जहाज से रिसे तेल से समुद्र तट, मैंग्रोव और आजीविकाओं को नुकसान पहुंच रहा है

चक्रवात तौकते से एक जहाज चट्टानों से टकरा गया, जिसके कारण उससे तेल रिसाव हुआ, जो अभी भी साफ नहीं हुआ है। इससे माहिम के रेतीले समुद्र तटों, अनोखे मैंग्रोव पर्यावरण और मछुआरों की आजीविका को नुकसान पहुंचा है।

पूर्णिमा मेहर भारी मन से, रेत पर पड़ी बड़ी काली गांठों से सावधानीपूर्वक बचते हुए, मुंबई के उत्तर में अपने गांव माहिम में तेल से सने मैंग्रोव की ओर जा रही थी। उसने कभी भी पेड़ों को इतनी खराब हालत में नहीं देखा था।

लेकिन चक्रवात तौकते से मई में महाराष्ट्र के तट पर तब तबाही मच गई, जब माहिम तट के चट्टानी हिस्से वदाराई में ‘गैल कंस्ट्रक्टर’ नाम का एक मालवाहक जहाज फंस गया। चट्टानों को जहाज में धंस कर तेल विनाशकारी रिसाव करने में देर नहीं लगी।

तट पर बड़ी मात्रा में तारकोल के गुच्छे जमा हो गए थे। ज्यादातर अब भी वहां मौजूद हैं, जो उन हरे भरे मैन्ग्रोव को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिनके लिए यह क्षेत्र जाना जाता है।

माहिम का रेतीला समुद्र तट, बाहर निकली चट्टानें और मैंग्रोव इसे एक अनूठा पर्यावरण तंत्र बनाते हैं। मैन्ग्रोव आमतौर पर मानसून में फूलते हैं और अपने बीज गिराते हैं। यह मौसम प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय सीप, घोंघे, ज्वार-भाटा के बीच की समुद्री जैव विविधता और मछलियां अंडे देती हैं।

चक्रवात के साथ हुआ तेल रिसाव और तारकोल गुच्छों का प्रभाव इस पर्यावरण तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है। आकस्मिक योजना का अभाव भी सफाई में देरी कर रही है। और इससे माहिम के तटीय समुदाय के जीवन और आजीविका पर प्रभाव पड़ रहा है।

जहाज हट नहीं रहा है

चक्रवात के समय, चालक दल के 137 सदस्यों को लेकर चार मंजिला जहाज, 18 मई, 2021 को तट के अंतर्ज्वारीय क्षेत्र में बह गया। जहां चालक दल को बचा लिया गया, जहाज अभी भी फंसा हुआ है। तेल रिसाव को रोकने के लिए इस्तेमाल किए गए बूम भी बह कर किनारे पर आ गए और उन्हें जुलाई के पहले हफ्ते में ही उठाया गया, जब अधिकारियों ने सफाई के लिए समुद्र तट का दौरा किया। कुछ दिनों के बाद, और बूम किनारे आ लगे।

भाटे (ज्वार नीचे पर) के समय, मछली पकड़ने की इंतजार में नावें जहाज के पास लगी हुई हैं (छायाकार – ध्वनी शाह)

तारकोल के गुच्छे यानि तेल रिसाव से बने छोटे, गहरे रंग के, गोल अवशेष, कोई नई बात नहीं है। समुद्र में जहाजों द्वारा फेंके गए तेल और ईंधन को छोड़िये, कच्चे तेल की निकासी और तट पर आने जाने वाली परिवहन व्यवस्था से अक्सर रिसाव होता है।

मानसून के समय यह और भी बुरा होता है। तेल से बने गुच्छे बारिश में हर साल, गुजरात से लेकर महाराष्ट्र और गोवा और नीचे कर्नाटक तक, भारत के पश्चिमी तट पर दिखाई देते हैं।

लेकिन चक्रवात तौकते के बाद इस जमाव की मात्रा ज्यादा हो गई है। जुलाई के अंत तक, इन गुच्छों के नए जमाव ने माहिम के पूरे समुद्र तट को ढक लिया था। कोई भी इन पर कदम रखे बिना, समुद्र तट के पार नहीं जा सकता।

