जीवन कौशल सम्बन्धी वीडियो एक जीवन रेखा हैं
भारत के सबसे ज्यादा हाशिये पर रहने वालों के लिए, सूचना और बुनियादी जीवन कौशल तक पहुंच, उतनी महत्वपूर्ण कभी नहीं रही, जितनी कि महामारी के दौरान। नाटकीय वीडियो और तकनीक खाई को पाट रहे हैं।
भारत के सबसे ज्यादा हाशिये पर रहने वालों के लिए, सूचना और बुनियादी जीवन कौशल तक पहुंच, उतनी महत्वपूर्ण कभी नहीं रही, जितनी कि महामारी के दौरान। नाटकीय वीडियो और तकनीक खाई को पाट रहे हैं।
स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जानकारी प्राप्त करना, कभी भी उतना महत्वपूर्ण नहीं था, जितना COVID-19 महामारी के दौरान। जब पूरी दुनिया उलट-पलट हो गई थी और भारत में सबसे सख्त लॉकडाउन हुआ, तो हाशिये पर जीने वाले बहुत से थे, जो सबसे महत्वपूर्ण जानकारी से कटे हुए थे, विशेष रूप से आदिवासी अल्पसंख्यक, जो सुदूर जंगलों और वनों में बहुत अंदर रहते हैं।
टेक्नोलॉजी अपनाएं। जब लोग जीवन कौशल सम्बन्धी जरूरी जानकारी साझा करने के लिए घर-घर नहीं जा सकते थे – हाथ धोने के लाभ और मास्क एवं सामाजिक दूरी की जरूरत से लेकर, गर्भावस्था में प्रोटीन के सेवन के महत्व तक – वीडियो काम कर सकते थे।
कोई भी वीडियो नहीं, जो दयापूर्ण या उपदेश भरे हों। बल्कि लक्षित श्रोताओं को आकर्षित कर सकने वाले, ध्यान से लिखे और सम्पादित किए गए नाटकीय वीडियो, ओडिशा में हाशिए पर रह रहे कई समुदायों के लिए एक जीवन रेखा बन गए हैं।
हालांकि महामारी के दौरान वीडियो महत्वपूर्ण हो गए हैं, लेकिन वे 2016 से बनाए जा रहे हैं, ताकि ज्यादा लोगों तक ज्ञान का तेजी से प्रसार करने में मदद मिले। ग्रामीण विकास समूह ‘वराट’( VARRAT), किसानों की सहायता के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाले एक विकास संगठन, ‘डिजिटल ग्रीन’ (Digital Green) के सहयोग से, ‘उपवन’ (UPAVAN – अपस्केलिंग पार्टिसिपेटरी एक्शन एंड वीडियोज़ फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन) परियोजना के हिस्से के रूप में वीडियो तैयार करता है।
‘डिजिटल ग्रीन’ की ओडिशा (और झारखंड) राज्य प्रमुख, रोनाली प्रधान कहती हैं – “घर-घर जाकर जानकारी के प्रसार में समय, ऊर्जा और लागत लगती है। लेकिन वीडियो विशेष उद्देश्य के लिए बने हैं और इसलिए एक विशेष संदेश के लिए ज्यादा लोगों को इकठ्ठा किया जा सकता है।”
वीडियो में स्थानीय लोग हैं
और इन वीडियो की गुप्त सामग्री? लक्षित समुदाय के प्रमुख सदस्यों को लेकर वीडियो बनाए जाते हैं, जो ज्ञान के दूत का काम करते हैं।
जैसे कि ओडिशा के क्योंझर जिले के हरिचंदनपुर ब्लॉक की जयंती महंत, जो कैमरे से बचती नहीं हैं। गंभीर, लेकिन आत्मविश्वास से भरी, दो बच्चों की इस मां ने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। गांव की प्रेरणाश्रोत के रूप में, वह सुरक्षित गर्भधारण पर 16 मिनट लंबे वीडियो में दिखाई देती हैं। वीडियो में गर्भावस्था के दौरान एक महिला के काम के बोझ के साथ, जरूरी आराम के संतुलन के महत्व पर जोर दिया गया है।
इस आदिवासी बहुल जिले में, वीडियो महिला समूहों में चर्चाएं शुरू कर रहे हैं। अच्छे मातृ स्वास्थ्य से लेकर भरपूर पौष्टिक आहार तक, वह ज्ञान, जिसे किसी दूसरी जगह के लोग आम बात मान सकते हैं, बातचीत और आदतों के नए मुद्दे बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, हरिचंदनपुर में, महिलाएं गर्भावस्था के दौरान भारी सामान उठाती थीं, लेकिन वीडियो में ऐसा करने के खतरों को देखकर इसमें बदलाव आया। अब गर्भवती महिलाएं सिर्फ घर का हल्का काम करती हैं।
