जीवन-कौशल सम्बन्धी शिक्षा आदिवासी लड़कियों को ज्ञान, आत्म-जागरूकता और निर्णय लेने की क्षमता के साथ सशक्त बनाती है, जिससे उन्हें सामाजिक रीति-रिवाजों और दबावों से ऊपर उठने में मदद मिलती है। इसके परिणामस्वरूप बाल विवाह में कमी आई है|
गजपति जिले के गुम्मा प्रशासनिक ब्लॉक के
केरंगा गाँव की सागरिका राइका (21), ओडिशा के एकीकृत जिला
हस्तक्षेप (इंटीग्रेटेड डिस्ट्रिक्ट इंटरवेंशन) कार्यक्रम में एक क्लस्टर समन्वयक
के रूप में काम करती हैं। वह पिछले चार वर्षों से किशोरियों और महिलाओं के
सशक्तिकरण के लिए कार्यरत हैं।
वह अपने माता-पिता द्वारा 16 साल की उम्र में उनका विवाह तय करने पर विरोध करने
के कारण समुदाय में लोकप्रिय हैं, क्योंकि लड़कियां जल्दी या
बाल विवाह जैसे सामाजिक नियमों के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। राइका
ऐसा कर पाई, क्योंकि उन्होंने जीवन कौशल शिक्षा प्राप्त की
थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जीवन-कौशल अनुकूल और सकारात्मक व्यवहार की वह क्षमताएं हैं, जिनसे व्यक्ति रोजमर्रा की जिंदगी में मांग और चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सकता है।
बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण
के लिए आवश्यक जीवन-कौशल में, निर्णय लेना, समस्या समाधान, रचनात्मक और गहन सोच, प्रभावी संवाद, आपसी संबंध, आत्म-जागरूकता,
सहानुभूति और तनाव से निपटना शामिल हैं।
ओडिशा में आदिवासी स्कूल के छात्रों को मिलने
वाले जीवन-कौशल प्रशिक्षण ने लड़कियों का सशक्तिकरण किया है, और बाल विवाह के आम चलन को कम किया है।
बाल विवाह
स्थानीय गैर-लाभकारी संगठन, पीपुल्स रूरल एजुकेशन मूवमेंट (PREM) की कार्यक्रम प्रबंधक, संजुक्ता त्रिपाठी ने बताया – “बाल विवाह परिवार और समुदाय के दबाव और इसके प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण होते हैं।”
PREM किशोर लड़कियों के लिए जीवन-कौशल शिक्षा के कार्यक्रम आयोजित करता है। त्रिपाठी ने VillageSquare.in को बताया – “जीवन-कौशल शिक्षा किशोरों को किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए जागरूक एवं सशक्त बनाती है।”
भारतीय कानून के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र में लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र में लड़के का विवाह, बाल विवाह है, जो एक दंडनीय अपराध है। संस्थाओं के एक वैश्विक गठबंधन,‘गर्ल्स नॉट ब्राइड्स’ (लड़कियां दुल्हन नहीं) के अनुसार, कानूनी प्रभावों के अलावा, बाल विवाह से लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अवसर सम्बन्धी अधिकारों का उल्लंघन होता है।
बालिकाओं को हिंसा के प्रति प्रस्तुत करने और गरीबी के चक्र में फंसाने के साथ-साथ, बाल विवाह संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से कम से कम छह की प्राप्ति में बाधक है।
सरकार की
पहल
अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति
(एससी) समुदायों में बाल विवाह के प्रचलन को ध्यान में रखकर, ओडिशा सरकार ने अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्ग कल्याण
विभाग के एसटी और एससी विभाग द्वारा संचालित, सभी आवासीय
विद्यालयों में जीवन कौशल शिक्षा को, एक शैक्षणिक अंग के रूप
