बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए समुदाय ने उपकेंद्र स्थापित किया

सुरेंद्रनगर, गुजरात

आंगनबाडी के साथ तंग जगह में बने स्वास्थ्य उपकेन्द्र में सुविधाओं का अभाव था। ग्रामवासियों ने मिलकर एक बड़े परिसर में एक उपकेंद्र खोला, जिससे मातृ देखभाल और COVID-19 टीकाकरण संभव हो सका

हाल ही में हुई COVID-19 बढ़ोत्तरी से हमने एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के महत्व को महसूस किया है। जमीनी स्तर पर, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था में स्वास्थ्य उपकेंद्र इस तरह से बने हैं कि एक केंद्र 5,000 लोगों को सेवा प्रदान करता है; मरुस्थल/पहाड़ी/जनजातीय क्षेत्रों के मामले में 3000 व्यक्ति प्रति केंद्र। 

ये स्वास्थ्य उपकेंद्र ग्रामीण आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ग्रामीणों के लिए वे सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था तक पहुंच का प्राथमिक बिंदु हैं। आमतौर पर, उपकेंद्रों का मुख्य ध्यान प्रजनन और बाल स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर रहता है।

लेकिन महामारी के दौरान स्वास्थ्य उपकेंद्र, कोरोनावायरस और COVID-19 सुरक्षा नियमों के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ, जाँच और टीकाकरण केंद्रों के रूप में भी काम कर सकते हैं। इस दिशा में एक समुदाय ने अपने गांव में एक नया स्वास्थ्य उपकेंद्र स्थापित किया है। 

साझा स्थान

ओवनगढ़ गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के सायला प्रशासनिक ब्लॉक का एक छोटा सा गाँव है। यह अहमदाबाद से लगभग 135 किमी दूर है। इसमें लगभग 250 परिवार हैं, और जनसंख्या लगभग 1,400 है। 2011 की जनगणना के अनुसार, गाँव की साक्षरता दर 54.4% है और महिला साक्षरता दर 20.2% है।

दस्तावेजों के अनुसार ओवनगढ़ में एक उपकेंद्र था। स्वास्थ्य संबंधी जाँच और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आंगनवाड़ी (चिल्ड्रन डे केयर सेंटर) में की जाती थी। महामारी शुरू होने से पहले इससे गर्भवती महिलाओं, नव-माताओं और नवजात शिशुओं को सेवाएं प्रदान की जाती थी।

क्योंकि आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य उपकेन्द्र का काम एक ही छोटे से कमरे में होता था, दोनों ही अच्छी सेवाएं प्रदान नहीं कर पाते थे। कोई गोपनीयता नहीं थी, और इसलिए गर्भवती महिलाएं जाँच के लिए आने से बचती थीं। आंगनवाड़ी में बिस्तर और बैठने की जगह नहीं थी।

विशेष केंद्र की जरूरत 

लोगों को इलाज के लिए आमतौर पर दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था। उन्हें 6 किमी दूर सुदामाड़ा गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता था। यदि स्वास्थ्यकर्मी नहीं मिले, तो उन्हें 20 किमी दूर सायला जाना पड़ता था।

महिलाओं के लिए दूसरे स्थानों पर जाना एक समस्या थी, क्योंकि उन्हें बुनियादी इलाज के लिए भी चिकित्सा केंद्र जाने के लिए, दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था। छूत की बीमारी या सामान्य फ्लू के लिए किसी का इलाज करना असंभव था, क्योंकि इससे दूसरों, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को खतरा होता था।

महामारी के दौरान ग्रामवासियों ने एक अलग स्वास्थ्य केंद्र की कमी महसूस की, क्योंकि कोरोनावायरस की जाँच या टीकाकरण के लिए, कोई निर्धारित स्थान नहीं था। ऐसी स्थिति में, एक टिप्पणी ने एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), हंसा सरवैया को प्रेरित किया, कि ओवनगढ़ में एक स्वास्थ्य उपकेंद्र होना चाहिए।

हंसा सरवैया कहती हैं – “मैं एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक बैठक में थी, जब किसी ने ‘ओवनगढ़ के स्वास्थ्य उपकेंद्र’ का उल्लेख किया; मैं चौंक गई, क्योंकि ओवनगढ़ में कोई उपकेंद्र नहीं था।” समुदाय के अगुआ लोगों ने भी अपने गांव में एक पूरी तरह कार्यात्मक उपकेंद्र की जरूरत महसूस की।

स्वास्थ्य समिति

हालात तब ठीक होने लगे, जब एक बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशीष भट्टी को ओवनगढ़ नियुक्त किया गया। हालांकि गांव में एक स्वास्थ्य समिति थी, लेकिन वह निष्क्रिय थी। हंसा सरवैया और एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता पारुल लकुम की मदद से, भट्टी ने स्वास्थ्य समिति को पुनर्जीवित किया।

