समुदाय महत्वपूर्ण प्राचीन तालाबों का बचाव सुनिश्चित करता है

नियमित रखरखाव सुनिश्चित करके और अतिक्रमण रोककर, अपने जल निकायों को पवित्र मानने वाले ग्रामीणों ने सदियों पुराने जीवनदायी तालाबों की रक्षा की है।

रेगिस्तानी राज्य, राजस्थान में पानी भगवान के समान है और यहां के ग्रामीण इस कीमती संसाधन की एक-एक बूंद को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। नागौर जिले में, गांवों में पानी को संरक्षित करने का एक आसान तरीका है, उनके तालाबों के माध्यम से।

इनमें से कई तालाब कई सदियों पुराने हैं और सिर्फ ग्रामीणों की कोशिशों से संरक्षित किए गए हैं। कोई नदी न होने और भूजल पीने योग्य न होने के कारण, ग्रामीणों ने वर्षा जल के संरक्षण और उपयोग के प्रभावी तरीके खोज लिए।

वर्षा जल को बचाने के लिए ग्रामीणों ने व्यक्तिगत उपयोग के लिए टाँके (टैंक) खोदे और सामुदायिक उपयोग के लिए तालाबों का निर्माण किया। आज भी, ये सामुदायिक तालाब नागौर जिले के बड़ी संख्या में ग्रामीणों के लिए पानी का मुख्य स्रोत हैं।

सदियों पुराने तालाब

मुंडवा कस्बे में लगभग 80 बीघे में फैला लखोलाव तालाब है (बीघा माप की एक पारंपरिक इकाई है, जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। राजस्थान में, 1 बीघा = 0.625 एकड़), जो 900 से ज्यादा साल पहले बनाया गया था। आज भी, गांव की 90% आबादी उपभोग के लिए इसी तालाब की पानी इस्तेमाल करती है।

पूरी तरह भरा तालाब, पूरा साल एक लाख लोगों की जरूरतों को पूरा कर सकता है। लखोलाव के अलावा, मुंडवा में ज्ञान, पोखंडी और मोटेलाव नाम के दूसरे तालाब हैं। लेकिन लखोलाव मुंडवा और उसके आसपास के गांवों की जीवन रेखा है। ग्रामीण इसे पवित्र मानते हैं और इसके चारों ओर दो दर्जन से ज्यादा मंदिर हैं।

मुंडवा का भूजल बहुत गहरा और खारा है। इसमें फ्लोराइड की उच्च मात्रा इसे उपभोग के लिए असुरक्षित बनाती है। इसलिए, लखोलाव मुख्य जल स्रोत के रूप में कार्य करता है। मुंडवा नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष, घनश्याम सदावत कहते हैं – ‘हालाँकि इंदिरा नहर का पानी करीब चार साल पहले मुंडवा पहुंच गया था, लेकिन अब भी ज्यादातर ग्रामीण लखोलाव का पानी पीते हैं। 

नियमित रखरखाव

ग्रामवासी रामस्वरूप दहिया के अनुसार, ग्रामीण लखोलाव तालाब के प्रति श्रद्धा रखते हैं। वह कहते हैं – “ज्यादातर ग्रामवासी अपने दिन की शुरुआत तालाब के आसपास के मंदिरों में देवताओं की पूजा से करते हैं।” जब भी तालाब की सफाई की जरूरत होती है, ज्यादातर ग्रामवासी स्वेच्छा से काम करते हैं। ग्रामवासियों ने यह भी सुनिश्चित किया है कि जलग्रहण क्षेत्र अतिक्रमण से मुक्त रहें, ताकि वर्षा जल का तालाब में मुक्त प्रवाह हो सके।

अंबुजा सीमेंट ने लखोलाव की खुदाई के लिए, उसे आकार देने और गाद निकालने के लिए मशीनरी लगाई, जबकि ग्रामवासियों ने भारी मात्रा में निकली मिट्टी को वहां से हटाने के लिए श्रम और मशीनों से सहायता की। इस प्रकार भंडारण क्षमता में 3,626 क्यूबिक मीटर की वृद्धि हुई और उच्च-पोषक तत्वों वाली मिट्टी को आसपास के खेतों की सतही मिट्टी में मिला दिया गया।