में शामिल किया है।
सरकारी विभाग, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) और नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी में, राज्य भर के 1,670 स्कूलों में पढ़ रहे, 6,50,000 से अधिक छात्रों को जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करता है।
ओडिशा के आवासीय आदिवासी स्कूलों में, जीवन-कौशल शिक्षा के कार्यक्रम प्रबंधक, सुशांत कुमार पांडा ने villagesquare.in को बताया – “वैज्ञानिक रूप से तैयार किए गए इस कार्यक्रम के माध्यम से, 2015 के बाद से, हम किशोरावस्था के दौरान शारीरिक और ज्ञान सम्बन्धी विकास के बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं, और व्यक्तिगत स्वास्थ्य, व्यक्तित्व और लैंगिक मुद्दों से जुड़े मिथकों को तोड़ रहे हैं।”
लड़कियों के
लिए जागरूकता
सागरिका राइका ने बताया – “जीवन-कौशल शिक्षा के सत्रों में मैंने उन शारीरिक एवं
व्यावहारिक बदलावों के बारे में सीखा, जो किशोरावस्था के
अभिन्न अंग हैं, और यह कि उनसे निपटा कैसे जाए।’ हमें जल्दी शादी के संभावित परिणामों के बारे में भी जागरूक किया गया,
जिससे मुझे अपने माता-पिता द्वारा बनाई मेरी शादी की योजना को लेकर
राजी करने में मदद मिली।”
ज्यादातर मामलों में, जब विवाह की बात आती है, तो
किशोरों को दबाव का विरोध करना मुश्किल होता है। पांडा कहते हैं – “हम किशोरों में, खुद को समझने, अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाने, हर तरह के नकारात्मक
दबाव का विरोध करने और अपनी पूरी क्षमता से जीवन जीने के लिए आत्म-जागरूकता पैदा
करते हैं।”
केराबा गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल की छात्रा, मृदुस्मिता सबारा ने VillageSquare.in को बताया – “हमारा समुदाय हमें अलग-अलग तरह के मिथक और मान्यताएं सिखाता है, यह आशा करते हुए कि हम प्रचलित लैंगिक मानदंडों का पालन करें। हर शनिवार, एक घंटे की इन कक्षाओं में भाग लेने के बाद, हम ज्ञान के महत्व को समझते हैं।”
सशक्त
लड़कियां
रायगडा जिले के गुनूपुर ब्लॉक के केराबा
स्कूल की रैमनी गमांग और उनके सहपाठियों के अपने भविष्य के बारे में सपने हैं।
गमांग कहती हैं – “जीवन कौशल सत्र में हमारे
भाग के बाद, सपने लेना स्वाभाविक था, क्योंकि
हमें बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ने के लिए, जीवन से जुड़े
मुद्दों से निपटने की अपनी क्षमता और तरीकों का एहसास हुआ।”
स्कूल के छात्रावास की अधीक्षिका (मैट्रन)
उमारानी गौडा, जिन्होंने जीवन-कौशल पर
विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है ने बताया – “इस तरह
की शिक्षा ने जीवन के बारे में लड़कियों के विचारों को बदल दिया है। वे व्यक्तिगत
मुद्दों पर बात करने से कतराती नहीं हैं। अब वे अपने जीवन और भविष्य को प्रभावित
करने वाले मुद्दों से निपटने में सक्षम हैं।”
दूरगामी
प्रभाव
जीवन-कौशल शिक्षा का प्रभाव परिसर तक ही सीमित नहीं है। सब्यसाची राउत, जो भुवनेश्वर स्थित, कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (KISS) में जीवन-कौशल शिक्षा के प्रभारी है, के अनुसार, छात्रों द्वारा अपने गांवों में मित्रों और साथियों को शिक्षित करने का प्रभाव समुदाय पर भी पड़ता है।
