सुब्बुरामन, जिन्हें विभिन्न पर्यावरण-अनुकूल स्वच्छता समाधानों को सफलतापूर्वक स्थापित करने के अलावा, भारत के पहले सामुदायिक पर्यावरण-अनुकूल (इको-सान) शौचालय के निर्माण का श्रेय दिया जाता है, को पद्मश्री से नवाज़ा गया
त्रिची के नाम से पुकारे जाने वाले तिरुचिरापल्ली जिले के थुरैयुर प्रशासनिक ब्लॉक के पगलवाडी गांव का सरकारी प्राथमिक स्कूल को SATO पैन शौचालय पर अभिमान है। LIXIL का एक उत्पाद, SATO नाम ‘सुरक्षित शौचालयों’ से लिया गया है।
पैन में एक साधारण मशीन एवं पानी की सील होने के कारण, इन शौचालयों को केवल 500 मिलीलीटर (आधा लीटर) पानी की जरूरत होती है। पानी की सील शौचालय की गंध से मुक्त रखती है, जिस कारण यह स्वच्छ रहती है। तमिलनाडु में, विशेष रूप से त्रिची और पेरम्बलूर और कृष्णागिरी जैसे आसपास के जिलों में बहुत से विद्यालय हैं।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 4.2 अरब लोगों को सुरक्षित स्वच्छता सेवाओं का अभाव है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 67.3 करोड़ लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। हालाँकि भारत से संबंधित आंकड़े निर्मित शौचालयों की संख्या के मामले में अच्छी प्रगति दर्शाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। बहुत से शौचालय इस्तेमाल नहीं होते, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में, जिसका एक कारण पानी की कमी है।
हालाँकि, त्रिची के मुसीरी प्रशासनिक ब्लॉक को, भारत के सभी गाँवों और कस्बों को खुले शौच से मुक्त (ODF) बनाने के अभियान से बहुत पहले, सम्पूर्ण स्वच्छता के लिए तमिलनाडु सरकार का पुरस्कार मिला। मुसीरी को मिली इस मान्यता का श्रेय एम. सुब्बुरामन को जाता है।
सुब्बुरामन त्रिची स्थित एक विकास संगठन, SCOPE (सोसाइटी फ़ॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइज़ेशन एंड पीपुल्स एजुकेशन) के संस्थापक निदेशक हैं। SCOPE के जल, सफाई और स्वच्छता (WASH) के क्षेत्र में किए गए काम की बदौलत, सुब्बुरामन को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री प्राप्त हुआ।
बेहतर स्वच्छता की ओर
सुब्बुरामन ने 1986 में SCOPE की शुरुआत की। शुरुआत में SCOPE का ध्यान ग्रामीण विकास, खासकर ग्रामीणों की आजीविका बढ़ाने में मदद करने पर था। जीवन में सुधार और बेहतर स्वच्छता के हिस्से के रूप में, इनके गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने शौचालयों का निर्माण भी किया।
सुब्बुरामन याद करते हुए कहते हैं – “विभिन्न हस्तक्षेपों के कारण अधिक कमाई के बावजूद, ग्रामीणों के जीवन में कोई स्पष्ट दिखने वाला बदलाव नहीं हुआ। स्वास्थ्य सुविधाओं पर उनका ज्यादा खर्च हो रहा था।” यह तब हुआ, कि उन्होंने स्वच्छता में सुधार पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू किया।”
क्योंकि वे गाँव, जिनमें SCOPE काम कर रहा था कावेरी नदी के किनारे हैं, वहां का भूजल स्तर ऊँचा है। भूजल के दूषित हो जाने की आशंका को देखते हुए, सुब्बुरामन ने फ्लश वाले शौचालयों के निर्माण नकार दिया, और वैकल्पिक समाधान के बारे में विचार किया।
स्वच्छता समाधान की तलाश
