बारिश और हाथियों के कारण किसानों की लॉकडाउन चुनौतियाँ बढ़ी
लगातार होने वाली बारिश और जंगली हाथियों ने तरबूज को नुकसान पहुंचाया, जिसे किसान लॉकडाउन में बेच नहीं सके। संगठनों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें खरीदारों तक पहुंचने में मदद की
लगातार होने वाली बारिश और जंगली हाथियों ने तरबूज को नुकसान पहुंचाया, जिसे किसान लॉकडाउन में बेच नहीं सके। संगठनों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें खरीदारों तक पहुंचने में मदद की
झारखंड के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित, कृषि गुमला जिले के ग्रामीणों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है। इनमें ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं। शुरू में ग्रामीण अपने उपभोग के लिए फसलें उगाते थे।
क्योंकि इन किसानों के पास बाज़ारों की जानकारी या संसाधनों की कमी थी, इसलिए स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने विभिन्न आजीविका कार्यक्रम शुरू किए। अब किसान पशुपालन के माध्यम से अपनी पूरक आय अर्जित करते हैं, जिसमें आंगन में मुर्गी पालन और बकरी पालन शामिल हैं।
गैर सरकारी संगठनों ने सौर लिफ्ट-इरीगेशन की शुरुआत की, ताकि किसान गर्मियों की फसलें पैदा कर सकें। इन संगठनों ने किसानों को तरबूज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया। मांग को देखते हुए कई किसानों ने तरबूज उगाना शुरू कर दिया।
इस समय गुमला जिले में 2500 से ज्यादा किसान तरबूज उगाते हैं, जिसका रकबा लगभग 2,000 हेक्टेयर है। किसान अपनी उपज स्थानीय बाजारों में बेचते हैं, जहां से स्थानीय लोग और व्यापारी फल खरीदते हैं।
व्यापारी कुछ दूर-दराज के गांवों में जाते हैं और किसानों से काफी सस्ते दामों पर सीधे फल खरीदते हैं। ये व्यापारी मुख्य गुमला बाजार, रांची में उपज बेचते हैं; और ए ग्रेड की उपज बड़े व्यापारियों को अधिक लाभ पर बेची जाती है।
फिर भी, पिछले दो वर्षों में, जंगली जानवरों द्वारा फसलें नष्ट करने के अलावा, COVID-19 महामारी के कारण, गुमला के तरबूज उगाने वाले किसान आर्थिक संकट में हैं। NGOs द्वारा ऑनलाइन बिक्री की सुविधा प्रदान करने से उन्हें कुछ राहत मिली है।
महामारी का प्रभाव
अरहरा गांव की एक किसान, सुमिता बरला ने अपनी दो एकड़ जमीन में लगातार दो साल तक इस उम्मीद में तरबूज उगाए, कि उनके निवेश के फलदायी नतीजे निकलेंगे। दुर्भाग्य से, उन्हें और दूसरे किसानों को नुकसान हो गया।
COVID-19 का फैलना रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के कारण, परिवहन सुविधाएं सीमित थी। तरबूज खरीदने के लिए कोई भी खरीदार अरहारा या अन्य गांवों में नहीं आया। सुमिता बरला कहती हैं – “पिछले साल मैंने अपनी बचत का पैसा निवेश किया और इस साल मैंने कर्ज लिया। अब मुझे अपना पैसा वसूल होने की भी उम्मीद नहीं है। मुझे नहीं पता कि निकट भविष्य में मेरे हालात सुधरेंगे।”
कई गांवों में हजारों एकड़ में तोड़े गए तरबूज सड़ने के लिए छोड़ दिए गए, क्योंकि लॉकडाउन के समय व्यापारी और खरीदार फल नहीं खरीद पा रहे थे। पिछले कुछ वर्षों में, किसान 5 से 7 रुपये प्रति किलो के हिसाब से तरबूज बेच पा रहे थे, लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के बाद से नहीं। किसान, जयंती करकट्टा अपनी उपज का एक हिस्सा बेचने में कामयाब रही, लेकिन केवल 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से।
किसानों के अलावा, तरबूज तोड़ने, लदान करने एवं उतारने वाले और दूसरे संबंधित कार्यों जैसी कृषि गतिविधियों पर दैनिक मजदूरी के लिए निर्भर मजदूरों को भी इस स्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ा है।
चक्रवात का असर
फसल बर्बाद होने से बचाने के लिए, कुछ किसानों ने अपने गांव की बस्तियों में तरबूज बांट दिए। लेकिन ग्रामीणों के द्वारा खाने के लिए उपज बहुत ज्यादा थी।
कोल्ड स्टोरेज की सुविधा नहीं होने के कारण, किसानों ने फलों को खेत में ही छोड़ दिया। जब ओडिशा में चक्रवात ‘यास’ ने ओडिशा में प्रवेश किया, तो इसके प्रभाव से झारखंड में भारी बारिश हुई। बारिश में तोड़े गए और तोड़ने के लिए तैयार तरबूज भी खराब हो गए।
कुली गांव की एक महिला किसान, प्रतिमा कहती हैं – “अतीत में, अपनी फसल के समय खराब मौसम का हमें अनुभव है, लेकिन इस बार अपनी उपज न बेच पाने के कई कारण पहले से ही मौजूद थे। बारिश से ये बदतर हो गए और हमारे सारे तरबूज खेत में ही सड़ गए।”
रामतोल्या गांव के किसान बिजेंद्र बरला का कहना था कि लॉकडाउन की दिक्कतों के अलावा, चक्रवात ने बहुत से किसानों को प्रभावित किया। वह कहते हैं – “लगातार बारिश के कारण तरबूज सड़ गए।”
हाथियों द्वारा बर्बादी
हाथियों द्वारा फसल का उजाड़ना पहले भी हो चुका है, लेकिन इस साल इसने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चातकपुर गांव की एक महिला किसान, सावित्री कहती हैं – “हाथियों, बारिश और कीट-प्रकोप से फसल बचाने की मेरी सारी कोशिशें व्यर्थ गई और मैं अपनी फसल नहीं बचा सकी।”
किसान बिजेंद्र बरला कहते हैं – “इस साल मेरी फसल का एक हिस्सा बर्बाद होने के बाद, जंगली हाथियों के हमले से फसल को बचाने के लिए मैंने दिन-रात एक कर दी। सभी सावधानियों और कोशिशों के बावजूद, लाभ तो भूल जाइये, मैं अपना निवेश भी वापस नहीं कमा सका।”
सोशल मीडिया के माध्यम से बिक्री
कुछ किसान जो आस-पास के बाजारों में तरबूज बेचने के लिए ले गए थे, उन्हें माल वापिस लाने तक के लिए भी कीमत नहीं मिली। बरला ने कहा – “हम गाँव के छोटे किसान हैं। हमें नहीं पता कि क्या किया जाए।” बरला के अनुसार, किसानों ने स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की मदद मांगी।
किसानों ने मांग की कि राज्य और केंद्र सरकारें इस संकट को समझें और उनकी सहायता के लिए नुकसान का आंकलन करें। सरकार द्वारा एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया गया है।
जैसा कि रमजान के रोज़ों के समय हुआ था, किसान उम्मीद रख रहे थे। कुछ स्थानीय गैर सरकारी संगठनों ने किसानों के लिए तरबूज की बिक्री में मदद के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म बनाया। उन्होंने सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से एक अभियान भी शुरू किया और कुछ माल बेचने में किसानों की मदद की।
तृप्ता शर्मा ‘विप्रो फाउंडेशन’ में प्रोग्राम ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। अंकित टंडन ‘प्रदान’ में एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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