मुंडवा गांव के सदियों पुराने तालाब को हाल ही में नया रूप प्राप्त हुआ (फोटो – विनायक स्टूडियो के सौजन्य से)

पिछले पांच-छह वर्षों में, इसके सौंदर्यीकरण के लिए काफी प्रयास किए गए हैं। मुंडवा नगर पालिका ने परियोजना में करीब 2 करोड़ रुपये का योगदान दिया। अब तालाब के तीन तरफ रेलिंग बनी हैं, और तालाब के चारों ओर 5 फीट की पगडंडी है।

लखोलाव तालाब अब अपने घने पेड़ों और चहकते पक्षियों के साथ, एक पिकनिक स्थल के रूप में देखा जाता है। हर साल, दिवाली त्यौहार के हिस्से, रूप चौदस या नरक चतुर्दशी की शाम को, हजारों ग्रामीण अपना कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तालाब पर दीपक जलाते हैं।

हर गांव में एक तालाब

लखोलाव जैसे बड़े तालाब नागौर के लगभग हर गांव में मौजूद हैं। ताऊसर गांव निवासी, हीरालाल भाटी कहते हैं – ‘हालाँकि करीब आठ साल पहले, नहर का पानी पाइप लाइन से गांव में पहुंचा गया था, लेकिन ताऊसर के लोग तालाब का ही पानी पीते हैं। हमें नहर के पानी का स्वाद पसंद नहीं है और यह प्रदूषित है।”

इसी तरह जायल तहसील के चावली गांव के निवासी आज भी शिव सागर तालाब पर निर्भर हैं। गोठ गांव का सोयाली तालाब, गुगरियाली का सुंडा सागर, रामसर गांव का रामसर, सोनाली गांव का सोनाली, दीदिया कलां का कुंबराव आदि अच्छी तरह से संरक्षित तालाबों के उदाहरण हैं।

झाड़ेली गांव में स्थित, एक गैर सरकारी संगठन, उर्मुल खेजड़ी संस्थान के सचिव, धन्नाराम का मानना ​​है कि तालाबों के संरक्षण में ग्रामीणों की बड़ी भूमिका होती है। वह कहते हैं – “नागौर जिले के शहरों में तालाब कचरे के ढेर बन गए हैं, लेकिन गांवों में तालाब आज भी उतने ही साफ हैं, जितने सदियों पहले होते थे। तालाब ग्रामवासियों के जीवन को सुरक्षित करते हैं और इसलिए वे तालाबों की रक्षा करते हैं।”

संरक्षण की परम्पराएं 

फरवरी 2020 में उर्मुल खेजड़ी संस्थान और उन्नति संस्थान द्वारा शोध के लिए आयोजित एक 10-दिवसीय दौरे के समय, गांवों में तालाबों की स्थिति की जांच की गई और लगभग सभी अच्छी तरह से संरक्षित पाए गए। धन्नाराम ने कहा – “हम 40 गांवों में गए और हर जगह ग्रामीणों ने हमें जल संरक्षण और जल स्वच्छता की अपनी परम्पराओं के बारे में बताया।”

रखरखाव के संबंध में ग्रामवासियों के सामूहिक फैसलों से तालाबों का उचित रखरखाव सुनिश्चित हुआ है (फोटो – उर्मुल खेजड़ी संस्थान के सौजन्य से)

शोध रिपोर्ट के अनुसार, नागौर के गांवों में तालाबों के रखरखाव के लिए कोई औपचारिक समितियां नहीं बनाई गई हैं। तालाबों के संबंध में हर फैसला ग्रामवासी सामूहिक रूप से लेते हैं। हर गांव ने तालाबों के संबंध में कुछ नियमों को लागू किया है। तालाब में गंदगी डालना बर्दाश्त नहीं किया जाता है। जलग्रहण क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखने पर जोर है।

