जब आपदाएं साथ-साथ आती हैं – महामारी के दौरान बाढ़ के लिए तैयारी
महामारी के समय बाढ़ के लिए योजना और तैयारी, क्षेत्रों की विशिष्ट जरूरतों के अनुसार होनी चाहिए, क्योंकि बाढ़ की विभिन्न परिस्थितियों में प्रभाव अलग होगा
महामारी के समय बाढ़ के लिए योजना और तैयारी, क्षेत्रों की विशिष्ट जरूरतों के अनुसार होनी चाहिए, क्योंकि बाढ़ की विभिन्न परिस्थितियों में प्रभाव अलग होगा
इस दो-भाग की श्रृंखला के मेरे पहले लेख में, उत्तर बिहार में साथ आए खतरों के दो मूलभूत पहलुओं को रेखांकित किया गया था। पहला, 2020 की बाढ़ के दौरान 16 बाढ़ प्रभावित जिलों में COVID-19 मामलों की घटनाओं के बीच अंतर्संबंध की संभावना।
दूसरा, 22 जिलों के 27 मई 2021 के COVID-19 मामलों (सक्रिय एवं संक्रमण) के आंकड़ों का पिछले दो दशकों के बाढ़ के ऐतिहासिक आंकड़ों से मिलान करते हुए, COVID-19 और बाढ़-संभावित जिलों में भविष्य में अन्तर्सम्बन्ध की सम्भावना को दर्शाता है।
इसके परिणामस्वरूप मई, 2021 तक प्रत्येक जिले में 15,000 से अधिक COVID-19 मामलों वाले 14 बाढ़-संभावित जिलों की पहचान की गई। इसके अलावा, इस क्षेत्र में ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर 11 जिलों को सबसे अधिक बाढ़-संभावित जिलों के रूप में पहचाना गया।
जब इन दोनों निष्कर्षों को मिलाया गया, तो आने वाले बाढ़ के मौसम के लिए, उत्तरी बिहार के 16 जिलों की पहचान की गई, जिनमें आपदाओं के साथ-साथ आने की सम्भावना थी। सुपौल, सहरसा, मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, पूर्णिया, भागलपुर, कटिहार, मधुबनी और समस्तीपुर में 15,000 से ज्यादा COVID-19 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए और पिछले दो दशकों में 15 से ज्यादा वर्षों में बाढ़ आई।
बेगूसराय, सारण, वैशाली, पूर्वी चंपारण और गोपालगंज जिलों में 15,000 से अधिक COVID-19 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए। खगड़िया और दरभंगा जिलों में पिछले दो दशकों में 15 से अधिक वर्षों में बाढ़ आई। इसलिए इन जिलों को साथ-साथ आने वाली विपत्तियों की संभावना की निगरानी और प्रबंधन के लिए काफी ध्यान देने की जरूरत होगी।
04 मई 2021 को, आपदा प्रबंधन विभाग (DMD) ने आगामी बाढ़ के लिए, जिला स्तर की तैयारियों पर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए। इसी तरह 05 मई को, बिहार सरकार ने जल संसाधन विभाग (WRD) द्वारा तैयार ‘बाढ़ नियंत्रण आदेश 2021 (FCO)’ जारी किया।
आपदा तैयारियां
आपदा प्रबंधन विभाग के दिशानिर्देशों में, एक बहु-आयामी रणनीति तैयार की गई है, जिसमें COVID-19 और सामाजिक दूरी के लिए विशेष योजना, और बाढ़ आश्रयों और ऊंचे स्थानों पर राहत शिविरों के लिए स्थलों की पहचान और प्रबंधन पर जोर है।
दिशा-निर्देशों में, बाढ़-आश्रयों में अनाज, पेयजल, पशु चारा, दवाएं, प्रकाश की व्यवस्था, तम्बू, मच्छरदानी, आदि सुनिश्चित करने के अलावा, बारिश-मापक यंत्रों की निगरानी, कमजोर समूहों की पहचान, तटबंधों की सुरक्षा और सड़क संपर्क सुनिश्चित करना शामिल है।
आकस्मिक योजनाओं में जिला स्तरीय आपातकालीन नियंत्रण कक्ष और टास्क फोर्स की स्थापना, सूचना प्रणाली और नावों/जीवन-रक्षा जैकेट की व्यवस्था शामिल है। योजनाओं में मॉक ड्रिल और आकस्मिक फसल सुरक्षा के अलावा, गोताखोरों और समुदाय का प्रशिक्षण भी शामिल है।
