शतायु अग्रणी महिला किसान को प्रदान किया गया पद्म श्री सम्मान
कम उम्र से ही एक व्यावहारिक किसान, अनपढ़ पप्पम्माल अपने खेत में और वैज्ञानिक चर्चाओं में समान रूप से सहज रही हैं और टिकाऊ और आधुनिक खेती के तरीकों की पक्षधर हैं।
26 जनवरी को, मीडिया के लोग कोयम्बटूर जिले के पश्चिमी दायरे में स्थित रमणीय गाँव थेक्कमपट्टी में इकठ्ठा हुए। वे थेक्कमपट्टी की जानी मानी महिला किसान, 105 वर्षीय पप्पम्माल का साक्षात्कार करने आए थे।
पप्पम्माल सरकार द्वारा घोषित नागरिक पुरस्कार, पद्मश्री प्राप्तकर्ताओं में से एक थी। मीडिया के आने से कुछ घंटे पहले, वह अपने खेत में केले की फसल में पानी दे रही थी। जब उनके 50-वर्षीय पोते, आर. बालू ने उन्हें पुरस्कार और मीडिया की मौजूदगी के बारे में बताया, तो शुरू में उन्हें विश्वास नहीं हुआ।
जब वह मीडिया से उनके सवालों का जवाब देने के लिए मिलीं, तो उनकी साफ़ आवाज और उनका सीधा बैठना उनकी उम्र को नकार रहा था। लेकिन गालों और माथे की गहरी झुर्रियों को छोड़कर, यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वह 1916 में जन्मी एक शतायु व्यक्ति थी।
सरकार ने उन्हें प्रेरणाश्रोत महिला किसान होने और कृषि में महिलाओं को बढ़ावा देने में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। वह विशेष रूप से, महिलाओं को विस्तार कार्यक्रमों के लिए संगठित करने और आधुनिक तकनीकों और खेती के नए तरीकों को अपनाने के बावजूद, एक कट्टर जैविक किसान होने के नाते, अपनी सामाजिक व्यवहार कुशलता के लिए प्रसिद्ध थीं।
प्रारंभिक वर्ष
अपने शुरुआती वर्षों के बारे में, पप्पम्माल की याद धुंधली पड़ गई थी। “हमें आराम करने या खेलने के लिए शायद ही समय मिलता था। हम लड़कियों को सभी चरणों में काम करना पड़ता था – जैसे कि जुताई, बुवाई, सिंचाई, कटाई और कटाई के बाद के घास-काटने, पिसाई जैसे काम, इत्यादि।”
पप्पम्माल ने VillageSquare.in को बताया – “शादी के बाद, घर के और खेत में काम मिलाकर जिम्मेदारियाँ दोगुनी हो गई। लेकिन जीवन का यह तरीका महिलाओं को सहन करना पड़ता था। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। हमने शायद ही कभी अच्छा खाना खाया हो। चावल केवल त्यौहार के समय पकाया जाता था।”
लेकिन 1950 के दशक के आखिर से उनकी यादें स्पष्ट हैं, जब उसके जीवन की दिशा में एक बड़ा मोड़ आया। उनका कहना था – “क्योंकि मेरी कोई संतान नहीं थी, इसलिए मैंने अपनी बहन की शादी अपने पति से कर दी।” उन्होंने अपनी दादी के साथ थेकमपट्टी में जीवन की नई शुरुआत की, क्योंकि जब वह बहुत छोटी थी, तब उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी।
पुरुषों की दुनिया
थेकमपट्टी में एक चाय की दुकान शुरू करने से, उसे बढ़ाकर किरयाना दुकान में बदलने और 2.5 एकड़ जमीन खरीदने तक, पप्पम्माल का लगातार विकास हुआ। हालांकि नीलगिरी पहाड़ों से बहने वाली बारहमासी भवानी नदी उसके खेत से लगभग 2 किमी दूर थी, लेकिन उसके पास अपने खेत की सिंचाई के लिए कोई साधन नहीं था।
इसलिए उन्होंने उत्तर-पूर्वी मानसून के समय बाजरा, दलहन और चने जैसी वर्षा-आधारित फसलें उगाई। पिछले दस वर्षों में पारम्परिक वर्षा-आधारित फसलों के अलावा, सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत केले की खेती कर रही हैं।
उन दिनों में, महिलाओं द्वारा खेती सुनने में नहीं आता था। अब भी आधिकारिक आंकड़े कृषि कार्यों और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की वास्तविक हिस्सेदारी का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। ऑक्सफैम की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 80% कृषि कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। लेकिन उनके पास केवल 13% भूमि है।
