कभी पीने के पानी के बारहमासी श्रोत रहे प्राकृतिक झरने, जिन्हें झिरिया कहा जाता है, गायब होने लगे। पुनर्जीवित और संरक्षित झरनों के पानी को अब छाना और नलों के माध्यम से वितरित किया जाता है
मध्यप्रदेश
के डिंडोरी जिले के कपोती गाँव की महिलाएँ नियमित रूप से, पहाड़ी जंगलों वाले इलाकों
से निकलने वाले झिरियाओं यानि उथले पानी के झरनों से, पानी लाने के लिए कम से कम एक
किमी पैदल चलती थीं। डिंडोरी की बैगा जनजातियाँ पीने के पानी के लिए झिरिया पर निर्भर
हैं।
नागपुर-स्थित
संगठन, राष्ट्रीय महिला, बाल और युवा विकास संस्थान (NIWCYD) की विमल दुबे ने बताया
– “यहाँ गाँव कभी-कभी अधिक ऊँचाई पर होते हैं और झरने नीचे पाए जाते हैं। इस प्रकार
पानी लाना मुश्किल था, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए।” ग्रामीण पानी को ऐसे
ही पीते थे।
कपोती
गांव के ओम प्रकाश माहेश्वरी का कहना था – “हममें से कई लोग इन झरनों का पानी ऐसे ही
पी लेने से बीमार पड़ जाते थे, खासकर मानसून के दौरान। कुछ तो मर भी गए। लेकिन अब पुनर्जीवित
झिरिया से पानी, 2018 में बने टैंक में फ़िल्टर होता है, और नलों के माध्यम से वितरित
किया जाता है।”
कपोती
में अब घरेलू जरूरतो के लिए आसानी से पानी की सुविधा के लिए 16 नल लगे हैं। यह कायापलट
2017 में सतही पानी के झरनों के संरक्षण के साथ हुआ। कपोती के अलावा, डिंडोरी के चार
दूसरे गांवों में झिरिया-संरक्षण किया गया है।
लुप्त
होते झरने
कुछ
दशक पहले तक, ज्यादातर झरने साल भर बहते थे और ग्रामीणों की पीने के पानी की जरूरतों
को मुख्य रूप से पूरा करते थे। लेकिन भूमि उपयोग में बदलाव और वनों की कटाई ने इस क्षेत्र
की सूक्ष्म जलवायु को प्रभावित किया और झरने सूखने लगे।
वाटरएड
में कार्यक्रम समन्वयक, अमर प्रकाश के अनुसार, पहाड़ी और चट्टानी इलाकों में झरने प्राकृतिक
रूप से होते हैं, लेकिन ये या तो लुप्त हो रहे हैं या अब बारहमासी नहीं रहे। गर्मियों
में नल भी सूख जाते हैं।
झिरियाओं का पुनरुद्धार
झरने क्योंकि सतह के पानी के रूप में होते हैं, इसलिए भूजल पर दबाव को कम करने
के लिए उनका संरक्षण महत्वपूर्ण है। प्रकाश ने कहा – “जब हम चाहते थे कि लोग पीने
के लिए झरने के पानी का इस्तेमाल करें, इसलिए ख़त्म होते हुए झिरियाओं को पुनर्जीवित
करने के लिए, झरनों के रिचार्ज ज़ोन पर सतत रूप से ध्यान केंद्रित किया गया।”
प्रकाश ने VillageSquare.in को बताया – “डिंडोरी के कई गांवों में, ग्रामवासी पानी के लिए झरनों और कुओं पर निर्भर हैं। क्योंकि ये श्रोत उथले, यानि कम गहरे हैं, इसलिए रसायनों से दूषित होने का कोई डर नहीं है। कभी कभार, जीवाणु संक्रमण हो सकता है, लेकिन इसका उपचार आसानी से किया जा सकता है।
NIWCYD
के राजीव भार्गव ने कहा कि झिरियाओं का संरक्षण, झरना-प्रबंधन कार्यक्रम का हिस्सा
है, और यह जलवायु-खेती की अवधारणा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा – “क्योंकि इलाका
साल के वनों से भरा है, तो बहुत हद तक पेड़ भी इन जल श्रोतों को बचाने में मदद करते
हैं।”
कपोती
गाँव के ओम प्रकाश माहेश्वरी ने बताया – “एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन,
वाटरएड के विशेषज्ञों ने हमें झिरिया की सुरक्षा के महत्व और उन्हें हर समय स्वच्छ
