सशक्त महिला डेयरी किसानों ने छोड़ा प्रभाव
डेयरी सहकारी समितियों के विकास के साथ, जिनमें से कुछ विशेष रूप से महिलाओं के लिए थी, दुग्ध उत्पादन ने कृषि आय को पूरक बनाते हुए, पूर्ण विकसित व्यवसाय और सफल महिला सूक्ष्म-उद्यमियों को जन्म दिया है।
छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों के लिए डेयरी फार्मिंग आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह फार्म गेट से परे उनके रहन-सहन को सुधारने में सहायक रहा है। लेकिन डेयरी व्यवसाय में पशुओं की निरंतर देखभाल की जरूरत होती है, जिसका बोझ ज्यादातर परिवार की महिलाओं पर पड़ता है।
डेयरी उत्पादन पर खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के लेख के अनुसार, पारम्परिक रूप से महिलाओं की दूध उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, खासकर पशुओं को खिलाने और उनका दूध निकालने में। हालांकि उनके ज्यादातर काम अनदेखे गैर-मुद्रीकृत रहते हैं, फिर भी अक्सर वे यह तय करती हैं कि कितना दूध बेचा जाए और दूध की बिक्री के पैसे का उपयोग कैसे किया जाए।
डेयरी सहकारी समितियों के गठन ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के राष्ट्रीय सहकारी संघ की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, सहकारी समितियों में कुल सदस्यता में 48.5 लाख महिला सदस्यों का योगदान 30% है।
अकेले गुजरात में, 34.94 लाख दूध उत्पादक सदस्यों में से 12.5 लाख सदस्य महिलाएं हैं, जो कुल सदस्यता का लगभग 36% हिस्सा हैं। दुग्ध सहकारी समितियों में उनकी सदस्यता उनके काम की मान्यता के अनुरूप है। और दूध की बिक्री से मिले पैसे ने उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम बनाया है।
महिला डेयरी सहकारी संस्था
खेड़ा जिले के कपड़वंज तालुक के मोतीपुरा गांव की रहने वाली शारदा पटेल एक डेयरी किसान हैं। वह अपने गांव की 400 महिला डेयरी किसान सदस्यों में से एक हैं, जिनमें से 145 ‘मोतीपुरा महिला डेयरी सहकारी समिति’ में सक्रिय रूप से दूध डालती हैं।
डेयरी सहकारी समिति (DCS), जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा संचालित है, ने 2006 में प्रतिदिन लगभग 400 लीटर दूध डालना शुरू किया था। अब मोतीपुरा महिला DCS हर दिन लगभग 10,000 लीटर दूध डालती है और इसका 2019 वर्ष का कारोबार 24 करोड़ रुपये है।
डेयरी, जिसे कृषि के विकल्प के रूप में अपनाया गया था, अब एक पूरी तरह से विकसित व्यवसाय बन गया है, खासतौर पर महिलाओं के लिए। मोतीपुरा के हर डेयरी परिवार के पास कम से कम 10 पशु हैं। सफलता और असफलता DCS के दूध डालने वालों में बांट दी जाती है।
इसके अलावा, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) ने महिला किसानों को पशु खरीदने के लिए 1 करोड़ रुपये की सब्सिडी प्रदान की। वित्तीय सहायता से DCS सदस्यों की दूध डालने की क्षमता में सुधार हुआ।
पुरुषों के बराबर
शारदा पटेल गुजरात में डेयरी सहकारी समितियों के शीर्ष संगठन, जिसे अमूल भी कहा जाता है, के खेड़ा जिला दुग्ध संघ के निदेशक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य करती हैं। महिलाओं के उत्थान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
शारदा पटेल कहती हैं – “हमारे गांव में महिलाएं सशक्त हैं। वे संस्था के प्रशासन और कामकाज में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं और मासिक बैठकों में शामिल होती हैं, अपनी राय देती हैं और पुरुषों के समान शर्तों पर अपनी शिकायतों के निवारण की मांग भी करती हैं।”
आणंद जिले के तारापुर तालुक के मोराज गांव की डेयरी किसान, सीता परमार, खेड़ा संघ के बोर्ड की नवनिर्वाचित सदस्य हैं। वह सहकारी समिति में नौ पुरुष सदस्यों और उनके अलावा एक और महिला सदस्य के साथ प्रबंधन समिति का हिस्सा हैं।
आर्थिक सफलता
मोराज डेयरी सहकारी समिति की शुरुआत करीब 30 साल पहले 15 सदस्यों के साथ हुई थी। इस समय लगभग 100 दूध डालने वाले सदस्य हैं। जो सदस्य उस समय प्रतिदिन लगभग 800 लीटर दूध डालते थे, वे अब रोजाना लगभग 5,000 लीटर दूध डालते हैं। कमाई का लाभ सदस्यों के बीच सालाना औसतन 20% बोनस के साथ बांटा जाता है।
अपने स्वयं के डेयरी व्यवसाय की आर्थिक गतिविधियों को संभालने वाली, सीता परमार का कहना था कि व्यवसाय ने उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया है। वह बढ़ती संख्या में पशुओं की देखभाल के लिए कई मजदूर नियुक्त करती हैं, जिससे उन्हें एक स्थिर आजीविका प्राप्त होती है।
आणंद जिले के अजरपुरा गांव की गायत्री पटेल ने वर्ष 2016 में पांच बछड़ियों के साथ डेयरी व्यवसाय शुरू किया था। आज उनके और उनके पति के पास 75 पशु हैं। उनके डेयरी फार्म का सालाना कारोबार लगभग 34 लाख रुपये है।
महिला सशक्तिकरण
प्रशासनिक निकायों में महिलाओं के होने से एक बहु-स्तरीय प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे रोल मॉडल के रूप में काम करती हैं। शारदा पटेल बहुत सी महिलाओं को डेयरी व्यवसाय में शामिल होने और मोतीपुरा महिला DCS की सक्रिय दूध डालने वाली के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
सीता परमार ने अपने पति, जो मोराज DCS के अध्यक्ष हैं, के साथ मिलकर डेयरी फार्मिंग में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोत्तरी के उद्देश्य से महिला सहकारी समितियां बनाने की पहल की है। अब तारापुर तालुक, जिसमें मोराज आता है, में कुल 45 में से सात नई महिला सहकारी समितियाँ हैं।
जैसा कि गायत्री पटेल ने याद करते हुए बताया, शुरुआती चरण में, उन्होंने बच्चों की देखभाल और परिवार की जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ, शेड की सफाई, पशुओं की देखभाल, चारा घास काटने आदि जैसे सभी कार्य किये। अपने उपयोगी कार्यों के बावजूद, महिलाएं मूक राय देने वाली थीं और इस काम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा मानती थीं।
लेकिन अब वे बड़े आर्थिक फैसले लेती हैं। गायत्री पटेल कहती हैं – “सहकारिता समिति का सदस्य होने के कारण मैं आजादी से आर्थिक फैसले लेने में सक्षम हुई हूँ। इसके अलावा, डेयरी व्यवसाय ने मेरे फार्म पर काम करने वाले कई लोगों को आत्मनिर्भर बना दिया है।”
वे स्वयं को महत्वपूर्ण महसूस करती हैं और कि उनके काम को तब पहचान मिलती है, जब हर 10 दिन में उनके बैंक खातों में पैसा जमा होता है। डेयरी व्यवसाय में भागीदारी ने उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्म-प्रेरित सूक्ष्म-उद्यमी बनने में सक्षम बनाया है।
श्वेता कृष्णन, अंकित सोनटक्के और पंकज परमार, इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद में रिसर्च फेलो हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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