

एक चर्चा के दौरान यहाँ दिख रहे एक मजबूत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ सहकारी समिति के परिणामस्वरूप महिलाओं का आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण हुआ है (फोटो – एचजीवीएस के सौजन्य से)

 स्व-सहायता समूहों के गठन के बाद से, एचजीवीएस का ध्यान संस्थानों की आत्मनिर्भरता पर रहा है। मानदंड-तय करना, स्पष्ट रूप से परिभाषित नियमों, प्रभावी निगरानी और दस्तावेजीकरण ने समूह को स्वायत्त बनने में मदद की है। संस्थानों को न केवल आय सृजन पर, बल्कि पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों पर भी संवेदनशील बनाया गया।

पुष्पा देवी, शांति देवी, शोभा भट्ट, फूलवंती देवी और कई अन्य सदस्यों ने भले ही कठोर परिश्रम किया हो और अपने खर्चों के लिए पति या पुत्रों पर निर्भर रही हों। लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत आजादी हासिल करने के लिए, सामूहिक प्रयासों का जीवन जीने का विकल्प चुना। कामधेनु सहकारी की सफलता जेंडर-आधारित जागृति, सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास कर रही, लाखों महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है।

ध्रुव जोशी ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काम करते हैं। इससे पहले उन्होंने गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन में काम किया। वह इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद के पूर्व छात्र हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।