मेहर और कुछ स्थानीय आदिवासी महिलाओं ने, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मैंग्रोव सेल और जिला कलेक्ट्रेट में कई शिकायतें दर्ज कराईं। ग्रामवासियों ने 4 जुलाई, 2021 और उसके बाद के रविवार के दिनों में समुद्र तट की सफाई का अभियान चलाकर, इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया।

लेकिन पहली सफाई के एक हफ्ते बाद, बड़ी मात्रा में तारकोल गुच्छे बहकर फिर से किनारे पर आ गए। ये गुच्छे जैसे ही सूरज और बारिश के संपर्क में आते हैं, पिघल जाते हैं और फिर से समुद्र के पानी में मिल जाते हैं।

तेल रिसाव के बाद तेल से ढके मैंग्रोव के पत्ते (छायाकार – ध्वनि शाह)

जहाँ मैंग्रोव होते हैं, वहाँ ज्वार के समय पिघला हुआ तेल पेड़ों पर चिपका रह जाता है और समुद्री पर्यावरण तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बन जाता है। तट के छोटे मैंग्रोव मर चुके हैं और नई पौध तारकोल गुच्छों के नीचे दबी पाई गई हैं।

मछुआरे भी खतरे में, लेकिन कोई जवाबदेह नहीं 

तेल से बने गुच्छों के बीच में से रास्ता बनाते हुए, मछुआरे अपने परिवार के लिए एक अच्छे शिकार मिलने और कुछ पैसे कमाने की उम्मीद में समुद्र में जाते हैं। लेकिन फंसा हुआ जहाज उनके आने जाने के रास्ते में आता है।

अब जबकि मछली पकड़ने का मौसम शुरू हो गया है, तो वदराई घाट से नावें समुद्र में जाएंगी। जहाज का नावों नजदीक होना, जोखिम भरा है। एक स्थानीय मछुआरा सोसायटी के अध्यक्ष, मानेन्द्र आरेकर कहते हैं – “हमने कई अधिकारियों को लिखा है और हमें उम्मीद है कि वे जल्द ही जहाज हटा देंगे।”

अंतर्ज्वारीय मछुआरे, तेल से बने गुच्छों की बजाय मछली पकड़ने की आशा में (छायाकार – ध्वनि शाह)

हालांकि पहली सफाई के लिए 24 सरकारी अधिकारी आए, लेकिन वे जहाज चलाने वालों या मालिकों को जवाबदेह नहीं ठहरा पाए। जब से दुर्घटना हुई है, सरकार ने कुछ खास नहीं किया है। तारकोल के गुच्छों के श्रोत का पता लगाने और उन्हें वहीं पर रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।

नीति संबंधी खाई 

कार्रवाई के अभाव के लिए नीति या तेल रिसाव के लिए आकस्मिक योजना की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, हालांकि 2011 में महाराष्ट्र का ऐसी योजना बनाने का इरादा था। इस तरह की योजना, तट पर या अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों में, तेल रिसाव के समय विभिन्न विभागों की जिम्मेदारियों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले और गोवा में, तेल रिसाव संबंधी आकस्मिक योजनाएँ हैं, जो तेल रिसाव या तारकोल गुच्छों की घटना के मामले में की जाने वाली कार्रवाई को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती हैं। लेकिन पालघर जिले या महाराष्ट्र के लिए ऑनलाइन ऐसी कोई आकस्मिक और प्रबंधन योजना नहीं मिली।

मेहर के लिए यह ऐसी आपदाओं से मुंह मोड़ना है और किसी योजना का न होना, सबसे ज्यादा चोट पहुंचाता है। वह कहती हैं – “वैज्ञानिक अध्ययन एवं नीति का अभाव, समुद्री जैव विविधता और ग्रामवासियों के पोषण एवं आजीविका के श्रोत के नुकसान को समझने में देरी अन्यायपूर्ण है।”

ध्वनि शाह एक स्वतंत्र पर्यावरण शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

यह लेख पहली बार ‘Mongabay India’ में छपा था। मूल कहानी यहां पढ़ी जा सकती है।