लगभग 60-80% भोजन ग्रामीण महिलाओं द्वारा पैदा किया जाता है। फिर भी उन्हें किसानों के रूप में नहीं पहचाना जाता और पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में उन्हें परिवार या पति की जमीन में हिस्सा नहीं मिलता है। अपने नाम पर भूमि न होने के कारण, महिलाओं को बैंक, बीमा, सहकारी समितियों और सरकारी योजनाओं के संस्थागत सहयोग से वंचित रहना पड़ता है।
यह तथ्य, कि पप्पम्माल को एक दुकान शुरू करनी पड़ी और अपनी जमीन के लिए काम करना पड़ा, इस ओर इशारा करते हैं, कि उन्हें न तो पारिवारिक भूमि मिली और न ही अपने पति की जमीन से हिस्सा मिला। फिर भी पप्पम्माल ने खुद को भाग्य के भरोसे छोड़ देने वाली रूढ़िवादी ग्रामीण महिला से अलग कर लिया।
बाद में वह 7.5 एकड़ और जमीन खरीदने में सक्षम हुई। उनकी दत्तक पुत्रियों में से एक, कमला (68), जो एक सेवानिवृत्त अध्यापिका हैं और खेत में हाथ बंटाती हैं, ने VillageSquare.in को बताया – “उन्होंने अपनी बड़ी बहन की चार बेटियों को 7.5 एकड़ ज़मीन दे दी, जिन्हें उन्होंने गोद लिया था और पढ़ाया था।”
सार्वजनिक जीवन
वह कहती हैं – “यह वह समय था, जब मैं एक राजनीतिक पार्टी की सदस्य बनी और 1962 में पंचायत वार्ड सदस्य के रूप में स्थानीय निकाय चुनाव जीता और बाद में पंचायत की उपाध्यक्ष बन गई।”
1983 से, पप्पम्माल के सार्वजनिक जीवन में एक और बड़ा बदलाव आया, जब वे कोयंबटूर जिले में ‘अविनाशीलिंगम इंस्टीट्यूट ऑफ होम साइंस फॉर विमेन’ के तत्वावधान में चलाए जा रहे, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में शामिल हो कर एक अग्रणी किसान और “खेती में महिलाओं” का प्रतीक बन गई।
KVK अनुसंधान के लिए खेत स्तर के प्रशिक्षण और विस्तार का कार्य करती है। यह स्थानीय किसानों के आर्थिक सामर्थ्य के आधार पर, स्थान-विशेष के लिए उपयुक्त टेक्नोलॉजी और फसलों की पहचान का काम भी करती है।
कृषि वैज्ञानिक
वरिष्ठ वैज्ञानिक और KVK की जिला प्रभारी, कुमारावडिवेल कहती हैं – “उन्होंने बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त किया और तत्काल ही KVK की स्थानीय प्रबंधन समिति (LMC) में एक नेता बन गई। अपने जन्मजात सांगठनिक कौशल के साथ, उन्होंने कृषि विस्तार गतिविधियों में दूसरी महिलाओं को जुटाना शुरू कर दिया।”
आगे चलकर, LMC एक वैज्ञानिक सलाहकार समिति (SAC) बन गई और पप्पम्माल उसकी एक सदस्य बन गई। एक ऐसे व्यक्ति के लिए, जो स्वीकार करता है कि उसने कभी स्कूल में कदम नहीं रखा, SAC सदस्य बनकर एक व्यावहारिक कृषि वैज्ञानिक के रूप में अपनी क्षमता बढ़ाई और अपना विचार-विमर्श विशेषज्ञों तक पहुँचाया।
अविनाशीलिंगम इंस्टीट्यूट ऑफ होम साइंस फॉर विमेन के विस्तार केंद्र की प्रमुख सदस्य के रूप में, और कोयम्बटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) की विभिन्न समितियों की सदस्य के रूप में, उन्होंने प्रयोगशाला-से-खेत (लैब-टू-फार्म) सम्बन्धी कई प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह साथी महिला किसानों में नई पहलों को शुरुआती स्तर पर अपनाने और बढ़ावा देने वाली महिला बन गई।
मॉडल खेत