उनकी तलाश के दौरान, एक सिविल सर्वेंट (अब सेवानिवृत्त) शांता शीला नायर, जिन्होंने तमिलनाडु में वर्षा जल संचयन शुरू करने और WASH की दूसरी पहलों के साथ-साथ ग्रामीण जल आपूर्ति के सुधार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, ने एक कार्यशाला की व्यवस्था की।
सुब्बुरामन ने VillageSquare.in को बताया – “बेल्जियम के पॉल कैलवर्ट, जो पर्यावरण-परक स्वच्छता को बढ़ावा देते रहे हैं, ने प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया। मैंने उच्च भूजल स्तर और चट्टानी क्षेत्र में शौचालयों के निर्माण के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त किया।
जब सुब्बुरामन और उनकी टीम ने स्वच्छता अभियान के लिए गाँवों का दौरा किया, तो गाँव के लोगों ने रुचि नहीं दिखाई। सुब्बुरामन याद करते हैं – “ग्रामवासी पूछते, कि जब उन्हें ठीक से पीने का पानी नहीं मिलता, तो वे शौचालय का निर्माण कैसे कर सकते हैं।” कैल्वर्ट ने पर्यावरण-परक स्वच्छता शौचालयों, जिन्हें इको-सान के रूप में जाना जाता है, के बारे में विस्तार से बताया कि कैसे यह एक बेहतरीन समाधान है।
इको-सान शौचालय
इको-सान (पर्यावरण-परक) शौचालयों में नीचे दो चैम्बर के साथ, पैन जमीनी स्तर से ऊपर उठा होता है। इस्तेमाल के बाद, पानी बिलकुल उपयोग नहीं होता, बल्कि राख या बुरादा छिड़का जाता है, जिससे खाद बनाने की एक आसान प्रक्रिया में मदद मिलती है। सफाई में इस्तेमाल हुआ पानी, बालू और कैना के पौधों की क्यारी में से छनते हुए, पौधों में अलग से मोड़ दिया जाता है।
SCOPE ने वर्ष 2000 में मुसीरी ब्लॉक के कालियापालयम गाँव में अपना पहला इको-सान शौचालय बनाया। मंगलम, जिसके घर में यह बनाया गया था, याद करती हैं कि कैसे उसे और उसके परिवार के सदस्यों को अब शौचादि के लिए, पौ फटे (भोर के समय) जागना नहीं पड़ता।
जब पहला चैंबर खोला गया, शांता शीला नायर मौजूद थीं। मंगलम याद करती हैं – “उसमें कोई गंध नहीं थी। यह सिर्फ मिट्टी की तरह महक रहा था।” नायर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा – “मैडम ने यह दिखाने के लिए कि यह बढ़िया खाद थी, इसे बिना हिचकिचाहट के अपने हाथ से छुआ।”
मंगलम अपने बगीचे में खाद का उपयोग जारी रखे हैं और जोर देती हैं कि उनके केले के पौधे इसके कारण ज्यादा बड़े होते हैं। मंगलम का अनुसरण करते हुए, ज्यादातर ग्रामवासियों ने ईको-सान शौचालयों का निर्माण किया, क्योंकि वे गंध-रहित, किफायती और कम से कम पानी का उपयोग करने वाले हैं। मंगलम की तरह ही, दूसरी महिलाओं के लिए भी यह एक बड़ी राहत थी, क्योंकि अब उन्हें निजता सम्बन्धी चिंताएं नहीं थी और वे जब चाहें शौचालय का इस्तेमाल कर सकती थीं।
उपयोग के लिए अभियान
जो अपना अलग से शौचालय बनाने का खर्च नहीं उठा सकते, उनके फायदे के लिए सुब्बुरामन को 2005 में मुसीरी में सामुदायिक इको-सान शौचालयों के बारे में विचार आया। इसके दो हिस्से हैं, एक पुरुषों और एक महिलाओं के लिए। बुजुर्गों और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए, रैंप और हैंडल के साथ एक अलग इकाई डिजाइन की गई है।
ग्रामवासियों में शौचालय के इस्तेमाल की आदत विकसित करने के उद्देश्य से, पहले कुछ सालों में सामुदायिक इको-सान उपयोगकर्ताओं को भुगतान करने के लिए जाना जाता है। इसका इस्तेमाल जारी है। चैम्बरों से मिलने वाली सुखी खाद को आसपास के किसान समुदाय को बाँट दिया जाता है।