स्वास्थ्य समिति में आशीष भट्टी, हंसा सरवैया और पारुल लकुम के अलावा महिला सरपंच जसु सरवैया, तलाटी (ग्राम लेखाकार) जयदेवसिंह पडियार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वीनू वानिया और आंगनवाड़ी सहायिका कंचन पांड्या शामिल हैं।

उपकेंद्र के स्वास्थ्य कार्यकर्ता उन ग्रामवासियों से मिलते हैं, जो इलाज या टीकाकरण के लिए केंद्र नहीं आ सकते हैं (छायाकार – आशीष भट्टी)

भट्टी ने समिति के सदस्यों को प्रेरित किया और उपकेंद्र की जरूरत पर जोर दिया, क्योंकि बहुत से लोग जाँच के लिए आंगनवाड़ी जाने से बचते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में COVID-19 मामलों के बढ़ने के साथ, समिति को एक उपकेंद्र के महत्व का एहसास हुआ, और यह कि उपकेंद्र टीकाकरण, जाँच-स्थल और सूचना-स्थल के रूप में भी काम कर सकता है।

पुनरुद्धार 

क्योंकि स्थानीय स्कूल ने एक नए भवन में काम करना शुरू कर दिया था, भट्टी और सरवैया ने गांव के अगुआओं को राजी कर लिया कि वे पुराने स्कूल की इमारत का एक खाली हॉल आवंटित कर दें, जो अब इस्तेमाल नहीं हो रहा था। स्वास्थ्य समिति ने स्कूल के प्रधानाध्यापक, दिनेश छपरा से संपर्क किया। उनके राजी होने के बाद सरपंच (ग्राम प्रधान) ने भी इजाजत दे दी।

हॉल को मरम्मत और उपकरणों से सुसज्जित करने की जरूरत थी। आशीष भट्टी, हंसा सरवैया और पारुल लकुम ने मरम्मत के काम के लिए खुद अपना पैसा खर्च किया, जिसमें कमरे को ठीक करना और पेंट करना, चिकित्सा उपकरण खरीदना, एक बिस्तर और पर्दे खरीदना, उपकेंद्र की बाड़ लगाना और उसे दूसरी विविध वस्तुओं से सुसज्जित करना शामिल था।

नया स्वास्थ्य उपकेंद्र

सामुदायिक प्रयास रंग लाए और जनवरी 2021 में, ओवनगढ़ में स्वास्थ्य उपकेंद्र खोल दिया गया। प्रधानाध्यापक छपरा और सरपंच जसु सरवैया ने भवन के लिए कोई किराया नहीं लेने का फैसला किया।

भट्टी, सरवैया और लकुम और कभी-कभी पंचायत बिजली का बिल भरते हैं। तीनों ने मरम्मत के लिए कुल मिलाकर लगभग 20,000 रुपये इकठ्ठा करके खर्च किए। पंचायत पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है और स्वास्थ्य कर्मियों को भुगतान करती है।

पारुल लकुम और आशीष भट्टी स्वास्थ्य उपकेंद्र का प्रबंधन करते हैं। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता स्वास्थ्य उपकेंद्र की गतिविधियों में सहयोग करती हैं। आंगनवाड़ी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल और पोषण सेवाएं प्रदान करती है। वे टीकाकरण में भी सहयोग देते हैं।

सरपंच पंचायत का प्रतिनिधित्व करते हैं और तलाटी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि सुचारू रूप से कार्य करने के लिए, उपकेंद्र में सभी आवश्यक संसाधन हैं। उपकेंद्र सोमवार से शनिवार तक सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। COVID-19 के कारण, यह रविवार को भी सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक काम करता है।

एक ग्रामवासी कनु सरवैया का कहना था – “आंगनवाड़ी में जगह नहीं थी, लेकिन नया केंद्र काफी बड़ा है। गाँव के लिए स्वास्थ्य केंद्र एक वरदान है। कर्मचारी बहुत मददगार हैं और वे उन रोगियों के घर भी जाते हैं, जो घर से बाहर नहीं निकल सकते।”

मातृ स्वास्थ्य देखभाल

नए स्वास्थ्य केंद्र में एक बिस्तर और कुर्सियों के साथ बैठने की जगह आवंटित है। एक बड़े हॉल में, जिसमें पर्दे लगे हैं, गोपनीयता को लेकर अब कोई चिंता नहीं है, और इस कारण ज्यादा महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान और बाद में केंद्र तक आने के लिए प्रोत्साहित हुई हैं। महामारी के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने छह गर्भावस्थाओं में मदद की है।

एक नव-माता, ममता मेर कहती हैं – “मैं नई जगह पर जाने में बहुत सहज हूँ, क्योंकि वहां पूरी गोपनीयता थी। मुझे अपनी गर्भावस्था के दौरान, कैल्शियम और आयरन की खुराक, सभी दवाएं, संतुलित आहार संबंधी जानकारी और परामर्श प्राप्त हुए। मैंने अपने नियमित परीक्षण करवाए और मुझे अपनी जाँच के लिए डॉक्टर के पास भेजा गया।”