यहां तक कि ऐसे वीडियो भी हैं जो समझाते हैं कि ‘कैसे किया जाए’। इनमें जैविक खाद का उपयोग करके उपयोगी किचन गार्डन और धान की खेती के बारे में बताया गया है। जहां महंत ने जैविक खाद बनाना सीखा है, वहीं नुसुरिपोसी गांव की एक अन्य महिला, सबिता महंत को वह वीडियो पसंद आया, जिससे उन्होंने पानी के पुनर्चक्र (रिसाइकल) करने के बारे में सीखा, जो कि उनके क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण एक दुर्लभ वस्तु है।
सबिता महंत ने VillageSquare.in को बताया – “मैंने देखा कि कैसे हाथ धोने के बाद डिब्बों में इकठ्ठा किए गए बेकार पानी का उपयोग मेरे किचन गार्डन के पौधों को सींचने के लिए किया जा सकता है। पहले मैं इस पानी को फेंक देती थी।”
लेकिन वीडियो के सबसे बड़े प्रभावों में से एक महिलाओं के भोजन में बदलाव रहा है, जिसमें पहले चावल, अचार और एक सब्जी शामिल थे। वे शायद ही कभी दालें खाते थे, और मांस-प्रोटीन का सेवन तो नहीं के बराबर था। कई महिलाओं ने तो भोजन में बेहतरी के लिए बकरियां और मुर्गी पालना भी शुरू कर दिया है।
मुसाखोरी गांव की पद्मिनी सिंह कहती हैं – “हम सब शाम को वीडियो देखते थे। हमारे रोजमर्रा के भोजन में विविधता आई है। इसमें चावल, दाल, किचन गार्डन की सब्जियां और मछली, चिकन और अंडे शामिल हैं।”
विरोध के बाद आया पुरस्कार
शुरू में कुछ परिवारों ने बाहरी सूचना और संदेश की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए इन वीडियो का विरोध किया था।
बरहाटीपुरा गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सुकनातीलता राणा कहती हैं – “लेकिन हम अपनी कोशिशों में लगे रहे। अब वीडियो की बदौलत, आंगनवाड़ी में गर्भावस्था पंजीकरण नियमित रूप से (ग्रामीण बाल स्वास्थ्य केंद्र) होता है। पहले महिलाएं इसे नजरअंदाज कर देती थीं।”
ग्रामीण भारत में भूमि पर स्वामित्व आमतौर पर पुरुषों का होता है और फसलों को लेकर फैसला वही लेते हैं। लेकिन इन वीडियो महिलाओं को बोलने और ताजा आत्म-निरीक्षण एवं ज्ञान प्रस्तुत करने के लिए सशक्त बना रही है। महंत जैसी महिलाएं अब खेती से जुड़े फैसले ले रही हैं।
महंत गर्व के साथ कहती हैं – “इन दिनों मैं अपने पति के साथ उस खेत में जाती हूँ, जहाँ मेरे संयुक्त परिवार की 10 एकड़ जमीन में धान की खेती होती है। पहले सारे फैसले पुरुष लेते थे, लेकिन अब बहुत से अपनी पत्नियों से सलाह लेते हैं।”
महामारी में टिके रहे
आमतौर पर वीडियो विभिन्न गांवों में एक समूह द्वारा हाथ में पकड़ कर इस्तेमाल होने वाले प्रोजेक्टर से देखा जाता था। COVID-19 लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण यह मुश्किल हो गया। लेकिन इससे महिलाओं और आयोजकों का वीडियो लाने और देखने का उत्साह कम नहीं हुआ।
जिनके पास स्मार्टफोन थे, उन्होंने ग्राम स्तर पर व्हाट्सएप ग्रुप बनाए। हालांकि वराट (VARRAT) के शिबनाथ प्रधान ने माना कि व्हाट्सएप के माध्यम से वीडियो के प्रसार में चुनौतियां हैं, क्योंकि यह सिर्फ 10-15 प्रतिशत महिलाओं के पास ही है।
प्रधान कहते हैं – “कभी-कभी फोन पति के पास होता है और वे जवाब नहीं देते हैं। कई महिलाओं को व्हाट्सएप्प पर शेयर करने को लेकर जानकारी भी कम होती है। लेकिन इस समय महामारी के कारण घर घर जाकर निगरानी सीमित है, इसलिए व्हाट्सएप की जरूरत है।”
जिनके पास फैंसी फोन नहीं हैं, उनके लिए एक विशेष नंबर डायल करके आवाज से बातचीत वाली तकनीक, साधारण फोन पर संदेशों के रूप में वीडियो सुनने में मदद कर रही है।
अब तक ‘उपवन’ परियोजना के अंतर्गत इन वीडियो को 34,000 परिवारों को लक्षित करके 190 गांवों में दिखाया गया है।
दीपान्विता गीता नियोगी दिल्ली स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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