कभी साइकिल चलाने वाली कश्मीरी महिलाओं का मजाक उड़ाया जाता था। लेकिन महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने उन्हें बेहतर स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए, पितृसत्तात्मक बंधनों को तोड़ते हुए, साइकिल चलाने की प्रेरणा दी।
जब क्षितिज पर भोर की पहली किरण फूटती है, तो सुबह सवेरे निकलने से पहले, 23 वर्षीय तंज़ीला अख्तर अपने दोस्तों को जल्दी से फोन करती हैं।
स्पोर्ट्स सूट, सुरक्षात्मक गियर और गहरी मुस्कान के साथ, वे श्रीनगर के मनोहर मुख्य मार्ग और ‘डल’ झील के साथ घूमने वाले ‘फोर शोर’ मार्ग पर दूसरों से मिलती हैं। वे छोटे और अक्सर अशांत शहर में फैल रहे एक नए चलन का हिस्सा हैं, जिसमें रोजाना साइकिल चलाने वाले बढ़ती संख्या में घाटी की सड़कों और पटरियों पर साइकिल चलाने का आनंद उठाते हैं।
भारत में जब कोविड-19 की विनाशकारी दूसरी लहर आई, तो महामारी से पैदा हुआ स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान, और उस पर लॉकडाउन की बोरियत, के कारण इस पहाड़ी घाटी की जनता में ‘पैडल-शक्ति’ का रुझान बना है।
अपनी सवारी के बीच ब्रेक लेते हुए, अख्तर कहती हैं – “मैं रोजाना दो किलोमीटर पैदल चलकर अपने ऑफिस जाती थी। महामारी के दौरान कार्यालयों, जिनमें मेरा भी शामिल है, के बंद होने के कारण मैंने अपने दोस्तों के साथ साइकिल पर जाने का फैसला किया। यह मुझे तरोताजा रखता है।”
क्योंकि लॉकडाउन के समय न सिर्फ कार्यस्थल, बल्कि शिक्षा संस्थान भी बंद थे, इसलिए ज्यादा तादाद में महिलाओं और लड़कियों ने खेल और शारीरिक व्यायाम अपनाना शुरू कर दिया। जल्दी ही साइकिलिंग, महिलाओं और पुरुष दोनों में, सबसे लोकप्रिय विकल्प साबित हुआ, क्योंकि यह आसान और स्वास्थ्यपूर्ण था।
श्रीनगर के शालीमार की एक 18-वर्षीय कॉलेज छात्रा, हुरमा शाह कहती हैं – “लॉकडाउन के बाद से मैं नियमित रूप से साइकिल चला रही हूं। शुरू में अपने मोहल्ले की मैं अकेली लड़की थी। लेकिन अब कई और जुड़ गई हैं।”
युवतियों ने तोड़ी पाबंदियाँ
यह बहुत साल पहले की बात नहीं है, जब घाटी में साइकिल चलाना पुरुषों का खेल माना जाता था। एक वयस्क लड़की का साइकिल की सवारी करना अवांछित ध्यान आकर्षित करता था। सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए, पिछले तीस वर्षों में साइकिल की सवारी करने वाली, और वह भी नियमित रूप से साइकिल चलाने वाली महिला बहुत दुर्लभ हो गई थी। लेकिन हाल ही में, बदलती जीवनशैली के कारण, साइकिल चलाने में लैंगिक पूर्वाग्रह धीरे-धीरे गायब हो रहा है।
2016 में स्टेट साइक्लिंग चैंपियन, 26-वर्षीय इंशा वाडू कहती हैं – “कुछ साल पहले, मुझे साइकिल चलाने में शर्मिंदगी महसूस होती थी, क्योंकि पास से गुजरने वाले लोग आपत्तिजनक टिप्पणी करते थे।” उनकी टिप्पणियों का आमतौर पर मतलब यह होता था कि लड़की का साइकिल चलाना ठीक नहीं है। लोगों से और उनकी भद्दी टिप्पणियों से बचने के लिए, वाडू सुबह-सुबह साइकिल चला लेती थी।
