केरल का बैकवाटर प्रभावित पलायन
केरल के बैकवाटर क्षेत्र के ग्रामीण बाढ़ के आदी हैं। लेकिन साल भर घरों में पानी भरा होने के कारण, बहुत से लोग पलायन कर रहे हैं।
केरल के बैकवाटर क्षेत्र के ग्रामीण बाढ़ के आदी हैं। लेकिन साल भर घरों में पानी भरा होने के कारण, बहुत से लोग पलायन कर रहे हैं।
केरल के बैकवाटर के बीचों-बीच, कुट्टनाड, ताड़ के तटों वाली नहरों और पन्ना टापुओं के जाल के साथ, बेहतरीन नजारा प्रस्तुत करती है। मछली पकड़ने वाली नावें और लक्ज़री हाउसबोट पानी में, जबकि कॉटेज और स्थानीय कैफे द्वीपों पर दिखाई पड़ती हैं। समुद्र तल से दो मीटर से अधिक नीचे स्थित,कभी धान की प्रचुर फसलों की बदौलत, कुट्टन्ड को “केरल के चावल का कटोरा” भी कहा जाता है।
लेकिन अलाप्पुझा जिले के बीच का क्षेत्र, जो कभी दूर-दूर से किसानों को आकर्षित करता था, अब पलायन का सामना कर रहा है, क्योंकि बहुत से गरीब ग्रामीण जलवायु परिवर्तन और विकास के खराब आयोजन के प्रभावों का सामना करने में असमर्थ हैं।
एक दशक तक हर साल बाढ़ से जूझने के बाद, 2018 में कुट्टमंगलम द्वीप छोड़ने वाले संतोष एरुथियेल पूछते हैं – “आप पानी से भरी रसोई में कैसे पका और खा सकते हैं? रातें डरावनी होती हैं, क्योंकि पानी बिना किसी चेतावनी के कभी भी प्रवेश कर सकता है।”
वेम्बनाड झील और उसके आसपास की नदियाँ, जो कभी समृद्धि की प्रतीक थीं, अब लोगों के जीवन और आजीविका के लिए खतरा हैं। राज्य सरकार के अनुमान के अनुसार, पिछले दो वर्षों में कुट्टनाड के 6,000 से ज्यादा परिवारों ने अपने घर और सम्पत्तियां त्याग दिए हैं।
जो जा सकते हैं, चले जाते हैं
कुट्टनाड के ज्यादातर लोग इस बात से सहमत हैं कि बाढ़ सदियों से उनके जीवन का एक हिस्सा थी। वे जानते थे कि अपने चारों ओर पानी के साथ कैसे रहना है, यहाँ तक कि भारी मानसून के दौरान भी। लेकिन 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद, बारिश और बाढ़ के चरित्र और प्रभाव में बदलाव शुरू हो गया है और कुट्टनाड में ज्यादा बार और ज्यादा विनाशकारी बाढ़ देखी गई है।
अब मुहम्मा में रह रहे, बी अशोकन कहते हैं – “2018 के बाद, बरसात के दिनों में मैं सो नहीं पाता था। मैं पानी के स्तर की जांच के लिए पहरा देता था। वर्ष 2020 की एक ऐसी ही रात में अचानक पानी का स्तर बढ़ गया और हमें भागना पड़ा। हम अपने साथ कुछ नहीं ले जा सके। मेरे घर का एक पत्थर भी नहीं बचा है।”
कैनाकरी में अपने छोड़े हुए घर को लेकर खिन्न, एरुथियेल कहते हैं कि जो लोग जा सकते हैं, वे जाते हैं। उन्होंने 30 मील दूर जमीन खरीदी और अपने परिवार को एक ऐसे घर में ले गए, जहां जलभराव की कोई समस्या नहीं है।
लेकिन जलग्रस्त कनकसेरी द्वीप में, अपने पति और स्कूल जाने वाली दो बेटियों के साथ रहने वाली, विनोदिनी राजू के लिए यह इतना आसान नहीं है। वह और उसका परिवार अपना घर नहीं छोड़ सकते, जिसे बैंक से कर्ज लेकर बनाया गया था। फिर भी रसोई और शौचालय सहित ज्यादातर मकान, साल में सात महीने से ज्यादा समय तक पानी से भरे रहते हैं।
