शिक्षा तक पहुँच से वंचित जनजातियों के लिए, विशेष रूप से आदिवासी बच्चों के लिए भुवनेश्वर में चल रहा एक आवासीय विद्यालय, शिक्षा प्रदान करता है, और उन्हें जीवन और जीविका सम्बन्धी कौशल से लैस करता है।
विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (पीवीटीजी)
से संबंधित डोंगरिया कोंध उस समय चर्चा में आए, जब उन्होंने नियामगिरि हिल्स (पहाड़ियों),
जहाँ वे रहते हैं, में बॉक्साइट खदान की योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि
वे खनन को रोकने में सफल हो गए, लेकिन उन्हें विकास का अभाव झेलना पड़ा। उनको अभी भी
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी कल्याण योजनाओं तक पहुंच
का अभाव है।
हालाँकि आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी आवासीय
विद्यालय हैं, लेकिन शिक्षा के अधिकार का लक्ष्य प्राप्त करने की चुनौतियों में, पर्याप्त
शिक्षक और बुनियादी सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की अनुपस्थिति और लड़कियों को पढ़ाई
के लिए प्रेरित करने के लिए पर्याप्त संख्या में महिला शिक्षकों का न होना, शामिल हैं।
समय के साथ, आदिवासियों ने अपने हितों, अधिकारों
और प्रावधानों को सुनिश्चित करने के लिए, शिक्षा के महत्व और फायदों को समझा है। अपने
बच्चों को शिक्षित करने की आदिवासियों की इच्छा, भुवनेश्वर स्थित एक आवासीय विद्यालय,
‘कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ द्वारा पूरी की जा रही है, जो शिक्षा के अलावा
उन्हें जीवन और कार्य-जीवन कौशल से लैस करता है।
जनजातियों के लिए स्कूल
ओडिशा में कलराबांका के शिक्षाविद अच्युत सामंत
ने, आदिवासी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए, 1993 में कलिंगा
इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (KISS) की स्थापना की। तब से यह भुवनेश्वर में एक आवासीय
विद्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
सामंत ने भुवनेश्वर में आदिवासी प्रवासी मजदूरों
को देखा था। क्योंकि वे अपने परिवारों के साथ प्रवास करते थे, उनके बच्चों की स्कूलों
तक पहुंच नहीं होती थी। उचित स्वास्थ्य देखभाल और संतुलित आहार के अभाव में, उन्होंने
उनकी स्थिति को दुखदायी पाया। उन्होंने प्रवासी मजदूरों को अपने बच्चों को कलिंगा इंस्टिट्यूट
भेजने के लिए प्रेरित किया, जहाँ छात्रों को सूखा राशन मुफ्त उपलब्ध कराया जा रहा था।
कलिंगा इंस्टिट्यूट शुरू में दिन के स्कूल के
रूप में काम करता था। जरूरत को देखते हुए, इसे एक आवासीय सुविधा बना दिया गया। सामंत
ने एक किराए के घर में 125 आदिवासी बच्चों के साथ इसकी शुरुआत की। उन्होंने इसे विशेष
रूप से आदिवासी बच्चों के लिए शुरू किया, क्योंकि ओडिशा में 62 अनुसूचित जनजाति और
13 पीवीटीजी (PVTG) हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले आदिवासी बच्चों में कोंध,
संथाल, डोंगरिया कोंध, कुटिया कोंध, बोंडा, दिदायी, परजा और सौरा शामिल हैं। पड़ोसी
और पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी बच्चों को भी स्कूल में दाखिला दिया जाता है। स्कूल
सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान करके, शैक्षिक असमानताओं को मिटाने की कोशिश करता है।
मातृभाषा के माध्यम से सीखना
शुरू में बच्चे अपनी मातृभाषा के माध्यम से
सीखते हैं। स्कूल में मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा (MTBMLE) के दृष्टिकोण का पालन
किया जाता है, जो अल्पसंख्यक भाषा के उपयोगकर्ताओं को शुरू में अपनी मातृभाषा के माध्यम
से पढ़ाकर, दूसरी भाषाओं तक ले जाने के लिए ‘पहली भाषा पहले’ के तरीके पर आधारित है।
संस्थान ने 13 जनजातीय भाषाओं में शिक्षा और
शैक्षणिक सामग्री विकसित की है। कक्षा एक में छात्र अपनी मातृभाषा में सीखते हैं। क्षेत्रीय
भाषा से परिचित होने के बाद, वे ओडिया में सीखना शुरू करते हैं। राज्य सरकार की शिक्षा
नीति के अनुसार, वे तीसरी कक्षा में अंग्रेजी सीखना शुरू कर देते हैं। शिक्षा के साथ-साथ
स्कूल, खेल और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर बराबर जोर देता है।
कौशल की पहचान
रवींद्र वडाका ने अंग्रेजी में कहा –
“शिक्षा हमारा ज्ञानवर्धन करती है।” वह डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय से
सम्बन्ध रखता है। “शिक्षा हमें अपनी क्षमता और कौशल समझने में मदद करती है।”
उनके बयान के प्रमाण के रूप में उनके पास कई पदक और ट्राफियां हैं।
कलिंग इंस्टीट्यूट के फिटनेस कोच, शुभकांत माल्या
