सामुदायिक भागीदारी से बेहतर कचरा प्रबंधन में मदद मिलती है
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता के अभाव के कारण, कचरा प्रबंधन एक मुद्दा है, खासकर पर्यटकों के आकर्षण-केंद्रों पर। समुदाय के नेतृत्व में एक बहु-हितधारक मॉडल, इसका समाधान प्रस्तुत करता है
केलवाड़ा राजस्थान के राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ तहसील का एक गाँव है। यह उदयपुर शहर से लगभग 80 किमी दूर स्थित है, और इसमें 900 से अधिक परिवार रहते हैं। एक विश्व विरासत स्थल और पर्यटन केंद्र, प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ किले के काफी नजदीक होने के कारण, केलवाड़ा आसपास के कई गांवों के लिए बाजार केंद्र के रूप में कार्य करता है।
ज्यादातर स्थानों और छोटे शहरों की तरह, केलवाड़ा में नगरपालिका कचरे से निपटने में समस्याएं थीं। कचरा इधर उधर बिखरा रहता, सड़कों की नियमित रूप से सफाई नहीं, और मिले-जुले (गीले-सूखे) कचरे को खुले स्थानों और नालियों में डाला जा रहा था।
नालियाँ कचरे से अवरुद्ध हो जाती थी, जिससे बारिश के समय तूफान के पानी के बहाव में रूकावट होती थी। एक निवासी और युवा नेता, किशन पालीवाल का कहना था – “मुख्य बाजार की नालियों से हमेशा समस्या खड़ी हो जाती थी। हमने पंचायत के माध्यम से इसकी मरम्मत के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन बारिश में हर साल, वे क्षतिग्रस्त हो जाती थी।”
केलवाड़ा में हर महीने 2,000 किलोग्राम से ज्यादा कचरा पैदा होता था, जिसमें प्लास्टिक और समाचारपत्र कबाड़ क्रमशः 527 और 582 किलोग्राम होता था। नगरपालिका के कचरे में प्लास्टिक की बोतलों और चाय के पेपर कप का हिस्सा 114-114 किलो होता था। 198 किलो कार्ड-बोर्ड, 219 किलो शीशा और बाकी दूसरा कचरा होता था।
पंचायतों को सड़कों की सफाई के लिए नियुक्त कर्मचारियों को 800 रुपये महीना भुगतान करने में दिक्कत होती थी। वर्ष 2018 में समुदाय की भागीदारी से शुरू हुई एक पहल से केलवाड़ा में कचरा प्रबंधन में सुधार हो रहा है।
बढ़ती कचरा समस्या
सेवा मंदिर कुंभलगढ़ में स्वच्छता, जल, स्व-शासन, शिक्षा और पोषण जैसे मुद्दों पर, 20 से ज्यादा सालों से काम कर रहा है। केलवाड़ा और आस-पास के गाँवों में समुदायों के साथ काम करते हुए, बढ़ते कचरे का मुद्दा सामने आता रहा।
सेवा मंदिर ने केलवाड़ा को खुला कचरा रहित (No Open Waste – NOW) ज़ोन बनाने की पहल की। एक विकास संगठन, ‘इंटरग्लोब फाउंडेशन’ से आर्थिक सहयोग और एक कचरा प्रबंधन परामर्श-संस्था, ‘साहस’ से तकनीकी सहायता के साथ, इसने 2018 में यह पहल शुरू की। बेहतर परिणामों के लिए समुदाय को शामिल करने का निर्णय लिया गया।
केलवाड़ा का वाणिज्यिक केंद्र काफी बड़ा है। लेकिन अलग-अलग कारकों को ध्यान में रखते हुए, उस 3 किलोमीटर के हिस्से में काम शुरू करने का निर्णय लिया गया, जिसे ग्रामीण आमतौर पर मुख्य बाजार कहते हैं। इसमें बाजार संघ को भी शामिल किया गया, जो उस हिस्से के सभी दुकान मालिकों, भोजनालयों और होटलों का एक संघ है।
सामुदायिक संस्था
कचरा प्रबंधन के उद्देश्य से एक सामुदायिक संस्था, ‘केलवाड़ा विकास समिति’ का गठन किया गया। कई ग्राम-स्तरीय बैठकों के बाद समिति के सात सदस्यों को तीन साल की अवधि के लिए चुना गया। समिति के सदस्य बाजार संघ, समुदाय, सेवा मंदिर, आरोग्य मित्र यानि सफाई दल के सदस्य और पंचायत से हैं।
