झारखण्ड में महिला स्वयंसेवकों ने टीकाकरण से जुड़ी आशंकाओं को दूर किया
समुदायों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करते हुए, ‘सेतु दीदी’ ने ग्रामीणों की चिंताओं को दूर किया और उन्हें टीकाकरण के लिए राजी किया।
समुदायों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करते हुए, ‘सेतु दीदी’ ने ग्रामीणों की चिंताओं को दूर किया और उन्हें टीकाकरण के लिए राजी किया।
दूसरी लहर के दौरान COVID-19 में अचानक आए उछाल के साथ, दूसरे राज्यों की तरह झारखंड सरकार ने लोगों को कोरोनावायरस से बचाने के लिए कई उपाय किए। लेकिन जैसे ही सरकार ने रोकथाम संबंधी दिशा-निर्देश और नियम जारी किए, लोगों में नकारात्मक प्रतिक्रिया हुई।
COVID-19 से निपटने में टीके के लिए हिचकिचाहट एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आई। विभिन्न वर्गों के लोगों, विशेषकर राज्य के ग्रामीण समाज के लोगों में टीकाकरण अभियान के बारे में गलत धारणा बन गई।
ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात में, राज्य सरकार और विकास-संस्थाओं को शामिल करते हुए एक सहयोगी पहल द्वारा स्थानीय महिला स्वयंसेवकों को टीके से जुड़े मिथकों का भंडाफोड़ करने के लिए प्रेरित किया गया। टीकाकरण करने में उनके प्रयास उत्साहजनक रहे हैं।
टीके के बारे में भ्रम
झारखंड के कई जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के साथ बातचीत से COVID-19 टीके के बारे में उनकी नकारात्मक मानसिकता के कारणों का पता चला। लोगों ने टीके की पहली खुराक के तुरंत बाद हुए गंभीर दुष्प्रभावों की घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने मौत का असली कारण जाने बिना, टीकाकरण के बाद हुई मौतों के मामलों का भी जिक्र किया।
बहुत से लोगों ने वेतन के नुकसान के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की, क्योंकि उन्हें लगा कि टीकाकरण कई दिनों तक बीमार कर सकता है और वे काम करने में सक्षम नहीं होंगे। कुछ स्थानों पर समुदाय का मानना था कि बच्चों के नियमित टीकाकरण के विपरीत, COVID-19 टीका लंबे समय तक बीमारी का कारण बनेगा।
दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों का मानना था कि टीका उन्हें नपुंसक बना देगा और उनकी उम्र कम कर देगा। कुछ लोगों ने सोचा कि टीकाकरण अभियान जनसंख्या नियंत्रण का एक साधन है। आदिवासी इलाकों में कई लोगों का मानना था कि उन्हें टीके की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे एक कुदरती वातावरण में रहते हैं, और कि यदि संक्रमण हुआ भी, तो वे जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों से ठीक हो जाएंगे।
महिला संगठक
इस तरह की भ्रांतियों को दूर करने और टीका के लिए हिचकिचाहट को दूर करने के लिए, झारखंड राज्य आजीविका संवर्द्धन सोसाइटी (JSLPS) की सेवाएं प्राप्त की गई, जिसका स्वयं सहायता समूहों का नेटवर्क है और सदस्यों के लिए परामर्श सत्र आयोजित किए जाते हैं।
मौजूदा महिला समूहों के माध्यम से चुने गए समुदाय-आधारित प्रोत्साहन-प्राप्त स्वयंसेवकों को, झारखंड इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हेल्थ एंड न्यूट्रिशन (JIDHAN) के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो कि ‘प्रदान’, PHIA फाउंडेशन, ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF), और अज़ीम प्रेमजी परोपकारी पहल द्वारा शुरू की गई एक COVID-19 प्रतिक्रिया पहल है।
स्वयंसेवक, जिन्हें सेतु दीदी कहा जाता है, सरकारी सेवाएं प्रदाताओं और समुदायों के बीच एक सेतु का काम करते हैं। इन महिला कार्यकर्ताओं का चयन स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की क्लस्टर स्तरीय फेडरेशन (CLF) द्वारा किया गया था। उन्हें दक्षिण छोटानागपुर क्षेत्र के पांच जिलों के 38 चुने हुए ब्लॉकों में जुटाया गया था।
सेतु दीदी उन लोगों की जांच करवाती हैं जिनमें लक्षण दिखते हैं और यदि जरूरी हो, तो उन्हें घर पर अलग-थलग करवाती हैं, या मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के माध्यम से समय पर रेफरल दिलवाती हैं। वे लौटने वाले प्रवासियों और अन्य लोगों को कोरोनावायरस की जाँच के लिए प्रोत्साहित करती हैं, SHG और CLF की मदद से COVID-उपयुक्त व्यवहार को बढ़ावा देती हैं और ग्रामीणों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
