जिला प्रशासन ने आदिवासियों को कटकी जलप्रपात (वाटरफॉल) देखने आने वाले पर्यटकों से टोल वसूलने की अनुमति दी है। इस धन से टोल समिति, जरूरतमंदों की सहायता के अलावा, गाँव और झरनों में सुधार करती है
पांच साल पहले विशाखापत्तनम जिले के अधिकारियों ने, पांच गांवों की ग्राम सभाओं को, अरकू घाटी के पास की बोर्रा पंचायत की सीमा में प्रवेश करने वाले वाहनों से, कटकी में टोल वसूलने के लिए नाका बनाने की अनुमति दी।
पूर्वी घाटों पर स्थित और ओडिशा की सीमा पर, अरकू घाटी एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है, जो पर्यटकों के झुंडों को आकर्षित करता है। यह घाटी 50 फीट ऊंचे कटकी झरनों, लाखों साल पुराने चूना-पत्थर
से समृद्ध बोर्रा गुफाओं, सदाबहार अनंतगिरी और डुमरीगुड़ा
झरनों सहित बहुत से दर्शनीय स्थलों का घर है।
जिला प्रशासन के फैसले ने उन लोगों के लिए
एक प्रकार की जीत हासिल की, जो जनजातियों के भारतीय
संविधान द्वारा गारंटीशुदा उन अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं, जिनकी प्रवाह नहीं की जाती थी। इस साल अधिकारियों ने ग्राम सभाओं को एक और
टोल-नाका बनाने की अनुमति दी।
आदिवासी
पलायन
विशाखापत्तनम जिले में 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल
आबादी लगभग 42.9 लाख है। लगभग 14.4% के
साथ, जनजातियों की कुल आबादी का करीब 6.18 लाख है। जिले के ज्यादातर आदिवासी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है और
कर्ज, अशिक्षा, कुपोषण और शोषण जैसी
समस्याओं का सामना करती है।
टोल गेट का प्रबंधन करने वाली ग्राम सभाएं, जिले की 13 जनजातियों में से एक
नूका डोरा (मुखा डोरा के नाम से भी जानी जाती हैं) समुदाय से सम्बन्ध रखती हैं।
एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी के एक अधिकारी के अनुसार, नूका
डोरा आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 16,000 ही है। वे तेलुगु
या आदिवासी ओडिया बोलते हैं।
कृषि एक महत्वपूर्ण गतिविधि होने के कारण, आदिवासी धान, बाजरा, अनाज, दलहन, तिलहन और सब्जियों
की कई किस्में उगाते हैं। बहुत से लोग छोटे-मोटे काम की तलाश में थोड़े समय के लिए
विशाखापत्तनम, अनाकापल्ले और तिरुपति जैसे शहरी केंद्रों में
पलायन करते हैं।
एक गैर-सरकारी संगठन, ‘समता’ के कार्यकारी निदेशक,
रवि रेब्बाप्रगदा ने बताया – “क्योंकि गाँवों
में आजीविका के ज्यादा अवसर नहीं हैं, लोग रोजगार के लिए
पलायन करते हैं। वास्तव में, विशाखापत्तनम में काम करने वाले
ज्यादातर प्रवासी या तो अराकू घाटी से हैं या पड़ोसी राज्यों के आदिवासी इलाकों से
हैं।”
झरना मालिक
आदिवासियों के लिए झरने का मालिक होना कोई आसान काम नहीं रहा है। ग्रामवासियों ने 2009 में एक टोल-नाका स्थापित किया था। जिला प्रशासन ने तुरंत यह कहते हुए इसे बंद कर दिया, कि केवल राज्य द्वारा संचालित एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (ITDA) को पर्यटक स्थलों के प्रबंधन का अधिकार है।
ऐसा जुलाई 1997 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हुआ, जिसे
‘समता जजमेंट’ के रूप में जाना जाता है,
क्योंकि याचिका ‘समता’ द्वारा
दायर की गई थी। यह ऐतिहासिक फैसला जनजातियों के भूमि संसाधन अधिकारों को मान्यता
देता है।
इसमें व्याख्या की गई है कि अनुसूचित
क्षेत्रों में सरकारी भूमि, वन भूमि और आदिवासी भूमि
गैर-आदिवासियों या निजी उद्योगों को, भले ही खनन कार्य हों,
पट्टे पर नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह संविधान
की पांचवीं अनुसूची के विपरीत था।
सहयोगी
प्रशासन
रेब्बाप्रगदा के अनुसार, ग्रामीणों द्वारा किए गए कई प्रतिवेदनों के बाद,
जिला उप-कलेक्टर आदिवासी अधिकारों के प्रति आश्वस्त हो गए। उन्होंने
ग्रामीणों को टोल-नाका स्थापित करने की अनुमति दे दी। लेकिन तब तक नहीं, जब तक कि ग्रामीणों ने यह तर्क नहीं दिया कि झरने संविधान की अनुसूची-V
के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्र में स्थित थे।
रेब्बाप्रगदा ने VillageSquare.in को बताया – “क्योंकि झरना पट्टे या निजी जमीन पर पड़ता था, इसलिए झरने सहित क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभा का स्वामित्व था।” उन्होंने आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने में मदद की।