ने रवींद्र वडाका को भारोत्तोलन (वेट लिफ्टिंग) के लिए पंजीकृत होने के लिए प्रेरित
किया। महीनों के कठोर प्रशिक्षण के बाद, रवींद्र वडाका पहली भारोत्तोलन प्रतियोगिता
में चौथे स्थान पर रहे। उन्होंने बताया – “यह एक सपने के सच होने जैसा था। यह पहली
बार था, जब मैंने इतने लोगों का सामना किया, और मैं थोड़ा तनाव में था।”
उनके भारोत्तोलन कौशल की सराहना के अलावा, शारीरिक
शिक्षा में मास्टर डिग्री हासिल करने वाला पहला डोंगरिया कोंध बनने के लिए भी समुदाय
रविंद्र वडाका का बहुत सम्मान करता है। उसे पूरा विश्वास है, वह भविष्य में भारोत्तोलन
में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा।
शैक्षिक उपलब्धि
डोंगरिया लड़कियाँ भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर
रही हैं। फुलकी वडाका, मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाली पहली डोंगरिया
लड़की है। वह कहती है – “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने जीवन में उच्च शिक्षा
प्राप्त करूंगी। KISS ने मुझे यह अवसर दिया। मेरे कई दोस्त अब मेरी तरह पढ़ना चाहते
हैं। वे अपने जीविका-क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं और मैं उन्हें
प्रेरित करके और उनकी मदद करके खुश हूं।”
अंग्रेजी में अपने प्रवाह के लिए प्रसिद्ध,
मुक्तेश्वर वडाका पहला डोंगरिया है, जिसने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) पास की
है। वह एक सिविल सेवक बनने की इच्छा रखता है। “वर्षों तक, मुख्यधारा के लोगों की यह
धारणा थी कि हम आदिवासी लोग केवल जंगल में रहने के लिए हैं। मानो हम सफेदपोश नौकरियों
के योग्य नहीं हैं। मैं इस मिथक को तोड़ना चाहता हूं।”
महामारी के बीच देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान,
मुक्तेश्वर वडाका ने अपने गांव खंबेसी में, अन्य डोंगरिया बच्चों को मुफ्त ट्यूशन दी।
मुक्तेश्वर वडाका ने कलिंगा की जिन बातों की सबसे ज्यादा सराहना की, उनमें से एक इंस्टिट्यूट
की स्वदेशी भाषाओं की विविधता है।
मुक्तेश्वर कहते हैं – “पहले मैं डोंगरिया
भाषा ही बोलता था, लेकिन KISS में मैंने कोंध, संथाली, मुंडा और देशिया जैसी दूसरी
स्वदेशी भाषाएं सीखना भी शुरू कर दिया। विभिन्न समुदायों के सैकड़ों आदिवासी बच्चों
का मिलना, कलिंगा इंस्टिट्यूट में स्वदेशी भाषा विविधता को बढ़ावा देने का एक अनोखा
अवसर प्रदान करता है।
शिक्षा का अधिकार
22 नवंबर को, ओडिशा सरकार ने घोषणा की, कि अनुसूचित
क्षेत्रों में 15 और गैर-अनुसूचित क्षेत्रों में 20 से कम छात्रों वाले प्राथमिक स्कूलों
को नजदीक के संस्थानों में विलय कर दिया जाएगा। अनुमान है कि 14,339 प्राथमिक और उच्च
प्राथमिक विद्यालय बंद हो सकते हैं।
ओडिशा के ‘शिक्षा का अधिकार मंच’ के अनुसार,
कालाहांडी, कंधमाल, कोरापुट, मलकानगिरी, नबरंगपुर, रायगढ़ और मयूरभंज जिलों के 56 आदिवासी
उप-योजना ब्लॉकों में, लगभग 25% स्कूलों को 7 मार्च, 2020 तक बंद करने के लिए चुना
गया था। पहले, नीतिगत कारणों से, पांच से कम छात्रों की उपस्थिति वाले 155 स्कूलों
को बंद कर दिया गया था।
एक सौरा आदिवासी विकास कार्यकर्ता और वर्तमान
में रायगढ़ में कलिंगा इंस्टिट्यूट के जिला समन्वयक, रोनित साबर ने बताया – “सरकार
को अनुसूचित क्षेत्र में कम उपस्थिति के लिए जिम्मेदार, विभिन्न कारणों को समझने के
लिए एक व्यापक सर्वेक्षण करना चाहिए।”
सस्ती और समावेशी शिक्षा तक पहुँच में स्वदेशी
समुदायों को आने वाली चुनौतियों के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों का निर्माण,
वंचित समुदायों के लिए आशा का श्रोत है। साबर ने कहा – “माता-पिता, समुदाय के
नेताओं, पंचायती राज संस्थान के सदस्यों और स्थानीय नागरिक समाज जैसे कई हितधारकों
के साथ तालमेल, आदिवासी शिक्षा के बहुआयामी मुद्दों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।”
कलिंगा इंस्टिट्यूट की परियोजना अधिकारी, अदिरूपा
मुखर्जी कहती हैं – “हम 30,000 से ज्यादा स्वदेशी छात्रों को मुफ्त शिक्षा, आवास,
भोजन और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हैं। हमारा अनुभव कहता है, कि पहुँच और अवसर मिलने
पर, ये छात्र क्या हासिल कर सकते हैं इसकी कोई सीमा नहीं है।”
अभिजीत मोहांटी दिल्ली स्थित डेवलपमेंट प्रोफेशनल हैं। उन्होंने भारत और कैमरून में स्वदेशी समुदायों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है। विचार व्यक्तिगत हैं। उनका ईमेल है : abhijitmohanty10@yahoo.com
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?