हिमाचल सरकार बीज उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है
स्थानीय परिस्थितियों के लिए अक्सर अनुपयुक्त बीजों के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर, हिमाचल प्रदेश सरकार ने स्थानीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन के लिए एक योजना शुरू की है।
स्थानीय परिस्थितियों के लिए अक्सर अनुपयुक्त बीजों के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर, हिमाचल प्रदेश सरकार ने स्थानीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन के लिए एक योजना शुरू की है।
कृषि और संबद्ध गतिविधियों का हिमाचल प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में 13.62% योगदान है। इस पहाड़ी राज्य की लगभग 69% आबादी कृषि से अपनी आजीविका कमाती है। लेकिन इनपुट्स की लागत में लगातार बढ़ोत्तरी के कारण, खेती में लगे लोगों की संख्या में गिरावट आ रही है, और लोग बेहतर आजीविका की तलाश में कस्बों और शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
कृषि की लागत को कम करने और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल बीज पैदा करने के लिए, हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने ‘स्वर्ण जयंती बीज संवर्धन योजना’ शुरू की है। इस योजना का लक्ष्य दूसरे राज्यों से बीजों के आयात को कम करना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। इसकी कोशिश यह भी है कि स्थानीय रूप से उपलब्ध बीजों को बढ़ावा मिले और किसानों को सस्ती दरों पर बीजों की आपूर्ति हो।
बीज आयात
हिमाचल प्रदेश में केवल 1% कृषि भूमि का उपयोग बीज उत्पादन के लिए किया जाता है। इससे राज्य की बीजों की 20% जरूरतों की पूर्ती होती है। क्योंकि राज्य को अपनी जरूरत का बाकी 80% आयात करना पड़ता है, इसलिए चुनौतियां हैं।
इस समय, हिमाचल प्रदेश मक्का, जौ, मटर, बाजरा और सब्जियों के बीज की जरूरतों का 100% दूसरे राज्यों से मंगाता है। इसके अलावा, हिमाचल को धान के बीज का 90%, तिलहन का 91%, दालों का 99%, चने का 95%, गेहूं का 53% और अदरक के बीज का 45% बाहर से मंगाना पड़ता है। किसान आमतौर पर शिकायत करते हैं कि ये आयातित बीज अंकुरित नहीं होते हैं।
इन समस्याओं के समाधान के लिए कृषि विभाग ने दोतरफा रणनीति अपनाई है। इसके अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 1.80 लाख क्विंटल धान बीज की मांग को ध्यान में रखते हुए, विभाग ने राज्य में 96,855 क्विंटल बीज उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
नौ पंजीकृत किसान समूह लगभग 95,000 क्विंटल बीज का उत्पादन करेंगे। विभाग इन बीजों को किसान समूहों से खरीद कर, अन्य किसानों को बेचेगा। दूसरी रणनीति में, विभाग प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देगा, और ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ (PKKKY) के माध्यम से, सुभाष पालेकर द्वारा प्रस्तावित ‘शून्य-बजट’ कृषि की तर्ज पर बीज का उत्पादन करेगा।
इस योजना के अंतर्गत, 130 अन्य किसान संघों के साथ संयुक्त रूप से विभाग के 26 में से 12 फार्मों में बीज का उत्पादन किया जाएगा। PKKKY के अंतर्गत तैयार मास्टर प्लान से यह सुनिश्चित होगा कि गेहूं, धान, जौ, मटर, चना, इंडियन कॉर्न, रागी और मोटे अनाज का स्थानीय स्तर पर उत्पादन हो, ताकि राज्य की बीज के आयात पर निर्भरता न्यूनतम हो।
संस्थागत योगदान
अपने बीज वृद्धि अभियान के हिस्से के रूप में, विभाग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केंद्र, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, डॉ वाई एस परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय, नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज और किसानों के पास उपलब्ध बीज इकठ्ठा करेगा, जिन्होंने बीजों की वृद्धि और संरक्षण के लिए काम किया है।
इस तरह पैदा किए गए बीज किसानों को दिए जाएंगे। ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ के कार्यकारी निदेशक, राजेश्वर सिंह चंदेल के अनुसार, विभाग ने बीजों की वृद्धि और विकास के लिए यह कार्य योजना तैयार की है, और यह कृषि विकास में लगे भारत और विदेशों के विशेषज्ञों और संस्थानों के साथ परामर्श से काम कर रहा है।
कृषि विभाग के निदेशक, नरेश ठाकुर का कहना है कि विभाग ‘स्वर्ण जयंती बीज संवर्धन योजना’ के माध्यम से बीजों के संरक्षण और वृद्धि पर काम कर रहा है। विभाग ने किसानों की मदद से अपने फार्मों पर बीज उत्पादन का यह कार्य निर्धारित किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो, जो अपनी आबादी को खाद्य सुरक्षा के लिए आश्वस्त करता है।
किसान कल्याण के लिए
कृषि मंत्री, वीरेंद्र कंवर का कहना था कि उनके विभाग ने उपरोक्त योजनाओं को योजनाबद्ध तरीके से शुरू किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य के किसानों को सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले स्थानीय बीज मिलें और समय पर मिलें। कंवर का कहना है – “इन पहलों के नतीजे एक साल के भीतर सभी के सामने होंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार और उनका विभाग किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
बीजों के संरक्षण और किसानों के कल्याण के लिए काम करने वाले, ‘ग्राम विकास ट्रस्ट’ के ट्रस्टी, आशीष गुप्ता का कहना था कि हिमाचल प्रदेश में बीज उत्पादन बहुत छोटे क्षेत्र तक सीमित रहा है और इसलिए अन्य राज्यों पर निर्भर है। गुप्ता कहते हैं – “हमारे कई पारम्परिक बीज विलुप्त होने के कगार पर हैं और राज्य सरकार का यह कदम सराहनीय है।”
गुप्ता कहते हैं – “यदि विभाग द्वारा की गई उपरोक्त पहलों से आशानुरूप नतीजे मिलते हैं, तो इससे राज्य के लगभग 9.61 लाख किसानों को सीधे लाभ मिलेगा। राज्य के लगभग 80% किसान छोटे और सीमांत किसान हैं। किसानों को समय पर गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने की सरकार की पहल, निश्चित रूप से उनकी आर्थिक भलाई में वृद्धि करेगी और उनके लिए एक समृद्ध जीवन सुनिश्चित करेगी।”
रोहित पराशर शिमला स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
यह कहानी सबसे पहले ‘101 Reporters’ में प्रकाशित हुई थी। मूल कहानी यहाँ पढ़ी जा सकती है।
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