COVID-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए, आवश्यक मास्क, सैनिटाइज़र आदि से युक्त, अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में बाढ़ आश्रयों की जरूरत होगी। नवजात शिशुओं के लिए टीकाकरण, प्रसव की व्यवस्था, मनोवैज्ञानिक परामर्श, शिशुओं के लिए विशेष भोजन, सैनिटरी किट, आदि का प्रावधान होना चाहिए।
आपदा प्रबंधन विभाग के दिशा-निर्देश, विशाल राहत शिविरों की स्थापना की रूपरेखा तैयार करते हैं, जिसके अंतर्गत स्थानों का चुनाव पहले से किया जा रहा है, ताकि किसी आपात स्थिति में इसे जल्द से जल्द चालू किया जा सके। COVID-19 को ध्यान में रखकर, मेडिकल जाँच और थर्मल स्कैनर की समुचित व्यवस्था की जाएगी।
बिना लक्षण संक्रमित लोगों को स्वास्थ्य क्वारंटाइन केंद्रों में रहने की अनुमति होगी। क्वारंटाइन केंद्र यथासंभव राहत शिविर से दूर स्थित होगा, और संक्रमण फैलने के जोखिम को न्यूनतम रखने के लिए, भोजन का समय अंतराल के साथ (अलग अलग करके) रखा जाएगा।
दिशानिर्देश में उन अस्थायी रूप से विस्थापित परिवारों के लिए प्रक्रियाएं हैं, जो पूरे बाढ़ के मौसम में या तो तटबंधों पर या सड़क के किनारे शरण लेते हैं। ऐसे स्थानों में एहतियाती उपाय अपनाए जाने चाहिए और सामुदायिक रसोई के लिए स्थलों की पहचान की जानी चाहिए।
बाढ़ नियंत्रण के उपाय
दूसरी ओर, जल संसाधन विभाग द्वारा तैयार सरकार का FCO (Flood Control Order) – 2021, बाढ़ नियंत्रण कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जिन्हें मानसून शुरू होने से पहले पूरा किया जाना है। पहचाने गए कार्यों में तटबंधों पर संवेदनशील स्थानों का निरीक्षण करना और 15 जून 2021 से पहले उन्हें मजबूत करना शामिल है, ताकि उनकी दरारों को बढ़ने से रोका जा सके।
FCO ने 31 अक्टूबर 2021 तक एक बाढ़ नियंत्रण कक्ष को लगातार चालू रहने का आदेश दिया है। बाढ़ के मौसम में, तटबंधों और कमजोर स्थानों की सुरक्षा के लिए निगरानी आवश्यक है। बाढ़ सम्बन्धी ऐतिहासिक आंकड़ों और निगरानी के आधार पर, संवेदनशील स्थलों की सूची का नवीनीकरण और उन्हें संबंधित अधिकारियों के साथ साझा करना जरूरी है।
FCO के अनुसार, शरारती तत्वों द्वारा नुकसान को रोकने के लिए, तटबंधों पर गहन गश्त के लिए सशस्त्र पुलिस टीमों को तैनात करना और सभी अतिक्रमणों को समय पर हटाना जरूरी है, ताकि 15 जून 2021 से पहले मरम्मत का काम किया जा सके।
जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए, FCO ने सिफारिश की है कि जिला अधिकारियों को ग्राम प्रधानों के साथ आपात बैठक आयोजित करनी चाहिए और ग्राम स्वयंसेवकों और चौकीदारों की सेवाओं की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि तटबंधों की गश्त और जानकारी एकत्र करने को सुव्यवस्थित किया जा सके।
इसके अलावा, FCO ने बाढ़ के दौरान सूचना तैयार करने और प्रसार के लिए, प्रभावी संचार व्यवस्था के तंत्र की रूपरेखा तैयार की है। प्रभावित जिले के जिलाधिकारी को बाढ़ की चेतावनी जारी कर प्रभावितों की सहायता की व्यवस्था करनी चाहिए और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना चाहिए।
साथ-साथ आए खतरों के लिए रणनीतियाँ
आपदा प्रबंधन विभाग के साथ-साथ जल संसाधन विभाग के विस्तृत दिशानिर्देशों में, राज्य के बाढ़-संभावित जिलों में सभी बाढ़-पूर्व तैयारियों के लिए अंतिम तिथि के रूप में 15 जून, 2021 का उल्लेख किया गया है। आपदा प्रबंधन विभाग के दिशानिर्देश साथ-साथ आने वाली आपदाओं से निपटने के उपायों को स्पष्ट करते हैं।