एक आदिवासी लड़की और KISS में M.Sc. फिजिक्स की छात्रा, दीपांजलि प्रधान कहती हैं कि स्कूल छोड़ने वाले बच्चों और किशोरों के लिए, जीवन-कौशल प्रशिक्षण के अभाव में, अपने फैसले स्वयं लेना मुश्किल होता है। राउत ने VillageSquare.in को बताया – “छुट्टियों के दौरान, हम छात्रों के लिए प्रोजेक्ट तैयार करते हैं, ताकि वे संस्थान में प्राप्त किए अपने ज्ञान को समुदाय तक पहुंचा कर उनकी सहायता कर सकें।”
मृदुस्मिता सबारा कहती हैं – “मैं साओरा जनजाति से सम्बन्ध रखती हूं| जब मैं छुट्टियों में घर जाती हूं, तो मैं दोस्तों,
रिश्तेदारों और समुदाय के दूसरे सदस्यों के साथ अपने ज्ञान को साझा
करने की कोशिश करती हूं, और उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं
कि बाल विवाह को क्यों रोका जाना चाहिए।”
बाल विवाह
में कमी
पांडा के अनुसार, आदिवासी समुदायों के किशोरों में आत्म-जागरूकता पैदा
करके और लड़कियों को सपनों को संजोने में मदद करके, जीवन-कौशल
शिक्षा द्वारा, प्रमुख आदिवासी आबादी वाले जिलों के साथ-साथ
राज्य भर में बाल विवाह की संख्या को कम करने में सफलता मिली है। गुम्मा ब्लॉक में,
2016 के अंत तक, जीवन-कौशल शिक्षा की बदौलत
बाल विवाह लगभग शून्य पर पहुँच गए|
हालाँकि, मलकानगिरी, नबरंगपुर, मयूरभंज, कोरापुट और रायगडा के शीर्ष पांच आदिवासी बहुल जिलों के साथ, आदिवासी समुदायों में बाल विवाह अधिक प्रचलित हैं, लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, गैर-आदिवासी और उच्च वर्ग के समुदायों में भी यह प्रथा मौजूद है।
ऑक्सफैम (OXFAM) के साथ जेंडर विशेषज्ञ के रूप में काम करने वाली, रुक्मिणी
पांडा ने बताया – “यदि समुदायों में बाल विवाह समाप्त
करना है, तो जीवन-कौशल शिक्षा का सभी उच्च विद्यालयों तक
विस्तार करना होगा। हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में जेंडर सम्बन्धी शिक्षा होनी चाहिए;
और किशोरों एवं युवाओं में लैंगिक जागरूकता पैदा करने के लिए,
जीवन-कौशल शिक्षा जेंडर पर केंद्रित होनी चाहिए।”
नए प्रयास
एक्शनएड (ActionAid) की एक रिपोर्ट, ‘एलिमिनेटिंग चाइल्ड मैरिज इन इंडिया’ (भारत में बाल विवाह उन्मूलन) के अनुसार, बाल विवाह से होने वाले नकारात्मक परिणामों के बारे में जानकारी, छठी और उससे ऊपर की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए।
अक्टूबर 2019 में, ओडिशा सरकार ने 2030 तक
राज्य को बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए, एक पंच-वर्षीय कार्य
योजना और नए नियमों की घोषणा की। राज्य सरकार मुख्य बाल-विवाह निषेध अधिकारी
नियुक्त करेगी, जिसे उन अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू
करने का अधिकार होगा, जो अपने कार्यक्षेत्र में बाल विवाह
रोकने में विफल रहेंगे।
रुक्मिणी
पांडा ने बताया –
“क्योंकि ये रिवाज, सामाजिक मानदंडों,
लांछन और दूसरे कारणों से संचालित होते हैं, इसलिए
सजा इसका समाधान नहीं हो सकती। स्कूली छात्रों और सामुदाय के स्तर पर, शिक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता राज्य को बाल विवाह से मुक्त करेगा।”
बासुदेव महापात्रा भुवनेश्वर-स्थित पत्रकार हैं।
विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?