धान उगाने के पारम्परिक तरीकों ने किसानों को गरीबी में धकेल दिया गया, क्योंकि पैदावार कम होती थी। एसआरआई (SRI) विधि को अपनाने से उन्हें सामान्य पैदावार से दोगुने से अधिक फसल पाने में मदद मिली है
मोधूपुर असम के बक्सा जिले में पूर्वी
हिमालय की तलहटी के पास बसा एक सुदूर गाँव है। ग्रामवासी ज्यादातर आदिवासी समुदाय
से हैं, जो ब्रिटिश शासन में पलायन कर गए थे और
चाय बागान में मजदूरी करते थे।
समय के साथ, वे चाय बागान के आसपास बस गए और स्थानीय लोगों के साथ अच्छी तरह घुल मिल
गए। आखिरकार वे चाय बागान के काम से आगे बढ़े और प्रतिष्ठित सरकारी नौकरियों से
लेकर दिहाड़ी मजदूरों तक की अलग-अलग आजीविकाओं को चुनने लगे।
काफी संख्या में ग्रामीणों ने शहरों में और
आस-पास के स्थानों पर कारखाने के मजदूरों, गार्डों और कुशल श्रमिकों
के रूप में प्रवास किया। हालांकि ज्यादातर ग्रामीण आजीविका के लिए खेती करते हैं।
इनमें से ज्यादातर सीमांत किसान हैं।
वे अपने उपभोग के लिए धान और मौसमी
सब्जियों की खेती करते हैं और बचा हुआ माल बेच देते हैं। उनकी खेती मॉनसून और
डोंगों पर बेहद निर्भर है| डोंग, गाँवों के बीच से बहती नदियों के पानी को मोड़ कर लाई गई नहरें हैं,
जो शुष्क मौसम में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होती हैं।
ये नदियाँ, और उनके साथ ही डोंग, पाँच से ज्यादा महीनों
(नवंबर-मार्च) में सूख जाती हैं, जिसके कारण नवंबर और अप्रैल
के बीच होने वाली रबी की खेती ख़राब होती है। इसलिए ग्रामीण केवल मानसून के मौसम
में, पारम्परिक तरीके से धान उगाते हैं। SRI विधि अपनाने से उन्हें अपनी पैदावार दोगुनी करने में मदद मिली है।
पारम्परिक
खेती
मोधूपुर निवासी फसलें उगाने के लिए
पारम्परिक पद्धति का पालन करते रहे हैं। वे जुताई के लिए बैलों का और खाद के लिए
गाय के गोबर का उपयोग करते हैं। वे अपने खेत में कीटनाशकों या किसी कीट नियंत्रण
पद्धति का उपयोग नहीं करते, क्योंकि तने में घुसने
वाले और पकते धान के दाने बर्बाद करने वाले कीटों से उनकी फसलों को बड़ा नुकसान
नहीं होता।
यह मई-जून 2020 की बात है, जब एक विकास-संगठन, सेवन सिस्टर्स डेवलपमेंट असिस्टेंस (SeSTA) ने
मोधूपुर के ग्रामवासियों को सिस्टम ऑफ़ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI) पद्धति से धान की खेती करने और घर के बने कीटनाशकों और खाद के उपयोग का
प्रशिक्षण देना शुरू किया।
ग्राम संगठन के कार्यकारी सदस्यों द्वारा
पंचायत के गरीबी से प्रभावित इलाकों में से एक के रूप में पहचाने जाने के बाद, मोधूपुर को चुना गया था। SeSTA ने
एसआरआई पद्धति शुरू करने का फैसला किया, जिससे सामग्री पर
न्यूनतम लागत के साथ, पैदावार बढ़कर कम से कम दोगुना हो जाती
है।
एसआरआई विधि
में प्रशिक्षण
SRI विधि में एक एकड़ जमीन
में केवल 3-4 किलोग्राम धान के बीज का उपयोग किया जाता है,
जबकि पारम्परिक विधि में नर्सरी के लिए, लगभग 15-20
किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। ग्रामीणों को विश्वास नहीं हो रहा
था, कि 3-4 किलोग्राम बीज से पारम्परिक
विधि के मुकाबले दोगुनी पैदावार हो सकती है।
गाँव की चार बस्तियों में, बीज छंटाई, बीज उपचार, नर्सरी तैयारी, अंकुर रोपण, लाइन
बुवाई, निराई, खाद/ कीटनाशक लगाना और
जल प्रबंधन के अलावा, जीवमृत, वर्मीकम्पोस्ट,
वर्मी वॉश, अग्निअस्त्र और हाँडीदवा जैसे
जैविक खाद और कीटनाशक तैयार करने के विषयों पर कई प्रशिक्षण प्रदान किए गए।
मोधूपुर में लगभग 350 परिवार हैं, जिनमें 90%
से अधिक लोग खेती से जुड़े हैं। शुरुआत में लगभग 250 ग्रामवासियों ने प्रशिक्षण में भाग लिया, लेकिन