मेर ने माना कि स्वास्थ्य समिति की महिलाओं ने उन्हें बच्चे को खिलाने, नहलाने और उसकी देखभाल करने के तरीके के बारे में बताया। उन्होंने कहा – “मुझे खुशी है कि मुझे दूसरे गाँवों में नहीं जाना पड़ा और अपने गाँव में ही पूरी देखभाल मिली, जहां चारों ओर वे लोग थे, जिन्हें मैं जानती और भरोसा करती हूँ।”

प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं और साथ आने वाले परिवार के सदस्यों को मुफ्त भोजन मुहैया कराने वाले एक महिला समूह की सदस्य, शानू गाबू का कहना था – “अब स्वास्थ्य कर्मियों के लिए गर्भवती महिलाओं से निर्धारित स्थान पर मिलना और गर्भावस्था से पहले एवं बाद में उनकी मदद करना आसान हो गया है।”

टीकाकरण केंद्र

क्योंकि उपकेंद्र गांव के एक प्रमुख स्थान पर है, इसलिए यह पड़ोसी गांवों के निवासियों में भी लोकप्रिय हो गया है। 20 जून तक उन्होंने कुल 264 लोगों (45 से ऊपर आयु वर्ग के 182 और 18-45 आयु वर्ग के 82 लोग) का टीकाकरण किया है।

उपकेंद्र के स्वास्थ्य कर्मियों ने COVID-19 की जाँच के लिए, घर-घर जाकर थर्मल-स्क्रीनिंग की (छायाकार – पारुल लकुम)

एक ग्रामवासी, घनश्याम परलिया ने बताया – “मेरे सहित 14 लोगों के मेरे पूरे संयुक्त परिवार को स्वास्थ्य केंद्र में टीका लगा। आगा खान संगठन और गांव के अगुआ लोगों ने COVID ​​​​और टीकाकरण के बारे में जागरूकता के लिए बेहतरीन काम किया है।” स्वास्थ्य समिति और आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम [AKRSP(I)] द्वारा जागरूकता अभियानों के कारण, ग्रामीण टीका लगवाने के इच्छुक हैं।

लेकिन टीके की आपूर्ति में कमी के कारण, उपकेंद्र सीमित संख्या में ही लोगों को टीकाकरण कर पाया है। परलिया कहते हैं – “शुरुआत में स्वास्थ्य कर्मी टीकाकरण अभियान के लिए घर-घर जाते थे और अब स्थिति इस हद तक बदल गई है कि लोग टीकाकरण कराने को तैयार हैं। कर्मचारी बहुत उत्साहित हैं और मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।”

शुरू होने के समय से, स्वास्थ्य उपकेंद्र ने मास्क बांटे, घर-घर जाकर बुखार और ऑक्सीजन के स्तर की जांच की। उपकेंद्र बड़ा होने के कारण, मरीज और आगंतुक शारीरिक दूरी का पालन कर सकते हैं। केंद्र में तीन लोगों को टीबी के टीके लगाए हैं, और पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को उनके जरूरी टीकों की खुराक दी गई।

कानू सरवैया ने कहा – “मैं और मेरा परिवार शुरू में टीकाकरण को लेकर बहुत उलझन में थे, लेकिन बहुत से लोगों को टीका लगवाते देख, हम भी चले गए। यदि उपकेंद्र हमारे गाँव में नहीं होता, तो हम वैक्सीन नहीं लेते।”

स्थायी बदलाव 

स्वास्थ्य उपकेंद्र तीन गांवों, अर्थात् ओवनगढ़, शांतिनगर और गुंडियावाड़ा को सेवाएं प्रदान करता है। आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य उपकेन्द्र के अलग-अलग भवनों में काम करने से, ज्यादा लोग स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करने लगे हैं।

लोगों के बीच हाथ धोने की आदत को प्रोत्साहित करने के लिए, AKRSP(I) ने उपकेंद्र में एक बिना संपर्क वाली हाथ धोने की इकाई लगाई है। बच्चों में बार-बार हाथ धोने की आदत को बढ़ावा देने के लिए, AKRSP(I) ने स्कूल में एक साबुन-बैंक की भी स्थापना की है। इन बुनियादी सुविधाओं को DFID और हिंदुस्तान यूनिलीवर द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना के हिस्से के रूप में विकसित किया गया था।

समुदाय के सदस्यों, खासतौर से स्वास्थ्य समिति की शक्तिशाली महिलाओं ने, इस उपकेंद्र को मूर्तरूप देने के लिए कड़ी मेहनत की है। क्योंकि उन्होंने हालात से समझौता करने की बजाय, एक बदलाव के लिए इसे हासिल किया है, इसलिए सभी को विश्वास है कि हालात सामान्य होने के बावजूद भी उपकेंद्र का काम जारी रहेगा।

कार्तिक जोशी आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम (भारत) में एक कार्यक्रम विशेषज्ञ हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: kartik.joshi@akdn.org