मीनप्पुल्ली की रहने वाली, शीजा और उनके पति ज्योतिष का भी यही हाल है, जिनका घर लगभग पूरी तरह से पानी में डूबा है। COVID-19 महामारी ने ज्योतिष हालात को और भी बदतर बना दिया है, जो एक हाउसबोट पर रसोइए का काम करता था, और लॉकडाउन से पर्यटन ठप होने के बाद नौकरी से निकाल दिया गया था।
जलवायु-प्रवासी
अधिकारियों ने इस पलायन को समझा है और वे भारी बाढ़ को रोकने के लिए योजनाएं बना रहे हैं। स्थानीय तालुका अधिकारी, टी आई विजयसेन कहते हैं – “गरीबों के पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है, और वे बार-बार बाढ़ का शिकार होते हैं। सरकार अब कुट्टनाड में बाढ़ को रोकने के लिए रणनीति बना रही है, लेकिन इसमें समय लग सकता है।”
जलवायु परिवर्तन को इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन बहुत से निवासी बुनियादी ढांचे के खराब नियोजन और क्षेत्र के तेजी से विकास को दोष देते हैं, जो ज्यादातर वो पुनर्निर्मित भूमि है, जिसके बाँध नाजुक हैं।
पी बी विजिमोन, जो हाल ही में लगभग 40 किलोमीटर दूर जमीन खरीद कर एक घर बना रहे हैं, कहते हैं – “हम जलवायु-शरणार्थी बन गए हैं। हम अपनी जमीन खो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के अलावा, गैर-वैज्ञानिक तरीके से बड़े पैमाने पर पर्यटन रिसॉर्ट्स, सड़कों, पुलों और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण का वर्तमान गंभीर स्थिति में योगदान है। नदी प्रबंधन और बैकवाटर संरक्षण अभाव में स्थिति और खराब हो रही है।
चेरथला के एक रियल एस्टेट दलाल, पी प्रसाद का कहना है कि कुट्टनाड के ऐसे अनेक लोग पूछताछ कर रहे हैं, जिनके पास विस्थापन के अलावा कोई चारा नहीं है।
विनाशकारी बाढ़
अब, भारी बारिश और उससे आई बाढ़, आजीविका को भी प्रभावित कर रही हैं। पिछले साल तटबंधों के टूटने के कारण, किसानों को अपनी धान की फसल से कुछ भी नहीं मिला। फिर भी, जिन लोगों ने धान की जमीन पट्टे पर ली थी, उन्हें जमीन मालिकों को पैसा देना पड़ा।
किसानों और विशेषज्ञों का कहना है कि कुट्टनाड में भूमि क्षेत्र तेजी से डूब रहे हैं, और यहां तक कि चलती नावों से उठी लहरों से भी पानी घरों में घुस जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आने वाले महीनों में और भी परिवार पलायन को मजबूर होंगे, क्योंकि सरकार ने कुट्टनाड के पर्यावरण को बहाल करने और इसे बाढ़ मुक्त बनाने के लिए कुछ नहीं किया है।
कुट्टनाड स्थित ‘समुद्र तल के नीचे कृषि के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (इंटरनेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर फॉर बिलो सी लेवल फार्मिंग) के निदेशक, के जी पद्मकुमार कहते हैं – “कुट्टनाड गलत और अव्यवहारिक विकास योजनाओं का शिकार है। जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के कारण बैकवाटर ही गायब हो रहे हैं। सरकार को ऐसी रणनीतियां तैयार करनी चाहिए, जो जल और निचले इलाकों के साथ मानव सह-अस्तित्व की भावना को शामिल कर सकें।”
के ए शाजी तिरुवनंतपुरम स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
यह लेख पहली बार ‘Mongabay India’ में प्रकाशित हुआ था। मूल कहानी यहां पढ़ी जा सकती है।
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