हालांकि, FCO ने इस मुद्दे को संबोधित नहीं किया है और हैरानी की बात है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आगामी दोहरे खतरों पर आज तक (कम से कम सार्वजनिक जानकारी में) कोई निर्देश नहीं हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए, आगामी बाढ़ के मौसम में दोहरी आपदाओं से निपटने के लिए अतिरिक्त और सूक्ष्म रणनीतियों का सुझाव दिया जा रहा है।
बाढ़ की किस्में | कौन प्रभावित हैं | आपदा का स्वरूप |
जल-भराव क्षेत्र | तटबंधों के पास (ग्रामीण क्षेत्र) | आपदा का अनुमान संभव, शरण-स्थल तक जाने के लिए पर्याप्त समय |
नदी की बाढ़ | उसी नदी के तटबंधों के बीच (नदी किनारे) | आपदा अनुमान संभव, शरण के लिए अपर्याप्त समय |
नदी की बाढ़ + तटबंध कटाव | तटबंधों के पास (नदी किनारे) | आपदा अनुमान संभव नहीं, बचाव की सीमित संभावनाएं |
नदी की बाढ़ + तटबंध कटाव | नदी के पास (कोई तटबंध नहीं) | बाढ़ का अनुमान संभव, कटाव आम बात, बचाव की संभावनाएं सीमित |
नदी की बाढ़ | ग्रामीण इलाके (तटबंध टूटने के बाद) | बाढ़ का अनुमान संभव नहीं,बचाव के लिए बेहद सीमित समय |
आकस्मिक बाढ़ | उसी नदी के तटबंधों के बीच (नदी किनारे) | अपेक्षित, बचाव के लिए थोड़ा समय |
आकस्मिक बाढ़ | नदी के पास (कोई तटबंध नहीं) | अपेक्षित, बचाव के लिए थोड़ा समय |
बाढ़+/जल-भराव+/सैलाब (डूब) | दो नदियों की प्रणालियों के तटबंधों के बीच | अपेक्षित, बचाव के लिए मध्यम समय |
बाढ़ आपदाओं की एक किस्म लेकर आती है। बाढ़ की किस्म आबादी की भौगोलिक स्थिति से जुड़ी होती हैं और इनके अलग-अलग प्रभाव होते हैं (जैसा कि तालिका में बताया गया है)। जहां महामारी विभिन्न स्थानों में भेदभाव नहीं करती, वहीं बाढ़ की विभिन्न किस्मों के प्रभाव अलग-अलग होंगे।
इसलिए, बाढ़ की तैयारी और COVID-19 की मार को कम करने के उद्देश्य से किसी भी कार्रवाई को पहले इन किस्मों के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए। इसके बाद, तैयारियों की रणनीतियाँ इन अंतरों के अनुरूप तैयार की जानी चाहिएं।
किसी क्षेत्र में बाढ़ की विशेषताओं को, आम तौर पर तीन व्यापक चरणों के प्रभावों के सामूहिक आंकलन द्वारा परिभाषित किया जाता है – बाढ़ से पहले, उसके दौरान और बाद में। दोनों आपदाओं के प्रभाव को न्यूनतम रखने के लिए, अल्पकालिक और दीर्घकालिक एकीकृत रणनीतियों के लिए, मौजूदा COVID-19 प्रसार के साथ मेल करने की जरूरत है।
आने वाले महीनों में, बाढ़ संभावित उत्तर बिहार के निवासियों को दोहरी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। COVID-19 और बाढ़, दोनों की गतिशील प्रकृति और अधिक अनिश्चितताएँ पैदा कर सकती हैं। इसलिए, तत्काल रूप से दोहरी कमजोरियों को कम करने के लिए, एक तंत्र विकसित करने की चिंता होनी चाहिए। यह बाढ़ से पहले और बाढ़ के दौरान के पहले दो चरणों पर ध्यान केंद्रित करके किया जाना चाहिए।
जिला प्रशासन को पंचायती राज संस्थाओं और निर्वाचित वार्ड प्रतिनिधियों को वार्ड स्तर की तैयारी और कार्य योजना के क्रियान्वयन में शामिल करना चाहिए। योजना में तैयारियों और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए परिवारों के साथ जुड़ना शामिल होना चाहिए।
वार्ड स्तर की योजनाएं तत्काल तैयार की जानी चाहिए, प्रत्येक बाढ़ संभावित जिले में बाढ़ की आशंका वाले दूरदराज की पंचायतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। COVID-19 प्रोटोकॉल के अनुरूप, वार्ड स्तर की त्वरित निकासी रणनीतियों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