व्यापक सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से, सड़क के किनारे की 340 दुकानों, घरों, कार्यालयों, होटलों आदि को प्रेरित किया गया और उन्हें सूखे और गीले कचरे को श्रोत पर ही अलग करने के लिए प्रशिक्षण दिया गया। ‘साहस’ ने कचरे की छंटाई और निपटान के बारे में आरोग्य मित्रों, समिति के सदस्यों और परियोजना कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया। साहस ने प्रदर्शन-यात्राओं (एक्सपोज़र विजिट) की भी व्यवस्था की।
समिति इस प्रक्रिया को जारी रखने के लिए, न केवल सरकार और व्यक्तिगत दाताओं से संपर्क रखती है, बल्कि कचरे की छंटनी और उपयोगकर्ता शुल्क इकठ्ठा करने को लेकर समुदाय के साथ भी नियमित बैठकें करती है। केलवाड़ा विकास समिति के अध्यक्ष, निरंजन असावा कहते हैं – “कचरा हमारी समस्या है और अब हम जानते हैं कि इसकी जिम्मेदारी कैसे निभाई जाए।”
दरकिनार किए गए सफाईकर्मी
कचरा संग्रह व्यवस्था में कर्मचारी दल, कचरा प्रबंधन प्रक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण और अक्सर अनदेखे हितधारक हैं। कर्मचारी दल में सड़कों और नालियों की सफाई करने वाले सफाईकर्मी, और वाहनों के द्वारा दुकानों से सूखा और गीला कचरा इकट्ठा करने वाले कलेक्टर शामिल हैं। छँटाई का काम दोनों द्वारा किया जाता है।
बहुत से दूसरे स्थानों की तरह, उनमें से अधिकांश परम्परागत रूप से सफाई का काम करते रहे हैं। उनमें न केवल प्रेरणा और काम की गरिमा की कमी थी, बल्कि सामाजिक संरचना में उनकी असमान स्थिति ने उनमें इस प्रक्रिया का स्वामित्व लेने के लिए अनिच्छा पैदा कर दी।
कम भुगतान और कचरे को इकट्ठा करने और अलग करने के लिए जरूरी उपकरणों की उपलब्धता न होना भी एक चुनौती थे। इंटरग्लोब और पंचायत के योगदान से, नई सामुदायिक पहल के हिस्से के रूप में आरोग्य मित्रों का भुगतान बढ़ाकर 2,000 रुपये महीना कर दिया गया है।
आरोग्य मित्रों में से एक, केसर बाई कहती हैं – “शुरुआत में मैं उत्साहित नहीं थी, क्योंकि यह सिर्फ सफाई का एक और काम था। लेकिन धीरे-धीरे मैंने देखा कि बाजार में लोग मुझे पहचान रहे हैं, चाय पेश कर रहे हैं और मेरे काम के बारे में बात कर रहे हैं।”
कचरे का प्रबंधन
नई पहल के अंतर्गत, मुख्य बाजार क्षेत्र में स्थित, तीन नालों की मरम्मत और निर्माण किया गया। उचित कचरा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए केलवाड़ा में पंचायत द्वारा आवंटित भूमि पर, एक ठोस कचरा प्रबंधन इकाई का निर्माण किया गया है।
आरोग्य मित्र इकठ्ठा किए गए कचरे को इकाई में लाते हैं और उसे छांटते हैं। इकठ्ठा किए गए गीले कचरे को खाद-योग्य और गैर खाद-योग्य कचरे की दो श्रेणियों में बाँट दिया जाता है। खाद-योग्य कचरे को खाद बनने के लिए हवादार बर्तनों में रखा जाता है, जबकि गैर खाद-योग्य कचरे को बेकार कबाड़ के रूप में रखा जाता है।
सूखे कचरे की छंटनी तीन श्रेणियों में की जाती है। जो वस्तुएं पुनर्उपयोग की जा सकती हैं, उन्हें स्थानीय कबाड़ियों या पुनर्नवीनीकरण (रिसाइकल) के काम वाले छोटे व्यापारियों के पास भेजा जाता है। गैर-पुनर्उपयोग वाली वस्तुओं को कुछ समय रखकर, आगे की प्रक्रिया के लिए भेज दिया जाता है। बेकार कबाड़ को एक लैंडफिल (कचरा भराव स्थल) में डाल दिया जाता है।