आखिरकार वर्ष 2016 में जिला अधिकारियों ने ग्रामीणों को एक टोल-नाका बनाने और घाटी में प्रवेश करने वाले वाहनों से शुल्क वसूल करने की अनुमति दी। ITDA ने प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया और झरना विकसित करने के लिए समिति गठित करने में मदद की।
ITDA पडेरू के परियोजना अधिकारी, वेंकटेश्वर सालिजामाला ने VillageSquare.in को बताया – “हमने महसूस किया कि ग्राम पंचायतों की तरह, स्थानीय निकाय को पर्यटकों के आने का लाभ मिलना चाहिए, न कि किसी और को। हमने उनका सशक्तिकरण किया, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है और वे स्थानीय पर्यावरण के लिए भी संवेदनशील हैं।”
विकास समिति
बोर्रा पंचायत में 10 गाँव हैं। लेकिन 10 सदस्यीय
कटकी जलप्रपात विकास समिति (KWDC) जो घाटी में प्रवेश करने
वाले वाहनों का प्रबंधन और शुल्क इकठ्ठा करती है, में केवल 500
की कुल आबादी वाले कटकी, डेकापुरम, कुंतियासिमिडी, बोर्रा और बल्लूपट्टा नाम के पाँच
गाँवों का प्रतिनिधित्व है।
कटकी जलप्रपात विकास समिति (KWDC) के अध्यक्ष, मोहन नूकाडोरा (32) ने VillageSquare.in को बताया – “नवम्बर में शुरू होकर मई तक चलने वाले पर्यटन सीजन में, हमें टोल-नाके से गुजरने वाले वाहनों की एक अच्छी संख्या मिलती है।”
किसी एक दिन एक गाँव से एक, तीन व्यक्ति टोल-नाके पर तैनात होते हैं। उनका दिन
सुबह 10 बजे शुरू होकर शाम 5 बजे
समाप्त होता है।
नूकाडोरा, जिन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, कहते हैं –
“टोल-नाके पर काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रति दिन 100
रुपये मिलते हैं और ऐसा 10 दिन चलता है,
जब दूसरा व्यक्ति उसकी जगह आ जाता है। हमने यह व्यवस्था अपनाई है
ताकि पारदर्शिता रहे और प्रत्येक पुरुष निवासी को टोल-नाके से कमाने का अवसर मिले।”
KWDC में एक अध्यक्ष,
एक सचिव और एक कोषाध्यक्ष सहित 10 सदस्य होते
हैं। इसका कार्यकाल पांच साल होता है। हालांकि टोल-नाका शुल्क उप-कलेक्टर द्वारा
निर्धारित किया जाता है, लेकिन इसे एकत्रित करने और यह तय
करने का काम कि इसे खर्च कैसे किया जाए, समिति करती है।
सामुदायिक
लाभ
समिति के सचिव प्रसाद वंथाला (32) ने VillageSquare.in को बताया – “जहाँ चार पहिया वाहन को 40 रुपये का भुगतान करना पड़ता है, मोटरसाइकिल से 10 रुपये वसूल किए जाते हैं। हमने जिला अधिकारियों को प्रस्ताव दिया है कि शुल्क की वसूली प्रति वाहन की बजाए प्रति व्यक्ति की जाए, जैसा कि ज्यादातर पर्यटन स्थलों पर आम है। हमें अनुमति का इंतजार है।”
समिति टोल-नाके से होने वाली कमाई का इस्तेमाल सड़कों की मरम्मत, सार्वजनिक शौचालयों के रखरखाव, ग्राम विकास कार्यों और कभी-कभी ग्रामवासियों को उनके चिकित्सा और शिक्षा सम्बन्धी बिलों के भुगतान में मदद के लिए करती है।
वास्तव में, टोल-नाके की उगाही ने राजस्व के एक टिकाऊ स्रोत की शुरुआत की है और पांच ग्राम सभाओं में आर्थिक स्वायत्तता में मदद की है। वर्ष 2018-19 में टोल-द्वार से 2.3 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। समिति ने रेलिंग और सीढ़ियां लगाने पर 38,000 रुपये खर्च किए।
वंथाला कहते हैं – “हमने सार्वजनिक शौचालय के निर्माण पर 8,000 रुपये खर्च किए। हम इसके रखरखाव पर भी खर्च करते हैं। हमने दो-एक छात्रों
की पढ़ाई की फीस भरने के अलावा, चार परिवारों की
चिकित्सा-इमरजेंसी के लिए भुगतान किया।”
साल 2019 में, जब कोर्रा रामाराव का बेटे का गिरने से पैर टूट गया, तब समिति ने उसके इलाज का खर्च उठाया। इसी तरह, जब
गेम्मेला चिम्माया की गर्भवती पत्नी को अस्पताल ले जाना पड़ा, तो समिति ने ही एम्बुलेंस के लिए भुगतान किया था।
लॉकडाउन के कारण 2019-20 में टोल-नाके से होने वाली आय में भारी गिरावट आई और यह सिर्फ 2 लाख रुपये रह गई। लॉकडाउन के महीनों में, जिला प्रशासन से राहत सामग्री के लिए इंतजार करने के बजाय, समिति ने पहल की और अपने धन का उपयोग घटक गांवों के निवासियों को मुफ्त सब्जियां और खाना पकाने का तेल वितरित करने के लिए किया।
समिति के एक सदस्य, कोर्रा मोहन (30) ने कहा – “हमें सुनकरामेट्टा की ओर एक और टोल-नाका बनाने की अनुमति मिली है, जिसका मतलब है कि विकास गतिविधियों के लिए अधिक धनराशि।”
हिरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित एक पत्रकार हैं। वह
सप्ताहांत में एक किसान के रूप में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: hirenbose@gmail.com
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?