वह कहती हैं – “लेकिन अब मैं सुबह के समय बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं को साइकिल चलाते देख कर अभिभूत महसूस करती हूं।”
महामारी से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है
स्वास्थ्य क्षेत्र के लोगों का मानना है कि महामारी ने जनता, खासतौर पर युवा लोगों में स्वास्थ्य संबंधी संवेदनशीलता प्रेरित की है। जम्मू और कश्मीर के, ‘युवा सेवाएं एवं खेल विभाग’ के श्रीनगर जिला खेल अधिकारी, बलबीर सिंह का कहना है – “जॉगिंग के अलावा, बहुत सी महिलाओं ने साइकिल चलाना अपनाया है। यह प्रवृत्ति उत्साहजनक है।”
सिंह के अनुसार, नशीले पदार्थों के सेवन से लेकर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और आत्महत्याओं तक की सामाजिक समस्याओं में वृद्धि के बीच, फिटनेस गतिविधियां आशा की एक किरण प्रदान करती हैं।
‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16’ के अनुसार, जहां राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रसार 10.6% है, वहीं ‘कश्मीर मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट-2015’ के अनुसार, घाटी में इसकी व्यापकता 45% होने का अनुमान है।
सिंह ने VillageSquare.in को बताया – “साइकिल चलाना शारीरिक फिटनेस हासिल करने का एक असरदार साधन तो है ही, साथ ही यह महिलाओं को बोरियत, अवसाद और जीवन शैली से जुड़े दुसरे विकारों से बचने में भी मदद करता है।”
कश्मीर में साइकिल के जुनून ने बढ़ाया फिटनेस बाजार
जहां सुंदर डल झील के साथ की सड़कें साइकिल चलाने के शौकीनों से भरी हुई हैं, यह हैरानी की बात नहीं है कि पिछले दो वर्षों में साइकिल की दुकानों में वृद्धि हुई है। और यह सिर्फ श्रीनगर के शहरी इलाकों ;में ही नहीं है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी बड़ी संख्या में साइकिल की दुकानें खुली हैं।
श्रीनगर-बांदीपोरा राजमार्ग के 10 किलोमीटर के हिस्से में, पिछले कुछ वर्षों में आधा दर्जन से ज्यादा साइकिल शोरूम खुल गए हैं।
उत्तरी कश्मीर के साठ वर्षीय एक दुकान मालिक, सैयद सईद शाह कहते हैं – “साइकिलों की अच्छी मांग है, क्योंकि आजकल लोग इन्हें पसंद कर रहे हैं। पहले सिर्फ पुरुष ही खरीदते थे, लेकिन इस सीजन में, मैंने लड़कियों को भी कई साइकिलें बेची हैं।”
बढ़ती संख्या में माता-पिता भी अपनी युवा लड़कियों के लिए साइकिल खरीद कर रहे हैं।
सईद शाह कहते हैं – “पहले सिर्फ लड़के ही आते थे, लेकिन अब बहुत से माता-पिता अपनी स्कूल या कॉलेज जाने वाली लड़कियों के साथ साइकिल लेने मेरी दुकान पर आते हैं।”
अब जबकि साइकिल न चलाने की बंदिशें गायब हो रही हैं, महिलाएं और लड़कियां न सिर्फ अपने स्वास्थ्य और शारीरिक फिटनेस को बनाए रखने के लिए, बल्कि आवागमन की सुविधा के लिए भी साइकिल चला रही हैं। अब महिलाओं और लड़कियों को साइकिल से स्कूल, कॉलेज और काम पर जाते हुए देखना आम बात हो गई है और हर हफ्ते इनमें और अधिक शामिल हो रही हैं।
नासिर यूसुफी श्रीनगर में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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