लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण परिवारों की सहायता की एक पहल, ‘मिशन गौरव’ ने ग्रामीणों को विभिन्न सरकारी कल्याण योजनाओं के बारे में जागरूक किया और उन्हें प्रावधानों तक पहुँच में मदद की।
मंजू मुन्नालाल राजपुर प्रशासनिक ब्लॉक के जलगोन गांव में रहती हैं। 900 परिवारों का यह गांव बड़वानी जिले में है। उनके पति का 2020 में निधन हो गया। वह एक दिहाड़ी मजदूर है, जिसे अपनी 14 से 21 साल के बीच उम्र की चार बेटियों और पढ़ाई कर रहे अपने 12 साल के बेटे का भरण-पोषण करना पड़ता है।
अपने पति के देहांत के बाद, मुन्नालाल के लिए परिवार की जरूरतें पूरा करना मुश्किल हो गया।
ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) राजपुर ब्लॉक में सक्रिय रूप से काम करती रही है।
COVID19 महामारी की प्रतिक्रिया के रूप में, टीम ने COVID-19 महामारी के समय लौटे प्रवासियों और हाशिए पर पड़े लोगों की मदद के लिए, टाटा ट्रस्ट्स और सेंटर फॉर माइक्रोफाइनेंस की एक पहल, ‘मिशन गौरव’ के अंतर्गत आर्थिक बहाली शुरू की।
‘मिशन गौरव’ टीम की सदस्य, संजना सुरानिया को मुन्नालाल की स्थिति के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने उसके दस्तावेजों की जांच की। सुरानिया को पता चला कि मंजू मुन्नालाल के पति ने ‘संबल योजना’ के अंतर्गत पंजीकरण कराया था, और इसलिए उनके पास एक संबल कार्ड था। योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को शिक्षा, महिलाओं के प्रसव, आदि के लिए आजीवन सहायता देती है।
योजना के अंतर्गत मुन्नालाल 2 लाख रुपये की राशि प्राप्त करने की अधिकारी थी, जो पति/पत्नी की स्वाभाविक मृत्यु होने पर दी जाती थी। सुरानिया ने मुन्नालाल की उसके आधार कार्ड में एक कमी दूर करने और पंचायत में आवेदन जमा करने में मदद की। आवेदन जमा करने के दो महीने के भीतर, मुन्नालाल को राशि मिल गई। साथ ही, सुरानिया ने मुन्नालाल को विधवाओं की एक योजना, ‘कल्याणी योजना’ के अंतर्गत एक आवेदन जमा करने में भी मदद की।
झाबुआ और बड़वानी जिलों के ज्यादातर ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं थी, जो विशेष रूप से लॉकडाउन के दौरान आजीविका के नुकसान को सहने के लिए सहायक हो सकती थी। TRIF टीम के सदस्यों ने लौटकर आए प्रवासियों और कमजोर परिवारों को उनकी आजीविका बहाल करने में मदद की और सरकारी प्रावधानों तक पहुंचने में उनकी मदद की।
रोजगार मेला
दिनेश कटारा थंडाला ब्लॉक के आदिवासी बहुल गांव, भेरूगढ़ में रहते हैं। 33 वर्षीय दिनेश खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं। उनकी आय अपने परिवार और माता-पिता की गुजर बसर के लिए काफी नहीं थी। वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए, आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे थे।
TRIF झाबुआ जिले के थंडाला ब्लॉक में पिछले ढाई साल से सक्रिय रूप से काम कर रही है। TRIF टीम के सदस्यों को बहुत से बेरोजगार युवाओं के बारे में जानकारी मिली। युवा रोजगार पाना चाहते थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि कैसे।
TRIF टीम की सदस्य, मनीषा कटारा ने अपने मैनेजर से युवाओं की रोजगार पाने की इच्छा के बारे में चर्चा की। TRIF ने थंडाला में रोजगार मेले का आयोजन किया। मनीषा कटारा व उनके सहयोगियों ने सभी युवाओं को सूचित कर रोजगार मेले में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
