जहां ग्रामीणों के पास स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, जिला प्रशासन और विकास संगठन, मरीजों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए स्वयंसेवकों सूची बनाते हैं और मरीजों के घरों तक COVID-19 दवाएं वितरित करते हैं।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिले में काम करना आसान नहीं है। गाँव अच्छी तरह जुड़े हुए नहीं हैं। ग्रामीण अर्द्ध-साक्षर हैं। वे अपनी रोजी-रोटी कमाने, मलेरिया के सर्वथा मौजूद खतरे से सामंजस्य बैठाने के लिए भारी दबाव में रहते हैं और चरमपंथियों के चल रहे संघर्ष से बचने की कोशिश करते हैं।
और फिर COVID-19 का जिले में वार हुआ। जितनी संख्या में रोगी आ रहे थे, उसे देखते हुए जितने रोगियों को दाखिल करके स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जा सकती थी, वह संख्या कहीं कम थी। उन्हें सुविधाएं कैसे प्रदान की जाएं? कोई अपनी चिंता कैसे जाहिर करे? इस चिंता को इसके सबसे व्यावहारिक, यानि दवा के रूप में कैसे पहुँचाया जाए?
बहुत से संक्रमित लोगों के लिए जिला स्वास्थ्य सुविधा तक यात्रा करना मुश्किल होता है। उनमें से कुछ को हल्का संक्रमण होता है, और कुछ में कोई लक्षण नहीं होते। ऐसे में वे घर पर ही अलग होकर रहना पसंद करते हैं। बीमारी और स्वास्थ्य लाभ के समय को कम करने और जिला स्वास्थ्य सुविधाओं पर संभावित भार को कम करने के लिए, रोगियों की देखभाल करना भी जरूरी है।
फिर भी, उन गाँवों में से ज्यादातर में न ऑक्सीमीटर, न थर्मामीटर और न ही कोई दवाइयों की दुकान हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले लोगों के साथ, उनका अब तक का एकमात्र संपर्क ‘आशा’ (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से हो सकता है। इन गाँवों को सेवाएं कैसे प्रदान करें?
रोग की निगरानी
झारखंड के लोहरदगा जिले ने इस दिशा में एक मिसाल पेश की। एकीकृत रोग निगरानी परियोजना के अंतर्गत प्रशासन ने प्रभावित लोगों की जानकारी जुटाना शुरू किया। जरूरतमंद लोगों तक किसी भी प्रकार की जरूरी सामग्री पहुँचाने के लिए, लगभग सभी मामलों में जानकारी अधूरी और अपर्याप्त थी।
व्यवस्थित बुनियादी ढांचे के अभाव में, हजारों COVID-19 रोगियों की देखभाल करना बहुत जटिल है। हालात के तकाज़े को देखते हुए, जिले में काम कर रहे संगठनों, अज़ीम प्रेमजी परोपकार पहल (Azim Premji Philanthropic Initiative) और ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) के सहयोग से, स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए झारखंड एकीकृत विकास परियोजना (JIDHAN), लोहरदगा जिले के लोगों की मदद के लिए आगे आए।
पहला काम यह सुनिश्चित करना था कि गांव की आशा कार्यकर्ता को पल्स ऑक्सीमीटर और इंफ्रा-रेड थर्मामीटर उपलब्ध कराए जाएं, ताकि मरीजों की निगरानी की जा सके। तब देखभाल का सवाल समाधान के लिए ज्यादा उपयुक्त हो जाए।
निगरानी
लोहरदगा के कलेक्टर ने, होम-आइसोलेशन सेल नाम से स्वयंसेवकों की एक टीम बनाई। इस टीम में स्कूल के अध्यापक शामिल हैं। लोहरदगा में उप जिला कलेक्टर के साथ-साथ, एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो (ADF), वरुण शर्मा इस सेल के प्रमुख हैं।
वे सुनिश्चित करते हैं कि स्वयंसेवकों को पिछले दो दिनों में संक्रमित पाए गए व्यक्तियों के संपर्क विवरण प्राप्त हों, और प्रत्येक अध्यापक को संक्रमित व्यक्तियों की दैनिक लक्ष्य-सूची प्रदान की जाती है। वे रोज इन सभी रोगियों को, उनकी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानने, उनका मनोबल बढ़ाने और दवा आदि से सम्बंधित बातों पर मार्गदर्शन प्रदान करने के उद्देश्य से संपर्क करते हैं।
वे गंभीर रोगियों या आपातकालीन जरूरतों के बारे में ADF को जानकारी देते हैं, जो सुनिश्चित करते हैं कि उसी दिन मामले का समाधान किया जाए। अन्य बातों के अलावा, स्वयंसेवक पूछते हैं कि क्या मरीजों को दवाएं मिली हैं। उनमें से ज्यादातर का उत्तर नकारात्मक होता है। ऐसे मामलों में, स्वयंसेवक जानकारी एकत्र करते हैं, ताकि जरूरी दवाएं संक्रमित व्यक्तियों तक पहुंचाई जा सकें।
मेडिसिन-किट
TRIF के सिद्धांत गुप्ता परियोजना में हेल्थ सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन फेलो (HSTF) के रूप में काम करते हैं। जिले की दूरदराज़ स्थिति देखते हुए, दवाइयों का मरीजों तक पहुंचना सुनिश्चित करना मुश्किल था। उन्हें दी गई 10 दवाइयों की सूची सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार थी। इनके उपलब्ध नहीं होने पर, पांच विकल्पों की एक अतिरिक्त सूची दी गई है।
