दर्शकों को नाटक की दिशा को बदलने की अनुमति देने से, अग्रिम कार्यकर्ताओं को महामारी से जुड़ी व्यक्तिगत आशंकाओं को स्वीकारने और परस्पर सीख और सहयोग के महत्व को समझने में मदद मिली है।
एक अग्रिम कार्यकर्ता, केशव सहभागी थिएटर के प्रदर्शन के दौरान कहते हैं – “मेरी पत्नी अस्वस्थ थी और वह घर पर थी, जब मैं अपने गाँव में राशन-किट बांटने के लिए निकला। मैं उसके साथ घर पर रहना चाहता था, लेकिन नहीं रह सका।”
जमीनी स्तर की एक महिला कार्यकर्ता, रेखा का कहना था – “मैंने अपने को स्वयं से कटा हुआ महसूस किया और ऊर्जा की कमी महसूस की। कोरोनोवायरस के कारण समुदाय के नेताओं को खोना, एक व्यक्तिगत नुकसान की तरह लगा।”
दक्षिणी ग्रामीण राजस्थान में, अग्रिम कार्यकर्ताओं के सामाजिक चुनौतियों से संघर्ष को महामारी ने और भी मुश्किल बना दिया। एक साल से ज्यादा समय से घने जोखिम के बीच, राहत और जागरूकता के लिए जाना, काम की नई तकनीकों को अपनाना, और सहायता प्रदान करने का काम जारी रखना, उनमें से ज्यादातर के लिए थका देने वाला अनुभव रहा है।
जब जुलाई 2020 में लॉकडाउन में ढील दी गई, तो सेवा मंदिर में हमने महसूस किया, कि इस हताशापूर्ण थकान का संज्ञान लेते हुए, जमीनी स्तर के संगठनों में कैसे स्थान बनाया जाए। व्यक्तिगत और काम सम्बन्धी संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, सामंजस्य बैठाने के तरीके साँझा करने की भी जरूरत थी।
उन चिंताओं को समझने की जरूरत थी, जिनका सामना अग्रिम कार्यकर्ताओं को हमेशा बदलते महामारी के ग्राफ और हमारी सामूहिक यात्राओं में करना पड़ता है। ऐसा करने के लिए, सेवा मंदिर ने अग्रिम कार्यकर्ताओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बातचीत शुरू करने के लिए, सहभागी थिएटर का इस्तेमाल एक औजार के रूप में किया। थिएटर ने केशव और रेखा जैसे प्रतिभागियों को यह जानने में मदद की, कि वे अपने संघर्ष में अकेले नहीं हैं और उन्हें परिस्थितियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए तैयार किया।
सहभागी थियेटर
सहभागी थिएटर, ऑगस्टो बोल नाम के एक रंगकर्मी द्वारा विकसित, सहभागितापूर्ण नाट्य प्रस्तुति की एक विधा है। यह “उत्पीड़ितों का रंगमंच” के छत्र के नीचे विकसित तकनीकों में से एक है। यह दर्शकों को प्रभावित करता है, उन्हें दर्शकों के साथ-साथ अभिनेताओं के रूप में प्रस्तुति के साथ जोड़ता है, जिसे ‘दर्शक-अभिनेता’ कहा जाता है, और जिसके पास प्रस्तुति को रोकने और उसमें बदलाव करने का अधिकार है।
हम उदयपुर जिले में विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुतियाँ करते रहे हैं। बेहतर माहौल और COVID-19 नियमों के अनुसार शारीरिक दूरी के लिए, हम किसी खुली जगह में प्रस्तुति करते हैं। नाटक दोपहर बाद किया जाता है। इससे पहले, पूर्वाह्न में हम प्रतिभागियों को नियमित काम से अपना ध्यान हटाने, एक-दूसरे के साथ घुलने-मिलने और उस स्थिति के साथ सहज होने में मदद के लिए थिएटर-गेम्स की व्यवस्था करते हैं।
तैयारी के बाद, सूत्रधार, नाटक के पीछे के इतिहास और उद्देश्य की एक संक्षिप्त जानकारी के साथ, नाटक की अवधारणा की व्याख्या करता है। नाटक शुरू होने से पहले आमंत्रित करते हुए, सूत्रधार बताता है कि कैसे प्रत्येक व्यक्ति का महामारी को लेकर अनुभव अलग रहा है। इसके बाद वह प्रतिभागियों को प्रस्तुति देखने और अर्थ निकालने के लिए आमंत्रित करते हुए, कहानी के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी देता है।
सूत्रधार नाटक का हिस्सा नहीं है, लेकिन नाटक की समाप्ति पर कुछ प्रश्नों के साथ प्रकट होता है, जैसे – “क्या आपको पसंद आया कि चीजें कैसे समाप्त हुईं? क्या यहां किसी ने इस कहानी से अपना कुछ सम्बंध महसूस किया? क्या हम दर्द और पात्रों के बीच के टकराव के लम्हों को बदलना चाहते हैं?”