प्रत्येक CLF दो सेतु दीदी नियुक्त करती है। प्रत्येक ब्लॉक में औसतन तीन CLF काम कर रहे हैं और प्रति ब्लॉक 4 से 6 सेतु दीदी, यानि कुल 235 ऐसी महिला कार्यकर्ताओं को टीTRIF से जरूरी तकनीकी जानकारी और सहायक निरीक्षण और मानदेय प्राप्त हुए हैं।
5 जुलाई तक, 235 सेतु दीदियों ने 38,853 एसएचजी के साथ झारखंड के 2,662 गांवों में काम किया है। उन्होंने अप्रैल के मध्य से 51,882 घरों का दौरा किया। वे परीक्षण और टीकाकरण से संबंधित अन्य कार्यों के अलावा, प्रवासियों को ढूंढने और उन मौतों की पहचान कर पाई, जिनकी जानकारी नहीं दी गई थी।
सेतु दीदियों की कार्यपद्धति
CLF-ग्राम संगठन-SHG संरचना के साथ अपने गहन जुड़ाव के साथ, सेतु दीदियों ने लोगों की नकारात्मक मानसिकता को बदलने की कोशिश की। स्थानीय निवासी होने के कारण उन्हें समुदायों के भय और चिंता को आसानी से समझने में मदद मिली। उन्होंने निर्धारित पहुँच- विधियों से आगे जाते हुए, अलग-अलग तरीके अपनाए।
प्रत्येक सेतु दीदी ने स्थानीय महिला संस्थानों, पंचायती राज संस्थान (PRI) के सदस्यों और अग्रणी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर, 12 से 14 गांवों में काम किया। लॉकडाउन के दौरान उनके लिए अपने-अपने कार्यक्षेत्र के सभी गाँवों तक पहुँचना मुश्किल हो गया, लेकिन उन्होंने अपने गाँव के आस-पास के 3 से 5 गाँवों का कार्यभार संभाल लिया।
अपने काम को अन्य गांवों में बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने प्रत्येक SHG से ‘सक्रिय दीदी’ की पहचान की। उन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं द्वारा दी जा रही COVID-19 रोकथाम सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए काम किया।
सेतु दीदियों की टीम-आधारित कार्यपद्धति बहुत कारगर साबित हुई। राज्य सरकार ने भी इस कार्यपद्धति का समर्थन किया, और इसके लिए सहायक नर्स दाइयों (ANMs), आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, PRI सदस्यों, धार्मिक/पारंपरिक अगुआओं आदि को शामिल करके, जाँच और टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए एक अनुकूल दिशानिर्देश जारी किया।
सकारात्मक परिणाम
कुछ स्थानों पर ग्रामीणों ने सरकारी अग्रणी कार्यकर्ताओं के प्रति विरोधी और हिंसक रुख अपनाया, क्योंकि उन्होंने अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को टीकाकरण को बढ़ावा नहीं देने की चेतावनी दी थी। ऐसी स्थितियों में भी, स्थानीय महिला समूहों के बल पर, सेतु दीदी ग्रामवासियों तक पहुंच कर उन्हें आश्वस्त करने में सफल रही।
वे परिवार के वरिष्ठतम सदस्यों को परिवार के अन्य पात्र सदस्यों को टीका लगवाने के लिए प्रभावित करने के लिए मनाने में सफल रहे। सेतु दीदियों ने खुद टीका लगवाकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया, और गांव में रहने वाले उन लोगों की मिसाल देती रही, जिनपर टीका लगवाने के बाद लंबे समय तक कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ था। इसी तरह रांची जिले के नगरी प्रखंड के सभी CLF सदस्यों ने टीका लगवा कर एक मिसाल कायम की।
इन कदमों से उन्हें टीकाकरण सेवाओं के प्रति लोगों की नकारात्मक मानसिकता को दूर करने में मदद मिली। गुमला जिले के चैनपुर ब्लॉक की मालम और बामदा पंचायतों के दुर्गम और नक्सल-प्रभावित इलाकों में भी ऐसी रणनीतियां कारगर रही।
खूंटी जिले के रानिया ब्लॉक में, स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से, सेतु दीदियां स्थानीय पंचायती राज संस्थाओं और युवा समूहों और अन्य अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर, टीकाकरण के कवरेज में सुधार के लिए एक प्रभावी ढांचा स्थापित कर पाई। इससे बनिया पंचायत में 18 और 45 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के 90% से ज्यादा लोगों को अपनी पहली खुराक प्राप्त करने में मदद मिली।
ग्रामीणों में टीके संबंधी चिंताओं में से एक, पहले से स्वास्थ्य समस्या वाले लोगों पर टीके के प्रभाव से जुड़ी थी। सेतु दीदियों ने आशा कार्यकर्ताओं और ANMs की मदद से, मापदंडों की जांच की। आशा कार्यकर्ताओं को इंफ्रारेड थर्मामीटर और पल्स ऑक्सीमीटर दिए गए थे। ANM के पास पहले से ही रक्तचाप और खून की जाँच के लिए अपनी किट थी। ग्रामीण उनकी मंशा को समझ गए थे।