त्रिची-स्थित एक एनजीओ, “सोसाइटी फॉर एजुकेशन, विलेज एक्शन इम्प्रूवमेंट (SEVAI) के संस्थापक निदेशक, के. गोविंदराजू का कहना था – “जब ग्रामीणों के दिमाग तक में शौचालय का विचार नहीं आया था, तब सुब्बुरामन ने न सिर्फ बिना किसी हिचक के उनसे बात की, बल्कि उन्हें शौचालय के इस्तेमाल की जरूरत के बारे में सहमत कर लिया।”
गोविंदराजू ने VillageSquare.in को बताया – “सुब्बुरामन ने ग्रामीणों में शौचालय बनाने और उनका उपयोग करने के लिए उत्सुकता पैदा की, जो महत्वपूर्ण है। वह उन्हें मना सके। उसके साथ और समानांतर रूप से, मैं कह सकता हूं कि उन्होंने स्वच्छता अभियान को एक आंदोलन बनाया और सफल हुए। वह शोध करना और स्थानीय जरूरतों के अनुसार नए मॉडल अपनाना जारी रखे हुए हैं।”
WASH अभियान जारी रखना
SCOPE के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक, कृष्णागिरि जिले के थिम्मापुरम गांव की सम्पूर्ण स्वच्छता है। स्वच्छ भारत मिशन के जिला समन्वयक, जी. कासिमनी का कहना था – “पानी का स्तर जमीन से एक फुट नीचे है। इसलिए हमने स्कूल में इको-सान शौचालय बनाए।”
कासिमनी ने VillageSquare.in को बताया – “अधिकारियों और माता-पिता की बैठकों के दौरान, छात्र माता-पिता को समझाने में सफल हुए। श्री सुब्बुरामन की विशेषज्ञता की जानकारी के चलते, हमने उनकी मदद ली और 250 से ज्यादा घरों में इको-सान शौचालय बनाए। इलाके के चमेली उगाने वाले किसान, खाद के रूप में चैंबरों से मिली खाद का उपयोग करते हैं।”
वर्षा-जल संचयन के ढांचों, चेक डैम, आदि के निर्माण जैसे अपने जल संसाधन प्रबंधन के काम के अलावा, सुब्बुरामन हमेशा बेहतर स्वच्छता के तरीकों को लागू करने की कोशिश करते हैं। महामारी में जरूरी होने से बहुत पहले ही, उन्होंने स्कूलों में पैर से चलने वाली हाथ धोने की प्रणाली स्थापित की।
यूनिसेफ, नीदरलैंड्स की WASTE और त्रिची की “लेडीज सर्कल 33” जैसी विभिन्न एजेंसियों ने उनकी पहलों को सहयोग दिया है। ‘लेडीज़ सर्कल’ ने त्रिची जिले के भीमा नगर और पांडामंगलम गाँवों में पेडल-संचालित वॉश बेसिन स्थापित करने में मदद की।
सतत विकास लक्ष्य 6 (Sustainable Development Goal 6) का लक्ष्य पानी और स्वच्छता तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना है। SCOPE कई सालों से बहुत सफलता के साथ, इस दिशा में काम कर रहा है। चाहे इको-सान शौचालय हों, मूत्र को मोड़कर फ्लश शौचालय हो, जीरो वेस्ट शौचालय और बायोगैस हो, या SATO पैन शौचालय हो, सुब्बुरामन यह सुनिश्चित करते हैं, कि शौचालय उपयोगकर्ता की जरूरत और पानी की उपलब्धता के अनुसार हो।
गोविंदराजू के अनुसार, बेहतर स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से हाथ मिलाने का उनका तरीका एक अतिरिक्त लाभ की बात है। वह कहते हैं – “किसी केमिस्ट्री की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के लिए, उसका जमीनी स्तर का काम और समर्पण सराहनीय है। वह पद्मश्री पुरस्कार के पूरी तरह से हकदार हैं।
जेन्सी सैमुअल एक सिविल इंजीनियर और चेन्नई स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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