विशिष्ट परिस्थितियों के लिए लिखी कहानी
‘टिंकू और तारा की लव स्टोरी’ एक सहभागी नाटक था, जिसे हमने अत्यंत संकटग्रस्त प्रवासी समुदाय के साथ काम करने वाले 200 से ज्यादा अग्रिम कार्यकर्ताओं के लिए लिखा और प्रदर्शित किया। अग्रिम कार्यकर्ताओं में, शेल्टर-होम की देखभाल करने वाले, ड्राइवर, सहयोगी कर्मचारी और समुदाय के जानकार व्यक्ति शामिल थे।
कहानी उन तनावों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका जमीनी स्तर पर काम करने वाले एक युवा जोड़े को घर और काम पर सामना करना पड़ता है। उत्पीड़ित नायक, टिंकू, एक युवा है, जो काम करते हुए अपनी नौकरी जाने की चिंता, सम्बन्ध और जीवन में तारतम्य बैठने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसके पास अपने गाँव में पर्याप्त वित्तीय संसाधन या काम के अवसर नहीं हैं।
यह कहानी महामारी की बदलती दुनिया में अपनी चिंताओं और संघर्षों को व्यक्त करने में विफल रहने वाले दंपति के संघर्ष को दर्शाती है। दृश्य अपनी अभिव्यक्ति में, संगठनों के भीतर अधिकार-संरचनाओं के उत्पीड़न और पुरुषों और महिलाओं में लिंग-भेद से जुड़े अनुभवों को प्रस्तुत करते हैं।
दर्शक-अभिनेता बने दर्शक
नाटक किसी समाधान के साथ समाप्त नहीं होता, बल्कि दंपत्ति के बीच नाटकीय तनाव पर समाप्त होता है। एक बार नाटक प्रस्तुत करने के बाद, हम दर्शकों से दर्शक-अभिनेता बनने के लिए कहते हैं और पूछते हैं कि क्या वे नाटक के अंत को बदलना चाहेंगे। हम नाटक की पुनर्प्रस्तुति शुरू करते हैं और दर्शकों में से कोई भी “बंद करो” चिल्ला सकता है और कहानी में एक चरित्र को बदलने के लिए कह सकता है।
प्रत्येक प्रस्तुति के बाद, भीड़ की पहली प्रतिक्रिया एकदम ख़ामोशी के रूप में होती थी। हालाँकि नाटक में दर्शकों के अधिकांश हस्तक्षेप, अग्रिम कार्यकर्ता के व्यक्तिगत संघर्षों को ठीक करने से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने हमारे जीवन के नुकसान, दर्द और उदासी के बारे में वास्तविक संवाद करने में हमारी मदद की।
एक दर्शक-अभिनेता का कहना था – “यह मेरी अपनी कहानी को जीवंत होते देखने जैसा था। मैंने सभी को यह समझाने की कोशिश की कि टिंकू किन हालात से गुजर रहा है, लेकिन नाटक में या अपने असली जीवन में नहीं कर सका। लेकिन कम से कम मुझे पता है, कि मेरे जैसे बहुत से लोग हैं, जिनसे मैं बात कर सकता हूं।”
जो कहानियां सामने आईं, वे बहुत ही व्यक्तिगत, जोरदार और बेहद ईमानदारी के साथ कही गई थीं। हमारी कई प्रस्तुतियों में, दर्शक अपनी प्रतिक्रियाओं को आंतरिक रूप दे रहे थे और उन सुझावों पर सवाल उठा रहे थे जो आमतौर पर ऐसे विषयों के आसपास होते हैं।
जब हमने ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को न केवल दर्शक बनने के लिए, बल्कि दर्शक-अभिनेताओं की भूमिकाएं लेने और कहानी को बदलने के लिए भी प्रोत्साहित किया, नाटक के अंत को बदलने के लिए एक उत्साह पैदा होना शुरू हो गया।
संकटग्रस्त महिलाओं के लिए एक आश्रय-गृह के एक कर्मचारी ने कहा – “मुझे एहसास है कि समुदायों में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए रातदिन काम करना और हमारी अपनी कहानियों और टीम के सदस्यों के प्रति उदासीन होना कितना विडंबनापूर्ण है।”
एक ब्लॉक समन्वयक का कहना था – “सहभागी थियेटर ने हमें अपने स्वयं के प्रतिक्रिया बिंदुओं को समझने में मदद की। एक साथ हंसना, खेलना और काम पर वापस जाना बहुत ताजगी प्रदान करने वाला था।”