उदाहरण के लिए, लखोलाव तालाब और उसके जलग्रहण क्षेत्रों को सदियों से स्वच्छ बनाए रखा गया है, जो शायद ग्रामवासियों द्वारा निर्धारित कई नियमों के कारण हुआ। तालाब में जूते पहनकर प्रवेश करना सख्त मना है। तालाब में नहाना, कपड़े धोना, पशुओं को नहलाना भी मना है। घर के लिए तालाब से पानी ले जाने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन तालाबों का पानी बेचा नहीं जा सकता।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तालाबों का रखरखाव ग्रामीणों के पारम्परिक ज्ञान के अनुसार किया जाता है। इस ज्ञान के अनुसार, ग्रामवासी तालाबों की खुदाई और सफाई करते हैं, इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए कि तालाब में पानी थाम कर रखने वाली मिट्टी की परत को नुकसान न हो।

ये तालाब साल भर भरे भी रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देह, रोल, रामसर, गोठ और गुगरियाली गांवों के तालाब कई सालों से सूखे नहीं हैं और दीदिया कलां का कुम्भरा तालाब 30 साल से सूखा नहीं है। 

सतत नियम

तालाबों के संरक्षण के लिए बनाए गए नियम भले ही लिखित न हों, लेकिन ग्रामवासी उनका ईमानदारी से पालन करते हैं। उदाहरण के लिए, रोल गांव में 22 तालाब हैं। यहाँ पर नियमों का उल्लंघन करने वालों को तुरंत ग्राम सभा क्षेत्र में बुलाया जाता है और उन्हें ग्रामवासियों द्वारा तय किए गए दंड का भुगतान करना पड़ता है।

सख्त नियम सुनिश्चित करते हैं कि तालाब साफ और अतिक्रमण से मुक्त हों (फोटो – उर्मुल खेजड़ी संस्थान के सौजन्य से)

दीदिया कलां गांव का बिसनानी तालाब 25 बीघे जमीन पर है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 600 बीघे में फैला हुआ है। तालाब के लिए 500 साल पहले बनाए गए नियम आज भी लागू हैं। देह गांव के तालाब से घड़ा भरकर पानी ले जाया जा सकता है, लेकिन इसे टैंकरों में नहीं भर सकते।

दीदिया कलां के तालाब से दूसरे गांवों में पानी ले जाना मना है। यदि कोई ऐसा करता है तो उसे 10 हजार रुपये जुर्माना देना होगा। गांव की महिलाएं प्रत्येक अमावस्या के दिन तालाब में काम करती हैं।

धन्नाराम ने बताया कि कई गांवों में एक गांव से दूसरे गांव में पानी ले जाने पर पाबंदी है। वह याद करते हैं – “ऐसा इसलिए है, क्योंकि दूसरे गांवों के लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं। पहले छावता कलां, तंगली और तंगला गांवों के लोग छावता खुर्द के तालाब से पानी भरते थे। लेकिन लगभग 12 साल पहले उन्होंने नियमों की अवहेलना की, तो उनके पानी ले जाने पर रोक लगा दी गई।”

गांव उपलब्धता के आधार पर दूसरे गाँवों के साथ पानी साझा करना बंद करने या फिर से शुरू करने का फैसला भी ले सकते हैं। कुछ गाँव ऐसे हैं, जहाँ तालाबों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जाता और वे जल्दी सूख जाते हैं, जिससे निवासियों को अन्य स्रोतों की तलाश के लिए मजबूर होना पड़ता है।

ग्रामीणों द्वारा निर्धारित नियमों ने वर्षों से इन तालाबों को संरक्षित करने में उनकी मदद की है। और नागौर के ग्रामीणों को इस पर गर्व है। अपने जल स्रोतों की सुरक्षा में उनकी सक्रिय भागीदारी, पानी की कमी वाले अन्य क्षेत्रों के लिए एक उदाहरण है।

अमरपाल सिंह वर्मा हनुमानगढ़ के पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

यह लेख पहली बार ‘101 Reporters’ में प्रकाशित हुआ था। मूल कहानी यहां पढ़ी जा सकती है।