लोहरदगा जिले के कुछ ब्लॉकों में, सेतु दीदियों ने कुछ SHG महिलाओं की पहचान की, जो यह समझाने के लिए मान गई कि उन्होंने टीकाकरण के दुष्प्रभावों को कैसे कम किया, जिससे वे कुछ दिन बुरी तरह प्रभावित रही। उनके समन्वित प्रयास और आपसी संवाद से, काइरो, सदर और भंडारा ब्लॉकों में कुछ ही हफ्तों में 80% से ज्यादा टीकाकरण हासिल किया गया।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा
महिला संगठकों का चुनाव करना और उनके समुदाय के साथ काम ने यह दिखाया है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए कैसे कुछ पहलू महत्वपूर्ण हैं।
ग्रामीण समुदायों को अपनी चिंताओं को दूर करने और गलत विचारों को दूर करने के लिए प्रभावी जानकारी, मनो-सामाजिक परामर्श और पारस्परिक संवाद की जरूरत होती है। गहन बातचीत और परामर्श को टीकाकरण, परीक्षण, आदि को बढ़ावा देने की प्रक्रिया का एक हिस्सा होना चाहिए।
स्थानीय महिला समूहों के साथ प्रभावी जुड़ाव और क्लस्टर स्तर पर सेतु दीदी जैसे प्रोत्साहन-प्राप्त कार्यकर्ता वर्ग मदद लेना एक किफ़ायती, व्यावहारिक हस्तक्षेप है। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी सरकारी व्यवस्था का उपयोग करके बढ़ाया जा सकता है।
कई उदाहरणों ने साबित किया है कि इस तरह के प्रोत्साहन-प्राप्त कार्यकर्ता वर्ग को तैनात करने से, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नियमित स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं को बढ़ावा देने में मदद मिलती है, जो कि टीTRIF द्वारा अन्य भागीदारों के साथ विभिन्न राज्यों में लागू किया गया एक मॉडल है। इससे तपेदिक (टीबी) के रोगियों के लिए सेवाओं तक पहुंच में सुधार हुआ। इसलिए इस मॉडल को एक आजमाया हुआ सबूत माना जा सकता है, जैसा कि सरकारी अधिकारियों ने स्वीकार किया है।
हालाँकि एक समुदाय में अपनी स्वयं की जिम्मेदारियां निभाने वाले कई लोग होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने में जरूरी सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिए, एक सूत्रधार सहायक होता है। ऐसे प्रोत्साहन-प्राप्त सूत्रधार अग्रणी सरकारी कार्यकर्ताओं को पूरक और अतिरिक्त सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
हालाँकि एक समुदाय में अपनी स्वयं की जिम्मेदारियां निभाने वाले कई लोग होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने में जरूरी सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिए, एक सूत्रधार सहायक होता है। ऐसे प्रोत्साहन-प्राप्त सूत्रधार अग्रणी सरकारी कार्यकर्ताओं को पूरक और अतिरिक्त सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
स्वयं सहायता समूहों, पंचायती राज संस्थानों और पारंपरिक या धार्मिक अगुआओं के सहयोग से, घरेलू हिंसा, जरूरी सेवाओं का लाभ उठाने के दौरान मजदूरी के नुकसान के डर और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में रूकावट डालने में परिवार के अन्य सदस्यों के प्रभाव के मुद्दों से निपटा जा सकता है। ये मुद्दे लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ सेवा प्राप्ति को भी दर्शाते हैं।
भाषा संबंधी बाधाओं, पारंपरिक विश्वासों और स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए जरूरी तरीकों से निपटने के लिए पूरक संसाधनों की अब तक अनदेखी हुई है। जरूरत के आधार पर सूक्ष्म योजना सुनिश्चित करते हुए, समुदाय स्तर के मुद्दों को संबोधित करने के लिए, जरूरी संचार-रणनीतियों के लिए, संसाधन आवंटित किए जाने चाहियें।
सूक्ष्म नियोजन प्रक्रियाओं में जागरूकता, समय पर और आवश्यक मात्रा में टीकों की उपलब्धता, स्थानीय वातावरण में मौजूद व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए, उपयुक्त लोगों के माध्यम से जरूरत-आधारित चिकित्सा सहायता और परामर्श के बारे में विचार किया जाना चाहिए। टीकाकरण के संभावित दुष्प्रभावों निपटने के लिए, सरकारी तंत्र की उत्तरदायी और सहायक सेवाओं को लागू किया जाना चाहिए।
रंजन कांति पांडा TRIF से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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