कुमारावडिवेल ने VillageSquare.in को बताया – “थेक्कमपट्टी में उनका खेत, गृह विज्ञान और कृषि के छात्रों के लिए एक आदर्श खेत के रूप में उभरा और उन्होंने अपने गाँव में रहने के छात्रों के कार्यक्रमों में उनकी मेजबानी की। उन्होंने KVK के अंतर्गत, अपने गांव में महिला किसानों का पहला स्वयं सहायता समूह भी बनाया।
उन्होंने कहा – “सामूहिक पहल के समय, उनका नेतृत्व सामने आया। 2007 में उन्होंने अन्य किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करके, गाँव की अन्न-भंडार योजना को सफल बनाया। वर्ष 2008 में, 92 साल की उम्र में, प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, आधुनिक कृषि मशीनरी के इस्तेमाल में अपने कौशल का प्रदर्शन किया।”
लगभग आठ साल पहले, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री वी सी शुक्ला कोयंबटूर आए, तो उन्होंने पप्पम्माल के बारे में सुना और उनके खेत का दौरा किया। उन्होंने उनके काम के बारे में पूछने में एक घंटे से अधिक का समय बिताया। एक बार उन्होंने पंजाब के 80 किसानों की मेजबानी की और उन्हें अपने खेत में उगाई गई चीजों से पकाया भोजन खिलाया।
पप्पम्माल ने बताया – “TNAU के प्रोफेसर मेरे लिए भाइयों की तरह थे और मेरे 13 कुलपतियों के साथ संबंध रहे। उन्होंने मुझे आमंत्रित करने का एक भी अवसर नहीं गंवाया, चाहे वह कृषि प्रशिक्षण कार्यशालाएं हों, एक्सपोज़र टूर हों या विश्वविद्यालय में वार्षिक किसान दिवस समारोह हो। इन सभी अवसरों पर उन्होंने दूसरी महिला किसानों की भागीदारी सुनिश्चित की।”
टिकाऊ खेती
जैविक खेती में अपनी भागीदारी के बारे में पप्पम्माल ने कहा – “रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के लिए मेरा अपना डर और नापसंदगी थी। जब देश में रासायनिक सामग्रियाँ पेश की गई, तो मैंने कुदरती तरीकों का इस्तेमाल जारी रखा, जो मैंने अपने पिता के खेत में सीखा था। मैंने जैविक खेती के किसी विशेष सिद्धांत का पालन नहीं किया या किसी विशेषज्ञ द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था।”
बड़ी उम्र में उनके स्वास्थ्य और सक्रियता के रहस्य के बारे में, उनके पोते बालू ने कहा कि वह केले के पत्ते पर परोसा गया केवल गर्म भोजन खाती हैं। बालू ने कहा – “पांच साल पहले, जब वह कोयंबटूर की महिला किसानों का प्रतिनिधित्व करने दिल्ली गई थीं, तो वे अपने साथ केले के पत्ते ले गई और विमान में और सम्मेलन में लंच के समय उनका इस्तेमाल किया।”
थेक्कमपट्टी निवासी गीता नागलक्ष्मी, जो पप्पम्माल को अपना मार्गदर्शक मानती हैं और उनके साथ दिल्ली गई थीं, ने VillageSquare.in को बताया – “सम्मेलन में उन्होंने केले के पत्ते पर खाने के स्वास्थ्य लाभों और पर्यावरण के अनुकूल होने के बारे में बताया, क्योंकि यह आसानी से विघटित (डिकम्पोज) हो जाता है।”
पप्पम्माल कहती हैं – “किसी भी क्षेत्र में एक या एक से ज्यादा किसान समूह होने चाहियें, इससे मात्रा का लाभ मिलता है और फसल का सौदा करने की क्षमता प्रदान करता है। अन्यथा जैविक खेती का सफल होना मुश्किल है, क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर किसानों को एक अच्छी कीमत मिलना मुश्किल होगा।”
इस समय शतायु, पद्मश्री पुरस्कार के लिए, उन्हें सम्मानित करने के लिए आयोजित कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। वे प्रत्येक मीटिंग में कहती हैं – “महिलाओं को खेत, घर और सामाजिक संस्थाओं के फैसलों में भाग लेना चाहिए, केवल तब पूरे समुदाय का भला होगा।”
जॉर्ज राजासेकरन तमिलनाडु के सेलम स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: gr47sekaran@yahoo.com
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