उनमें से कुछ छोड़ गए और उन्होंने प्रशिक्षण पूरा नहीं किया। छोड़ जाने का मुख्य
कारण इस पद्यति के प्रदर्शन का अभाव था। नजदीक कोई एसआरआई खेत नहीं था और लॉकडाउन
के कारण ग्रामवासियों को दूसरे स्थलों पर नहीं ले जाया जा सकता था।
SRI धान की खेती पूरे गांव
के लिए एक नई अवधारणा थी और इसलिए वे इसके परिणाम के बारे में उलझन में थे और इसे
अपनाना जोखिम भरा पा रहे था। पहले से ही लॉकडाउन और इसके प्रभाव से परेशान,
वे कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहते थे। आशंकाओं के चलते, SRI पद्धति अपनाने के इच्छुक परिवारों की संख्या घटकर लगभग 50 रह गई।
एसआरआई की
खेती
तालाबंदी के हालात में, ग्रामवासियों के पास नकदी नहीं थी और वे बीज नहीं
खरीद सकते थे। इसलिए प्रतिभागी किसानों को बीज वितरित किए गए। फसल के मौसम के शुरू
में, किसान असरिता केरकेट्टा ने मजाक में कहा –
“SeSTA द्वारा प्रशिक्षण प्रदान करने तक, मुझे
पता नहीं था कि एसआरआई क्या है। अब मैंने अपनी जमीन खरीफ में अपने नए भाई,
SeSTA को दान कर दी है, या तो इसकी पैदावार
दोगुनी हो जाएगी या आधी, भगवान ही संभालेगा।”
केरकेट्टा शुरु में हिचक रही थी। वह और
उनके पति अपनी 1.5 एकड़ जमीन में हर साल,
जून से अक्टूबर के खरीफ मौसम में धान की खेती करते थे। लेकिन 2020
में उन्होंने SRI विधि से 0.7 एकड़ में खरीफ का धान बोया। मेहनत रंग लाई, और पिछले
साल 0.7 एकड़ भूमि में 7.2 क्विंटल उपज
के मुकाबले SRI विधि से उन्हें 16 क्विंटल
धान मिला।
कटाई के समय, धान से लदे हरेभरे धान के गुच्छों को देखकर, केरकेट्टा
ने कहा – “मैंने सोचा था कि इस साल मेरी धान की फसल बर्बाद
हो जाएगी, क्योंकि मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक अंकुर 40
से 50 पौधे पैदा कर सकता है। काश मैंने अपनी
पूरी जमीन में एसआरआई पद्धति से खेती की होती। अगले साल मैं निश्चित रूप से एसआरआई
धान की खेती के लिए अपनी पूरी जमीन का इस्तेमाल करूंगी।”
लाभ की फसल
जिन परिवारों ने पहली बार SRI विधि के उपयोग से धान की खेती की, उनकी पैदावार में कम से कम 40% की वृद्धि हुई।
मोधूपुर गाँव की अरनिबिल बस्ती के रॉबिन लकड़ा ने कहा – “अगले साल मैं अपनी पूरी जमीन का इस्तेमाल एसआरआई विधि से धान की खेती के
लिए करूंगा, भले ही इसमें ज्यादा मेहनत करनी पड़े। मैं एक
सीमान्त किसान हूं और खेती ही है, जिसमें मुझे अपनी ऊर्जा
देने की जरूरत है।”
किसान अब अपनी खाद और कीटनाशक बनाना जारी
रखे हुए हैं और इसे अपनी सब्जी की फसल में भी इस्तेमाल करते हैं। कुछ महिलाओं ने
जैविक कीटनाशकों का उपयोग अपने किचन गार्डन में करना शुरू कर दिया है, जिससे उन्हें माहूँ (एफिड्स) और दूसरे कीड़ों को
नियंत्रित करने में मदद मिली। कुछ ने अपने पशुओं के संक्रमित घावों में भी इस्तेमाल
किया और देखा कि कीट मरकर गिर रहे हैं।
मोधूपुर गाँव की नंबर-1 मोधूपुर बस्ती के SRI धान की
खेती करने वाले, गुलपी टेटे अब पड़ोस के गाँवों को
वर्मीकम्पोस्ट बेच रहे हैं। उत्पादन के शुरुआती चरणों में भी, वह एक महीने में 2000 रुपये कमा पाते हैं।
गुलपी टेटे कहते हैं – “मैंने
खरीफ के एसआरआई धान में जीवामृत और वर्मीकम्पोस्ट लगाया और परिणाम बेहद अच्छे थे।
लोगों ने इसके बारे में सुना और अब वे इसे मुझसे खरीद रहे हैं। अगले साल पूरा गाँव
एसआरआई धान की खेती के लिए तैयार हो जाएगा।”
बरहुंखा
मुशाहारी SeSTA में एक एग्जीक्यूटिव
हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: Barhu148@gmail.com
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
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