लॉकडाउन के दौरान, भुखमरी के कगार पर पहुँच चुके किसानों की ‘वल्नरेबल मैपिंग’ के माध्यम से पहचान की गई। बेहतर गुणवत्ता वाले बीज और बेहतर तरीकों के लिए प्रशिक्षण के कारण, वे बेहतर पैदावार ले रहे हैं
ढोंडली
पंचायत के नवाडीह गाँव के,
बिनोद कुमार राउत (44) एक पारंपरिक किसान हैं।
वह और उनका सात सदस्यीय परिवार दुमका जिले के जामा प्रशासनिक ब्लॉक के अपने गाँव
में खेती हैं। राउत और उसका बेटा गुजारे के लिए, अपनी ज़मीन
में खेती करने के अलावा मजदूरी करते हैं।
महामारी
के कारण हुए लॉकडाउन के समय,
गाँव के ज्यादातर लोगों तरह, राउत के परिवार
को भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वहां कोई मजदूरी भी नहीं मिल रही थी।
यातायात सुविधाओं की कमी के कारण, वे अपने खेत से फसल नहीं
ले सकते थे। बाजार भी बंद थे, जिससे राउत को बहुत नुकसान
हुआ।
कोरोनोवायरस
के बारे में और ग्रामीणों को इसके फैलने से रोकने के लिए जो सावधानियां बरतनी थीं, उनके बारे में
जागरूकता पैदा करने के लिए, उन गाँवों का दौरा करने वाले कुछ
गैर-सरकारी संगठनों ने किसानों की दुर्दशा पर ध्यान दिया। इन संगठनों के हस्तक्षेप
से ग्रामीणों को लॉकडाउन से निपटने में मदद मिली।
उधार के पैसे पर जीवन
इस मुश्किल समय में अपने परिवार के गुजारे के लिए, राउत को स्थानीय साहूकारों से पैसा उधार लेने के लिए मजबूर
होना पड़ा। अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसके पास पास यही
एकमात्र साधन था। फिर भी, उन्हें और उनके परिवार को अपने
भोजन की मात्रा और संख्या को कम करना पड़ा, जिसका उनके
स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा।
राउत
की 112 डिसमिल (1.1 एकड़) जमीन में से 79 डिसमिल (0.79 एकड़) खेती के लायक है। इस उम्मीद के
साथ, कि उसकी फसलों के कटाई के मौसम तक यातायात फिर से शुरू
हो जाएगा, उसने खरीफ के मौसम की बुआई के लिए बीज खरीदने के
लिए पैसा उधार लिया।
जामा
प्रशासनिक ब्लॉक के तापसी गांव के अशोक पंडित (47) उन किसानों में से एक हैं,
जो भुखमरी के कगार पर पहुँच गए थे। उनकी 62-डिसमिल
जमीन में खेती, उनके छह-सदस्यीय परिवार के अस्तित्व और
बच्चों की पढ़ाई की जरूरतों के लिए मुश्किल से पर्याप्त थी। सरकारी सहायता शायद ही
कभी उनके या उनके गाँव तक पहुँची।
पंडित
का सबसे बड़ा बेटा बेहतर नौकरी की तलाश में दिल्ली चला गया, ताकि वह अपने
परिवार की मदद कर सके। लेकिन लॉकडाउन की शुरुआत में उसे अपने गाँव लौटने के लिए
मजबूर होना पड़ा। क्योंकि गहन लॉकडाउन के पहले चरण में कोई परिवहन नहीं था,
इसलिए उन्हें लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ा।
लगातार पैदल चलने से उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ा, तो परिवहन के जो भी साधन मिले, घर तक
पहुंचने के लिए उसने लिये। इसके परिणामस्वरूप उन्हें लगभग 17,000 रुपये की अपनी बचत का सारा पैसा खर्च करना
पड़ा। जब वह खाली हाथ घर लौटा, तो पंडित के पास अपना घर चलाने
और अपनी खरीफ फसल के लिए बीज खरीदने के लिए पैसा उधार लेने के अलावा कोई रास्ता
नहीं था।
कमजोर/असुरक्षित
लोगों की पहचान
दुमका जिले के जामा ब्लॉक में स्थित, एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), लोक प्रेरणा ने
महामारी के दौरान जिले के गाँवों में काम करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे संक्रमण का
डर फैला, लोक प्रेरणा ने COVID-19 पर
जागरूकता पैदा करने और ग्रामीणों को स्वास्थ्य, स्वच्छता और
सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी देने के लिए काम किया।
जरूरतमंद
किसानों की दुर्दशा को देखते हुए,
लोक प्रेरणा ने मदद करने का फैसला किया। इसके सदस्यों ने ‘वल्नेरेबिलिटी मैपिंग’ से उन किसानों की पहचान की,
जो सबसे कमजोर थे और जिनके परिवार लगभग भूखों मर रहे थे। रांची
स्थित एक विकास संगठन, वीबी नेट फाउंडेशन ने कमजोर लोगों की
पहचान करने के लिए लोक प्रेरणा के साथ भागीदारी की।
पैदावार
में वृद्धि
स्थानीय
प्रशासन के सहयोग से,
लोक प्रेरणा ने गेहूं और दालों के साथ-साथ, आलू,
गोभी, टमाटर, मटर जैसी
बागवानी फसलों की सब्जियों के बीज उपलब्ध कराए। उन्होंने किसानों के दरवाजे पर
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और जैविक खाद मुफ़्त पहुंचाई।
स्टैंडर्ड
चार्टर्ड बैंक से वित्तीय सहायता और दिल्ली-स्थित विकास संगठन, ट्रांसफॉर्म
रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) से तकनीकी सहायता से, संगठनों ने मिट्टी के उपचार के लिए एक फफूंदीनाशक, ‘ट्राइकोडर्मा
विराइड’ के साथ, सर्वोत्तम किस्मों के
बीज प्रदान किए।
खेती
से बेहतर परिणामों के लिए,
किसानों को छह सब्जियों की फसल उगाने के तरीकों के पैकेज के रूप में
प्रशिक्षण प्रदान किया गया। यह सुनिश्चित करने के लिए, कि
किसान बेहतर पैदावार पाने के लिए सुझाए गए तरीकों का प्रयोग करें, टीम ने नियमित रूप से दौरे किए।
राउत
परिणाम से खुश हैं। जो नए तरीके वे अपना रहे हैं, उनके परिणाम बेहतर फसलों और बेहतर
पैदावार के रूप में दिखाई देते हैं। सहयोग प्राप्त करने वाले राउत और पंडित जैसे
किसान खुश हैं, कि मदद के लिए बढ़े हाथ उन्हें भुखमरी के कगार
से निकाल कर, बेहतर उपज और आमदनी तक लाए हैं।
बिरेन कुमार हेम्बोर्म सामुदायिक सामाजिक संगठन, ‘लोक प्रेरणा’ देवघर, दुमका,
झारखंड के साथ काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं| ईमेल: birendrakrhembrom84@gmail.com
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हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?