COVID-19 सुरक्षा मानदंडों को सुनिश्चित करते हुए, बाढ़ प्रभावित समुदाय (विशेष रूप से दूरदराज स्थानों से) को एक सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए पर्याप्त संख्या में नावों की व्यवस्था की जानी चाहिए। वार्ड और पंचायत स्तर पर ऊंचे स्थानों पर पर्याप्त संख्या में अस्थायी और स्थायी बाढ़-आश्रयों का सीमांकन किया जाना चाहिए।
ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित स्थानों पर, बाढ़ आश्रयों के रूप में अधिक संख्या में ऊँचे अस्थायी मिट्टी के प्लेटफॉर्म तैयार किए जाने चाहिए। ये वार्ड स्तर पर जनसंख्या के अनुपात में सुविधाओं के साथ, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) का उपयोग करके किया जा सकता है।
इन बाढ़ आश्रयों को बुनियादी सुविधाओं, जैसे सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल, और स्वच्छता सुविधाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखकर नियोजित किया जाना चाहिए। सुरक्षित पेयजल के लिए वैकल्पिक तरीकों और अस्थायी वर्षा जल संचयन तकनीकों को बढ़ावा देना, और आपदा प्रतिरोधी स्वच्छता तकनीकों, जैसे कि ‘फायदेमंद शौचालय’ (पर्यावरण आधारित स्वच्छता) स्थानीय स्तर पर मुद्दों का समाधान करेगी।
अस्थायी रूप से विस्थापित परिवारों के लिए आवश्यक सेवाओं तक आसान और सुरक्षित पहुंच की योजना इस तरह से बनाई जानी चाहिए, कि पानी लेने के स्थानों और स्वच्छता सुविधाओं जैसे संभावित जमावड़े के स्थानों पर भीड़ न हो।
अस्थायी और स्थायी बाढ़ आश्रयों में विस्थापित बाढ़ प्रभावित समुदाय के लिए, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था को पहले से ही रेखांकित किया जाना चाहिए। महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और किशोरियों जैसे विशिष्ट दबावग्रस्त समूहों की कमजोर स्थिति से निपटने के लिए योजना होनी चाहिए।
नियंत्रण मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने के लिए, वार्ड स्तर पर विकेन्द्रीकृत निगरानी समितियों का गठन किया जाना चाहिए। 15 जून से 31 अक्टूबर तक, सभी बाढ़ संभावित जिलों में कोविड-19 की लगातार जांच की जानी चाहिए। यह भविष्य में हवाले के लिए, किसी संभावित अन्तर्सम्बन्ध को स्थापित करेगा। इस योजना और क्रियान्वयन का ब्लॉक स्तर पर दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए।
महामारी, बाढ़ या फिर ऐसी किसी भी अपेक्षित और अप्रत्याशित आपदाओं द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों को देखते हुए, समय-समय पर की गई सुरक्षा ऑडिट, कमजोर स्थिति का मानचित्रण, विकेन्द्रीकृत एवं समावेशी सूचना और संचार तंत्र जैसी रणनीतियों के साथ जिला आपदा योजना का पुनरावलोकन एक नियमित व्यवहार बन जाना चाहिए।
भविष्य में, साथ-साथ आई आपदाएं कई अभूतपूर्व स्थितियों को शुरुआत देते हुए, एक निरंतर आने वाली वास्तविकता बन सकते हैं। उपरोक्त सिफारिशें संभावित मंडराते संकट से निपटने के लिए रणनीति विकसित करने में मदद कर सकती हैं। फिर भी, अज्ञात आपदाओं से निपटने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है, जो कि बदलती जलवायु के कारण पर्यावरण और प्राकृतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती हैं, विशेष रूप से बिहार जैसे आपदा-प्रभावित राज्य में।
एकलव्य प्रसाद बिहार और झारखण्ड में कार्यरत सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट, ‘मेघ पाईने अभियान’ (अर्थात बादल-जल अभियान) का नेतृत्व करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
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