दिनेश कटारा रोजगार मेले में शामिल होने वाले युवाओं में से एक हैं। अहमदाबाद स्थित एक सिक्योरिटी-सर्विस फर्म ने उन्हें सिक्योरिटी गार्ड के रूप में चुना। वह 12,000 रुपये महीना कमाते हैं और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अब बेहतर है।
दिव्यांगों के लिए प्रावधान
थंडाला ब्लॉक में एक पारिवारिक सर्वेक्षण के दौरान, TRIF टीम के सदस्य ने पाया कि दिव्यांगों के लिए मौजूद सामाजिक सुरक्षा योजना से ज्यादातर दिव्यांग ग्रामीणों को लाभ नहीं मिला। टीम सदस्यों ने देखा कि थंडाला ब्लॉक के 112 गांवों में यह एक सामान्य बात थी, क्योंकि दिव्यांगों के पास उनकी विकलांगता को प्रमाणित करने वाला प्रमाण पत्र नहीं था।
टीम ने 456 ग्रामीणों की पहचान की। उन्होंने संकलित सूची जिला कलेक्टर के साथ साझा की, जिन्होंने दिव्यांगों को प्रमाणपत्र देने के लिए एक शिविर का आदेश दिया। टीम ने व्यक्तिगत रूप से और ग्राम समूहों एवं युवा समूहों के माध्यम से सभी संबंधित लोगों को सूचना दी।
उम्मीदों के विपरीत, शिविर के लिए 900 से ज्यादा ग्रामीणों ने पंजीकरण कराया और 598 को विकलांगता प्रमाण पत्र प्राप्त हुए। पहले कदम के रूप में प्रमाण पत्र के साथ, टीम ने उन्हें विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँच प्राप्त करने में मदद की।
इसी तरह झाबुआ जिले के पेटलावाड प्रशासनिक ब्लॉक में एक 10 वर्षीय दिव्यांग, हाथ खराब होने के कारण अपना आधार कार्ड नहीं बनवा सकी। गरीबी रेखा से नीचे का उसका परिवार वह सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त नहीं कर सका, जिसका उसे अधिकार था।
TRIF टीम ने उसके पिता को बताया कि जहां फिंगर-स्कैन संभव नहीं हो, वहां आंखों का स्कैन किया जा सकता है। टीम ने उसकी आंखों का स्कैन कराकर उसके ‘आधार’ की व्यवस्था की। एक दिव्यांग व्यक्ति के रूप में, वह 600 रुपये महीना पाने के लिए पात्र है। तब अन्य दिव्यांगों को विकलांगता प्रमाण पत्र पाने में मदद करने के लिए, एक शिविर का आयोजन किया गया।
महिला सशक्तिकरण
बड़वानी जिले के रेवजा गांव में, ‘मिशन गौरव’ के अंतर्गत बेहद गरीब परिवारों की महिलाओं को सिलाई के काम से गुजारा करने में मदद मिली। स्थानीय स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं से चर्चा के दौरान, उन्होंने कहा कि वे ऐसे काम करना चाहती हैं, जो बिना गांव छोड़े किया जा सकें।
पता चला कि काफी महिलाएं सिलाई जानती हैं। महिलाएं सिलाई केंद्र शुरू करना चाहती थी। फिर भी, उनकी आर्थिक स्थिति के कारण, सिलाई मशीन खरीदना उनके संसाधनों से परे था। टीम सदस्य भीमसिंह ने ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ कार्यालय में अधिकारियों से इस मुद्दे पर चर्चा की।
इसके बाद रेवजा गांव की महिलाओं के लिए बिलवानी के एक केंद्र में दो-दिवसीय प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया गया। उन्होंने नवीनतम तकनीक की सिलाई मशीनों का उपयोग करना, ऑर्डर प्राप्त करना, बेहतर आय कमाना, केंद्र का विस्तार करना, आदि सीखा।
क्लस्टर स्तर की फेडरेशन से ऋण लेकर, महिलाओं ने पांच सिलाई मशीनें खरीदीं। उन्होंने पंचायत के परिसर में अपना केंद्र खोला। उन्होंने स्थानीय बाजार की मांग के अनुसार कपड़े सीलना शुरू कर दिया है। वे इसे और विकसित करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित कर सकें और थोक ऑर्डर ले सकें।
नेहा गुप्ता और अर्जुन कौरव TRIF से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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