सभी के लिए सीख
नाटक का सूत्रधार हर हस्तक्षेप के बाद पूछता है कि क्या यह वास्तविक लगा और क्या अंत अलग होने पर यह काम करेगा। महत्वपूर्ण भूमिका अभिनेताओं द्वारा निभाई जाती है, जो इस विधा के तरीकों पर प्रशिक्षित सहजकर्ता टीम के सदस्य हैं।
यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है, कि प्रत्येक दर्शक कैसे अभिनेताओं के साथ विभिन्न रणनीतियों के साथ काम कर पाता है और उनके व्यवहार को कैसे बदल पाता है। कभी-कभी यह काम करता है, कई बार नहीं करता है, लेकिन यह हमेशा विभिन्न हस्तक्षेपों को आजमाने के लिए उत्साह पैदा करता है।
नाटक ने न केवल अन्य संगठनों में अग्रिम कार्यकर्ताओं की मदद की, बल्कि हम सहजकर्ता टीम को भी। इसने हमें कार्य-पदों के क्रम से ऊपर उठने और दर्शकों में से किसी से भी समाधान/निपटने की शैली लेने की अनुमति दी। दृश्यों को बदलने के लिए हस्तक्षेप करते हुए, हमारी टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा – “मैं हमेशा काम को इतना ज्यादा प्राथमिकता देता हूं, कि व्यक्तिगत संघर्षों से जूझना मेरे साथी (पति/पत्नी) की भूमिका बन जाता है।”
सेवा मंदिर टीम की एक कलाकार, सीमा ने कहा – “अलग-अलग दर्शकों के लिए कई बार नाटक की प्रस्तुति ने मुझे सिखाया कि मैं उत्पीड़कों और उत्पीड़ितों के सम्बन्ध में मजबूत सहयोगियों या सहयोग व्यवस्थाओं की जरूरत को देखने में कैसे विफल रहती हूं। उनके माध्यम से वांछित बदलाव आसान हैं।”
परिणाम
विभिन्न दर्शकों के लिए कल्याण और मानसिक स्वास्थ्य पर संवाद के लिए एक उपकरण के रूप में, सहभागी थियेटर के साथ प्रयोग करने से, हमें व्यक्तिगत और प्रभावी सामंजस्य बैठाने वाले तरीकों का दस्तावेजीकरण करने में मदद मिली। इसने हमारे अंतर्संबंध को और अग्रिम कार्यकर्ताओं के रूप में हमारे मन में व्याप्त आशंकाओं को मानवीयता प्रदान करने को बढ़ावा दिया है।
इसने हमें लॉकडाउन के कारण, सहकर्मी-सीख में हुए अलगाव और व्यवधान को फिर से बनाने में मदद की। प्रतिभागियों ने बार-बार इंगित किया कि कैसे सहकर्मी-सीख जमीनी विकास संगठनों में, सीखने के सबसे मजबूत और प्रभावी तरीकों में से एक है।
असफलताओं/संघर्षों के बारे में संवाद करना या अनिश्चित समय में भी अपनी कमजोरी दिखाना, पुरुषों के लिए विशेष रूप से कठिन है। समुदायों के साथ गहरे संबंध रखने वाले कार्यक्रमों के निर्माण के लिए, हमारी टीमों और हमारे घरों में हमारे व्यक्तिगत संघर्षों की गहन आत्म-जांच की जरूरत होती है। एक विधा के रूप में, इसने हमें ऐसे सवाल उठाने में सक्षम बनाया, जो एक संगठन में सभी स्तरों पर गुणवत्ता और विचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
इससे यह बात दृढ़ता से सामने आई, कि अग्रिम कार्यकर्ताओं के थक-हार जाने, उनकी आशंकाओं और कल्याण को स्वीकार करने की जरूरत सभी कार्यक्रम हस्तक्षेपों और समूहों की बैठकों के केंद्र में होनी चाहिए। उत्पीड़क-उत्पीड़ित पात्रों को आपस में बदलकर, हम उनकी सीमाओं के प्रति सहानुभूति रखते थे और एक-दूसरे के प्रति ज्यादा धैर्यवान होते गए।
गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।
अनु मिश्रा सेवा मंदिर में संचार और प्रशिक्षण समन्वयक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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