उपयोगकर्ता शुल्क संग्रह
पिछले दो साल में, कचरा पैदा होने की जगह, अर्थात घरों, दुकानों, होटलों, आदि पर, कचरे को सँभालने के प्रति समुदाय के व्यवहार में देखा गया बदलाव, सबसे बड़ा है। हालांकि उपयोगकर्ता शुल्क इकठ्ठा करना एक चुनौती बना हुआ है।
सेवा मंदिर द्वारा कचरा एकत्रित करने वाले वाहन चालक के रूप में नियुक्त, कैलाश चंद्र गमेती इकठ्ठा किए गए कचरे का हिसाब-किताब रखते हैं। महीने के आखिरी हफ्ते में, एक आरोग्य मित्र, जिसे स्वछताकर्मी भी कहा जाता है, के साथ गमेती उपयोगकर्ता शुल्क इकठ्ठा करने के अभियान पर जाते हैं।
उपयोगकर्ता शुल्क राजस्व के विश्वसनीय स्रोतों में से एक है। सूखा कचरा पैदा करने वाली दुकानों से 30 रुपये महीना और गीला कचरा पैदा करने वालों से 50 रुपये महीना शुल्क लिया जाता है। गमेती, जो आरोग्य मित्रों का काम भी देखते हैं, के लिए उपयोगकर्ता शुल्क इकठ्ठा करना उनका सबसे कठिन काम है।
गमेती ने बताया – “भुगतान से इंकार करने वाला हर दुकानदार एक अलग बहाना लेकर आता है। इसलिए उनमें से हर एक के साथ बहस में पड़ जाना एक काम बन जाता है, क्योंकि उन सभी को अलग-अलग शिकायतें हैं और उन्हें समझाना उससे भी बड़ा काम लगता है।”
उनमें से कुछ अपने बच्चों को काउंटर के पीछे छोड़कर गायब हो जाते हैं। बच्चे वही कहते हैं, जो उन्हें सिखाया जाता है। वे गमेती और सफाईकर्मी को अगले दिन आने के लिए कहते हैं, इस तर्क के साथ कि उनके माता-पिता अभी नहीं हैं। यह सबसे आम बहाना है, जिसका बच निकलने के लिए दुकानदार सहारा लेते हैं। गमेती कहते हैं – “इन लोगों का पीछा करना मुश्किल है। वे इनकार या शिकायत नहीं करते। वे बस तब तक टालमटोल करते रहते हैं, जब तक कर सकते हैं।”
मॉडल में सुधार
ठोस कचरा हर जगह एक चुनौती है, चाहे वह शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण। हाल के वर्षों में, पैदा होने वाले कचरे के उचित संग्रह, रखरखाव और निपटान पर चर्चा और कार्रवाई बढ़ी है। लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण बस्तियों में कचरा प्रबंधन व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में कम ध्यान दिया गया है।
इसके अलावा, इन स्थानों के समुदाय और प्रशासन को अपने वातावरण को साफ-स्वच्छ रखने के लिए, सामुदायिक भागीदारी, टेक्नोलॉजी और वित्त सम्बन्धी पहलुओं पर जानकारी और क्षमता निर्माण की भी जरूरत होती है। इस इलाके में घर ऊंची जमीन पर हैं। निवासियों को नीचे आकर कचरा डालने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। उन्हें समझाना आसान नहीं था।
हालांकि उपयोगकर्ता शुल्क से 12,000 रुपये राजस्व मिलना चाहिए, लेकिन टीम केवल आधी राशि के लगभग इकठ्ठा कर पाती है। बड़े भोजनालयों के साथ ज्यादा उपयोगकर्ता-शुल्क देकर कचरा प्रबंधन में शामिल होने के लिए बातचीत चल रही है। प्लास्टिक कचरे को बेचने के लिए, ‘क्लीनहब’ के साथ एक साझेदारी की गई है। व्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी हैं।
निकिता जगदीश ‘एसबीआई यूथ फॉर इंडिया’ की ग्रामीण विकास फेलो हैं। रिमझिम पांडे और अनु मिश्रा सेवा मंदिर, उदयपुर में विभिन्न मुद्दों पर काम कर रही डेवलपमेंट प्रोफेशनल हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: communications@sevamandir.org
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