इनमें से कुछ दवाएं सरकारी प्रणाली से मिलने वाली दवाइयों में उपलब्ध नहीं होती हैं, और बहुत बार कुछ निजी मेडिकल स्टोरों में भी उपलब्ध नहीं होती हैं। फिर भी, टीम उपलब्ध और निर्धारित दवाओं से एक किट तैयार करने की कोशिश करती है।
घरों में अलग रह रहे मरीजों तक दवा-किट पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए, कलेक्टर ने नागरिक समाज संगठनों (CSOs) को साथ लिया। दो सरकारी समितियों, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) और नेहरू युवा केंद्र, और नागरिक समाज संगठन, प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (PRADAN), मारवाड़ी युवा मंच और लोहरदगा ग्राम स्वराज्य संस्थान इसमें शामिल हुए।
दवाओं की होम डिलीवरी
ADF दिव्या तिवारी और वरुण शर्मा के साथ मिलकर, सिद्धांत गुप्ता ने जिले की सभी 66 पंचायतों को दवाओं की होम डिलीवरी के लिए, उपरोक्त संगठनों में से किसी एक के साथ जोड़ते (टैग करके) हुए, एक विस्तृत योजना तैयार की।
उन्होंने रोजाना दवा-किट एकत्रित करने और उनके वितरण को व्यवस्थित बनाने के लिए, संग्रह-स्थल बनाए। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के पास अतिरिक्त कर्मचारी नहीं थे, इसलिए दवा-किट तैयार करने के लिए, एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) विभाग के आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को लगाया गया।
जिन घरों पर प्रतिदिन दवा-किट पहुंचाई जानी हैं, उनकी सूची सम्बंधित प्रभारी स्वयंसेवकों को उपलब्ध कराई जाती है। वर्तमान में, जिले के 354 गांवों में 98 स्वयंसेवक मरीजों को दवाएं पहुंचाते हैं। इनमें से कुछ गांव बहुत दूरदराज हैं, जहां सड़क संपर्क बहुत कम है। असाधारण मामलों में, स्वयंसेवक मेडिकल स्टोर से दवाएं लेकर मरीजों के घरों तक पहुंचाते हैं।
पहुंचाई गई दवा-किट के साथ, हिंदी में एक संचार सामग्री वितरित की जाती है, जिसमें बताया गया है, कि कौन सी दवा कब लेनी है। ADFe और HSTF की देखरेख में जिला कोरोना नियंत्रण कक्ष, डिलीवरी की निगरानी करता है, जिसके अंतर्गत चयनित व्यक्तियों को कॉल करके, यह सत्यापित किया जाता है कि डिलीवरी वास्तव में कर दी गई है।
चुनौतियों से निपटना
लेकिन अभी भी कुछ मुद्दों का समाधान होना बाकी है। पहला, जब तक जिला स्तर पर दवाओं की आपूर्ति सुचारू नहीं हो जाती, तब तक दूरदराज के गांवों में घरों में सीमित मरीजों की आपूर्ति सुचारू नहीं हो सकती। इस मुद्दे को हल करने के लिए, तिवारी, गुप्ता और शर्मा ने मिलकर, ‘मिलाप’ नामक मंच पर एक अनुदान-संचय करना शुरू किया है, जिसमें लोगों से दान करने का आग्रह किया गया है।
दूसरा मुद्दा यह सुनिश्चित करना है, कि रोगी प्रत्येक दवा की खुराक के विषय में और कब-कब लेना है, इस बारे में जानता है। सभी दवाओं पर प्रिंट अंग्रेजी में है और रोगी या उसका परिवार हिंदी भी मुश्किल से पढ़ पाता है। कोई कैसे सुनिश्चित करे, कि वे सही दवाएं ले रहे हैं?
इस कठिनाई का हल, रोगियों के पास जाने वाले एनजीओ के स्वयंसेवकों, होम आइसोलेशन सेल के अध्यापकों और गांव के किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति या आशा कार्यकर्ता द्वारा ढूंढने की कोशिश की गई। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह सब कुछ सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हुए करना था।
इस तरह से अब तक, 350 से ज्यादा घरों पर रह कर इलाज करा रहे COVID-19 रोगियों को दवाएं वितरित की जा चुकी हैं। स्वयंसेवकों ने जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आकर साहस और भावना का प्रदर्शन किया। इसमें बेशक चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गैर सरकारी संगठनों, होम आइसोलेशन सेल और गांवों में काम करने वाले व्यक्ति COVID-19 से बीमार हो जाते हैं।
फिर भी, संकट के इस समय में मौजूदा स्थिति को कम करने के उनके समन्वित प्रयास, बहुत से जरूरतमंद लोगों के लिए आशा की किरण साबित हुए हैं। और यह इस बात का सबूत है कि जहां सेवा करने की इच्छा है, वहां हमेशा चुनौतियों से निपटने का कोई तरीका होगा।
दिव्या तिवारी और वरुण शर्मा एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो (ADFs) हैं। सिद्धांत गुप्ता हेल्थ सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन फेलो (HSTF) हैं। वे TRIF में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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