और प्रदूषण मुक्त रखने की आवश्यकता के बारे में बताया।”
झिरिया संरक्षण हालांकि 2013 में शुरू किया गया था, लेकिन इस पर काम केवल
2017 में शुरू हो पाया। राष्ट्रीय महिला, बाल और युवा विकास संस्थान की मदद से, वाटरएड
ने कपोती, कनारी, खपरी पाणी, जालदा और कथरिया गांवों में झरनों के पुनरुद्धार का काम
किया।
डिंडोरी में मनरेगा परियोजना अधिकारी, ऋषिराज चादर ने VillageSquare.in को बताया – “सरकार की कपिल धारा योजना के अंतर्गत, ग्रामीण अपनी जमीन में कुएँ खोद सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत, कभी-कभी झिरियाओं के चौड़ा करने का काम भी किया जाता है।”
पाइपों से आपूर्ति
प्रकाश का कहना था – “सुरक्षा के अलावा, दूरदराज की बस्तियों तक जल वितरण पर
भी ध्यान केंद्रित किया गया था। इस प्रकार हमने पाइपों और नलों के माध्यम से वितरण
के लिए, पानी की टंकियों और भंडारण स्थानों पर जोर दिया।”
पाइप-जल
योजना एक व्यापक नमूना है और जल श्रोतों के साथ-साथ भंडारण स्थानों के प्रति भी सावधानी
बरतती है, जहां से पाइपों के माध्यम से गांवों को पानी की आपूर्ति की जा सकती है। जल
जीवन मिशन के हिस्से के रूप में, ग्रामीण क्षेत्रों में पाइपों द्वारा पानी पर जोर
दिया गया है।
सरकार पाइप द्वारा जल आपूर्ति के लिए बोरवेल पर निर्भर है। लेकिन डिंडोरी जिले में भूजल स्तर गहरा है। दुबे ने VillageSquare.in को बताया – “यह अच्छा है कि सरकार इस बात पर सहमत है, कि झरने जल आपूर्ति का एक अच्छा श्रोत हैं और झिरिया को वैकल्पिक श्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।”
ग्रामीणों
को पाइप से पानी की आपूर्ति होने के साथ, झिरिया के पानी को छानना (फिल्ट्रेशन) आवश्यक
हो गया है। टंकियों में ‘स्लो सैंड (रेत से धीमा) फिल्टर’ तकनीक के इस्तेमाल से, पानी
को एक तार की जाली, अलग-अलग आकार की बजरी, रेत और लकड़ी के कोयले में से फ़िल्टर किया
जाता है।
सामुदायिक स्वामित्व
कपोती के निवासियों ने पानी की टंकी के निर्माण के लिए, मजदूरी के रूप में अपनी
सेवाएं प्रदान की। टंकी और नलों के रखरखाव और मरम्मत के लिए, ग्रामीण स्तर पर एक
16-सदस्यीय जल-संरक्षण समिति का गठन किया गया है।
कपोती
और दूसरे गांवों में, संपत्ति स्वयं ग्रामीणों के नियंत्रण में है। सेराझार गाँव के
सुनाराम नवासिया बैगा ने कहा कि NIWCYD ने झरनों के पानी की गुणवत्ता का परीक्षण किया।
सेराझार की 15-सदस्यीय जल-संरक्षण समिति तीन महीनों में एक बार टंकियों की सफाई सुनिश्चित
करती है।
प्रत्येक
परिवार रखरखाव के लिए 50 रुपये देता है, जिससे मासिक औसत राशि लगभग 5,000 रुपये होती
है, जिसे ग्राम कोष के रूप में रखा जाता है। समिति नियमित रूप से खातों का रखरखाव करती
है। कोष सिर्फ जल संसाधनों के रखरखाव के लिए है और ग्रामीण इसे किसी दूसरे काम के लिए
खर्च नहीं करते हैं।
मक्का और मंडुआ (small millet) की खेती करने वाले, नवासिया बैगा ने VillageSquare.in को बताया – “हमें रखरखाव पर और कभी-कभी मरम्मत पर थोड़ी सी राशि खर्च करनी पड़ती है। लेकिन फायदा यह है कि हमें साल भर पानी मिलता है।”
दीपान्विता
गीता नियोगी दिल्ली-स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल:
deepanwita.t@gmail.com
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